Surya Rao Bomidi

Abstract Inspirational

4.5  

Surya Rao Bomidi

Abstract Inspirational

आत्मसम्मान

आत्मसम्मान

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दो महिलाएं आपस में एक दूसरे के कानों में कुछ फुसफुसा रही थी ध्यान से सुनने पर पता चला कि वो पड़ोस कि शांति बहन के बारे में बात कर रही थी।

मुझे ये समझ में नहीं आता कि ये शांति बहन क्यों शारदा को ना नहीं कर सकती, ऐसी भी क्या मज़बूरी है।

यशोदा नगर, एक मध्यम वर्गीय परिवारों का मोहल्ला। मध्यम वर्ग परिवारों में एक खास बात होती है कि एक दूसरे कि परवाह होती है, एक दूसरे के बारे में चर्चा करते रहते हैं, हां कभी कभी ये चर्चा नकारत्मक भी हो जाती है।

इन्हीं परिवारों में से एक परिवार है शांति बहन का परिवार। शांति बहन एक पढ़ी लिखी और बहुत ही मिलनसार और सबको साथ ले कर चलने वाली महिला है। उनके पड़ोस में शारदा का मकान है जिनके पति का ज्यादा समय क्लब में जुंवा खेलते ही कटता है।

यशोदा को जब भी किसी चीज की जरूरत तो वो मोहल्ले के किसी के भी यहां जा कर बेझिझक मांग लेती। मानलो घर पर चाय के लिए दूध नहीं है तो वो कभी काली चाय नहीं पीती, ग्लास ले कर जो मोहल्ले में निकलती है तो दूध मांग कर दूध की चाय पी कर ही दम लेती है।

शांति बहन में करुणा व दया कुछ ज्यादा ही था इसलिए मोहल्ले के किसी के भी कुछ भी मांगने पर मना नहीं कर पाती। विशेष रूप से शारदा का बहुत ख्याल रखती क्योंकि वो जानती है कि शारदा ऐसी नहीं थी वो भी बहुत स्वाभिमानी थी और किसी से कुछ मांगने में संकोच करती थी।

बात उन दिनों की है जब मोहल्ले में कुछ लोग ही निवास करते थे और बहुत से मकान निर्माण अवस्था में थे। चूंकि शारदा शांति बहन की पड़ोसी थी इन दोनों में कुछ ज्यादा ही घनिष्ठता थी। 

शांति बहन को जब भी लगता कि शारदा को कुछ जरूरत है तो उसके बिन मांगे ही उनके घर दे आती थी। शारदा अक्सर शांति बहन से कहती भी थी कि दीदी हम लोग आप लोगों के एहसान तले दबते जा रहे हैं।

शांति बहन ने देखा कि जरुरत होने पर भी शारदा कुछ भी मांगने से संकोच कर रही है और उसके घर भेजने पर भी वापस कर देती थी। शांति बहन सोचने लगी कि मैं ऐसा क्या करूं कि शारदा मेरी सहायता को एहसान न माने।

मुझे असमंजस में देख मेरी बेटी रानी कुछ कुछ समझने लगी और मुझसे बोली

मां शारदा चाची कुछ भी लेने से शायद इसलिए इंकार कर रही है कि वो सिर्फ लेने के ही हालत में है वापस हम लोग कुछ उनसे मांगते भी नहीं हैं और वो कुछ दे भी भी पाती और इसी आत्मसम्मान के चलते कुछ लेने से मना करने लगी है।

शारदा का ससुराल पास के गांव में था जहां उसके जेठ जेठानी का परिवार रहता था और पूरे परिवार का गांव में खेती का काम है वो ही देख भाल करते थे और जब भी कोई उपज तैयार होता तो शारदा का हिस्सा यहां भेजवा देते।

देखा कि एक बैलगाड़ी शारदा के घर के सामने रुकी और उसमे से कुछ बोरे उतार रहे थे पता किया तो उनके यहां नई फसल का चावल और गेहूं आया है । 

अचानक शांति बहन के दिमाग में एक युक्ति सूझी तो उसने अपनी बेटी को आवाज दी

रानी जा पड़ोस के शारदा चाची के यहां जा और नई फसल का धान मांग कर ले अा।

मां पापा ने कल ही तो पूजा के लिए बहुत सारा धान ला कर रखे हैं फिर शारदा चाची के यहां से मांगने कि क्या जरूरत।

इस पर शांति बहन बोली अरे तू भूल गई क्या, तूने ही कहा था कि शारदा चाची में आत्मसम्मान कुछ ज्यादा होने के कारण कुछ मांग नहीं पाती। आज एक अच्छा अवसर है कि हम शारदा का आत्मसम्मान भी बना रहे और हम उसकी मदद भी के सके और उसको भी लगेगा शांति बहन भी तो हम से कुछ मांगती है तो फिर मुझे उनसे कुछ मांगने में कैसी झिझक।


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