आपसी सहमती
आपसी सहमती


शीतल जी की आज सुबह से तबियत ठीक नहीं थी। ऐ.सी. में बैठे-बैठे भी उन्हें पसीना आ रहा था। दवाई खा कर ज़रा सा आराम मिला तो, शीतल जी ने अपने पति विनय जी को दुख भरी निगाह से देखते हुए कहा "लड़के वालों का कल का रवैया देख कर तो मेरा उनके ऊपर से भरोसा ही उठ गया है, मैंने तय कर लिया कि क्या करना है। आखिर ये हमारी इकलौती बेटी (समृद्धि) की ज़िन्दगी का सवाल है । हमने भी उसे अच्छा-खासा पढ़ाया-लिखाया, उसे उसके पैरों पर खड़ा किया । साल का उसका पैकेज भी लड़के के बराबर है । देखने में भी तन्मय (लड़के का नाम ) से इक्कीस ही है हमारी समृद्धि।
समृद्धि हमेशा से एक खुले विचारों वाले लड़के से शादी करना चाहती थी पर तन्मय तो हर बात में किसी बड़े-बूढ़े की तरह उसके ऊपर रोक-टोक ही लगाता रहता है, फिर भी मैं हर बार समृद्धि को ही समझाती रही कि थोड़ा बहुत एडजस्ट तो हर लड़की को करना पड़ता है । तीन महीने में ही मेरी बेटी मुरझा गई । वो वैसी रही ही नहीं जैसी वो थी ।तन्मय के घर वालों को तो इन दोनों का मिलना-जुलना भी पसंद नहीं है । समृद्धि उससे फोन पर बात करना चाहती है तो भी आधी से ज़्यादा बार वो अपने व्यस्त होने का बहाना बना देता है । समृद्धि खुल कर जीने वाली लड़की है पर तन्मय हर वक़्त उसे टोकता रहता है "धीरे बोलो, धीरे हंसो" अरे शादी होने जा रही है, समृद्धि उसकी पत्नी बनने जा रही है, ना की गुलाम, फिर भी जिस दिन से रिश्ता पक्का हुआ है, हम हर बात में उनके आगे हाथ जोड़ कर ही खड़े रहते हैं आखिर लड़की वाले जो ठहरे"।
विनय ने बीच में ही शीतल को टोकते हुए कहा "अरे तुम भी क्या बच्चों जैसी बातें कर रही हो, वो दोनों जब शादी के बाद एक साथ रहेंगे, तो एक-दूसरे के तौर-तरीके सीख जायेंगे"।
"नहीं विनय जी" शीतल जी ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, मुझे पता है आपको बेटी के भविष्य से ज़्यादा अपनी इज़्ज़त की पड़ी है कि लोग क्या कहेंगे? पर मेरे लिये मेरी बेटी का सुख मायने रखता है ना की लोगों की बातें । सिर्फ यही सब बातें होती तब भी मैं एक बार को सोच लेती परन्तु कल जब उन्होंने आपके सामने कहा है, तन्मय के ऑफिस वाले उसे चार महीने के लिए अमेरिका भेज रहे हैं इसलिये हम दो लोगों को ले आते हैं और आप भी दो लोग आ कर या तो मंदिर में या कोर्ट में या ऑन लाइन इनकी शादी करवा दो'। अब ऐसी भी क्या जल्दी आ पड़ी उन लोगों को कि वो कुछ दिन इंतज़ार नहीं कर सकते ? आपने और मैंने तन्मय के मम्मी-पापा को कितना समझाने की कोशिश की कि हमें शादी की कोई जल्दी नहीं है। तन्मय जब अपना काम कर के वापिस आएगा, तो हम धूम-धाम से बच्चों की शादी करेंगे पर वो हमारी एक बात सुनने को तैयार नहीं हैं। मान लीजिये अभी हम जल्द बाज़ी में शादी कर भी दें और तन्मय शादी के बाद काम के बहाने बाहर जाये और वहीं का हो कर रह जाये। ऐसे में हमारी बेटी की ज़िन्दगी तो बर्बाद ही हो ज
ायेगी"।
मैंने उड़ती-उड़ती बातें सुनी हैं कि "वो लोग बहुत लालची है, वो सोच रहें हैं समृद्धि जल्दी उस घर में बहु बन कर जाये और उसकी सैलरी उनके अकाउंट में जाये । वो नहीं चाहते शादी ज़्यादा टले क्यूंकि अगर शादी टली तो उनका बैंक- बैलेंस कैसे बढ़ेगा? पहले कह रहे थे शादी में कुछ नहीं चाहिये, जो देना हो अपनी बेटी को देना पर कल लेने-देने की कितनी लम्बी लिस्ट थमा दी आपको, फिर भी आपको मैं ही गलत लग रही हूँ ? अरे हमारी इकलौती बेटी है, मेरी भी तमन्ना है उसकी अच्छी से अच्छी शादी करने की पर ऐसे छोटे विचारों वाले और लालची लोगों के घर में तो में बिल्कुल अपनी बेटी नहीं दूंगी।
विनय ने एक बार समृद्धि कि भी राय लेना चाही इसलिये उन्होंने समृद्धि कि तरफ सवालियां नज़रों से देखा?
