Renu Poddar

Abstract

4.5  

Renu Poddar

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बहिष्कार

बहिष्कार

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शेखर की शादी को दस साल हो गए थे। उसकी पत्नी शीतल बहुत ही सुन्दर और सुलझी हुई महिला थी। शेखर और शीतल की दो बेटियां थी नौ वर्ष की कृति और पांच वर्ष की ध्रुवा। शेखर का पूरा परिवार गाँव में रहता था। उसकी नौकरी मुंबई में होने की वजह से वह शीतल और दोनों बेटियों के साथ मुंबई में रहता था।

शीतल का मायका उनके घर से 10 किलोमीटर की दूरी पर था। शेखर को शीतल का मायके जाना ज़्यादा पसंद नहीं था इसलिए शीतल अपने माता-पिता और भाई-भाभी से कभी-कभी ही मिल पाती थी। शीतल घर के कामों में तो निपुण थी ही साथ ही साथ ऑनलाइन काम कर के वो अच्छा कमा लेती थी ताकि बच्चों को अच्छा भविष्य दे सके और घर का सारा भार अकेले शेखर के कन्धों पर ना पड़े बावजूद इसके शेखर की आदतें कुछ अजीब सी थी।

उसका सामना जब भी किसी सुन्दर लड़की से होता था वो उसकी और आकर्षित हो जाता था और उस लड़की के साथ छेड़- छाड़ करनी शुरू कर देता था।

अगर लड़की की सहमती होती तो वो एक शादी-शुदा मर्द की मर्यादा का उलंघन करने से भी नहीं चूकता था। उसे अपनी इस बात के लिए कोई ग्लानि भी नहीं होती थी उसे लगता था "यह तो ज़िन्दगी जीने का एक तरीका है, मैं इसमें शीतल को कोई धोखा थोड़ी दे रहा हूँष" शीतल को उसकी कुछ-कुछ आदतों का पता था। जिन्हें बदलने के लिए वो शेखर को समझाती थी पर शेखर उसे यह कह कर टाल देता था कि मैं किसी और से थोड़ी शादी करने जा रहा हूँ। शीतल अपने संस्कारों से बंधी यह सोच कर चुप हो जाती थी कि अगर उसने शेखर के खिलाफ कोई कदम उठाया तो उसकी बेटियों का क्या होगा।  

एक बार शेखर का बी.पी. बहुत हाई हो गया। जिस वजह से डॉक्टर ने उसे एक दो दिन के लिए एडमिट होने की सलाह दी। समय-समय पर नर्स उसको दवाई दे रही थी और उसका बी.पी. चैक कर रही थी। शेखर उस नर्स कि तरफ इतना आकर्षित हो गया की वो जब भी मौका मिलता नर्स को छूने की कोशिश करता।

इंजेक्शन ना लगवाने के लिए बच्चों की तरह मचलता ताकि उसे नर्स को यहाँ-वहां छूने का मौका मिल सके। शुरू-शुरू में तो नर्स उसके गंदे इरादों को समझ नहीं पायी पर जब शेखर हर बार ही ऐसी हरकत करता तो नर्स को उसके ऊपर बहुत गुस्सा आने लगा। एक दो दिन बाद शेखर की तबियत ठीक हो गयी। डॉक्टर ने शीतल को डिस्चार्ज पेपर लाने के लिए बोल दिया। शीतल पेपर लेकर जैसे ही कमरे में दाखिल होने लगी, उसने देखा शेखर ने नर्स का हाथ पकड़ रखा था और उससे कह रहा था "आपको छोड़ के जाने का मन नहीं कर रहा"| नर्स ने शेखर को पीछे धकेल कर उससे अपना हाथ छुड़वाया और जल्दी से बाहर की तरफ भागी। शीतल को देख कर नर्स के कदम ठिठक गए। शीतल नर्स का हाथ पकड़ कर उसे शेखर के बैड के पास लायी और शेखर को फटकारते हुए बोली शर्म नहीं आती आपको ! 

डॉक्टर और नर्स इंसान के लिए भगवान की तरह होते हैं, पर आप तो इस छोटी सी मासूम बच्ची को भी गन्दी निगाह से देखने से बाज नहीं आये। आपके लिए हर स्त्री आपका मनोरंजन करने का साधन मात्र है। मैं ही पागल थी, जो इतने साल यही सोचती रही की आप धीरे-धीरे बदल जाओगे पर जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ रही है आपकी हरकते तो और ओछी होती जा रही हैं। शेखर अपनी सफाई देता हुआ "बोला दिमाग ख़राब हो गया है, क्या तुम्हारा ? मैं इस नर्स के साथ बत्तमीज़ी कर रहा था या ये जबरदस्ती मेरे गले पड़ रही थी। शीतल ने शेखर के मुंह पर चांटा मारते हुए कहा "बस करो, कुछ तो शर्म करो। हमरी बेटियां भी अब बड़ी हो रही हैं अगर कोई उनके साथ गन्दी हरकतें करेगा तो कैसा लगेगा तुम्हें ? पर बस अब और नहीं, मैं अब अपनी बच्चियों के साथ तुम्हारे पास नहीं रहूंगी। क्या पता कल तुम उनके साथ भी कुछ गलत कर बैठो। माफ़ी मांगो इस नर्स से, अगर ये तुम्हें ज़िन्दगी दे सकती है तो तुम्हारी ज़िन्दगी ले भी सकती है।

शेखर ने नर्स से तो माफ़ी मांग ली पर शीतल ने अब उसे कभी माफ़ ना करने की कसम खा ली। उसने शेखर से अलग होने का फैसला कर लिया क्यूंकि जिस आदमी को उसने अपना सर्वस्व सौंप दिया था, उसके मन में स्त्रियों की कोई इज़्ज़त नहीं थी। स्त्रियां उसके लिए एक भोग की वस्तु थी और ऐसे आदमी के साथ शीतल अब दो पल भी रहना नहीं चाहती थी। 


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