Surya Rao Bomidi

Inspirational

4.7  

Surya Rao Bomidi

Inspirational

इंसानियत जिंदा है

इंसानियत जिंदा है

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आज माह का आखिरी दिन, कल से एक नया दिन नया महीना और फिर से वही ऑफिस, वही लोग। बस इतना सा फ़र्क होगा कि कल हमारे बॉस श्याम सर ऑफिस में नहीं रहेंगे और उनके लिए ये माह का आखिरी दिन, अब उनके कार्यकाल का आखिरी दिन है।


श्याम सर एक सुलझे हुए इंसान, सबको साथ लेकर चलने वाले, हमेशा शान्त, उनकी अपने काम में पकड़ जिसके चलते पूरे विभाग में उनकी बहुत इज्जत है।उनका बचपन, शिक्षा इसी शहर में हुई और उनकी किस्मत अच्छी रही कि इसी शहर में सरकारी नौकरी भी मिल गई। जैसा श्याम सर का व्यवहार उसी तरह का उनकी मैडम का भी व्यवहार था वो भी मिलनसार, मृदुभाषी है।


सब ठीक था पर उनकी कोई संतान नहीं थी जिसका उन लोगों को हमेशा से ही दुख रहता था फिर भी दोनों सभी सहकर्मियों के सुख दुख में हमेशा साथ खड़े रहते थे। उनका ससुराल तरफ से सारे रिश्तेदार कर्नाटक में बंगलौर के आस पास ही रहते है।हम लोगों ने उनको बहुत समझाया कि आप यहीं पढ़े लिखे हो और बचपन से यहीं पले बढ़े हो फिर क्यों न यहीं रह जाएं पर उनका एक ही जवाब था


तुम लोगों को मालूम है कि हमारा अपने भाइयों से कोई सम्बन्ध नहीं है और शुरू से ही हमारी हर जरूरत में आप सब लोगों का साथ रहा है। मैं आप लोगों का सदैव कृतज्ञ रहूंगा, पर एक वक़्त के बाद किसी की मदद लेने में संकोच होता है और यूं लगता है जैसे हम किसी का उपयोग कर रहे हैं।


हमने श्याम सर को अत्यन्त दुख के साथ फेयरवेल पार्टी दे कर विदाई दी। और वो यहां से शिफ्ट हो कर बंगलौर चले गए जहां शहर से करीब 20-25 किलोमीटर दूर एक टू बीएचके फ्लैट लिया हुआ है।उनके जाने के बाद भी उनसे संपर्क रहा है वो भी इसलिए कि उनका मेरा ऑफिस के साथ साथ पड़ोसी का भी रिश्ता रहा है।


यूं ही कुछ समय गुजर गया और हम लोग भी महीने में एकाध बार बात कर लिया करते थे। एक बार यूं ही बातों बातों में उन्होंने बताया कि भोपाल के माहौल और यहां दक्षिण के माहौल में जमीन आसमान का फर्क है। यहां हर कोई अपने परिवार तक ही सीमित रहता है, किसी को फ़र्क नहीं पड़ता कि पड़ोस में कौन है क्या करता है।


उनके साढू के बच्चे थे पर वो भी बीस पच्चीस किलो मीटर दूर रहते हैं और आगे उन्होंने बताया।एक दिन मैडम का तबियत अचानक खराब हो गया और उनके सीने में बहुत तेज दर्द हो रहा था, मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैंने सबको फोन लगाया पर कोई फोन नहीं उठा रहा था। रात के करीब दो बज रहे थे, मेरा घर मेन रोड से करीब तीन किलोमीटर अंदर की तरफ है। मेरे अपार्टमेंट में चार फ्लैट हैं सबका दरवाजा खटखटाया पर कोई नहीं खोला, मैं नया नया था फ्लैट में किसी का मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था।


मैं घबराया हुआ फ्लैट से बाहर निकल कर मेन रोड के तरफ बढ़ने लगा और साथ ही साथ सभी को फोन भी करता रहा। तभी एक अजनबी व्यक्ति अपनी बाइक से क्रॉस किया और आगे बढ़ गया फिर कुछ दूर जा कर वापस आया और बोला -"क्या बात है अंकल सब ठीक है न, आप इतनेघबराए हुए क्यों हो ?"


