बेटियों का सम्मान
बेटियों का सम्मान
यह कहानी पूर्ण त: काल्पनिक है इसका उद्देश्य किसी की भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचाना नही है।
एक सरपंच था उसकी ३ बेटियां और १ बेटा था। बेटा सबसे बड़ा था और बेटियां छोटी। बेटा अपनी तीनों बहनों से हमेशा झगड़ता- लड़ता रहता था और अपनी बहनों पर अपना रोब जमाया करता था। जब भी कोई बेटी अपने पिता से शिकायत करती तब पिता भी एक ही बात कहता - " बेटी ! यह तो तेरे कर्मों का दंड है।"
बेटा भले ही अपनी बहनों को कुछ भी बोलता हो पर बेटियां अपने भाई से अपार स्नेह करती थी।
बेटा अपनी बहनों के सिवा भी हर किसी लड़की को बुरी नज़र से देखता। बेटा हर किसी लड़की से अवैध सम्बन्ध बनाने की कोशिश करता पर माता रानी में उसकी अपार श्रद्धा थी।
एक बार सरपंच के यहां माता का जागरण था। बेटा माता की सच्चे मन से पूजा करता पर जगराते में भी वह लड़कियों को बुरी नज़र से ही देखता।
एक बार उस बेटे की मृत्यु हो गई, यमदूत उसे लेने आ गए और उसे नरक में ले गए। बेटा परेशान हो गया और कहने लगा - " अरे मूर्खो ! मैं तो माता का बहुत बड़ा भगत हो और तुम मुझे नरक में डाल रहे हो, माता रानी तुम्हारा वध कर देगी।" तब माता प्रकट हुई और बोली - " अरे मूर्ख ! तूने हमेशा मेरी मूर्ति की पूजा करी है परन्तु कभी किसी भी कन्या को उचित दृष्टि से नहीं देखा , हर कन्या में मेरा ही वास है इसलिए तुझे नरक की प्राप्ति हुई।"
माता के वचन सुनकर उस बेटे को अपनी गलती का एहसास हुआ तब लड़के की बहनों ने माता से प्रार्थना करी की उनका भाई लौट आए और उनकी प्रार्थना सुनकर माता ने उनके भाई को वापस पृथ्वी पड़ भेज दिया।
पृथ्वी पर आकर उस बेटे ने अपनी बहनों से माफी मांगी और बेटा हर किसी स्त्री को सम्मान की दृष्टि से देखने लगे।