anil garg

Crime Thriller

4.5  

anil garg

Crime Thriller

बदमाश कंपनी-9

बदमाश कंपनी-9

21 mins
446


मस्ती ने बेवड़े के बताये हुए ठिकाने में गाड़ी को घुसाया और फिर मुड़ कर देखा। पीछे दूर दूर तक कोई नही था।उसने राहत की सांस ली।

"जाओ बुलाकर लाओ उस छपरी को..जिसके बारे में बेवड़ा बोल रहा था"मस्ती ने गंजेडी को गाड़ी से उतरने का इशारा करते हुए बोला।

"अभी लाया गुरु..इस वक़्त तो वैसे वो गहरी नींद में सोया होगा"गंजेड़ी गाड़ी से उतरते हुए बोला।

"सो रहा हो तो साले के पिछवाड़े पर लात मारकर उठाकर ला..उसे बोल की चोरी चकारी के धंधे बाजो के लिए भगवान ने रात जागने के लिए बनाई है"मस्ती ने गंजेडी को पीछे से जाते हुए बोला। गंजेडी ने बिना मुड़े ही सहमति में अपना हाथ उठा दिया। उसके बाद गंजेडी मस्ती की आंखों से ओझल हो गया और फिर कोई दस मिनट के बाद गंजेडी एक शक्ल से ही जाड़िया लगने वाले एक लड़के के साथ अवतरित हुआ।

"गाड़ी तो बड़ी जबर उड़ाए हो....अगर आदमी कोई फन्ने खां हुआ तो भैया कल पूरे शहर की पुलिस इस गाड़ी की तलाश में शहर छान मारेगी"वो छपरी उस गाड़ी पर ऐसे हाथ फिरा रहा था मानो उसने अपने आगोश में अपनी माशूका को लिपटा रखा हो।

"ये बता पुलिस खाक छानते हुए यहां तो नही आएगी ना"मस्ती अब उतरकर उस छपरी के पास आ चुका था।

"भाई जैसे मोहल्ले की लड़की की अगर किसी लड़के से लप्पूझांपा हो जाये तो उस लड़की की फैमिली को छोड़कर पूरे मोहल्ले को खबर होती है..ऐसे ही चोरी के माल की खबर बस पुलिस को छोड़कर पूरे शहर को होती है"छपरी नाम का ये बन्दा उपमाएं मस्त मस्त दे रहा था।

"ठीक है इस गाड़ी की नंबर प्लेट से लेकर इसका रंग रूप सही से चेंज कर दो....रविवार शाम तक हर हालत में चाहिये"मस्ती ने उसकी तरफ देख के बोला।

"हथेली पर नकद बीस हजार रोकड़ा रख दो एडवांस...अपुन अभी से इस का हुलिया बदलने में लग जाता है"छपरी ने अपनी हथेली मस्ती के सामने फैलाई।

"रोकड़ा तो अभी नही है...लेकिन जिस काम के लिये इस गाड़ी को उड़ाया है..उस काम के होते ही नकद पचास हजार तेरे पास पहुंच जाएंगे"मस्ती ने उसकी हथेली पर अपना खाली हाथ रखते हुए कहा।

"दो नंबर का धंधा करते है भाई..इसमे उधार नही होता है..ये तुम भी जानते होंगे...लेकिन पता नही क्यो तुम्हे मना करने को मन नही कर रहा है...लेकिन धोखा देने का अंजाम जानते हो न...सीधा जेल की हवा खाओगे"छपरी ने मस्ती की ओर देखकर बोला।छपरी की बात सुनकर मस्ती भी मुस्कराया और गंजेडी भी।

"सुनो!जिस जेल की तू मुझे हूल दे रहा है उस ढाई सौ करोड़ की हवेली में अपन छ:महीने हर साल गुजार कर आता है...वहां के सरकारी राशन कार्ड में अपन का नाम परमानेंट दर्ज है...मस्तीखोर नाम है मेरा..प्यार से मुझे लोग मस्ती कहते है"मस्ती ने छपरी को बोला तो छपरी उसे सिर से लेकर पाँव तक बस असमंजस में देखता रह गया।

"तुम तो गुरु हो!मस्ती गुरु...भाई गलती हो गया...अगर जरूरत हो तो तुम अपन से पचास हजार ले जाओ"छपरी ने अपनी जेब से पांच सौ के नोटो की हरियाली निकाली और मस्ती की ओर बढ़ा दी।

"इन पैसो को अपने पास रख...डायन भी सात घर छोड़कर अपना शिकार करती है..फिर तुम तो अपने ही बिरादरी भाई हो...इस काम को अभी बिना रोकड़े के कर दो...मेरा वादा है पचास हजार देने का तो वो तुम्हे जरूर मिलेगा"मस्ती ने उसका हाथ अपने हाथ मे पकड़ते हुए कहा।

"भाई पैसो का कोई वांदा नही है...रविवार की शाम को इस गाड़ी को तुम भी नही पहचान पाओगे...अभी आप घर जाकर आराम से सो जाओ"ये बोलकर छपरी फिर से उस गाड़ी पर हाथ फिराने लगा। मस्ती और गंजेडी दोनो ही उस जगह से बाहर के लिए रवाना हो गए।

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उसी रात!

