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Harish Bhatt

Tragedy

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Harish Bhatt

Tragedy

बेबसी

बेबसी

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पूछो उस मां के दिल से क्या बीती होगी, जब उसका बेटा उसे गांव में रोता छोड़ कर परदेस निकल गया होगा पैसा कमाने और कहा होगा मां तुम चिंता मत कर बहुत जल्दी शहर में एक अच्छा सा घर तलाश कर तुमको भी वहां ले जाऊंगा। अब तुम्हारा बेटा बड़ा हो गया है। शहर मॆं आते ही बेटे ने मकान बना दिया और काम करने के लिए आया रख ली। उधर गांव में मां कहती फिरती है मेरा बेटा आएगा मैं भी शहर जाऊंगी। बेटे की मजबूरी कहो या बेटे की नीयत, ना तो मां शहर आई और ना ही बेटा लौटकर गांव गया। गया भी तो सिर्फ इसलिए कि सरकार ने पैतृक जमीनों पर कुछ लाभदायक योजनाओं की घोषणा कर दी थी। पिताजी जब तक थे तब तक मां से कहते रहते थे कि इसका भरोसा मत रखना ना मालूम कब तुझे छोड़कर चला जाए। जब तक जिंदा रहना अपने खेत खलियानों की कोई जानकारी मत देना। खेत अभी इतने भी बंजर नहीं हुए कि तेरा पेट न भर सकें और पानी के धारे अभी इतने भी नहीं सूखे कि तेरी प्यास ना बुझा सके। माना परिवर्तन प्रकृति का नियम है। कभी पूर्वज मैदान छोड़कर पहाड़ों की तरफ आए थे आज नई पीढ़ी पहाड़ छोड़कर मैदान की ओर जा रही है तो कुछ गलत नहीं है। हां गलत है वो बच्चे जो बातें तो श्रवण कुमार की करते हैं और मां को शहर में आया का दर्जा देने से भी हिचकते हैं कि मां अनपढ़-गंवार है वह क्या जाने शहर के कायदे कानून।

मेरे गांव के इस रास्ते से जो कदम शहर की ओर निकले वो लौटकर वापस नहीं आए, जो आए भी तो कुछ इस तरह आए, कि जिनको आने से ज्यादा वापस लौटने का जुनून था। वहां जहां मेहनत तो थी लेकिन बच्चों की परवरिश के लिए पर्याप्त साधन मौजूद थे। तब ऐसे में दूर स्थित इस पहाड़ी गांव में क्या रखा था जहां ना पीने को पानी, ना बिजली और ना ही बीमारी से बचने का कोई इलाज। आखिर पलायन तो होना ही था और हुआ भी। क्यों नहीं होता पलायन, मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता के संबंध में जिनको प्रतिनिधि बनाकर राजधानी भेजा, जब वही प्रतिनिधि वापस गांव नहीं लौटे तब ऐसे में गांव वासी क्यों नहीं पलायन करते। यह ठीक बात है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक कुछ तो हुआ ही है, लेकिन इतना भी नहीं कि उसको एक आम ग्रामीण पर्याप्त मान ले। आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां पर सन्नाटा पसरा है। या कुछ समय बाद पसर जाएगा, जब बुजुर्गों की तेरहवीं भी गांव से पलायन कर जाए तब क्या रखा है गांव की जिंदगी में।

पहाड़ से पलायन रोकने की बात करने वाले सक्षम और जिम्मेदार लोगों को अपने मूल गांव में वापस लौटना होगा। भला ऐसा भी कहा होता है कि खुद शहर में बस जाओ और दूसरों को पहाड़ में बसने की सलाह दो, ताकि आपकी पिकनिक टाइप ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए पहाड़ हरे-भरे रहे। पलायन रोकने के लिए पहाड़ में रोजगार की जरूरत है, न कि कोरी बयानबाजी की। कहना जितना आसान होता है, करना उतना ही कठिन।


साहित्याला गुण द्या
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