मित्रता
मित्रता
किताबों की दुनिया में गुम रहने वाली दो किशोरियों के लिए वे उड़ते उड़ते दिन थे।जीवन की वास्तविकताओं से दूर दायित्वहीन बेफिक्री में जीने वाली दो सहेलियों के लिये उन दिनो मित्रता सबसे अमूल्य तोहफा था। कॉलेज, लाइब्रेरी से लेकर शॉपिंग, मूवी,मस्ती सब कुछ साथसाथ।घर बाहर सभी कहते दोस्ती हो तो ऐसी।उस वक़्त आँखों पर स्नेह और विश्वास का चश्मा लगाये हुए उन्हे ये दुनिया और भी खूबसूरत लगती।राधिका और अनन्या दोनो सखियो के नाम अक्सर लोग साथ-साथ लेते।
"क्यों राधिका तुम्हारी माँ की सहेली कौन है?' "
"नहीं मालुम मुझे शायद उनकी कोई सहेली नहीं है", राधिका का जवाब था।" हाँ,मैं भी अपनी मम्मी की सहेली को नहीं जानती", अनन्या ने कहा था।
"हाँ, इसलिए वो हमारे जितना हँसती भी नहीं" दोनो खिलखिला उठी थीं।'
कुछ सालों बाद दोनों अपने-अपने ससुराल में थी। शुरू में फोन, पत्र, ग्रीटिंग्स के साथ दोस्ती निभाती रही। बाद में सेल फोन आने पर डायरी से लैंडलाइन का नम्बर हट गया था। दोनो का मायके भी एक समय पर जाना नहीं हो पाता था।किसी से एक दूसरे का नंबर मिला भी तो चाय-चीनी के डिब्बे के नीचे से कहाँ चला गया मालुम नहीं हुआ।
आज व्हाट्सएप्प, फेसबुक सब पर जुड़े हैं, एक दूसरे की पोस्ट पर लाइक्स, कमेंट्स भी करते हैं मगर उनकी मम्मियाँ खिलखिलाती क्यू नहीं थीं दोनों की समझ में आ चुका है।
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