सोनिया से जब फरजाना ने बात की तो सोनिया को शायद पहले से ही भसीन साहब का फोन आ चुका था। सोनिया ने उसे रात को होटल ब्लू हेवेन में डिनर के लिये आमंत्रित किया और वही कॉन्ट्रैक्ट को साइन करने का भी सुझाव दिया। होटल ब्लू हैवन में डिनर के लिए बुलाने का मन्तव्य फरज़ाना बखूबी समझती थी। फरजाना ने बिना समय गवाएं ही सोनिया के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया था। इस बात को भी वो समझती थी कि किसी न किसी बहाने से भसीन भी वही मौजूद होगा। लेकिन उस सड़कछाप धंधेबाज लड़की को एक इतने बड़े होटल में बुलाया जाना ही उसके लिये किसी वरदान से कम नही था। इसलिए वो आज अपना सबसे पसंदीदा परिधान पहन कर सोनिया के सामने उस होटल के एक रूम में बैठी हुई थी। लेकिन उसकी उम्मीद के विपरित भसीन साहब के वहां दर्शन नही हुए थे।

"फरज़ाना!तुमने साहब पर क्या जादू कर दिया...जो एक ही मुलाकात में मुझ से मिलने के लिये भेज दिया"सोनिया क़ातिल नजरो से फरज़ाना को देखते हुए बोली।

"कुछ नही..आपके सामने मेरा जादू कैसे चल सकता है सोनिया मैम...मैंने तो बस अपने काम के बारे में बताया था...उन्हें मेरी बात पसंद आई और मुझे आपसे मिलने के लिए बोला...मुझे नही पता था कि आप मुझे यहां मिलने के लिए बुलाएगी"फरजाना मुरीद स्वर में बोली।

"मुझे तो लगता है आपके काम के साथ साथ साहब को तुम भी पसंद आ गई हो..तभी उन्होंने मुझे तुमसे यहां मिलने के लिए बोला था।

"फिर तो भसीन साहब बड़े मेहरबान आदमी है...वे भी यहाँ होते तो मै अच्छे से उनका शुक्रगुजार होती" फ़रज़ाना ने अब खुद ही माहौल बनाना शुरू किया।

"अगर दिल से शुक्रगुजार होना चाहती हो तो मैं उन्हें यहां बुला सकती हूँ..वो इस होटल की बार के रेगुलर कस्टमर है और रात को नौ दस बजे तक यही होते है..अगर चाहती हो तो मैं बुला देती हूँ"सोनिया अपनी नजर में फरज़ाना को अपने जाल में फँसा रही थी।अब इसे क्या ख़बर थी कि मुर्गी खुद ही यहां हलाल होने को तैयार बैठी थी।

"जी बुला लीजिये...उनके आने से कॉन्ट्रैक्ट मिलने की खुशी दोगुनी हो जाएगी"फरज़ाना गुलाबी स्वर में सोनिया को बोली।उसकी बात सुनते ही सोनिया ने तुरन्त उन्हें फोन मिलाया और बात करते हुए मास्टर बैडरूम में चली गई। उसके बाद उनकी बात करने की कोई आवाज सुनाई नही पड़ी। कोई पांच मिनट के बाद उस बैडरूम का दरवाजा खुला और सोनिया मुस्कराती हुई बाहर आई।

"आ रहे है दस मिनट में "सोनिया फरज़ाना के पास आकर उसके गालो में चुटकी भरते हुए बोली। फरज़ाना ने एक आह सी भरी और सोनिया की ओर मुस्करा कर देखी।कोई दस मिनट के अंदर ही भसीन साहब कमरे की बेल बजा चुके थे।सोनिया ने तत्काल दरवाजा खोला। भसीन साहब ने झूमते हुए कमरे में कदम रखा और आते ही सोनिया को अपने से लिपटा लिया।।सोनिया ने उनकी आगोश में समाने में कोई हिलहुज्जत नही की। सोनिया ने उनके कंधे पर अपने सिर को रखकर फरज़ाना की ओर देखा और इशारों इशारों में उसकी रजा पूछी। उसने अपनी पलको को झपका कर अपनी रजामंदी प्रदान की। सोनिया भसीन साहब को अपने से लिपटाए हुए ही फरजाना के करीब आई। भसीन साहब ने एक बार भी अभी तक फरजाना की ओर तवज्जो नही दी। शायद वो पूरा काम सोनिया के माध्यम से करना चाहते थे। सोनिया ने अपना हाथ फरज़ाना की तरफ बढ़ाया। फरजाना ने तुरन्त अपना हाथ उसके हाथ में सौपा....उसके बाद उसी खामोशी के साथ वे तीनो उस बैडरूम की ओर बढ़ गए। उसके बाद फरज़ाना वहां से सुबह के चार बजे निकली और मस्ती के घर पहुंच गई।

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अगले दिन सुबह के 9 बजे!

