anil garg

Crime Thriller

4.5  

anil garg

Crime Thriller

बदमाश कंपनी-14

बदमाश कंपनी-14

34 mins
447


फरजाना ने निरीह नजरो से मस्ती की ओर देखा। मस्ती की बात का उसे तुरंत कोई जवाब नही सुझा था। लेकिन अचानक से वहां चरसी की आवाज गूँजी।

"गुरू मुझे तो लगता है इस हरामी कल्लन ने ही इसे डरा धमका के चुप रहने के लिए मजबूर किया होगा"चरसी को पता नही फरजाना पर कुछ तरस आ गया था।

"इसे देखकर तुझे कहाँ से लग रहा है कि ये इस कल्लन जैसे इंसान से डर जाएगी...इसके पास तो ऐसा हुनर है कि ये ही कल्लन को अपने इशारे पर चला रही होगी"चरसी की बात पर बेवड़े ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दी थी।

"सही बोल रहा है ये बेवडा भाई...सारी प्लानिंग इसी छिनाल की थी...इसी ने मुझे बोला था...की इन लोगो को रास्ते से हटा दो तो सारी रकम हम आधी आधी बांट लेगे"कल्लन ने बेवड़े की बात का सहारा मिलते ही सारा ठीकरा फरजाना पर फोड़ दिया था।मस्ती इस वक़्त अपने चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान लिए हुए वहां चल रही लीला का आनंद ले रहा था।

"गुरु इस कल्लन को ही गोली मारते है...ये ही सारे क्लेश की जड़ है..इसी ने आज हमे यहां बीच रास्ते मे फँसा कर खड़ा कर दिया है...नही तो हम लूट वाले दिन ही ये शहर छोड़ चुके होते"चरसी ने दोबारा से अपनी बात को बोला।

"चरसी बेटा ! शहर नही छोड़ने के कारण ही तू आज हमारे साथ खड़ा है...नही तो अभी तक जेल में ही सड़ रहा होता"बेवड़े की बात सुनकर इस बार चरसी ने भी अपना सिर सहमति में हिलाया।

"मारना तो मैं इन दोनों को ही चाहता हूँ...लेकिन अपने हाथ खून से रंगना नही चाहता हूँ..इन दोनों की यही सजा है कि अब ये यही सड़कर मरेंगे और हम लोग इनके हिस्से के पैसो से  मौज करेगे"मस्ती ने बेवड़े और चरसी की ओर देखकर बोला।

"गुरु!मुझे मेरा हिस्सा दे दो..मैं किसी भी साजिश में शामिल नही हूँ...चाहे मुझे जान से मार दो...लेकिन मैं मरते दम तक अपना हिस्सा नही छोडूंगी...मेरी इस झंड जिंदगी का पहला और आखिरी जैकपोट है ये...इसे मैं सिर्फ मरने के डर से नही जाने दूँगी"फरजाना शायद मन ही मन करो या मरो का फैसला कर चुकी थी।

"एक शर्त पर तेरी जानबख्शी होगी..तू अपने हाथो से कल्लन को गोली मारेगी"मस्ती ने अपने हाथ मे थमी पिस्टल को घुमाते हुए बोला।

"मेरी भी एक शर्त है...अगर कल्लन को मैं मारूँगी तो इसके हिस्से की रकम भी मेरी होगी"फरजाना का लालच अभी भी उसके सिर चढ़ कर बोल रहा था।

"नही! पूरा हिस्सा नही मिलेगा....आधा हिस्सा मंजूर हो तो ले मार गोली कल्लन को"ये बोलकर मस्ती ने अपनी पिस्टल को फरज़ाना की तरफ उछाल दिया। इससे पहले की फरज़ाना तक वो पिस्टल पहुंचती...कल्लन ने दौड़कर उस पिस्टल को ठीक उसी अंदाज में लपक लिया...जिस अंदाज में 83 के विश्वकप में कपिल देव ने विवियन रिचर्ड के कैच को लपका था। उसकी इस चपलता से वहां मौजूद हर शख्स हतप्रभ सा एकबारगी तो कल्लन को ही देखता रह गया। लेकिन उससे ज्यादा हतप्रभ कल्लन की अगली हरकत ने कर दिया। कल्लन उस पिस्टल को उतनी ही फुर्ती से मस्ती की कनपटी पर लगा चुका था। बाजी अचानक से पलट गई थी और वक़्त का सिकंदर कल्लन बन चुका था।

"इस बेवड़े के पास से सारी पिस्टल लो फरजाना..इन सब हरामियों को मारकर तुझे अपनी दुल्हन बनाने का जो वादा तुमसे किया है..वो वादा जरूर पूरा करूँगा"कल्लन के मुँह से जोश की अधिकता से उसकी आगे की प्लानिंग अब जगजाहिर हो चुकी थी।

