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अख़लाक़ अहमद ज़ई

Abstract

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अख़लाक़ अहमद ज़ई

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भूखे-नंगे लोग

भूखे-नंगे लोग

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सारी दुकानें बंद हो गई थीं। यातायात के सारे साधन ठप्प पड़ गये थे। कुछ, जिन्हें घर पहुंचने की बेचैनी थी या जिन्हें पानी से डर नहीं लगता था, वह कमर-कमर तक पानी में घुसकर घर अथवा गन्तव्य स्थान तक पहुंचने की जद्दोजहद कर रहे थे लेकिन जिनमें पानी में घुसने की हिम्मत नहीं थी, वह सायन स्टेशन के बाहर पुल पर खड़े छाता ताने, पानी के खिसकने का इंतजार कर रहे थे लेकिन न बारिश रुक रही थी, न जल भराव कम हो रहा था और न ही रात ठहर रही थी। चार घंटे से अधिक समय से दूसरे राहगीरों के साथ वह भी फंसा पड़ा था। न तो बैठने का कोई साधन, न खाने-पीने का सहारा। बारिश की वजह से ठंड बढ़ गई थी सो अलग।

उसे दो घंटे पहले देकर गये चाय वाले छोकरे की याद आयी। उसने घूमकर पूरब की तरफ जाने वाले वन-वे की तरफ देखा। छोकरा उसी तरफ से आया था। पुल के बराबर सड़क होने के कारण उस तरफ थोड़ी दूर तक पानी का जमाव नहीं था। अचानक चमत्कारिक रूप से वही लड़का एक हाथ में चाय की केतली और दूसरे हाथ में प्लास्टिक कपों का दो फुटी रोल लिए उसी की तरफ बढ़ा आ रहा था। दस-बारह साल का दुबला-पतला सिर से पैर तक भीगा हुआ।

उसने दस का नोट शर्ट की जेब से निकालकर हाथ में ले लिया। पिछली बार चाय का पैसा लिए बगैर लड़का चला गया था। इस बार दोनों चाय का पैसा एक साथ वसूलेगा। एक चाय का पांच रुपये से क्या कम लेगा! ऐसे ही विपदाओं के समय इन छुटभय्यों की निकल पड़ती है। सालों की नीयत सही नहीं रहती इसीलिए तो कितना भी कमा लें, हमेशा भूखे-नंगे ही रहते हैं।

लड़के ने पास आकर ढेर सारे कप उसके छाते के नीचे फुटपाथ पर फैलाकर उसमें चाय उड़ेलने लगा।

"पैसा कितना?" उसने एक कप उठाते हुए पूछा।

"नहीं अंकल, बापू ने कहा है कि पैसा नहीं लेना।"

उसकी आंखें, लड़के और उसके पिता के प्रति कृतज्ञता से चमक उठी--लगता है, पैसे वाली पार्टी है।लड़के ने पुल पर इकट्ठी भीड़ को चाय बांटी और चला गया।

दो घंटे बाद फिर वही लड़का चाय की केतली और कपों का रोल लेकर आया। उस वक्त तक रात के दो बज चुके थे। वह भूख से बेचैन हो रहा था। लड़के ने फिर पहले की ही तरह कपों को जमीन पर फैलाया और चाय उड़ेलने लगा। उसने आभार मिश्रित भाव से पूछा --

"खाना खाया ?"

"नहीं अंकल, हम लोगों की तो आदत है।" लड़के ने बड़े ही सहज भाव से जवाब दिया--"लेकिन आप लोगों को भूखे रहने की आदत नहीं है न! इसीलिए बापू ने कहा कि कुछ नहीं है तो चाय ही पिला दो। ऐसे मौसम में सबका बदन तो गरम रहेगा !"

उसे इकबयक रुलाई की तेज हबक छूटी। लड़का आगे बढ़कर भीड़ को चाय बांटने में मशगूल हो गया। उसने अपने आप को संभालने की बहुत कोशिश की फिर भी लड़के की दी हुई मिठास में उसकी आंखों का नमक घुल ही गया।


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