"मेरी मिसेज की तबियत बहुत खराब है कोई गाड़ी नहीं मिल रही है, किसी से बात नहीं हो पा रही है मुझे बहुत डर सा लग रहा है", मैंने उस अजनबी को बताया।


वह बोला "अंकल आप घर पहुंच कर आंटी को रेडी करिए मैं गाड़ी लेे कर आता हूंबेटा मेरा फ्लैट उस बगल में है मैं आपको भी जनता हूं और आपके फ्लैट को भी, प्लीज़ जल्दी घर जाइए मैं आता हूं।"


मैं एक नई आस लेे कर अपने फ्लैट में पहुंचा और मिसेज को रेडी होने को कहा, उतने में ही डोर बेल बजा, मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि दरवाजे पर एक तीस पैंतीस वर्ष की महिला खड़ी है


कहिए मैंने उस महिला से पूछा"अंकल मैं आपके पड़ोस वाले अपार्टमेंट में रहती हूं मेरे मिस्टर ने मुझे आंटी को रेडी करने हेतु भेजा है"

 

मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही वो बोलीं "अंकल अभी जो आप से बाहर मिले थे वो मेरे हसबैंड हैं"


"ओके ओके अंदर आ जाओ", मैंने कहा फिर उस महिला ने मिसेज को रेडी कर, मैं और वो पड़ोसन मिलकर मिसेज को नीचे ले कर आए तब तक वह अजनबी व्यक्ति मेरे फ्लैट के सेलार में लिफ्ट के पास अपनी गाड़ी पार्क कर खड़ा हमारा ही इंतजार कर रहा था।


हम किसी तरह सिटी हॉस्पिटल पहुंचे और उनकी सहायता से मिसेज को कैसुअल्टी में ज्वाइन किया। फिर डॉक्टर तुरन्त बीपी, ईसीजी वगैरा करने के बाद निश्चिंत होकर कहा घबराने की कोई बात नहीं, ये माइल्ड हार्ट अटैक था तो खुशी की बात है कि समय पर इन्हें लेे आए वरना मुश्किल हो जाती, बस इनको ऑब्जर्वेशन में 72 घंटे यहां रखना होगा।


मैंने इत्मीनान की सांस ली।तब वापस होश संभाला और तब उस अजनबी फरिश्ते से वार्तालाप करने लगा।


"थैंक यू सर, आज अगर आप न होते तो मैं क्या करता ये सोच कर अभी भी दिल घबरा जाता हैकोई बात नहीं अंकल ये तो एक पड़ोसी कादूसरे पड़ोसी के प्रति फ़र्ज़ था। वैसे भी आप मुझे सर न कहें। मेरा नाम संजीव है और मैं आपके बगल के अपार्टमेंट में रहता हूं और मैं आपको अच्छी तरह जानता हूं, हो सकता है अपना औपचारिक परिचय न हो पर आपके बारे में पूरी खबर मुझे मेरा दोस्त बताता रहता है जो आप ही के अपार्टमेंट में रहता है। मैं भी

आपको सुबह शाम वाकिंग हेतु जाते हुए देखा है।


मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं इसलिए हमारेऑफिस से आने का कोई समय निश्चित नहीं होता। आज भी मुझे दस बजे तक वापस आ जाना था पर कुछ जरूरी महत्वपूर्ण काम से रुकना पड़ गया था।


जो भी हो बेटा शायद ऊपर वाले ने आपके रूप में हमारी मदद करी है, मैंने फिर एक बार उस फरिश्ते को धन्यवाद कहा।


मैं सोचने लगा कि इस अजनबी शहर में इस तरह मदद मिलना वाकई में चमत्कार से कम नहीं है। बस एक बात को तो हमको मानना ही पड़ेगा कि आज के समय में जहां भाई भाई का नहीं होता, हर तरफ झूठ, धोखे हैं फिर भी "इंसानियत" आज भी जिंदा है बस कभी कभी नजर आता है।



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