Raginee Srivastava

Abstract

5.0  

Raginee Srivastava

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भावुक मूर्ख

भावुक मूर्ख

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ओफ्फो ...बुआ इतनी धूप में भी तुम्हें शिवमंदिर इस पुराने रास्ते से ही आना रहता है इधर बहुत धूल मिट्टी है,  देखो मेरे पैर कितने गंदे हो रहे हैं। तुम कभी मेन रोड से क्यों नहीं चलती वहाँ हमें रिक्शा भी मिल जाता, 15वर्षीया अक्षिता ने खुनकते हुए अपनी बुआ स्मृति से कहा था। 

चुपचाप चल अब ज्यादा नखरे न दिखा, तुझे तो पता है 

कि मैं मंदिर इधर से ही जाती हूं, पता है स्कूल और कॉलेज जाने के दस साल मेरा यही रास्ता था, इधर मेरी सहेलियों के घर भी तो है और वो बगीचा भी जहाँ हम सहेलियों इकठे होती थी। 

पर बुआ अब तो तुम्हारी सभी दोस्ते अपनी ससुराल में है। तुम मिल भी नही पाती धूल साफ करते हुए अक्षिता ने कहा। तो क्या हुआ लाडो .. आज भी जब मैं इन कच्चे रास्तों पर चलती हू पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं, भले ही आज यहाँ मेरी सहेलियाँ नहीं है, उनके घर को देखकर बगीचे के फूल पोधे सड़क की धूल मिट्टी से ही मुझे बेहद अपनत्व महसूस होता है स्मृति अपनी धुन में बही जा रही थी।

कोई बात नही बुआ तुम्हारे फ्रेंड यहाँ नही तो क्या ये पीपल का पेड़ तो है न ये भी तुम्हे मिस करता होगा, अचानक स्मृति को अक्षिता की बातों में शरारत नजर आयी .....चल चल तेरी समझ में कुछ नहीं आयेगा।

आ गया न बुआ ...क्या स्मृति बोली। यही कि मेरी बुआ है इमोशनल फूल ...और दोनों बुआ भतीजी खिलखिला उठी।


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