भारत की लोककथाएं

भारत की लोककथाएं

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"वाह,वाह, बच्चों समय के बहुत पाबंद हो! अच्छा लगा।चलो तो बिना समय गंवाए शुरू करें आज का विचार! मुझे यकीन है आपने कभी कोई 'कह-मुकरी' पढ़ी या सुनी नहीं होगी।"

"क..क..क्या,चाचू ?"नितिन ने पूछा।

" पहली बार सुना है न यह नाम ? इसके बारे में जानना चाहते हैं ? बहुत कम लोग इस बारे ने जानते हैं,इस लिए ही यह विषय चुना है।"

"चाचाजी,आपको इन सब बातों की जानकारी कहां से मिलती है ?"अविरल ने पूछा।

"हमारे बड़े - बुजुर्ग अपने घर के बच्चों को रात को सोने के समय कहानियां सुनाया करते थे। बचपन में सुनी और पढ़ी ये कहानियां कुछ तो याद हैं,जिन पर मैने लिखा है, तो सोचा कि आप सभी से भी यह जानकारी साझा करूं।"

"आजकल तो किसी के पास समय ही नहीं है,तो चाचाजी बताइए क्या थी, कह - मुक्ति ?"

"मुक्ति नहीं, मुकरी। यह मजेदार कवित की पुरानी विधा है।यह लगभग खत्म हो गई थी किन्तु कुछ जागरूक साहित्यकारों के प्रयास से पुनः जीवित हो रही है।"

"यह कैसे शुरू हुई, और इसके मजेदार काव्य के उदाहरण भी जरूर बताइए।"अभिनव ने कहा।

"बच्चों, इसके जनक अमीर खुसरो माने जाते हैं। उनके बाद भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इसे और आगे बढ़ाया।इसीलिए इसे खुसरो की बेटी और भारतेन्दु की प्रेमिका भी कहा जाता है।"

अभिनव यह सुनकर मुस्कुरा कर इधर - उधर देखने लगा।

 ‘कह-मुकरी’ का अर्थ इसके नाम में ही छिपा है। ‘कह-मुकरी ’अर्थात कह कर मुकर जाना।

ये दो सहेलियों के बीच की हंसी मज़ाक वाली बात-चीत पर आधारित होती है।"

"क्या लड़कियां ही कह - मुकरी के सकती हैं,लड़के नहीं?यह तो गलत है।"सार्थक ने बुरा सा मुंह बनाया। "उसमें गलत क्या है ?लड़कियां ही तो बात कह कर पलट जाती हैं।"अभिनव ने अनामिका की ओर देखा।

 "बस, बस आगे सुनो।इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 15 या 16 मात्राएं होती हैं।

 इन चार में से पहले तीन चरणों में एक सखी द्वारा दूसरी सखी से अपने 'प्रिय' के कुछ लक्षण बताए जाते हैं और आखिरी चरण में दूसरी सखी उन लक्षणों के आधार पर पहली सखी से उत्तरविषयक प्रश्न (ए सखि साजन?) करती है। लेकिन, यहाँ पहली सखी संकोचवश अपनी बात से मुकरते हुए साजन से अलग और बताये लक्षणों से मिलता-जुलता कोई और उत्तर दे देती हैं।"

चाचाजी, बिना उदाहरण के समझना मुश्किल लग रहा है।"अमित बोला।

धीरज रखो,उदाहरण भी दूंगा और तुम खुद भी बनाने का प्रयास करोगे।

 उदाहरण के लिए अमीर खुसरो की एक ‘कह-मुकरी’ सुनो:

 'वो आवै तो शादी होय।

 उस बिन दूजा और न कोय।

 मीठे लागें वा के बोल।

 ऐ सखि साजन ? ना सखि ढोल।' 

 थोड़े से प्रयास से आप सभी भी आसानी से कह-मुकरी लिख सकते हैं और अपने अनमोल हिंदी साहित्य को योगदान दे सकते हैं।


  1.हरदम मेरा साथ निभाये।

    हर कदम संग चलता जाये।

    मेरे बिन पर चले न बूता।

    ऐ सखि साजन?ना सखि जूता।


 2.उसके जिम्में घर मैं छोड़ूं।

  चौकीदारों से मुंह मोड़ूं।

  मेरे घर का वह रखवाला।

  ऐ सखि साजन ? ना री ताला।


 3.बिन कारण वो मुझे चिढ़ाता।

  खाने की हर जुगत भिड़ाता।

  नटखट बच्चा जिसके अंदर।

  ऐ सखि साजन ? ना री बन्दर।

 "अच्छा लगा ? मनोरंजन भी और साहित्य की एक विधा की कोशिश भी।"

"चाचू, कल के लिए सभी दो - दो कह- मुकरी लिखकर लाएं। मज़ा आयेगा।"

"क्यों नहीं ? बहुत अच्छे,नेकी और पूछ पूछ ?"

आज की सभा यहां समाप्त, कल फिर जानेंगे, भारत की किसी अनोखी बात को।"


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