यादव की बाइक एक बार फिर से मस्ती के मकान के बाहर आकर रुकी थी। यादव ने आकर दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक जोड़ी कदमों की आवाज उसे पल पल दरवाजे के पास आती हुई सुनाई दी। दरवाजा फरजाना ने खोला था। फ़रज़ाना को वहां देखते ही यादव की नजरें सिकुड़ चुकी थी।

"तू यहां मस्ती के ठिकाने पर क्या कर रही है...उस दिन मस्ती के साथ कोई सेटिंग हो गई क्या" यादव ने उसे घूरते हुए पूछा।

"अरे साहब!अपन तो पैसे के पीर है..जहां देखी तवा परात..वही गुजारी सारी रात...मस्ती ने रोकड़ा दिया तो उसकी रात की रानी बन गई...फ्री में मेहरबानी तो अपुन बस तुम्हारे ऊपर ही करती हूँ साहब"आखिरी वाक्य बोलते हुए फरजाना के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई थी।

"ठीक है...हम भी तो तुझ पर मेहरबानी करते है..जो तुझे शहर में छुट्टा घुमने देते है..खैर छोड़ इस बात को..ये बता मस्ती कहाँ है"यादव अब अंदर आकर अपनी नजरो को इधर उधर दौड़ाने लगा था।

"सोने दो ना साहब उसे...पूरी रात बहुत मेहनत किया है वो..बेचारा थक गया होगा"फरजाना ने यादव का ध्यान भटकाने के लिए एक जालिम अंगड़ाई ली।

"कल रात को इलाके में से एक बहुत महंगी गाड़ी चोरी हुई है..उसी सिलसिले में साहब ने कोतवाली बुलाया है..उठा उसे...उससे कुछ पूछताछ करनी है"यादव ने पुलिसिया रोब झाड़ा।

"गाड़ी कब चोरी हुई है साहब"फरजाना ने तुरंत अपने दिमाग को धार लगानी शुरू कर दी थी।

"आज रात को ही सिनेमा हाल के सामने वाले ब्लॉक से किसी ने उड़ाई है"यादव ने फरजाना को बताया।

"साहब आज रात की जामिन तो मैं दे सकती हूँ मस्ती की..पूरी रात मेरे ही पहलू में सोया हुआ था"फरजाना ने लगे हाथो यादव के दिमाग के जालो को साफ किया।

"तू क्या इस शहर की मजिस्ट्रेट लगी हुई है जो तेरी जामिन मान लू..तुम सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हो..क्या पता उस मर्डर केस के बाद से तुम भी इनके साथ ही मिल गई हो"यादव भी कोई कम कुत्ती रकम नही था।

"साहब बस कर दी न परायों वाली बात..अपन धंधे वाली है तो क्या कोर्ट भी अपनी गवाही नही मानेगा..और हम इसके लिए झूठ बोलकर पुलिस से पंगा क्यों लेगा..साले ने पूरी रात के बस तीन सौ रु दिए है..उसमे भी एक नोट फटेला है"फरजाना गजब की एक्टिंग कर रही थी।

"चल ठीक है..जैसे ही ये सोकर उठें...इसे कोतवाली भेज दे..बड़े साहब के सामने एक बार हाजिरी लगाना जरुरी है"यादव के ऊपर फरजाना की एक्टिंग कुछ तो असर कर गई थी।

"ठीक है साहब..अभी मैं यही पर हूँ..नहा धोकर जाउंगी...वहां साला झुग्गियों में तो पानी आता ही नही है..मैं इसे कोतवाली भेज दूँगी"फरजाना ने यादव की बात से सहमति जताई। उसके बाद यादव फरजाना को मुस्करा कर देखते हुए वहां से विदा हो गया।

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मस्ती इस वक़्त इंस्पेक्टर राज मल्होत्रा के सामने अपने हाथ बांधे खड़ा हुआ था। इंस्पेक्टर राज इस वक़्त गहरी नजरो से देख रहा था।उसने अपनी नजरे इस कदर मस्ती पर गड़ा रखी थी कि मस्ती को अंदर से बेचैनी महसूस होने लगी थी।वो राज से अपनी नजरे मिलाने की ताव नही ला पा रहा था।

"साहब अपन कोई लड़की थोड़ी है जो ऐसे घूर कर देख रहे हो"मस्ती ने राज का ध्यान बटाने के लिए बोला।