"साले छप्पन टिकली तू मेरी जान से शादी रचायेगा और हमे शादी में बुलायेगा भी नही...ऐसे जीने से तो हमारा मर जाना ही अच्छा है...ले फरज़ाना मेरी जान..तू ही अपने हसीन हाथों से मुझे एक हसीन मौत दे दे"बेवड़े ने वहां अब एक नई नौटंकी शुरू कर दी थी। बाजी पलटते ही अब तक दीवार की तरफ मुंह करके खड़े हुए सारे गुर्गे भी अब तक उन तीनों को आकर घेर चुके थे। लेकिन मस्ती के होठो की कुटिल मुस्कान अभी भी उसके होठो पर खेल रही थी।

"कितना बड़ा बेवकूफ था मैं...जो तुम लोगो को जिंदा छोड़ रहा था...मैं तो भूल ही गया था..आस्तीन का साँप कभी न कभी तो डसेगा ही" मस्ती ने हिक़ारत भरें स्वर में बोला।

"लेकिन कल्लन के साथ मैं नही हूँ मस्ती...अगर ये तुम लोगो को मारना चाहेगा तो मुझे भी मार दे मुझे कोई गम नही होगा"अचानक से फ़रज़ाना की बात सुनते ही कल्लन के चेहरे पर हजारों रंग एक साथ आकर चले गए।

"तू अब ये क्या नया गेम खेल रही है"कल्लन ने अजीब से स्वर में बोला।

"ये कोई गेम नही है कल्लन...मैं मानती हूँ कि मैं तेरी बातों में आ गई थी...लेकिन मस्ती की बातों ने मेरी आँखे खोल दी...हम लालच में एक दूसरे के खून के ही प्यासे हो गए है...जब हम सब मर ही जायेंगे....तो ये पैसा हमारे किस काम आएगा...इसलिए मैं तो कहती हूँ कि अभी भी कुछ नही बिगड़ा है...अपना अपना हिस्सा ईमानदारी से लेकर अलग हो जाये"फरजाना कल्लन की ओर देखकर बोली।

"लेकिन अब मैं कदम पीछे नही हटा सकता..तू अपना आखिरी फैसला बता..तू मेरे साथ है या नही...वरना तेरा भी नाम मरने वालो की लिस्ट में शामिल हो जाएगा"कल्लन ने शातिर स्वर में बोला।

"मैं मस्ती को धोखा नही दूँगी...चाहे तो मुझे भी गोली मार दे"फरजाना दृढ़ स्वर में बोली।

"ठीक है फिर पहले इस मस्ती को ही ठिकाने लगाता हूँ'"ये बोलकर उसने मस्ती की कनपटी पर पिस्टल को और ज्यादा कस दिया। तभी चरसी ने अपनी जगह से लपक कर कल्लन का पिस्टल वाला हाथ अपने सीने पर रख लिया।

"साले छप्पन टिकली..गुरु से पहले मुझे और बेवड़े को मार फिर तू गुरु को मार पायेगा...हमारे जीते जी तो खुद यमराज भी गुरु तक नही पहुंच सकता है"चरसी ने इस अंदाज में कल्लन को बोला की कल्लन को एकबारगी तो ये सुझा ही नहीं की वो क्या बोले या क्या करे। लेकिन फिर जैसे ही उसे होश आया वो अपने पिस्टल के ट्रिगर को दबाता चला गया।लेकिन कमरे में सिर्फ ट्रिगर के दबने का ही शोर गूंज रहा था। गोली का कोई धमाका उस वक़्त नही हुआ। धमाका हुआ दूसरी पिस्टल के चलने से और वो पिस्टल चली थी फरज़ाना के हाथ से...जो उसने कल्लन पर चलाई थी और कल्लन उर्फ छप्पन टिकली न केवल उस कमरे के फर्श पर बिछ चुका था..वरन उसके खून की एक लाल चादर भी उस फर्श पर बिछती चली जा रही थी।

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रात्रि के अंतिम प्रहर तक पुलिस उस मिल की तलाशी लेती रही। आखिरकार एक कमरे से उन्हें गंजेडी की लाश बरामद हो चुकी थी। इंस्पेक्टर राज ने रात को ही वहां फोरेंसिक वालो को तलब कर लिया था। उस जगह से उन लोगो को काफी रोजमर्रा की जरूरत का सामान बरामद हुआ था। जिन पर से फिंगर प्रिंट लेने का काम इस वक़्त फोरेंसिक वाले बड़ी तनमन्यता से करने में लगे हुए थे। गंजेडी कि लाश को भी पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया था। तभी इंस्पेक्टर राज के मोबाइल की घँटी बजी। राज ने तुरन्त फोन उठाया। अस्पताल से उनके किसी मातहत ने फोन करके यादव के होश में आने की जानकारी उन्हें दी थी। जिसे सुनकर राज ने राहत की सांस ली थी। उसे बस अब फोरेंसिक वालो की वहां से रवानगी का इंतजार था...उसके बाद वो अस्पताल जाकर यादव से बात करना चाहता था और उस दूसरे अनजान बन्दे की भी जन्मकुंडली निकालना चाहता था...जो यादव के साथ ही एक ही जगह पर बेहोश पड़ा हुआ मिला था।

