बेलूर मठ
बेलूर मठ
"दादी आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं",रवि ने अपनी दादी को जन्मदिन की मुबारकबाद देते हुए कहा।
"धन्यवाद मेरे बच्चे", वसुंधरा जी ने जवाब दिया।
फिर बारी-बारी रवि के मम्मी-पापा ने भी वसुंधरा जी को जन्मदिन शुभकामनाएं दी और पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। रवि अपने मम्मी पापा का इकलौता बेटा है। उनके परिवार में उसके मम्मी जानकी, पापा सुरेश, दादी और रवि रहते हैं। उसके दादा जी का हाल ही में देहांत हो गया है।
उसके दादा जी की मृत्यु के पश्चात दादी कुछ उदास सी रहती है, इसलिए रवि उनका पूरा ख्याल रखता है और उनको खुश रखने की हर मुमकिन कोशिश करता है। आज भी जब सबने वसुंधरा जी को जन्मदिन की बधाई दी, तो उनकी आंखों से अपने पति को याद करके आंसू आ गए।
वसुंधरा जी की आंखों में आंसू देखकर रवि बोला,"आइ हेट टीयर्स पुष्पा..."
उसकी बात सुनकर वसुंधरा जी ने अपने आंसू पोंछ लिए और मुस्कुराने लगी। फिर रवि ने उनसे पूछा,"तो दादी बताइए आपके जन्मदिन पर आपको क्या तोहफा चाहिए ?"
वसुंधरा जी,"जिसके पास इतना प्यारा परिवार हो, उसे किसी और तोहफे की क्या जरूरत।"
रवि,"अच्छा....पर मुझे तो लगा कि आप फिर से वही बात दोहराएंगी और अपने जन्मदिन पर उसे तोहफे के रूप में मांगेगी।"
वसुंधरा जी,"माना कि मुझे वहां जाने की इच्छा है, पर तुम सबको तंग नहीं करूंगी इसके लिए।"
रवि,"अच्छा दादी आप हमेशा बेलूर मठ जाने की बात क्यों करती रहती हैं, आज बता दीजिए ना...."
वसुंधरा जी रवि की बात पर कुछ याद करके मुस्कुरा देती है और रवि को बताने लगती है,"बेटा ये बात उन दिनों की है जब मैं अपने माता-पिता के साथ बेलूर मठ घूमने गई थी। बेलूर मठ पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह हुगली नदी के तट पर बना हुआ है और यह स्वामी विवेकानंद जी का निवास स्थान हुआ करता था। बेलूर मठ के निर्माण में विभिन्न शैलियों का सम्मिश्रण है। अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोगों के लिए एक महान तीर्थ है बेलूर मठ। बेलूर मठ परिसर में श्री राम कृष्ण देव, मां शारदा देवी और स्वामी विवेकानंद जी के मंदिर है। मेरे माता-पिता की बहुत इच्छा थी वहां जाने की, तो मैं भी उनके साथ चली गई, पर तब मुझे यह नहीं पता था कि यह मठ मेरी पूरी जिंदगी ही बदल देगा और मेरे दिल के इतने करीब आ जाएगा। "
इतना कहकर वसुंधरा जी चुप हो गई, तो रवि ने उन्हें आगे बताने को कहा। वसुंधरा जी ने गहरी सांस ली और आगे बताना शुरू किया।
वसुंधरा जी,"जब हम वहां मंदिर में पहुंचे तो सबसे पहले हम मंदिर में माथा टेकने चले गए कि तभी मेरी नज़र वहां लगे गुलदाउदी के फूलों पर पड़ी। मैंने गुलदाउदी के फूलों की इतनी प्रजातियां एक साथ पहली बार देखी थीं, इसलिए मैं दौड़ते हुए उन्हें देखने जा रही थी कि तभी अचानक मैं एक लड़के से टकरा गई। इससे पहले कि मैं नीचे गिरती, उस लड़के ने मुझे थाम लिया। जैसे ही उसने मुझे थामा, अचानक हमारी नज़रें टकराई और हम एक-दूसरे में खो गए। मुझे ऐसा लगा ही नहीं कि उससे पहली बार मिल रही हूं। उस समय तो ऐसा लग रहा था कि कोई शर्म है ही नहीं। कुछ समय तक हम ऐसे ही एक-दूसरे में खोये रहें, फिर जैसे ही हमें अपने आसपास का ध्यान आया तो हम एक-दूसरे से अलग हुए और एक-दूसरे से माफ़ी मांगी।"
रवि,"उसके बाद क्या हुआ दादी, क्या आप दोनों दोबारा मिलें ?"