"मैं तुझे इस लिए देख रहा हूँ..की मै देखना चाहता हूँ की तेरी थर्ड डिग्री पिटाई होने के बाद तेरा ये खूबसूरत मुखड़ा कैसा लगेगा"राज ने बेमुरव्वत स्वर में बोला।

"साहब!हमने किया क्या है जो हम पर आप थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करेगा...एक तो वैसे ही खाली पीली में सुबह सुबह नींद से जगा दिया"मस्ती ने अनमने से स्वर में बोला।

"बेटा 12 बजे सुबह उन्ही लोगों की होती है जो रात को ओवर टाइम करते है..अब ये बता रात को तू कल सिनेमा हॉल वाले रोड पर क्या कर रहा था।

"रात को मैं फ़िल्म देखने गया था..उसके बाद वही से एक आइटम को लिया और अपने घर आ गया...सुबह आपके यादव साहब को वो आइटम मेरे कमरे में ही मिली थी....उसी के साथ ओवरटाइम किया था साहब...तभी नींद देर से खुली थी"मस्ती ने लगे हाथो कहानी बनाई। क्योकि इतने दिन के तजुर्बे ने उसे ये तो सीखा ही दिया था कि पुलिस का कोई बड़ा अफसर कभी धुप्पल में बात नही करता है..इसको रात की सिनेमा रोड पर मौजूदगी के बारे में जरूर किसी ने बताया होगा...तभी ये इतने विश्वास से बोल रहा था।

"तेरी फ़ाइल देख रहा था मैं..इलाके के पन्द्रह स्कूटर और बाइक चुराने में तेरा नाम शामिल है...इतनी जल्दी तरक्की कर ली की अब सीधा इतनी महंगी गाड़ी को उड़ा दिया"

"अरे साहब !कहाँ पंद्रह बाइक और स्कूटर चुराये है..बस एक स्कूटर चोरी किया था अपनी गर्लफ्रैंड को मोबाइल गिफ्ट करने के लिए..और एक बाइक चुराई थी...उसी गर्लफ्रैंड को घुमाने के लिए...बाकी के केस तो यादव साहब ने मेरे ऊपर ठोक दिए कि मैं उन चोरी में भी शामिल था...अपने केस सॉल्व करने के लिए"मस्ती ने दयनीय स्वर में बोला।

"अच्छा फिर तो तेरे साथ बड़ी ज्यादती हुई है भाई..तुझे तो सरकार से मुआवजा मिलना चाहिये...तेरे जैसे शरीफ आदमी को झूठे केस में फ़साने के लिए"राज ने तंज भरे स्वर में बोला।

"रहने दो साहब!पहले ही सरकार घाटे में चल रही है…अपन अपने मुवावजा का बोझ सरकार के ऊपर नही डालना चाहते"मस्ती ने भी उसी अन्दाज में राज को जवाब दिया।जिसे सुनकर राज तिलमिला उठा था।

"सुन बे!अगर इस कार चोरी में मुझे तेरा हाथ मिला ना..तो मैं खुद इस शहर की सारी गाड़ियों के केस तुझ पर लाद दूँगा..अभी तुझ पर सिर्फ शक है...कोई सबूत नही है मेरे पास...इसलिए अभी तुझे जाने दे रहा हूँ..क्योकि हमारे पास पक्की सूचना है कि तू कल रात उस रोड पर देखा गया था..।और उसी टाइम के आसपास वो गाड़ी चोरी हुई है"राज ने चेतावनी भरे लहजे में मस्ती की तरफ देखकर बोला।मस्ती अभी कुछ जवाब देने के लिए मुंह खोल ही रहा था कि तभी उसके कानों में राज की आवाज पड़ी।

"चल फूट अब यहां से"इस वाक्य को सुनते ही मस्ती धनुष से छूटे हुए तीर की तरह से सीधा कमरे से बाहर निकल गया।

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गंजेडी और बेवड़ा इस वक़्त दोनो सुरक्षा गार्ड की वर्दी पहने हुए फरजाना के सामने तन कर खड़े हुए थे।

"जंच रहे हो इस वर्दी में...बेकार में नशे में डूबकर तुम लोगो ने अपनी जिंदगी खराब कर ली"फरजाना ने तारीफ भरी निगाहों से उन दोनों की तरफ देखा।

"कभी किसी और चीज़ का नशा करने का मौका ही नही मिला न..न कभी किसी औरत का नशा हुआ और न कभी इतना पैसा हाथ लगा कि उसका नशा होता...फिर हमारे जैसे लुक्खे आदमी ऐसे ही नशे करते है"बेवड़े ने फरजाना की ओर देखकर बोला।