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"ये तुमने क्या किया...इसे मारने की क्या जरूरत थी"मस्ती एकदम से फरजाना के ऊपर चीख़ कर पड़ा था।

"इसे मारना जरूरी था...वरना ये हम सब को मार डालता...ये इसका अकेले का प्लान नही है..बल्कि इसके पीछे और भी लोग है..ये कल्लन तो सिर्फ उनका मोहरा भर था।

"तुम्हे कैसे पता...तुम भी तो इसी के साथ मिली हुई थी"मस्ती ने संशय भरी नजरों से उसे देखा।

"इस आदमी की असलियत जानने के लिये इससे मिलना जरूरी था...मैं कभी भी ऐसे लोगो से गद्दारी नही करती जो मुझ पर भरोसा करते है...तुम लोगो को धोखा देने का मेरा कभी भी इरादा नही था...बस मैं वो हालात पैदा कर रही थी..की इस आदमी को आसानी से मार सकूं और चरसी पर पिस्टल चलाकर इस हरामी ने वो मौका दे दिया... लेकिन इसकी पिस्टल से कोई गोली निकली क्यों नही"फरजाना ने हैरानी भरे स्वर में मस्ती की ओर देखकर बोला।

"मै बातों बातों में पिस्टल की गोलियां पहले ही निकाल चुका था....बस ये देखना चाहता था कि दौलत के लालच में कौन कितना नीचे गिर सकता है"मस्ती ने हिक़ारत से बोला।

"ये गिरने की शुरुआत तो दौलत आने से पहले ही हो चुकी थी...इसने सोचा था कि इसकी जात वाली होने के कारण मैं इसका साथ दूँगी"फरज़ाना के स्वर से कल्लन के लिए नफरत झलक रही थी।

"फिर इसके बाद हमे क्या करना है..उसके बारे में भी तो पहले से ही तुमने कुछ सोचा हुआ होगा"मस्ती ने पूछा।

"यहां से जितनी जल्दी निकल सकते हो निकलो..क्योकि सुबह होने तक यहां इतनी भीड़ हो जाएगी कि हम तो उस भीड़ में नजर भी नही आएंगे"फरजाना ने मस्ती की बात का जवाब दिया।

"फिर तो तुम ये भी जानती होगी कि ये नाशुक्रा इंसान हमे किस जगह लेकर आया है और किसके कहने पर लाया है"इस बार ये सवाल बेवड़े की तरफ से आया था।

"ये ददुआ की हवेली है"फरजाना की बात सुनते ही उस कमरे में एकाएक सन्नाटा पसर गया।

"ये कल्लन ददुआ के लिए काम करता था"इस बार चरसी के मुंह से निकला।

"तुम्हे ऐसा नही लगता कि कल्लन को मारकर अब हम और बुरी तरह से फंस गए है...अगर ये सच में ददुआ का आदमी है तो ददुआ हमे हिंदुस्थान के किसी भी कोने से ढूंढ निकालेगा"मस्ती भी किसी अज्ञात आशंका से ग्रसित हो चुका था।

"अभी तो सबसे पहले यहां से निकलो...अपना हुनर दिखाओ..हवेली से ही अब कोई दूसरी गाड़ी को उड़ाओ....जब ददुआ ढूंढ लेगा..तब की तब सोचेंगे....अभी से ही उसके नाम क्यो हलकान हो रहे हो"फरजाना ने लापरवाही भरे स्वर में कहा।

"शायद ददुआ के बारे में अच्छी तरह से जानती नही हो...इसलिए अभी ऐसा बोल रही हो...अरे इस शहर के आसपास की जितनी भी स्टेट की सीमा इस शहर से लगती है..उन स्टेट का सारा अमला सिर्फ ददुआ का हुक़ूम ही बजाता है...और अगर ददुआ को जब ये पता चलेगा कि हमारे जैसे मोहल्ले के मामूली से टपोरी लोग उसकी बजा कर चले गए तो...जो कहर ददुआ का हम पर बरसेगा...उसकी तुम कल्पना भी नही कर सकती हो"बेवड़े ने ददुआ के बारे में फरज़ाना को बताया।

