Babita Kushwaha

Horror Thriller

4.4  

Babita Kushwaha

Horror Thriller

अंजान शक्ति

अंजान शक्ति

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हवा के तेज झोंके से राधा की निंद खुल गई। बगल में गर्दन घुमाई तो देखा रवि बिस्तर पर नही है। शायद घर मे लाइट नही थी कमरे में भी अंधेरा था राधा ने तो-तीन बार रवि को आवाज दी पर कोई जवाब न आया। तकिये के पास टोटलते हुए राधा ने फोन उठाया तो रात के दो बज रहे थे। अब तक राधा की नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी। इतनी रात को रवि कहा गए होंगे सोचते हुए राधा ने मोबाइल की टॉर्च जलाई और कमरे से बाहर आकर रवि को आवाज देने लगी। एक एक करके उसने सभी कमरे देख लिए पर रवि कहि नहींं दिखा।

घर मे अंधेरा ही अंधेरा था। रोशनी करते हुए जब दरवाजे के पास पहुँची तो दरवाजे की कुंडी अंदर से ही बंद थी। मतलब रवि बाहर नही गया घर मे ही है। दरवाजा चेक करने के बाद वह जैसे ही मुड़ी किसी ने राधा को अपने दोनो हाथों में जकड़ लिया, एक पल तो उसे लगा कि वो रवि ही है पर मोबाइल की रोशनी से दीवार पर बनी परछाई में उसे केवल खुद की ही परछाई दिखी पीछे कोई की परछाई न दिखी। उसने तुरंत गर्दन घुमाई पीछे कोई नही था पर कोई अंजान ताकत तो जरूर थी जो उसे कसकर जकड़े हुई थी। राधा की बेचैनी बढ़ने लगी, उसकी साँसे तेज और तेज होती जा रही थी।

राधा छटपटाने लगी, तड़पने लगी, पूरी ताकत व इच्छाशक्ति से उस अंजान हाथों से खुद को छुड़ाने के प्रयत्न में लग गई... राधा में जितनी भी शक्ति व साहस था एक लम्बी साँस भर कर उसने पूरी तरह खुद को छुड़ाने में झोक दी... उस जकड़न, बंधन से आजाद होने के प्रयत्न में जोर से हुंकार भरी, मानो जैसे उसके अंदर दिव्य दुर्गा की शक्ति हुंकारने लगी हो। किसी तरह खुद को छुड़ाकर दौड़ते हुए कमरे की ओर भागी। कमरे में आते ही उसने जल्दी से दरवाजा बंद कर लिया।

छटपटाहट में फ़ोन भी वही छूट गया था। उसकी सांसे अभी भी जोर जोर से चल रही थी।

एक बार फिर हवा का तेज झोंका आया और उसे लगा जैसे किसी ने उसे पैरों में छुआ। राधा ने डरते हुए हाथ आगे बढ़ाया उसे लगा जैसे किसी मर्द का शरीर हो, चीखते हुए उसने हाथ वापिस खिंच लिये तभी अचानक से बिजली तड़की बिजली तड़कने की रोशनी उसके कमरे में भी कुछ सेकंड के लिए पड़ी और उसे रवि की खून से सनी लाश फर्श पर दिखी। लाश को देखते ही वह जोरो से चीखी।

"अरे नेहा क्या हुआ.. तुम इतनी जोर से चिल्लाई.." रवि ने राधा की पीठ सहलाते हुए कहा

"रवि तुम ... तुम तो.." एक पल के लिए उसे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ

"मैं क्या राधा.. लगता है कोई बुरा सपना देखा है। लो पानी पियो" पानी देते हुए रवि ने कहा

"हां शायद सपना ही था" खुद को दिलासा देते हुए राधा बोली। पर वह अभी भी एकटक रवि को ही देख रही थी।


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