Ruchi Singh

Abstract Drama Inspirational

4.8  

Ruchi Singh

Abstract Drama Inspirational

बहू के दाल के पराठें!!

बहू के दाल के पराठें!!

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"अरे ! कितनी खूबसूरत, सुंदर, मनमोहक मुस्कान, बड़ी बड़ी आंखों वाली यह किसकी लड़की है सरला।" 

किरण अपनी सहेली सरला से पूछती है। सरला "ये मेरी बेटी महक की सहेली है प्रीता" 

महक की शादी में प्रीता उसकी सखी, खूब सज - सँवरकर पहुंची थी जो देखे उसे मंत्रमुग्ध हो जाए। 

किरण जी भी उसकी सुंदरता व आकर्षक मुस्कान से अछूती ना रह पाई। किरण को प्रीता अपने बेटे नीरज के लिए पसंद आ गई थी। 

महक की शादी के बीतते ही किरण जी ने प्रीता के घर वालों का पता किया। 

प्रीता एक मध्यमवर्गीय परिवार की बड़ी बेटी थी। उससे छोटे उसका एक भाई और एक बहन थी। 

अगले हफ्ते किरण सरला के साथ अपने बेटे का रिश्ता लेकर प्रीता के घर पहुंच गई। इतने अच्छे घर से रिश्ता आया था तो प्रीता के मां-बाप भी मना नहीं कर पाए। 

प्रीता के घर जल्दी ही शहनाई बज गई। प्रीता एक नववधू की तरह सुखद सपनों को संजोए अपने नए घर में आ गई।

प्रीता के ससुराल मे किरण जी के अलावा (अशोक जी) प्रीता के ससुर, नीरज और (रश्मि) प्रीता की नंद रहते थे। रश्मि ग्रेजुएशन कर रही थी। 

शादी तो बहुत धूमधाम से हुई। प्रीता के मां बाप ने अपनी हैसियत के बढ़कर खूब खर्चा किया और सारे मेहमानो

को खुश कर दिया। 

दो-चार दिन के बाद धीमे-धीमे घर मेहमानों से खाली हो गया। मेहमानो के जाने के बाद प्रीता की पहली रसोई है जिसमें उसे खाना पकाना है। किरण जी के यहां की रस्म है की बहू को पहली रसोई में चने की दाल के पराठे, खीर और धनिया टमाटर की चटनी बनानी होती है। 


किरण जी प्रीता से बोली," प्रीता कल सुबह तुम्हारी पहली रसोई है। कल सुबह का खाना तुम बनोओगी बेटा।"

 प्रीता बोली "जी मम्मी जी! "

अगले दिन वह जल्दी -जल्दी उठ के तैयार होकर किचन में जाती है। प्रीता बहुत घबराई हुई थी। प्रीता को खाना बनाना तो आता है पर दाल के पराठे उसने कभी बनाए नहीं थे। तभी किरण जी की कोई फ्रेंड उनसे मिलने आ गई। किरण जी ने रश्मि से बोला कि रश्मि बेटा तुम भाभी कि कुछ हेल्प करा दो। रश्मि प्रीता से पूछी "भाभी कुछ हेल्प करनी है या आप कर लोगे? प्रीता सकोंच मे कुछ कह ना पाई और रश्मि अपना मोबाइल देखते हुए चली गई। प्रीता ने खीर और चटनी तो बना ली।

अब पराठे की बारी थी। प्रीता अकेले अपनी साड़ी के पल्लू को कमर में खोस दाल के पराठे बनाने की जद्दोज़हद मे लग गई। चार-पांच पराठे ही बना पाई थी बड़ी मुश्किल से, वह भी फट-फट के दाल भी बाहर आ रही थी। कोई भी पराठा सही नहीं बन पा रहा था। तभी किरण जी अपनी दोस्त के चले जाने के बाद किचन में आ गई। 

प्रीता अपने खराब पराठों को देख, मन मसोसकर डरती हुई मन मे सोची कि अभी मम्मी जी कुछ सुनाये ना।

वह अपने नये पराठे को बनाने की कोशिश जारी रखती है। 

किरण जी बोली "अरे, बेटा एक भी पराठा सही नहीं बन पा रहा। लाओ मैं बना कर दिखाती हूँ। तुम इतना घबरा क्यों रही हो। यह तुम्हारा ही घर है मुझे पता है कि धीरे-धीरे सब बनाना सीख जाओगी तुम।"

पराठे बनाते समय किरण जी प्रीता को प्यार से समझाती हैं "बेटा जैसे दाल के पराठे पर आहिस्ता आहिस्ता बेलन लगाया जाता है ताकि वह फटे ना और धीमे-धीमे बड़ा होता जाए। उसी तरह गृहस्थी की गाड़ी में तुम्हें और नीरज को प्यार का धक्का धीरे -धीरे लगाना है जिससे गाड़ी प्यार से चले, कभी पटरी से ना उतरे। कभी भी नीरज की गलती हो तो तुम रुक जाना उसे प्यार से समझाना। फिर तुम्हारे रिश्ते में कभी दरार नहीं आएगी और एक अच्छे दाल के पराठे की तरह अपने वैवाहिक जीवन को अच्छी तरह चलाना।" 

प्रीता मंद मंद मुस्कराकर बोली "जी मम्मी जी,"

वह मन में सोचती है कि, मम्मी जी ने आज मुझे वैवाहिक जिंदगी की इतनी बड़ी सीख कितनी आसानी से समझा दी। मैं अब इसका पालन करूंगी। मेरी मम्मी जी कितनी अच्छी व समझदार हैं। 


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