Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Babita Kushwaha

Abstract

4  

Babita Kushwaha

Abstract

बहु तो स्कूटी चलाती है

बहु तो स्कूटी चलाती है

5 mins
550


प्रिया सम्पन्न परिवार की शहर में पली बढ़ी लड़की थी। प्रिया की शादी छोटे शहर में हुई थी जहाँ आज भी घर की बहुओं को घूँघट में रहना पड़ता था। ऐसे तो प्रिया का ससुराल भी सम्पन्न था लेकिन छोटे शहर में आज भी लोगों की सोच संकीर्ण है| वहाँ घूँघट में रहने का रिवाज आज भी चलता है। अतः प्रिया को भी घर में बड़े बुजुर्गों और रिश्तदातों के सामने घूँघट करना पड़ता था।


प्रिया की सास सुमित्रा जी इस मामले में कुछ ज्यादा ही सख्त थीं, वो घर के आस पड़ोस के लोगों तक के सामने भी प्रिया को घूँघट करने को कहती। प्रिया की ननद और पति कई बार सुमित्रा जी को समझा चुके थे कि आस पड़ोस के लोग कौन से हमारे रिश्तेदार हैं! उनसे क्या घूँघट करना? ये सब पुराने जमाने की बातें हैं, आज तो जमाना बदल गया है लेकिन सुमित्रा जी किसी की एक न सुनती। प्रिया भी घर में शान्ति बनाये रखने के लिये सुमित्रा जी से कुछ न बोलती और न चाहते हुए भी चुपचाप घूँघट कर लेती।


प्रिया की ननद कविता हमउम्र होने के कारण उसकी प्रिया से अच्छी बनती थी। प्रिया को जब भी मार्केट या किसी काम से बाहर जाना होता तो कविता अपनी स्कूटी से ले जाती। प्रिया को स्कूटी चलाने का बड़ा शौक था| जब मायके में थी तो उसके पास खुद की स्कूटी थी, लेकिन ससुराल में सुमित्रा जी ने स्कूटी चलाने के लिये ये कहकर साफ मना कर दिया था कि घूँघट में स्कूटी कैसे चला सकती हो। फिर भी ननद भाभी जब भी बाहर जाते कविता कहती "भाभी यहां कौन सा मम्मी देख रही है! तो यहाँ काहे का घूँघट? ये लो चाबी और अब गाड़ी आप ही चलाओ, मैं तो पीछे बैठूंगी"। प्रिया की तो मन की मुराद पूरी हो गई थी। इस तरह अक्सर मोहल्ले से बाहर आकर प्रिया स्कूटी चलाकर अपना शौक कर लेती।


पर ये चोरी चोरी का शौक कब तक छिप सकता था। एक बार कविता के चचेरे भाई जो प्रिया के रिश्ते में जेठ लगते थे उन्होंने प्रिया को स्कूटी चलाते हुए देख लिया। फिर क्या था, वही हुआ जिसका डर था| जब तक प्रिया और कविता घर पहुँचे उसके पहले ही भाईसाहब घर पहुँच कर सुमित्रा जी को पूरी जानकारी दे चुके थे। सुमित्रा जी गुस्से से आग बबुला हो गई थी| भाईसाहब के जाते ही सुमित्रा जी ने कविता के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया| ये देखकर प्रिया थर थर काँपने लगी।


"मैंने मना किया था न कि प्रिया यहाँ स्कूटी नहीं चला सकती, फिर तुमने उसे अपनी गाड़ी क्यों चलाने दी और प्रिया तुमने तो हमारी नाक ही कटवा दी| कम से कम हमारी इज्जत का तो ख्याल किया होता, ये तुम्हारा मायका नहीं जो खुलेआम सबके सामने गाड़ी और अपना मुँह दिखाती फिरो" सुमित्रा जी गुस्से में बोले जा रही थी। प्रिया औऱ कविता दोनो चुपचाप सुन रही थीं। सबसे ज्यादा बुरा प्रिया को लग रहा था कि उसकी वजह से सुमित्रा जी ने कविता को थप्पड़ मार दिया।