समृद्धि ने भी कहा "पापा मम्मी ठीक कह रही है, इतने दिनों में भी ना मैं तन्मय को समझ पाई हूँ और ना ही उसके परिवार को। शादी तो दो दिलों का बंधन है पर तन्मय के साथ मुझे कभी लगा ही नहीं कि वो कभी भी हमारी आपसी सहमती से कोई फैसला लेंगे"। समृद्धि ने आगे अपनी बात पर ज़ोर डालते हुए कहा "मम्मी, वैसे भी मैं आप सबसे दूर विदेश में जाकर बसना नहीं चाहती और पता नहीं वहां मुझे मेरे मन मुताबिक नौकरी मिलेगी भी या नहीं"।
विनय ने समृद्धि के कंधे पर हाथ रख कर कहा पर "मैंने आपसी सहमती से एक फैसला ले लिया है" उन्होंने फोन उठाया और लड़के वालों को शादी के लिए मना कर दिया|
फ़ोन रखने के बाद विनय ने समृद्धि और उसकी मम्मी से कहा "जब भी ऐसा कोई फैसला लिया जाता है एक बार को तो सबका दिल टूटता ही है और रिश्तेदार, दोस्त और दुनिया वालों की सवालियां नज़रों का सामना करना मुश्किल हो जाता है पर अगर इस एक फैसले से समृद्धि को ज़िन्दगी भर रोने से बचाया जा सके तो यह फैसला लेने में देर क्यूँ करनी थी।
शीतल जी को विनय जी के कुछ ही देर में लिए फैसले से झटका तो लगा पर फिर अपने को संभालती हुई बोली "रिश्ता पक्का होने से लेकर अब तक हमने लाखों रूपया खर्च कर दिया। रोके में लड़के को जो अंगूठी दी थी वो तो आप वापिस मांग ही लेना। समृद्धि को जो अंगूठी उन्होंने पहनाई थी, वो भी उन्होंने यह कह कर वापिस ले ली थी की 'ये समृद्धि की ऊँगली में थोड़ी ढ़ीली है, हम कसवा कर दो-चार दिन में दे देंगे' पर आज तक उन्होंने समृद्धि को वो अंगूठी ठीक करवा कर नहीं दी। मैंने तो उन्हें कहा भी था की हम ठीक करवा लेंगे पर जिनकी नियत में ही खोट हो उनका कोई इलाज़ नहीं है"।
समृद्धि ने जब अपनी सहेलियों को तन्मय के साथ उसका रिश्ता टूटने की बात बताई, तो सबने मिलकर उसको यही समझाया कि "शादी होने के बाद वो लोग तुझे और तेरे मम्मी-पापा को अपनी रोज़-रोज़ की मांगों से तंग करते। तुम सब का एक-एक पल जीना दुष्वार करते, उससे तो अच्छा ही है तुम सबने मिलकर एक अच्छा फैसला लिया।"