वसुंधरा जी,"बेटा हमारी पहली मुलाकात के बाद ही हमारा दिल एक-दूसरे के पास ही रह गया था। उसके बाद तो हम एक-दूसरे से मिलने का बहाना ही ढूंढने लगे। मैं वहां तीन-चार दिन रही थी और वो भी अपने परिवार के साथ कुछ दिनों के लिए वहां आए हुए थे। हम दोनों परिवार वालों से नज़रें चुराकर एक-दूसरे को देखने लगें और फिर उन्होंने बात शुरू कर ली और धीरे-धीरे हमारी बातें भी होने लगी। उन्होंने मेरा नाम पूछा मैंने बता दिया, पर मैं तो उनका नाम भी नहीं पूछ पाई।"
रवि,"क्या दादी आप भी ना जब बातें कर ली थीं, तो नाम भी पूछ लेते।"
वसुंधरा जी,"बेटा पहली बार अपना दिल किसी पर हारा था, तो कुछ समझ नहीं आ रहा था।"
रवि,"अच्छा.... फिर क्या हुआ दादी ?"
वसुंधरा जी,"फिर क्या जिसका डर था, वो पल भी आ गया, यानी हमारे वापिस आने का दिन। वापिस आने से पहले हम एक-दूसरे से मिले और उस समय ऐसा लग रहा था कि यह पल बस यहीं ठहर जाए। जब मैं वापिस आने लगी, तो उन्होंने मुझे गुलदाउदी का फूल दिया और उसी के साथ वो बात भी बोल दी जो मैं कबसे सुनना चाहती थी।"
रवि,"कौन सी बात दादी ?"
वसुंधरा जी,"उन्होंने कहा कि वो मुझसे प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं।"
रवि,"फिर आपने क्या कहा दादी ?"
वसुंधरा जी,"बेटा दिल तो कर रहा था कि बोल दूं कि मैं भी आपसे शादी करना चाहती हूं, पर हमारे परिवार में किसी को भी प्रेम विवाह करने की अनुमति नहीं थी, इसलिए न चाहते हुए भी मैंने उन्हें मना कर दिया और कहा कि शायद हमारी किस्मत में अलग होना ही लिखा है। इतना कहकर मैं मायूस होकर वहां से वापिस आ गई। वहां से वापिस आने के बाद भी मैं उनके बारे में ही सोचती रहती कि काश हमारे यहां प्रेम विवाह के लिए मंजूरी मिलती होती, तो आज हम साथ होते।"
रवि,"हम्म दादी आपने बिल्कुल ठीक कहा और यह दिक्कत तो अभी भी है कई जगहों पर..... उसके बाद क्या हुआ दादी ?"
वसुंधरा जी,"बस ऐसे ही समय गुजरता गया और उस बात को बीते एक साल हो गया, पर फिर भी मेरे दिल में बेलूर मठ की घटना वैसे ही रही, जैसे वो कल ही की बात हो। फिर मेरी शादी की बात चल पड़ी और मेरा रिश्ता तय हो गया। मैंने इसी को अपनी किस्मत मानकर समझौता करने की सोच ली। हमारे यहां तब रिवाज़ था कि वर-वधू शादी के बाद ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं, इसलिए मैं तुम्हारे दादाजी से पहले बात भी न कर पाई। शादी के बाद जब मैं ससुराल पहुंची, तो अपने कमरे में बैठी थी, तभी तुम्हारे दादाजी वहां आ गए। कमरे में आते ही उन्होंने बस एक ही बात बोली....."
रवि,"दादाजी ने क्या बोला था दादी ?"
वसुंधरा जी,"तुम्हारे दादाजी ने कहा कि वह किसी और से प्यार करते हैं, इसलिए मैं उनसे कोई उम्मीद न रखूं। पर उन्होंने यह भी वादा किया कि पति होने के नाते उनकी मेरी प्रति जो ज़िम्मेदारियां हैं, उनसे वो पीछे नहीं हटेंगे।"
रवि,"दादाजी की बात सुनकर आपको बहुत बुरा लगा होगा ना दादी...."