"ये काम आज दिल लगाकर पूरा कर दो..कसम से तुम्हे सारे नशे करवा दूँगी"फरजाना ने बेवड़े के गाल पर हाथ फेर कर बोला तो बेवड़े के पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई।

"तुम में से कोई थोड़ा बहुत पढा लिखा भी है क्या"फरजाना ने उन दोनों की ओर देखकर पूछा।

"मैं पांचवी क्लास तक गया था स्कूल"गंजेड़ी ने अपना हाथ उठाकर बोला।

"ठीक है!गेट पर रजिस्टर लेकर तुम बैठोगे...अपना गोगी बेवड़ा अंदर सीढियो के पास रहेगा....चरसी का कट्टा मेरे पास रहेगा...कोई बहुत ही ज्यादा इमेरजेंसी की हालत में मैं कट्टा चलाऊंगी"फरजाना ने पूरा प्लान बताया।

"कट्टा चला तो लेती हो न....क्योकि अनाड़ी आदमी के हाथ को कट्टा चोट पहुंचा देता है"बेवड़े ने फरजाना की ओर देखकर बोला।

"पिछले चार दिनों से मैं घास नही छिल रही हूँ डार्लिंग...कट्टा कई बार चला कर प्रैक्टिस कर चुकी हूँ" फरजाना ने बेवड़े की ओर देखते हुए बोला। तभी मस्ती अपने कमरे से बाहर निकल कर आया। मस्ती उसी दिन वाली किराए की ड्रेस में था...अलबत्ता फ़रज़ाना आज अपनी ड्रेस बदल चुकी थी। तभी फरजाना ने एक मोबाइल अपनी जेब से निकाला और उससे भसीन का नंबर मिला दिया।

"सर!मैं अपने स्टाफ के साथ अभी आधा घँटे में पहुँच रही हूँ"फरजाना ने फोन उठाते ही बिना समय व्यर्थ किये हुए सीधे मतलब की बात की। उधर से जो कुछ भी बोला गया...उसे सुनकर फरजाना ने सहमति में अपने सिर को भी हिलाया और बोलकर भी फोन पर अपनी सहमति प्रदान की।

"हमे जल्दी पहुँचना होगा...उसे बैंक जाना है...मतलब रोकड़ा तो है उसके पास" फरजाना ने चमकते हुए चेहरे के साथ बोला।

"चलो भाई लोगो...छपरी से मैं गाड़ी ले आया हूँ"तभी दरवाजे पर छप्पन टिकली की आवाज आई।

"गाड़ी को यहां तो लेकर नही आया है न"मस्ती ने छप्पन टिकली उर्फ कल्लन से पूछा।

"गाड़ी यहाँ से दो सौ मीटर आगे खड़ी है..तुम लोग जल्दी चलो"छप्पन टिकली ने बोला।

"एक साथ कोई नही जाएगा...एक एक करके यहां से निकलो और गाड़ी मे बैठो"फरजाना ने बोला तो सबसे पहले गंजेडी बाहर की ओर दौड़ा..उसके बाद बेवड़ा गया फिर फरजाना और सबसे आखिर में मस्ती मकान को बन्द करके गाड़ी में जाकर सवार हुआ।उसके बाद छप्पन टिकली ने बिना पूछें गाड़ी को मंजिल की ओर दौडा दिया।

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कल्लन उर्फ छप्पन टिकली को यू तो इस लूट में सामने से भागीदारी नही करनी थी....लेकिन दिक्कत सिर्फ ये थी कि इन चारों लोगो में से गाड़ी सिर्फ मस्ती को चलानी आती थी। चूंकि मस्ती को फरजाना के साथ भसीन के केबिन में रहना था...इसलिए छप्पन टिकली को मजबूरन इन लोगो का साथी बनकर आना पड़ा था। क्योकि उसे गाड़ी को फैक्ट्री के बाहर चालू हालत में खड़ी रखना था। ताकि भागते समय एक पल का भी समय व्यर्थ नष्ट न हो। कल्लन ने तय समय से पहले ही गाड़ी को उस फैक्ट्री के गेट पर लगा दिया था। गाड़ी रुकते ही सबसे पहले गाड़ी से फ़रज़ाना ने कदम बाहर रखा था..उसके बाद सभी लोग बारी बारी से उसके पीछे आकर खड़े हो गए..उन लोगो के उतरते ही कल्लन गाड़ी को गेट से कोई दस मीटर आगे ले जाकर खड़ा हो गया। उन सभी ने एक नजर गाड़ी पर डाली। उसके बाद वे सभी फैक्ट्री में प्रवेश कर गए।प्रवेश करते ही बे सभी सीढियो की ओर बढ़ गए। गेट पर बैठे चच्चा ने एक बार भी उन लोगो को अंदर जाने से नही रोका।सीढियो के पास पहुंचते ही फरजाना सीढियो को लांघती चली गई। फरजाना की इस वक़्त फुर्ती को देखते हुए हतप्रभ मस्ती भी उसी रफ्तार से सीढिया लांघने लगा था। गंजेडी और चरसी भी उनके साथ ही ऊपर पहुंच चुके थे।कुछ ही पलों में वे सभी केबिन के बाहर खड़े हुए थे। उनके दरवाजा खटखटाने से पहले ही सोनिया दरवाजा खोल चुकी थी। फरज़ाना ने मुस्करा कर सोनिया की ओर हाथ बढ़ाया..सोनिया ने भी मुस्करा कर गर्मजोशी से फरजाना के हाथ को थाम लिया।सामने ही चेयर पर भसीन ने भी एक खुशनुमा निगाह फरजाना पर डाली। फरजाना को देखते ही भसीन को फरजाना और सोनिया के साथ एकसाथ मनाई हुई रंगरलिया याद आ गई और उसके चेहरे से एक बार फिर से उसकी कामुकता झलकने लगी थी।फरजाना और मस्ती अब तक आकर सामने बिछी हुई कुर्सियों पर बैठ चुके थे। गंजेड़ी और बेवड़ा दोनो केबिन में ही एक तरफ कोने में सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए।

