Jogender Singh(Jaggu)

Abstract

4.8  

Jogender Singh(Jaggu)

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बेजुबान

बेजुबान

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सबसे छुप कर ,चुपचाप किनारे पड़ी कुर्सी पर बैठ

हर शख्स की बात पर धीरे से सिर हिला रही थी


हां या ना में बताना बहुत कठिन ?

उस से भी कठिन था उसके मनोभावों को पढ़ना।


हल्की सी मुस्कुराहट यदा कदा दिख जाती थी

पर खुश रहती थी।


फिर एक दिन बुझी सी आई

थकावट से चूर।


बुलवाने की हर कोशिश नाकाम करती

अच्छा मैं चलती हूं

बेजुबान की पूरी कहानी का एक सुना गया वाक्य।


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