Surya Rao Bomidi

Abstract Inspirational

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Surya Rao Bomidi

Abstract Inspirational

हैसियत

हैसियत

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पड़ोस से नारायण अंकल की तेज आवाज या रही थी, हमें भी आश्चर्य हुआ कि हमेशा शांत रहने वाले अंकल क्यों इतने तेज आवाज में बात कर रहे हैं। उत्सुकतावश मैं उनके घर पहुंची तो नारायण अंकल वीना आंटी पर गुस्से से भड़क रहे थे पर वीना आंटी चुपचाप सुन रही थी और कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर रही थी। मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि आखिर हुआ क्या?

हम दोनों परिवारों के बीच काफी लगाव था और हमारे बीच हमारे परिवारों के बारे में कोई रहस्य जैसी स्थिति नहीं थी। हम लोग इस मोहल्ले में पिछले दस पन्द्रह सालों से एक साथ एक परिवार की तरह रह रहे हैं और हमेशा एक दूसरे के सुख दुख में एक साथ खड़े रहते हैं।

मुझे देख अंकल शांत हो गए और बोले 

"अा बैठ तू भी समझ ले कि जिंदगी में क्या क्या होता है और अपने परिवार व आसपास में कितने तरह के कैरेक्टर देखने को मिलते हैं और उनसे कैसे निपटना है अपने दिमाग में बिठा ले"

"क्या हुआ अंकल"

तब आंटी बोली 

"बेटा मेरी बहन की बेटी (भांजी) का विवाह अगले महीने होने वाला है और अभी तक तुम्हारे अंकल को हमारे जीजा जी के तरफ से कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं मिला जबकि मेरी सभी बहनों के घर जा कर उन लोगों ने निमंत्रण पत्र स्वयं दे कर आमंत्रित किया है। माना कि हम लोग उनसे काफी दूर रहते हैं पर कम से कम हमारे जीजाजी के तरफ तेरे अंकल के पास औपचारिक निमंत्रण, फोन द्वारा ही सही, आना तो चाहिए"

अंकल शांति से आंटी की बातें सुन रहे थे और फिर वो बोले 

"बेटा कुछ परिवारों में लोगों को उनकी हैसियत के हिसाब से सम्मान दिया जाता है जिनके पास धन दौलत बहुत है, जिनके पास कार है, सोना चांदी है उनको बड़े सम्मान की नजर से देखा जाता है। हमारे साउथ में सबसे पहले यही देखा जाता है कि अगला कितना सोना पहना है, गले में चैन है कि नहीं, कितनी उंगलियों में सोने की अंगूठी है आदि आदि। मुझे बुरा तो तब लगता है जब अपने रिश्तेदारों पर भी यही मानक लागू किया जाता है"

अंकल थोड़ा सांस ले कर फिर बोले

"और तुम्हारे आंटी की बहन कभी भी अपने पति की गलती पर प्रश्न नहीं करती और गलत हो सही हो बस पति के हां में हां मिलाते रहना है। हमारे साढू जी का ऐसा चरित्र है कि उनके दरवाजे पर उनसे कम हैसियत वाला कोई भी आए मजाल है कि वो उठ कर दरवाजे तक जा कर उनका स्वागत करे। मैंने तुम्हारी आंटी से इस बारे में बात भी की, पर इनकी दीदी का कहना है ये तो उनकी आदत है पर मेरी समझ में ये बात आज तक नहीं आया कि किसी की आदत आगंतुक के हैसियत के हिसाब से कैसे बदलती है। मैंने स्वयं देखा है कि जब कोई ऊंची हैसियत वाला आता है तो यही आदमी दौड़ कर दरवाजे पर उनका स्वागत करता है"

"तुम्हारी आंटी और मेरी एक आदत है कि हमारी हमेशा यही कोशिश रहती है कि हमारे कारण किसी को कोई परेशानी न हो और हमारे कारण न ही कोई धर्मसंकट में पड़े। इसीलिए जब भी हम उस शहर में जाना होता है तो पहले से उनको खबर कर देते हैं कि हम फलां तारीख को वहां आ रहे हैं और कई बार कुछ न कुछ कारण बता कर हमें न आने का संदेश भी दिया गया और हमने उसी शहर में होटलों में रुक कर अपने मेडिकल चेक अप वगैरा निपटाया है और ये बात उन तक पहुंचने पर भी उनको कोई अफसोस नहीं होता"

