Raginee Srivastava

Drama

5.0  

Raginee Srivastava

Drama

पराई बेटी

पराई बेटी

2 mins
350


"माँ अभी-अभी तो मेरे फाइनल एग्जाम खत्म हुए है और तुमने मेरी शादी पक्की कर दी। एग्जाम के बाद मैंने तुम्हारे और पीहू के साथ क्या क्या प्लांनिग की थी" मानसी हल्के शिकायती लहजे में बोली थी। "शादी ही तो पक्की की है लाडो...तेरा जब भी मन करे यहां चली आना।

तेरी किस्मत से घर वर बहुत अच्छा मिल गया है छोड़ नही सकते थे"...सुमित्रा ने बिटिया को समझते हुए कहा।

कुछ महीने के बाद सुमित्रा सदन शादी की शहनाइयों से गूंज रहा था। शादी के सात फेरों में बंधकर मानसी विदा बेला में फूट फूटकर रो रही थी। छोटी बहन पीहू के साथ किये हुए अनगिनत वादे अधूरे रह गए थे।

शादी के सवा महीने के बाद 15 दिन के मुहुर्त में बंधकर आया मायके जाने का समय देखते देखते निकल गए थे। आज मानसी के ससुराल वापस जाने का दिन था। माँ पिता सुबह से बेचैन थे और बहन उदास। जिस बेटी को 22 साल तक आंखों के सामने रखा था अब वो पन्द्रह दिन की अवधि में बंधी मेहमान हो गयी थी। 'बेटा कुछ दिन और रुक जा...मैं समधन जी से बात करती हूं"...माँ का मन नही माना। "नही माँ उदास मत हो..आज जाना जरूरी है...कल मम्मी जी को आई टेस्ट कराना है और हर्षिता दी के एग्जाम भी शुरू होने वाले है...मैं फिर आऊँगी"-मानसी ने छलकती आंखों और मुस्कुराते होंठो से कहा था। बेटी की इस समझदारी से माँ की आँखे गंगा यमुना बहने लगी थी।


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