Neha Bindal

Inspirational

4.6  

Neha Bindal

Inspirational

भांड

भांड

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"अरे कमला, ज़रा देख आकर, कैसे हिंजड़ों की तरह नाच रहा है तेरा बेटा!"

हजारों दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपनी कमर को "बेली डांस फॉर्म" के तहत लचकाते हुए उसके ज़हन में बस यही गूंज रहा था।उसकी आँखों में नमी थी और चेहरे पर सुकून। आज आखिर उसने पा ही लिया था जो उसने चाहा था।

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20 साल पहले का दिन था जब उस मकान में तीसरे बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। बच्चा स्वस्थ था, घर पर खुशियों की दस्तक दी गयी थी। आसपड़ोस में हलचल थी। आखिरकार दो 'लड़कियों' के बाद अंततः लड़का आया था घर में।सुरेंद्र जी को बधाइयों का तांता लगा था। दादी के पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे, आज कमला बहू ने उन्हें जीवन की सबसे बड़ी खुशी दी थी। सोहर गाती हुईं वो कब नाचने लगी थीं वे खुद भी न जान सकीं। 

घर में नए मेहमान के पीछे खुशी मनाते लोगों को देख दोनों लड़कियां हैरान थीं, आज पहली बार उन्हें बेरोकटोक खाने को मिल रहा था, खुशियां मनाने को मिल रहा था, इसलिए वे भी बहुत खुश थीं। छोटे बच्चे को लेकर उत्साहित हो रही थीं, उनके लिए खुशनुमा माहौल जो लेकर आया था वो। जहान नाम दिया गया उसे, उनकी खुशियों का जहान जो था वो!

बच्चा बड़ा हो रहा था साथ ही बढ़ रही थी उसके माँ पिता की चिंता। बच्चा तथाकथित लड़के के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता था। सूखा, कमज़ोर और नाज़ुक दिल का वो 'लड़कों' के खेल से ज़्यादा बाहर गुमटी पर बजते संगीत की ओर लालायित रहता। 'लड़कों' की तरह क्रिकेट की जगह उसे लड़कियों की चुन्नी पट्टी भाती। खुश हो जाता जब वह बाहर तेज आवाज़ में बजता संगीत सुनता। रीढ़ की हड्डी तो मानो थी ही नहीं उसमें, आत्मविश्वास से हीन वह बस अपना जीवन उन गीतों की धुनों में ढूँढता।

स्कूल जाता तो लड़कों के साथ बैठने से ज़्यादा उसे लड़कियों का साथ भाता।उसे 'लड़को' की तरह न रहते देख माँ पिता घबरा जाते, डॉक्टर के पास लेकर गए तो वहाँ पता चला वो 'सामान्य' है। चैन की सांस लेते हैं, चलो शुक्र है 'लड़का' ही है। 

उसे उसके हाल पर बच्चा समझ कर छोड़ दिया जाता है। लेकिन ये ज़्यादा समय तक टिक नहीं पाता। स्कूल में अपने साथ एक 'अजीब' रंग-ढंग वाले बच्चे को बाकी बच्चे बर्दाश्त नहीं कर पाते। शिक्षकों को भी वो अलग लगता। कैसे अपनाते उसे? बाकी सबकी तरह कहाँ था वो!अकेले रहने की तैयारी है अब उसकी। क्लास के एक कोने में बैठा वो अपनी किताबों में सिर खपाता और फिर घर जाकर दादी के अपशब्दों को सुन खुद को कमरे में बंद कर लेता।

वो 9 साल का बच्चा बस अपने कानों में यही गूंज महसूस कर पाता, " कैसा लड़का है रे तू? जनानी सा!"

उसका मासूम दिल समझ ही न पाता कि आखिर 'लड़के' होते कैसे हैं? और जनानियाँ! वो कैसी होती हैं? 

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अपने कमरे में बंद वो 'कजरा रे' पर अपनी कमर लचका रहा है। एक दस साल के बच्चे में इतना हुनर कहाँ से आया है ये देखकर हैरान है उसकी बड़ी बहन!

16 साल की वो बस यही देखने मे मग्न है कि उसकी कमर तो इस तरह लचका नहीं खाती। क्या है ये? कैसे कर लेता है? 

चटाक! की आवाज़ के साथ उसके थिरकते कदम रुक जाते हैं और कानों में शोर गूंजता है।

" अरे कमला, देख ज़रा आकर! तेरा बेटा कैसे हिंजड़ों की तरह नाच रहा है!" 

हिंजड़ों का मतलब तो समझ न सका है वो लेकिन थप्पड़ की गूंज अब तक उसके कानों में घूम रही है।सोचता रहा है कि चटाक चटाक जो थप्पड़ उसे पड़े हैं, माँ से, दादी से और फिर रात में पिताजी से,"किया क्या है मैंने? क्या नाचना गुनाह है?

