पहला प्यार
पहला प्यार
अपनी पसंदीदा साहित्यिक पत्रिका को बालकनी में चाय की चुस्कियों के साथ पढ़ना राधा को बहुत पसंद था। उसे जब भी समय मिलता अपनी किताब ले कर बालकनी में बैठ कर पढ़ती। यह उसकी फेवरेट जगह थी। उसे यहां बड़ा सुकून मिलता था। घर से सटा हुआ लगा गुलमोहर का पेड़ गर्मियों में भी ठंडी छाव देता था। राधा ने इसी साल बोर्ड के एग्जाम दिए थे यानी जवानी की दहलीज में कदम रखा ही था। और एग्जाम के बाद मिले समय को वह नॉवेल पढ़ कर गुजारती।
राधा के घर के ही सामने धाकड़ परिवार रहता था। उनके बच्चे अक्सर घर के बाहर खेलतें कभी कभार राधा भी अपनी बालकनी से बच्चों से बात कर लेती। एक दिन उसने देखा कि सामने के घर से कोई लड़का उसे ही देख रहा है। राधा की आंखे उससे टकराई तो उसने आंखे घुमा ली। इससे पहले तो उसने उस लड़के को वहाँ नहीं देखा था। धाकड़ जी के दो ही बच्चे है जो बाहर खेल रहे है फिर ये लड़का कौन होगा..? मन मे सोचती। एक दिन उसने बाहर खेलते बच्चो से पूछ लिया कि उनके घर मे वो लड़का कौन है। बच्चे ने बताया कि वह उसके बड़े पापा के लड़के है गर्मियों की छुट्टियां बिताने आये है। राधा ने दो तीन दिन नोटिस किया जब भी वह बालकनी में आती है वह लड़का इसी और देखता रहता है।
अब राधा बालकनी में आने से थोड़ा सकुचाने लगी थी पर घर मे तो उसका मन ही न लगता उसे तो आदत ही थी सुबह शाम अपनी पसंदीदा जगह पर समय बिताने की। "वो मुझे देखता है तो देखने दो मुझे क्या उससे चक्कर में मैं अपनी आजादी क्यों छोड़ू" अब राधा धाकड़ जी के घर की और पीठ देकर बैठने लगी। पर राधा इधर उधर किसी बहाने से गर्दन घुमा कर पीछे देख ही लेती। शायद कहि न कही राधा को भी उसका यू निहारना अच्छा लगने लगा था। कहते है न कि प्रेम एहसासों और जज्बातों का अनूठा संगम है जिसमे डुबकी लगाना हर किसी की चाहत होती है और फिर राधा ने जवानी की दहलीज पर कदम ही तो रखा था ये उम्र ही ऐसी होती है कोमल,नाजुक, इस उम्र में आकर्षण हो ही जाता है।
एक दिन धाकड़ जी का छोटा लड़का दौड़ता हुआ राधा के पास आया और कहाँ की भैया पूछ रहे आपने अगर वो साहित्यिक किताब पढ़ ली हो तो दे दीजिये। राधा को थोड़ा अजीब लगा अच्छा तो वह इस किताब के लिए इस और देखता था। चलो अच्छा है वरना मैं तो फालतू ही सोचने लगी थी। उसने किताब ला कर उस बच्चे को दे दी। उसके बाद दो दिनों तक वह लड़का उसे बालकनी पर नहीं दिखा। दो दिन बाद वह बच्चा फिर आया और उसने वह किताब लौटा दी और कोई दूसरी किताब देने को कहा साथ ही कहा भैया ने आपको थैंक्यू बोला है। इस बार राधा ने एक दूसरी किताब उस बच्चे को पकड़ा दी। बच्चा दो दिन बाद वह किताब भी लौटा गया और फिर एक दूसरी किताब देने को कहा। अब राधा को भी थोड़ी चिड़ आ गई। "उसे क्या मैं कोई लाइब्रेरी दिख रही हु जो जब चाहे किताब मंगा लेता है जब चाहे दे जाता है इतने ही पढ़ने का शौक है तो खरीद क्यों नहीं लेता।" मन मे बड़बड़ाते हुए फिर एक किताब उस बच्चे को दे दी। जितनी बार भी बच्चा किताब लेने आता था वह लड़का अपनी खिड़की या बालकनी से इस
