मेरा परिवार ,मेरी ज़िंदगी,,,
मेरा परिवार ,मेरी ज़िंदगी,,,
35 साल हो गए निकाह को पर इधर 5 साल से मुख़्तार अहमद बीवी सकीना को एक पल को भी अकेले नहीं छोड़ते ।रिक्शा चलाते हैं,सो एक सीट पर उनकी बीवी बैठती,बाक़ी बची जगह पर सवारियाँ ।
जो भी कमाते उसमें अल्लाह का शुक्र अदा करते।बीवी को खिला- पिला कर उसकी एक मुस्कान पर वे फ़िदा हो जाते।
पूछने पर कहने लगे,"अरे प्यारी बीवी है मेरी। हमारी कोई औलाद भी नहीं है।8 बच्चे इसकी कोंख में आये तो ,पर दुनिया में खिलने से पहले ,मुरझा गए ।यह बेचारी सदमा न बर्दाश्त कर सकी और इसके दिमाग़ पर असर हो गया। अब इसकी दुनिया मैं हूँ और ये मेरा परिवार भी है और मेरी ज़िंदगी भी।घर में अकेला छोड़ दूँ तो इधर -उधर निकल जाती है। मैं इसका साथ दम रहने तक दूँगा,ये कसमें-वादे भूल गई पर मैं कैसे भूलूँ?"