"इन लोगो को लाई हो यहाँ काम करने के लिए"सोनिया ने उन दोनों पर नज़र डालते हुए बोला।

"हाँ सोनिया जी!आज से बाहर गेट पर ये लोग तैनात रहेंगे..बाकी गार्ड के बारे में पूरी फैक्ट्री को देखने के बाद बता देंगे"फरजाना ने सोनिया को जवाब दिया।

"ठीक है फरजाना तुम्हें थोड़ी देर इंतजार करना होगा..क्योकि सर को अभी बैंक जाना है और हमे पैसो की डिटेल तैयार करनी है"सोनिया वही केबिन में बनी एक अलमारी की ओर बढ़ता हुआ बोली।

"फिर हम लोग बाहर इंतजार करते है...आप अपना काम कर लीजिए"फरजाना ने अपनी सीट से उठते हुए कहा।

"आप लोग यही बैठिये...आप लोग तो हमारी सुरक्षा के लिए आये है आप लोग से कैसा डर मैडम"भसीन ने फरजाना को मुस्करा कर बोला।

"ठीक है फिर ...तुम दोनो बाहर इंतजार करो..मैं सर के जाने के बाद तुम्हे अंदर बुलाती हूँ"फरजाना पूरे प्रोफेशनल अंदाज में गंजेडी और बेवड़े की ओर देखकर बोली। फरज़ाना का इशारा पाते ही वे दोनों केबिन से बाहर निकल कर सीढियो के पास जाकर खड़े हो गए। ये उस रात फरजाना के साथ बिस्तर में खाई कलाबाजियों का ही नतीजा था की आज भसीन और सोनिया इन दोनों के सामने कोई भी पर्दा नही रख रहे थे। सोनिया ने बैग से सारी नोटो की गड्डियो का वही टेबल पर ही ढेर लगा दिया।

"सर !आज तो कैश पिछले हफ्ते से ज्यादा लग रहा है"सोनिया एक गड्डी के नोटो को गिनना शुरू करते हुए बोली।

"हाँ एक पार्टी की रुकी हुई पेमेंट भी कल मिल गई थी तो आज पेमेंट तकरीबन पचास लाख है"भसीन ने सच मे ही अपनी फैक्ट्री को लाला की दुकान बताया था। इतनी बड़ी रकम को वो इस वक़्त चंद दिनों पहले मिले लोगो के सामने फैला कर बैठ गए थे।लेकिन उम्मीद से ढाई गुना रकम को अपनी आंखों के सामने पड़ी हुई देखकर उन दोनों के चेहरे की चमक के हेलोजिन बल्ब जल चुके थे।

"आपने इनका परिचय नही करवाया हमसे"भसीन ने अब मस्ती की ओर देखकर बोला।

"इनका नाम महेश बाबू है..ये हमारी कंपनी का सीसीटीवी विभाग को सम्हालते है..अभी आप बैंक से वापस आ जाइए उसके बाद ये आपको अपने काम का प्रेजेंटेशन देगे"फरजाना पहले से ही सभी सवालो के जवाब सोच कर बैठी हुई थी।

"गुड मिस्टर महेश...आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई...काफी अच्छी पर्सनालिटी है आपकी"ये बोलकर सोनिया ने मस्ती की ओर अपना हाथ बढ़ाया। मस्ती ने भी पूरी गर्मजोशी से सोनिया का हसीन हाथ थाम लिया।

"आप लोग भी जरा कैश काउंट करवाने में हेल्प करवा दीजिये...काफी ज्यादा कैश है..सिर्फ हम दो लोग ही काउंट करेगे तो यही शाम हो जाएगी"भसीन ने उन दोंनो की ओर देखते हुए प्रार्थना भरे स्वर में बोला।

