बहारें जो लौट न सकी
बहारें जो लौट न सकी
आज के वर्तमान समय में हर किसी को अपने तरीके से जीने का अधिकार है चाहे वो एक तलाक शुदा हो, विधवा हो या और कोई।
मैं कॉलेज से लौट कर आया तो मेरे माता पिता पड़ोस की नेहा दीदी के बारे में कुछ फुसफुसा रहे थे पर मेरे पूछने पर "कुछ नहीं" कह कर टाल दिया। रोज की तरह मैं चाय नाश्ता कर क्रिकेट बैट ले कर मोहल्ले के ही एक मैदान के तरफ क्रिकेट खेलने निकल पड़ा।
मैदान पर अभी तीन चार दोस्त ही पहुंचे थे और दोस्तों का इंतजार करते हुए हम आपस में बातें करने लगे।
तभी राजू दौड़ता सा आया और हांफने लगा, हम सभी घबरा गए थे कि इसे क्या हो गया। पूछने पर वह सामान्य होने के बाद बताया की नेहा दीदी के घर से जोर जोर से अंकल के चीखने की आवाज आ रही थी और उसे सुन मेरे मन में भी क्या बात है जानने की उत्सुकता हुई। मैं धीरे से उनके घर की तरफ बढ़ गया तभी मुझे देख नेहा की मम्मी ने मुझे बुलाया और बोलने लगी....
"राजू देख क्या घोर कलयुग आ गया है और लगता है कि ये तुम्हारी नेहा दीदी हमको समाज में इज्जत के साथ नहीं रहने देगी।"
मैं सोचने लगा कि नेहा दीदी ने ऐसा क्या कर दिया कि आंटी पूरे घर को सर पर उठा लिया है। जबकि मैं नेहा दीदी को अच्छी तरह जानता हूं वो एक पढ़ी लिखी बहुत ही समझदार महिला है, मिलनसार है और अपने काम से काम रखती है। जब कभी भी हम दोस्तों को पढ़ाई में कोई कठिनाई हो तो वो हम सबका सहयोग करती है। पर वो बड़ी बदकिस्मत है कि शादी के साल भर के अंदर विधवा हो कर वापस मायके आ गई।
नेहा दीदी एक गुनहगार की तरह माता पिता के सामने सर झुकाए खड़ी थी और अंकल उसके सर पर हाथ फेर रहे थे।
तब पता लगा कि नेहा दीदी का किसी सहकर्मी से नजदीकियां बढ़ने लगी है और ये खबर आज आंटी तक पहुंची। अंकल अपने बात पर अटल दिखे कि विधवा हो कोई हो हर किसी को अपनी जिंदगी को एक मनपसंद गंतव्य देने का अधिकार है पर आंटी को ये बात पसंद नहीं कि एक विधवा पुनर्विवाह करे।
आंटी एक पुराने विचारों वाली रूढ़िवादी महिला थी और इस निर्णय को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। फिर मोहल्ले के गणमान्य लोगों का आना फिर आपस में चर्चा करना, आंटी को समझाने की कोशिश करना ये सब कई दिनों तक चलता रहा।
नेहा दीदी अपनी बात पर अटल थी कि वो जीवन साथी चुन चुकी है और उसी से पुनर्विवाह करेगी और इस निर्णय में अंकल की भी हामी थी।
आखिर कुछ वक़्त के बाद बड़ी मुश्किल से नेहा की मम्मी इस विवाह के लिए राजी हुई। निमंत्रण कार्ड छपाई को भेजे गए और मेहमानों की सूची बनने लगी और इस बार ये निर्णय हुआ कि कुछ खास मेहमानों को ही शादी का निमंत्रण भेजा जाए और शादी बिना किसी धूमधाम के हो।
नेहा दीदी का वर देखने में बहुत ही समझदार व्यक्तित्व का लगा और सगाई के बाद उनका नेहा दीदी के घर आना जाना होने लगा। मोहल्ले में सभी खुश थे कि चलो कम से कम अब तो नेहा दीदी की जिंदगी संवर जाएगी।
देखते देखते शादी का दिन भी आ गया। घर मेहमानों से हलचल था हम सभी दोस्त नेहा दीदी के शादी में जो भी मदद करना पड़े कर रहे थे। बाहर कैटरिंग वाले आए थे मेरी और राजू की जिम्मेदारी थी कि कैटरिंग वाले को जो भी सहयोग चाहिए करें।
तभी अचानक घर के अंदर से कुछ घबराई हुई आवाजें हम तक पहुंची
"देखो अंकल को क्या हो गया। "
हम दौड़ कर अंदर गए तो देखा नेहा दीदी के पिता बदहवास हालत में सोफे पर बैठे थे उनकी आंखों से आंसू टपक रहे थे। तभी आंटी किचन से निकल कर दौड़ती हुई हाल में दाखिल हुई और चिल्लाने लगी
"नेहा के पप्पा क्या हुआ है आपको"
ये सुन पड़ोस से भी लोग आ गए। कुछ समय तक चारों तरफ सन्नाटा छा गया। तब पड़ोस के एक अंकल ने दूर पड़े हुए मोबाइल को उठाया जिससे अभी तक हेलो हेलो कि आवाज आ रही थी। फिर वो मोबाइल पर बात करने लगे। तब उन्होंने बताया कि उस कार का एक्सिडेंट हो गया है जिसमें नेहा दीदी और उनके होने वाले पति गहने लेने हेतु गए थे। नेहा दीदी के पति का देहांत दुर्घटना स्थल पर ही हो गया और नेहा दीदी को गंभीर हालत में हॉस्पिटल में एडमिट किया गया है।
दो दिन बाद पता लगा नेहा दीदी के हालत में सुधार है और वो अब खतरे से बाहर है।