वसुंधरा जी,"सच कहूं तो बेटा बुरा तो लगा, पर जब मैंने उनकी आवाज़ सुनी और अपने घूंघट से उनका चेहरा देखा तो मैं हैरान रह गई, क्योंकि तुम्हारे दादाजी कोई और नहीं बल्कि वहीं थे, जिनसे मैं बेलूर मठ पर मिली थी और देखते ही दिल दे बैठी थी। एक पल के लिए तो मुझे यकीन न हुआ, पर फिर वो बात याद आई कि अगर आप सच्चे दिल से किसी को पाना चाहते हो तो वो कभी ना कभी आपको मिल ही जाता है। मैं बहुत खुश थी और बिना कुछ सोचे समझे उन्हें गले लगा लिया। तब तक तुम्हारे दादाजी ने मेरा चेहरा नहीं देखा था, तो उन्होंने मुझे खुद से अलग कर दिया और डांटने लगे कि मैंने तुम्हें कहा है ना कि मैं किसी और से प्यार करता हूं तो ऐसी हरकत करने का क्या मतलब। उनकी बात सुनकर मैंने अपना घूंघट उठा दिया। मेरा चेहरा देखकर उनके मुंह से एक ही बात निकली, वसुंधरा तुम यहां....."
रवि हंसते हुए,"फिर तो दादाजी का चेहरा भी देखने लायक होगा ना दादी ?"
वसुंधरा जी भी रवि की बात सुनकर मुस्कुरा दी और बोली,"उस समय तो हम दोनों की हालत ही एक जैसी थी। हम दोनों को ही खुद की किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था कि ये सच है। फिर भी तुम्हारे दादाजी हिम्मत करके बोले कि वसुंधरा मतलब मेरी शादी तुमसे ही हुई है। मैंने भी मुस्कुरा कर हां में सिर हिला दिया। बातों ही बातों में हमें पता चला कि हम एक ही बिरादरी के हैं और मेरी मौसी जी और तुम्हारे दादाजी की मम्मी दोनों अच्छी सहेलियां थी, इसलिए मौसी जी ने मेरी शादी तुम्हारे दादाजी से करवा दी, पर वो नहीं जानती थी कि उन्होंने जाने-अनजाने में हमें कितना प्यारा तोहफा दिया है।"
रवि,"दादी एक बात बताइए कि क्या आपने दादाजी से पूछा नहीं कि अगर वो किसी और से यानी आपसे प्यार करते थे, तो उन्होंने किसी और से शादी के लिए हां क्यों की.... भगवान ना करे कि अगर वो लड़की आप ना होकर कोई और होती तो...."
वसुंधरा जी,"तुम्हें क्या लगता है कि मैंने ये प्रश्न पूछा नहीं होगा क्या..... बल्कि सबसे पहले मैंने यही प्रश्न पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें इतना पता था कि जिस लड़की से उनकी शादी हो रही है उसका नाम वसुंधरा है और तुम्हारा नाम भी वसुंधरा ही था, बस इसलिए ही मैंने इस शादी के लिए हां कर दी और अच्छा हुआ ना कि मैंने हां कर दी, नहीं तो हम मिल ही ना पाते कभी। उसके बाद हम कुछ दिनों बाद बेलूर मठ घूमने गए और भगवान का धन्यवाद करके आए कि उन्होंने हमें एक कर दिया। इसलिए मेरी यह इच्छा है कि अपने प्राण त्यागने से पहले एक बार बेलूर मठ की यात्रा पर जाऊं और उन लम्हों को फिर से जिऊं।"
रवि वसुंधरा जी के गले लगते हुए,"सच में दादी आपकी प्रेम कहानी और बेलूर मठ से आपका नाता जानकर बहुत अच्छा लगा। चलिए अब काफी समय हो गया है, तो केक काटते हैं।"
फिर रवि की मम्मी केक ले आई और दादी ने केक कट किया। उसके बाद रवि ने दादी के हाथ में तोहफा थमा दिया। तोहफे को देखकर वसुंधरा जी ने रवि से पूछा,"इसमें क्या है रवि ?"
रवि,"आप खुद ही देख लीजिए ना दादी...."
रवि की बात सुनकर वसुंधरा जी तोहफा खोलकर देखती है और उसमें बेलूर मठ की टिकटें देखकर खुश हो जाती है और रवि को खुशी से गले लगा लेती है।
रवि मुस्कुराते हुए वसुंधरा जी से कहता है,"दादी तैयारी कर लीजिए, तीन दिन बाद हम सब बेलूर मठ की यात्रा के लिए जा रहे हैं। अब तो आप खुश है ना दादी ?"
वसुंधरा जी रवि के सिर पर हाथ फेरते हुए,"मैं बहुत खुश हूं बेटा। तुमने मेरी इच्छा पूरी कर दी।"
फिर सब वहां जाने की तैयारियों में लग जाते हैं और वसुंधरा जी बेलूर मठ के गुलदाउदी के फूलों और अपने पति के साथ बिताए पलों में खो जाती है।

