अफसोस
अफसोस
कभी कभी वक़्त गुजरने के बाद हम अफसोस करते हैं कि काश हम ऐसा कह पाते या ऐसा कर पाते। पर वक़्त हमेशा हमारे साथ नहीं होता अफसोस करने के लिए। इसीलिए हमें अपने जीवन में बहुत सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए, बड़े धैर्य व समझदारी के साथ।
ऐसा कहते हैं कि जीवन के आखरी क्षणों में हमारे सामने हमारा गुजरा हुआ जीवन चलचित्र की भांति दिखता है और उस वक्त हमें हमारे कुछ व्यवहारों पर अफसोस भी होता है, ग्लानि होती है, और लगता है कि काश ये जीवन दोबारा मिल जाए ताकि जीवन को नए सिरे से संवारे, सजाएं, पर तब कुछ नहीं कर सकते क्योंकि अगले ही कुछ पलों में जिंदगी हमसे दूर होने वाली होती है। शरीर में कोई हरकत नहीं होती, वाणी अपने निम्नतम स्तर पर आ जाती है, सिर्फ हमारे जीवन का लेखा जोखा देख सकते हैं।
उम्र बढ़ने के साथ जब हम अवकाश प्राप्त कर घर पर ज्यादा समय व्यतीत करने लगते हैं तब ही हम हमारी पिछली जिंदगी पर एक नजर जरूर डालते हैं और कुछ को सुधारने की कोशिश करते हैं। हमें ये एहसास होने लगता है कि जीवन में जो भी घटनाएं घटी हैं वो तो हमारे कर्मों का ही फल था और इन घटनाओं के पीछे जिन्हें हम कारण मानते चले आ रहे हैं वो नियति थी और इसके लिए कोई व्यक्ति विशेष जिम्मेदार नहीं था।
हमें अपने जीवन की ऐसी घटनाओं के लिए अफसोस जरूर होता है तो क्यों न उन घटनाओं को समय रहते सुधारने का प्रयत्न करें, इससे कुछ रिश्ते सुधरेंगे, फिर से जुड़ेंगे, मन का बोझ हलका होगा, मानसिक शांति होगी। क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता।
ऐसा व्यवहार जैनियों में देखने को मिलता है, जैनियों में हर वर्ष एक विशेष दिवस होता जो क्षमा पर्व कहलाता है। क्षमावाणी पर्व या 'क्षमा दिवस' दिगंबर जैन धर्मावलंबियों द्वारा मनाया जाने वाला एक खास पर्व है। इसे क्षमावानी या क्षमा पर्व भी कहते हैं। दिगंबर अनुयायियों द्वारा यह पर्व आश्विन मास कृष्ण पक्ष की एकम के दिन मनाया जाता हैं। इस दिन इस समाज का हर व्यक्ति उनके जीवन में हुए जाने अनजाने गलतियों के लिए हाथ जोड़ कर क्षमा मांगता है।
जिसके पास क्षमा का गुण है, वे हमेशा प्रसन्नचित रहते हैं और उसके शत्रु भी नहीं होते हैं। मनुष्य के जीवन में क्षमा का बहुत बड़ा महत्व है। अगर कोई इंसान गलती कर दे और उसके लिए तुरंत माफी मांग ले तो सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है। क्षमा मांगना व्यक्तित्व का एक अच्छा गुण है और आगे चल कर मन में कोई अफसोस भी नहीं रह जाता।