बहनें नाचती हैं , उन्हें तो कोई नहीं मारता।"

डाह की मारी बड़ी बहन खुश है। " ये मुझसे अच्छा कैसे नाच सकता है?" की जलन उसे अपने भाई के गालों पर पड़ते थप्पड़ों में खुशी बटोरने को विवश कर देती है। 

घर में टेप रिकॉर्डर की मनाही हो गयी है। उसके कारण अब बहनें भी नहीं नाच सकती। पिताजी ने टीवी पर ताला लगा दिया है। 

" आज से इसका गुमटी पर जाना बंद! समझे सब लोग। नज़र रखो इस पर। पढ़ाई में ध्यान लगवाओ इसका। अगर दोबारा इसे नाचते देखा मैंने तो खैर नहीं तुम सबकी।" पिताजी फरमान सुनाते निकल जाते हैं, बाकी सबके चेहरों पर एक डर देते हुए!!

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समय बीत चुका है, 6 साल! एक लंबा समय उसे कैद में रखा गया है। स्कूल में सामान्य न हो सका कुछ लेकिन हाँ 'रिजल्ट' में भारी भरकम बदलाव देखने मिला। 'क्लास टॉपर' से स्कूल 'टॉपर' में नाम आ चुका था उसका। बोर्ड्स में तीसरा स्थान हासिल किया था। पूरे शहर में उसकी वाहवाही थी और उसके स्कूल में 'माचिस की तीली' की सफ़लता के चर्चे। 

माँ पिता खुश थे, अब बच्चा 'सामान्य' था। खूब लाड़ करते उसे। खूब "मक्खन" की बौछार होती लेकिन मन में जो कहीं कुछ सड़ चुका था उसके उसपर किसी की नज़र न थी।

छोटी बहन में सुकून ढूंढ लिया करता था, वो भी थी तो खैर सामान्य ही पर हाँ उस 'असामान्य' का दर्द समझती थी।कभी कभी चुपके से उसके लिए उसकी पसंद के 'गोलगप्पे' ला देती, वरना 'लड़कों' को कहाँ कुछ खट्टा पसंद हो सकता है! 

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बड़ी बहन की शादी थी। आज खूब खुश था वो, घर में चहल पहल थी, आज कई सालों बाद सबका ध्यान उसपर से हटकर अब उसकी बहन पर था। थोड़ा 'आज़ाद' महसूस कर रहा था खुद को। रतजगे की रस्म में छुप छुपकर लड़कियों को देखते जब पापा ने उसे पकड़ा तो एक मुस्कान तैर गयी उनके ओंठो पर। आखिरकार लड़के ने साबित किया था कि वो 'मर्द' है।लड़के के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।

" ये लड़कियां! ऐसे कौन पैर हिलाता है? कितनी बुरी लग रही हैं! ऐसे कौन नाचता है भई? इन्हें किसी ने नाचना नहीं सिखाया क्या? 

अचानक ही पैर उस ओर बढ़ चले उसके। तेज आवाज में बजते गीत के बीच कब उसके पैरों के साथ, उसकी कमर, उसके हाथ और उसकी भौंहे नाचने लगी किसी को पता न चला।सब मंत्रमुग्ध से उस 'लड़के' के नृत्य को देख रहे थे। 

चटाक!

फिर एक शोर गूंजा।

" भांड है क्या?"

पिताजी के शब्दो ने हिला दिया उसे। किसी को क्या मालूम था कि ये 'भांड' बनने के लिए उसने कितनी मेहनत की थी।छिपकर, बस खुद में रम उसने कितनी साधना की थी अपने कदमों को ताल पर बिठाने की!

" भांड नहीं हूं मैं, नृत्य कहते है इसे।" पहली बार बोला था वो।

" तो लौंडियों के नाच करेगा क्या? यही मिला तुझे, कमर लचकाना?"

"नृत्य कला है, और ये लिंग नहीं देखता।" 

चटाक!!!

" उतरा नृत्य का भूत?"

" पापा, ये बेली डांस फॉर्म है, इसे लड़के भी करते हैं।" 

" भांड करते हैं, हिंजड़े करते हैं! क्या है तू इनमें से?"

