देर आये दुरुस्त आये
देर आये दुरुस्त आये


यशोदा जी को अभी गाँव से आये हुए कुछ दिन ही हुए थे, अपने बेटे-बहु के पास आये हुए। आते ही उनकी पैर की हड्डी टूटने की वजह से उनके पैर में प्लास्टर बंधा हुआ था। वह ड्राइंग रूम में दीवान पर ही लेटी रहती थी क्यूंकि ड्राइंग रूम की खिड़की से उन्हें बाहर का दृश्य अच्छा दिखता था। दोपहर के करीब 12 बजे के आस-पास उन्हें अपने बेटे-बहु की बहस की आवाज़ें आयी।
उनकी बहु शैली उनके बेटे रोहित से अलमारी में से ऊपर के खाने में से थर्मस निकालने के लिए कह रही थी।
इतनी सी बात पर रोहित झल्लाता हुआ बोला "दो मिनट मेरा बैठना मुश्किल कर देती हो।"
शैली ने अपनी सफाई देते हुए कहा "मैं सोच रही हूँ थर्मस में थोड़ा गर्म पानी भर कर रख दूँ क्योंकि सब कोरोना की वजह से दिन में दो-चार बार गर्म पानी पीने को कह रहे हैं।" रोहित ने मन मार कर थर्मस उतार दिया। शैली अपने बेटे को सुला कर जैसे ही रसोई की तरफ आने लगी, रोहित ने उसे एक कप चाय बना कर लाने को कहा।
शैली ने थोड़ा गुस्से में कहा "अभी कुछ देर पहले ही तो तुमने चाय नाश्ता खाया है। सबका नाश्ता देकर, बर्तन धो कर, कपड़े वाशिंग मशीन में डाल कर, अक्षत को नहला कर दलिया खिला कर सुलाया है। अब मैंने सोचा इतने अक्षत सो रहा है खाना बना लेती हूँ, लेकिन तुम्हें तो जब देखो तब चाय चाहिए। ऐसे तो मेरा पूरे दिन काम चलता रहेगा।"
रोहित बड़बड़ाता हुआ कमरे से बाहर यह कहते हुए आया कि "ज़रा से काम में ही ज़ोर पड़ जाता है।"
रोहित बाहर जाने के लिए दरवाज़ा खोल ही रहा था तभी यशोदा जी उससे पूछने लगी "अरे रोहित तू कहाँ जा रहा है, पता है ना कोरोना की वजह से लॉक डाउन हुआ है।"
"मम्मी आप भी कैसी बातें करती हो, मुझे स। मैं तो ये देखने जा रहा हूँ, कितने लोग अभी भी बाहर घूम रहे हैं।"
शैली ने शरारत भरे अंदाज़ में कहा "रोहित को जाने दो मम्मी, अभी पुलिस वालों के चार पांच डंडे खा कर वापिस आ जायेंगे।"
यशोदा जी ने हँसते हुए कहा "चुप कर मेरे बेटे को मार खिलवाना चाहती है।" फिर उन्होंने रोहित की तरफ देखते हुए कहा
"तेरे जैसे लोगों की वजह से ही तो कोरोना बड़ रहा है। तू शान्ति से घर में बैठ जा और घर के कामों में हाथ बंटा।"
"मम्मी अगर मुझे ही घर के काम करने हैं, तो आपकी बहु क्या करेगी"? रोहित ने आँखें तरेरते हुए कहा।
"वाह बेटा, मैं बहु के रूप में, ज़िन्दगी भर तेरा साथ निभाने के लिए, तेरी अर्धांगिनी लाई थी पर जब से मैं यहाँ आई हूँ, मैं महसूस कर रही हूँ तूने उसे बिलकुल नौकरानी बना दिया है" यशोदा जी ने शैली की तरफ हमदर्दी से देखते हुए कहा।
"वाह मम्मी चार दिन घर के काम करने से वो नौकरानी बन गयी। वैसे तो मैंने बर्तन और सफाई के लिए कामवाली लगा ही रखी है।" रोहित ने शिकायत भरे अंदाज़ में कहा
"अपने घर का काम करने से ना वो नौकरानी बनेगी और ना ही तू नौकर बनेगा। मेरी तबियत ख़राब होने की वजह से शैली मुझ से भी काम नहीं करवाती। तुम्हारा बेटा भी अभी सिर्फ दो साल का है। शैली को उसका ही कितना काम हो जाता है। ऐसे में तू सारा दिन बैठा-बैठा अलग-अलग खाने-पीने की फरमाईश करता रहता है। कम से कम तू उसकी मदद नहीं कर सकता तो उसका काम भी मत बड़ा" यशोदा जी ने रोहित को डांटते हुए कहा।
"मम्मी आप की बातों से तो ऐसा लग रहा है, जैसे मैं आपका बेटा नहीं शैली आपकी बेटी हो" रोहित ने शैली को घूरते हुए कहा।
"ठीक कहा तूने, जिस दिन तुम्हारा रिश्ता पक्का हुआ था। उसी दिन से मैंने शैली को अपनी बेटी समझ लिया था" यशोदा जी ने शैली को अपने पास आने का इशारा करते हुए कहा।
"मम्मी मेरे चार दिन घर में बैठने सी ही आप लोग इतना परेशान हो गये।" रोहित बच्चों की तरह मुंह बनाता हुआ बोला ,
यशोदा जी ने उसे समझाते हुए कहा "बेटा घर का सारा काम शैली को अकेले करना पड़ रहा है। अगर वो बीमार पड़ गयी, तब तू क्या करेगा ? अपने छोटे- छोटे काम तू खुद कर लेगा, तो तेरा क्या बिगड़ जायेगा। घर के छोटे-छोटे काम भी अगर तू कर देगा तो ही शैली को बहुत आराम मिल जायेगा। अक्षत का ध्यान तो तू रख ही सकता है।
आगे यशोदा जी ने रोहित को धमकी देते हुए कहा "अगर तुझे मेरी कोई बात नहीं सुननी, तो मुझे कल जैसे भी गाँव भेज दे अपने पापा के पास। कम से कम मेरे काम का बोझ तो हटेगा, शैली के सर से।
रोहित ने मुंह बनाते हुए कहा "बचपन से तो मुझे घर का कोई काम करने नहीं दिया। अब अचानक से सोच रही हो, घर के सारे काम करने लगूँ।"
यशोदा जी ने उसे आँखें दिखते हुए कहा "देर से ही सही पर अब अपनी गलती का एहसास हो गया है मुझे और कहते हैं ना देर आये दुरुस्त आये।"
रोहित ने यशोदा जी के पास बैठते हुए कहा "कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है आपको। अब से जैसा आप कहोगी वैसा ही करूँगा।
शैली दूर खड़ी हुई मुस्कुराती रही। उसे आज अपनी सासू माँ में अपनी माँ नज़र आ रही थी।ब पता है