"जी जरूर"ये बोलकर फरजाना ने एक गड्डी उठाकर मस्ती की ओर बढ़ा दी और एक गड्डी को खुद थाम कर बैठ गई।

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"औए ये गाड़ी खड़ी करने की जगह नही है..अभी किसी भी फैक्ट्री से गाड़ी आएगा तो यहां जाम लग जाएगा"एक पुलिसिये ने छप्पन टिकली की गाड़ी के पास डंडा लहराते हुए कहा।

"साहब बस अभी दस मिनट में जा रहा हूँ...मेरे साहब लोग अंदर गए हुए है..अभी उनके आते ही चले जायेंगे"छप्पन टिकली ने गुड़ से भी मीठे स्वर में बोला।

"नही रे बाबा...गाड़ी को कही और लेकर जा..इस एरिया में अगर जाम लग गया तो..फिर दो घँटे से पहले नही खुलता है"वो पुलिसिया भी कोई जिद्दी ही था।

"ठीक है यार...जाता हूं मैं..क्यो गुस्सा हो रहे हो"ये बोलकर छप्पन टिकली ने गाड़ी को धीमी रफ्तार से आगे बढ़ा दिया। छप्पन टिकली ने सपने में भी नही सोचा था कि ऐसा भी कोई विघ्न आएगा। अब छप्पन टिकली ने गाड़ी को एक जगह खड़ी न करके सड़क पर इधर उधर घुमाना शुरू कर दिया था।

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पूरे कैश को गिनकर सोनिया वापिस बैग में भर चुकी थी...अब कुछ ही पलों में भसीन वहां से निकलने वाला था। बस उसके निकलने में जितना समय लगने वाला था....उतना ही समय अब इन लोगो के पास अपनी कार्यवाही को अंजाम देने का रह गया था। सोनिया बैग को सम्हालने में व्यस्त थी। भसीन अपनी डायरी में बैंक के लिए नोटो की डिटेल बनाने में व्यस्त था। तभी फरजाना ने मस्ती को आँखों ऑंखों में ही इशारा किया और सोनिया के पास रखे बैग पर अपना हाथ रख दिया।

"बहुत मेहनत कर ली सोनिया डार्लिंग तुमने..अब इससे आगे इस बैग को उठाने की मेहनत हमे करनें दो"ये बोलकर फरजाना ने अपनी जेब से कट्टा निकाल कर सोनिया के सिर पर लगा दिया था।मस्ती भी तब तक कूद कर भसीन के सिर पर सवार हो चुका था। अचानक से हुई इस हरकत से भसीन और सोनिया दोनो ही सकते कि हालत में आ चुके थे।

"ये क्या कर रही हो फरजाना"भसीन के मुंह से हकलाते हुए बस इतने ही शब्द निकले थे कि मस्ती ने उसके दोनो हाथो को उसी की कुर्सी के पीछे कस दिए थे।

"चल कपडे उतार अपने नही तो अभी गोली मार दूँगी..महेश इसके कपडो से इन दोनों को यही बांध कर डाल दो"फ़रज़ाना ने नकली नाम से ही मस्ती को पुकारा।

"इसके थोबड़ा बिगाड़...इस साली ने अभी तक कपडे नही उतारे है"मस्ती ने गुर्राते हुए बोला।

"जल्दी उतार!दस सेकेण्ड में कपडे नही उतरे तो गोली मार दूँगी"फ़रज़ाना ने कहर भरे स्वर में बोला।इस बार फरज़ाना की चेतावनी मिलते ही सोनिया यंत्रचलित सी अपने कपडे उतारने लगी थी।

"सोनिया को कुछ मत करो...तुम ये सारा पैसा ले जाओ...मैं किसी को कुछ नही बोलूंगा"भसीन ने मिमियाते हुए कहा। तब तक सोनिया सिर्फ ब्रा पैंटी में ही वहां खड़ी रह गई थी।मस्ती ने जल्दी से सोनिया की शर्ट उठाई और भसीन को चेयर से ही बांधने लगा। तभी भसीन में पता नही कहा से इतनी ताकत आ गई कि उसने अपने पाँव की एक ठोकर से मस्ती को दरवाजे के पास पहुँचा दिया। जैसे ही मस्ती दरवाजे से टकराया उस फ्लोर पर एक जोरदार आवाज गूंज उठी। जो नीचे तक जाते जाते मशीनों के शोर में दबकर रह गई।तभी भसीन अपनी कुर्सी से उठा और मस्ती पर झपट पड़ा। उसी वक़्त उस केबिन का दरवाजा खुला और बेवड़े और गंजेडी ने एक साथ केबिन में कदम रखा। तभी बेवड़े की तरफ से एक चाकू सनसनाता हुआ आया और भसीन की एक टांग में धंसता चला गया।