" दोनों ही नहीं, मैं बस एक नर्तक हूँ। दुःखी होता हूँ तो नाचता हूँ, खुश होता हूँ तो नाचता हूँ। ये नृत्य मेरी रग-रग में बस चुका है पापा।"

" इस घर में रहना है तो ये नर्तक का लबादा उतार फेंकना होगा। वरना इस घर में नर्तकों की कोई जगह नहीं।" 

कहकर पिताजी ने अपने कदम दूसरे कमरे की ओर बढ़ा दिये और पीछे छोड़ गए एक 16 साल का लड़का, घर और सपनों की बीच हिंडोले खाता हुआ। 

शादी के घर में अब मातम की शांति पसरी थी। सभी औरतें तमाशा देख अपने अपने दड़बों को चली गई थीं। और सभी रिश्तेदारों ने अपना अपना कोना पकड़ खुसरपुसर शुरू कर दी थी। 

बड़ी बहन अपने भाग्य को कोस रही थी। "आज के दिन ही मुए को ये तमाशा करना था। मेरा सारा 'स्पेशल डे' खराब कर दिया।"

पिताजी ने फरमान सुनाने के बाद ये सुनिश्चित कर लिया था कि लड़का अब भांड न बनने पायेगा।

मन ही मन उसकी हार का निश्चय लिए जब सुबह अपने कमरे से बाहर आये तो बेटा न दिखा। पलंग पर एक 'नोट' ज़रूर पड़ा था,"पापा! मैं अपने सपने और घर के बीच 'सपने' को चुन रहा हूँ। माफ़ कर दीजिएगा मुझे।"

धम्म से अपने भविष्य की 'लाठी' को टूटते देख पिताजी वहीं पलंग पर जा गिरे। माँ ने भीतर आकर पानी पिलाया और साथ ही अहसास कराया, "आज बिटिया की शादी है!"

सबके प्रश्नों को दरकिनार करते सुरेंद्र और कमला आज अपनी बड़ी ज़िम्मेदारी को विदा कर रहे थे। माँ का मन है, बेटे के लिए भी भर ही रहा था, भले ही आंसू की छलकन बेटी के नाम जा रही थी पर उसमें कुछ हिस्सा तो बेटे का भी था ही!

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स्टेज पर जाकर भीड़ के बीच अपने देश के नाम एक अवार्ड लेते हुए उसके चेहरे पर गर्व था। पिछले चार सालों का प्रत्यक्ष और जन्म से अब तक का अप्रत्यक्ष संघर्ष उसकी आँखों के समक्ष तैर रहा था।जिस भी ड्योढ़ी पर जाता अपने हुनर को पहचान देने वहाँ ओछी निगाहों के अतिरिक्त कुछ न मिलता।

घर से जब चला छोटी बहन ने एक पोटली हाथ मे दी थी, पूछने पर बोली," पैसे हैं, रख ले काम आएंगे।" अपनी बहन का माथा चूमता वो शहर चला आया था। कितनी ही रातें उसने भूखे पेट निकालीं, कितनों की ही गंदी नज़रो से खुद को बचाता वो हर किसी हुनरमंद के पास दीक्षा को दौड़ रहा था।

जहाँ भी जाता,

मिलती कुछ तीखी आँखों की बौछारें, कुछ कुटिल मुस्कान और कुछ भीतर तक भेद जाने वाले वाक्य," अरे लड़कियों के नाच करता है! छक्का है क्या? "

" अरे टू इन वन है भाई, समझा कर।" 

भीतर कहीं उसे खुद में कुछ भी असामान्य न लगता, जानता था वो कोई खराबी नहीं उसमें, कोई दिक्कत नहीं थी उसे खुद के अस्तित्व को लेकर। ईश्वर ने उसे पुरूष बनाया था, था वो पुरुष ही, लेकिन अपने हुनर को भूलना क्या इतना आसान है?

उसकी भूख प्यास बस इस साधना में ही रमी थी। उसका जीवट देख एक सुप्रसिद्ध कथक नर्तक ने उसे खुद की शरण दी। और यहाँ से शुरू हुआ उसका दुनिया को जीतने का सफ़र। आसमान पर छा जाने का उसका सपना और ज़मीन पर टिके रहने की उसकी ललक ने उसे आज यहाँ ला खड़ा किया, जहाँ वह एक उम्दा कथक नर्तक और बेहतरीन बेली डांसर है।भारत का पहला ' मेल बेली डांसर' जिसने आज विश्वव्यापी मंच पर भारत को ऊंचा दर्जा दिलाया है।

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20 साल का जहान आज पूरे जहान पर छाया है, घर के भीतर आज भी उसका प्रवेश वर्जित है। जो स्वीकृति एक नर्तक को चाहिए खुद में वो जहान ने हासिल की लेकिन इस दुनिया में अभी भी पूरी तरह स्वीकृति बाकी है। दुनियाभर के तानों को प्रेम में तब्दील करता वो आज तक भी अपने पिता को वापिस न पा सका है। 

माँ आज भी तड़पती है उसके लिए, छोटी बहन आज भी उसके कमरे में जा दो आँसू बहा आती है, लेकिन पिता के लिए वो आज भी "भांड" ही है और शायद हमेशा ही रहेगा।



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