ी और देखता था जैसे बच्चे के रूप में वह खुद यहाँ आता हो। इस बार बच्चा अगले दिन ही किताब लौटा कर चला गया इस बार उसने कुछ नहीं कहा राधा ने बालकनी की और देखा वह लड़का भी बाहर नहीं दिखा। अंदर आ कर उसने किताब खोली तो एक कागज गिरा।
राधा ने उत्सुकता से वह कागज खोला उसमे लिखा था "मैं तुमसे प्यार करता हूं आई लव यू" इतना पढ़ते ही राधा की धड़कने जोर जोर से चलने लगी इससे पहले उसे किसी ने भी प्रपोज नहीं किया था। दिल की धड़कने बढ़ती ही जा रही थी उसे लगा अगर ये कागज घर मे किसी के हाथ लग गया तो.... उसने तुरंत कागज के टुकड़े कर दिए और घर की पिछली खिड़की से बाहर फेंक दिया।
राधा को ध्यान आया कही पुरानी किताबे जो उसने लौटाई थी कहि उसमे भी तो कुछ नहीं रखा.... उसने तुरंत पुरानी दोनो किताबे खोली जिसमे से एक मे लगभग हर पन्ने पर "आई लव यू राधा" लिखा था उसे मेरा नाम कैसे पता मुझे तो अभी तक उस लड़के का नाम नहीं पता डर और घबराहट में उसने वो किताब भी फाड़ दी। आज शाम को वो बालकनी में भी नहीं गई उसे बाहर जा कर उससे आंखे मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। लेकिन दिल की धड़कने अब कम हो गई थी। प्रेम की हलचल राधा के मन मे भी हो चली थी। घबराहट के कारण उसने वह कागज भी ठीक से नहीं पढ़ा था। "कितनी बेवकूफ हु मैं तुरंत ही फाड़ दिया ठीक से पढ़ तो लेती अपने कमरे में कही भी छुपा सकती थी उस जरा से कागज को। पहली बार किसी ने मुझे आई लव यू कहा और उस लम्हे को भी मैंने ठीक से नहीं जीया" मन मे ही सोचने लगी।
अब उसका मन हो आया की एक बार फिर उस कागज को पढ़े। घर के पीछे का गेट खोलकर उसने उस कागज को ढूढ़ा जो पीछे बगीचे की झाड़ में फंसा था कुछ टुकड़े पास ही फैले थे उन्हें बटोर कर राधा कमरे में ले लाई कागज को जोड़ कर टेप से चिपका दिया और पढ़ने लगी "जिस दिन तुम्हे पहली बार बालकनी में बैठे देखा था तभी तुम मेरे दिल मे बस गई थी। तुम्हे रोज निहारना, बच्चों से मुस्कुराते हुए बाते करते हुए देखना मैंने मन को बहुत सुकून दे जाता था। इतने सुकून भरे 30 दिन कैसे निकल गए पता ही न चला अब मेरे जाने का समय हो गया है। और जाने से पहले मैं तुम्हे अपने दिल की बात बताना चाहता हूं मैं तुमसे बहुत प्यार करता हु आई लव यू राधा। अगर तुम्हें भी मेरा प्यार स्वीकार हो तो शाम को बालकनी में मुस्कुराते हुए आ जाना मैं तुम्हें अपना नम्बर इशारों से बता दूँगा अगर मैं पसन्द नहीं हु तो ये कागज मुझे दिखाते हुए मेरे सामने ही फाड़ देना।" राधा ने पूरा खत पढ़ते ही बालकनी की ओर दौड़ लगा दी। पर शायद बहुत देर हो चुकी थी सामने के घर मे अंधेरा था। कई दिनों तक राधा उस घर की और बेचैनी से बार बार देखती रही। एक दिन उसने हिम्मत करते हुए उस छोटे बच्चे से पूछ लिया। बच्चे ने बताया कि भैया की छुट्टियां खत्म हो गई थी इसलिए वापस अपने घर चले गए।
आज राधा की शादी हो गई अब कई साल बीत चुके है पर आज भी वह अपने पहले प्यार को भुला नहीं पाई है जब भी वह मायके आती है एक बार उस घर की और जरूर देखती है।