"कभी कभी लगता है कि आज इंसान कितना प्रैक्टिकल हो गया है कि वह किसी के लिए कोई एडजस्टमेंट करने को तैयार नहीं होता और हम आज भी मन की मानते हैं, किसी को ना कहने की हिम्मत नहीं कर पाते भले ही हमें किसी भी तरह का एडजस्टमेंट करना पड़े। बेटा, तुम खुद भी देखी होगी हम लोग किसी मेहमान के आने पर किस तरह दौड़ धूप कर उनके लिए आराम दायक व्यवस्था करते हैं भले ही मुझे कई बार कंपनी के गेस्ट हाउस में तक सोना पड़ा"

"अपनों के इसी व्यवहार और सोच के चलते तुम्हारी आंटी उनके माता पिता के गुजरने के बाद आज इस स्थिति में नहीं है कि किसी बहन के यहां जा कर कुछ दिन हक से रह सके और न ही कोई इस तरह का प्रस्ताव देता है जबकि हमारे दरवाजे सबके लिए हमेशा खुले रहते हैं और कोई भी आने के पहले बताना भी जरूरी नहीं समझता"

मैं सोचने लगी कि क्या किसी परिवार में इस तरह की मानसिकता भी होती है और फिर हमारे परिवार में देखें तो तीन भाइयों में मेरे पापा ही छोटे हैं और एक छोटे से सरकारी कर्मचारी होने के नाते हम अपने आप को मध्यम वर्गीय भी नहीं कह सकते जबकि हमारे दोनों ताऊजी बड़े पदों पर हैं, उनके खुद के अपने घर हैं और हम लोग तो कंपनी के क्वार्टर्स में रहते हैं तब भी हम लोगों को कभी ये अहसास नहीं होने दिया कि हमारी हैसियत उनसे काफी कम है, और शायद रिश्तों की यहीं पहचान होती है कि रिश्ते पर हैसियत भारी पड़ता है या हैसियत पर रिश्ता"

तभी अंकल की आवाज आई, 

"क्यों बेटा ये गलत है कि नहीं?"

"हां अंकल ये गलत तो है", मैंने जवाब दिया और कहा

"अंकल हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है अपना स्वभाव होता है और मेरे ख्याल से ये स्वभाव भी क्षेत्र के हिसाब से बदलता है, पर अंकल एक बात के लिए आंटी की तारीफ करनी चाहिए कि आंटी के सामने एक तरफ आपके सम्मान की बात है और दूसरी तरफ उनके मायके की, फिर भी वो आपके साथ ही खड़ी है और इससे ज्यादा किसी को क्या चाहिए। जहां आपको सम्मान न मिले, जहां आपकी भावनाओं की कद्र न हो वहां तो आपको जाना ही नहीं चाहिए"

"तू ठीक कह रही है बेटी, मैं अपने आप को सौ प्रतिशत सौभाग्यशाली समझता हूं कि मुझे तुम्हारे आंटी जैसी समझदार जीवनसाथी मिली है जो शायद शादी के बाद यहीं रह कर यहां के रहन सहन में रम गई है और उनके मायके का स्वार्थपरता का स्वभाव इनको छू तक नहीं पाया है"

ये सुनकर आंटी के चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव उभर आए और बोली 

"मुझे अपने मध्यम वर्गीय होने का कभी दुख नहीं हुआ और न मैंने अपने बहनों और भाइयों से कुछ उम्मीद ही रखी है, मैं अपने माता पिता से कुछ नहीं मांगा तो बहन भाइयों से क्या मांगती और न ही कुछ मांगना चाहती हूं। अगर खुदा न खास्ता ऐसी जरूरत भी आन पड़ी तो अपने दोस्तों और तुम जैसे पड़ोसी के सामने हाथ फैला सकती हूं पर मायके वालों के सामने कभी नहीं"

आंटी के मुंह से निकलने वाले एक एक शब्द जीवन के यथार्थ को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता हुआ लगा और जो दृढ़ विश्वास उनमें दिखा वो काबिले तारीफ लगा।

तभी अंकल बोले

"एक बात दिमाग में बिठा लो बेटा, एक सच्चा और तुमको समझने वाले जीवन साथी की कीमत किसी भी दौलत से बहुत ऊपर है"

मैं भी सोचने लगी कि सही बात है हम एक जीवन साथी में देखते हैं कि वो पढ़ा लिखा हो, अच्छे पद पर हो, अच्छा घर हो, बहुत सा धन हो, पर कभी ये नहीं सोचते कि वो एक सच्चा और अच्छा इंसान हो।


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