"हमे मारना नही किसी को..इन्हें काबू में करके यही बांध कर डाल दो"फरजाना ने उन लोगों को देखते हुए बोला।उधर टांग में चाकू घुसते ही भसीन बेदम सा होकर जमीन पर लुढ़क गया।उधर फरजाना ने सोनिया की कनपटी पर कट्टा मारा..सिर्फ दस सेकेण्ड मे ही सोनिया बेहोश होकर वही कुर्सी पर धरासाई हो गई। उसके बाद फ़रज़ाना ने सोनिया के कपडो से ही उसे बांधा और फिर उसकी पैंटी भी उतार कर उसके मुंह मे ठूस दी। उसके बाद इसी तरीके से भसीन की कनपटी पर भी कट्टे का प्रहार किया और भसीन के धरासाई होते ही सोनिया की ब्रा को उसके मुंह में ठूस दिया।

"निकलो यहां से..अब जब तक कोई ऊपर नही आएगा..तब तक यहां क्या हुआ है किसी को पता नही चलेगा"ये बोलकर फरजाना ने बैग उठाया..लेकिन बैग के वजन से उसके कदम लड़खड़ा गए। मस्ती ने उसके हाथ से बैग लिया और बाहर की ओर बढ़ गया। मस्ती और फरजाना ने आधा क़िला तो फतेह कर लिया था। बस अब शहर से बाहर निकलते ही ये क़िला पूरा फतेह हो जाना था। वे चारो तेजी से उस बैग को लेकर सीढिया उतरते चले गए। गेट पर बैठा चाचा कुछ समझ पाता उससे पहले ही वे चारों गेट से बाहर निकल चुके थे। गेट से बाहर निकलते ही मस्ती के कानों में छप्पन टिकली की आवाज सुनाई पड़ी...वो थोड़ी सी ही आगे गाड़ी में बैठा हुआ उन लोगो को ही आवाज लगा रहा था। वे लोग लगभग दौडतें हुए गाड़ी के पास पहुंचे।वे चारो बिना एक पल भी गवाए गाड़ी में समा चुके थे।

"यहाँ से जल्दी निकलो..थोड़ी सी गड़बड़ हो गई है"फरजाना ने जैसे ही बोला छप्पन टिकली गाड़ी को आगे बढ़ा चुका था।

"कैसी गड़बड़"छप्पन टिकली ने चिंतित स्वर में बोला।

"अगर गेट पर बैठे चाचा को हल्का सा भी किसी गड़बड़ का अंदेशा हो गया तो वक़्त से पहले पुलिस को पूरे मामले का पता चल सकता है"फरजाना ने छप्पन टिकली को बोला।

"तुम उसकी चिंता मत करो..आज शाम तक हम शहर में ही छुपे रहेंगे....तुम लोगो को मैं अभी सुरक्षित जगह पर पहुंचा देता हूँ...ये गाड़ी भी आराम से वहां छुपी रह सकती है"छप्पन टिकली ने बोला।

"लेकिन हमारा प्लान तो शहर छोड़ने का था"मस्ती ने बीच मे ही बोला।

"शहर तो छोड़ेंगे...लेकिन आज ही नही छोड़ पायेंगे..थोड़ा सा मामला ठण्डा होने दो...फिर मैं सभी को शहर से बाहर पहुंचा दूँगा"छप्पन टिकली ने समझाइश भरे स्वर में बोला।

"कल्लन...हमारे साथ कोई डबल क्रॉस तो नही कर रहा है ना...हमसे गद्दारी का अंजाम जानता है ना"फरजाना ने जहर बुझे स्वर में बोला।

"भाई विश्वास नही है तो मैं यही उतर जाता हूँ...तुम लोगो ने जहां जाना है जाओ...तुम लोग अच्छे से जानते हो कि मेरी औकात तुम लोगो से पंगा लेने की नही है...फिर भी ऐसे बोल रहे हो"कल्लन आहत भरे स्वर में बोला।

"चल तू जहाँ ले जाना चाहता है ले जा... अगर हम डूबेंगे तो छोड़ेंगे तुझे भी नही कल्लन"मस्ती ने गाड़ी की सीट से अपने सिर को लगाते हुए बोला।

"लेकिन हम जा कहाँ रहे है"इस बार बेवड़ा बोला।

"उस भूतिया मिल में जहां घुसने की हिम्मत पुलिस भी नही करती"कल्लन ने मुस्करा कर बोला।

"इन हालात में जगह तो बिल्कुल ठीक चुनी है तुमने कल्लन"मस्ती की सहमति पाते ही कल्लन ने गाड़ी को पूरी गति से उस भूतिया मिल की ओर दौडा दिया।

क्रमशः



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