प्रिया ने कई बार सुमित्रा जी से माफी मांगी पर वह बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई। उसके बाद से प्रिया का घर से बाहर जाना बंद हो गया| अगर प्रिया को कुछ काम भी होता तो पति रमेश या कविता से बोल कर मंगा लेती।


एक दिन सुमित्रा जी की अचानक तबीयत खराब हो गई| ठीक से कुछ बोल भी नहीं पा रही थी। प्रिया घबरा गई उसने जल्दी जल्दी रमेश को फोन लगाया पर उसका फ़ोन बंद आ रहा था| कविता दूसरे शहर अपनी सहेली की शादी में गई हुई थी। घर में प्रिया और सुमित्रा जी के अलावा कोई नहीं था। प्रिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। सुमित्रा जी की हालत और बिगड़ती जा रही थी। उसने किसी तरह सुमित्रा जी को अपने पीछे बैठाया और कविता की स्कूटी से उन्हें हॉस्पिटल ले गई। मोहल्ले वाले मदद करने की बजाय घूर घूर कर प्रिया को स्कूटी से सुमित्रा जी को ले जाते हुए देखते रहे।


डॉक्टरों ने सुमित्रा जी की हालत देखते हुए उन्हें आइसीयू में भर्ती कर लिया। तब तक रमेश भी खबर मिलते ही हॉस्पिटल पहुँच गया। जब सुमित्रा जी की हालत सुधरी तो डॉक्टर ने बताया कि इन्हें दिल का दौरा पड़ा था| थोड़ी भी देर हो जाती तो कुछ भी हो सकता था। प्रिया और रमेश के तो हाथ पांव ही फूल गए थे ये सुनकर।

लगभग एक हफ्ते बाद सुमित्रा जी को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई। शाम को मोहल्ले की कुछ औरतें सुमित्राजी से मिलने आई। हाल चाल पूछने के बाद उन्होंने सुमित्राजी के कान भरने शुरू कर दिए कि कैसे प्रिया बेशर्मी से स्कूटी चलाते हुए गई थी औऱ हम लोगों को देखकर घूँघट भी नहीं किया।


सुमित्रा जी ने उनके सामने ही प्रिया को आवज दी तब तक प्रिया घूँघट किये हुए सबके लिए चाय भी ले आई, साथ ही डर रही थी कि आज तो माँ जी मुझे छोड़ने वाली नहीं। तभी सुमित्रा जी ने प्रिया को पास बुलाया और उसका घूँघट हटाते हुए कहा "ये हमारे घर की बेटी है और बेटी से भला क्या घूँघट करवाना"। प्रिया को नई स्कूटी की चाबी भी दी जो उन्होंने पहले ही रमेश से मंगवा ली थी|


"आज से तुम भी स्कूटी चला सकती हो। मुझे माफ़ कर दो बेटा, अगर उस दिन तुम मुझे अस्पताल सही समय पर न ले जाती तो आज मैं यहाँ पर न होती"।

ये देखकर मोहल्ले की औरतें मुँह बनाकर चुपचाप वहां से चल दिन और दोनों सास बहु चाय की चुस्कियों का मजा लेने लगी।


दोस्तों, हमारा समाज कितना भी आगे क्यों न बढ़ गया हो महिलाएं कहाँ से कहाँ तक पहुंच गई हों, पर आज भी बहुत से घरों में महिलाओं को घूँघट से आजादी नहीं मिल पाई है। सदियों पुरानी रूढ़िवादी सोच को आज भी रिवाज और पंरपरा के नाम पर जबर्दस्ती बहुओं पर थोपा जाता है।



Rate this content
Log in

More hindi story from Babita Kushwaha

Similar hindi story from Abstract