"मैं फिर बोल रही हूँ...की जब ददुआ सामने आएगा या हमारे पीछे पड़ेगा..तब सोचेंगे कि हमे क्या करना है...अभी तो यहां से निकलते क्यो नही हो तुम लोग"फरज़ाना इस बार झल्लाये स्वर में बोली।

"फरज़ाना सही कह रही है गुरु...पहले हमें यहां से निकलना चाहिए"ये बोलकर चरसी ने उस नोटो से भरे बैग को उठाकर अपने कंधे पर लादने की कोशिश की...लेकिन कामयाब नही हो पाया तो खिसिया कर बेवड़े की ओर देखने लगा। बेवड़े ने आगे बढ़कर चरसी के साथ मिलकर उस बैग को उठाया और बाहर की ओर बढ़ने लगे। फरज़ाना के हाथ की पिस्टल अभी भी कल्लन के गुर्गों की तरफ तनी हुई थी।उसने और मस्ती ने एक साथ कमरे से बाहर कदम रखा और जल्दी से दरवाजे को बाहर से कुंडी लगाकर वहां से उस गैलरी में दौड़ते हुए चले गए।

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इंस्पेक्टर राज इस वक़्त अस्पताल में यादव के सामने बैठा हुआ था। अस्प्ताल पहुँचने से पहले ही उसे उस दूसरे बन्दे के भी होश में आने की खबर मिल चुकी थी।

"सच मे उन लुटेरो के हत्थे चढ़ गए थे...या उनको वहां से भगाकर कोई नाटक रचा है"राज ने बिना किसी लागलपेट के दो टूक शब्दों में पूछा।

"सर!माना कि मैं एक नंबर का रिश्वतखोर पुलिसिया हूँ...लेकिन जिस देश मे रिश्वत देकर ही भर्ती होती हो..वहां रिश्वत लिए बिना कोई अपनी दी हुई रिश्वत को कैसे वसूलेगा....लेकिन मेरे जिस्म पर लगे हुए ये चोट के निशान झूठे नही है सर...मैं जान गया हूँ कि इस लूट में कौन लोग शामिल है...अभी तक हम सिर्फ शक की बिना पर काम कर रहे थे अब यकीनी तौर पर कह सकते है कि इस लूट में कौन कौन लोग शामिल है"यादव ने एक एक शब्द को चबाते हुए बोला।

"बताओ फिर..तुमने किस को देखा उस मिल में...जिससे तुम यकीनी तौर पर कुछ बता सकते हो"राज ने यादव को बोला।

"सर!ये मस्ती और उसके नशेड़ी साथियो का काम है...और इसमे एक सिनेमा हाल के बाहर धन्धा करने वाली फरजाना नाम की लड़की भी शामिल है"यादव ने एक साथ सभी के बारे में बताया।

"मस्ती और उस फरज़ाना के बारे में तो हमारे स्केचर ही बता चुके है...इनके एक साथी की लाश हमे मिल से ही मिल चुकी है..बाकी के दो साथी कौन है"राज अभी भी उलझन में था।

"बाकी दो लोगो मे एक बेवड़ा है जो मस्ती के गैंग का ही बन्दा है..और एक बन्दा और है..उसकी जानकारी मै आपको अस्पताल से छुट्टी मिलते ही दे दूंगा"यादव ने बोला।

"सबसे पहले मुझे ये बताओ की तुम उन लोगो के हत्थे कैसे चढ़ गए थे"राज अब अपने सुर को बदलते हुए बोला।उसके बाद यादव अपनी आपबीती सुनाता चला गया। राज पूरे ध्यान से उसकी आपबीती को सुन रहा था। यादव की बात खत्म होते ही राज अपनी जगह से खड़ा हो चुका था।

"मैं जरा उस दूसरे बन्दे की खबर ले लू....वो कौन है और वहां क्या कर रहा था"राज ने यादव को बोला।

"वो दारू का अवैध धन्धा करता है जनाब...उसी के दारू के अड्डे से मैं बेवड़े के पीछे लगा था...उसी अड्डे के पास चरसी की बेवड़े से मुलाकात हुई थी...शायद बेवड़े ने उन लोगो के आगे उस लूट के बारे में मुंह फाड़ा होगा...तभी लालच में आकर वो भी उसके पीछे लग गया होगा...वो तो मुझ से पहले उन लोगो का शिकार हुआ था...शायद वो लोग गेट के आसपास ही घात लगाए बैठे होंगे...क्योकि वहां अंधेरे की वजह से तो हाथ को हाथ नही सुझाई दे रहा था"यादव ने इंस्पेक्टर राज की सारी उलझनो को वही खड़े खड़े दूर कर दिया था।

"इस केस के बारे में काफी अच्छी जानकारी इक्कठी कर रखी है यादव...तुम्हे लूट होने से पहले तो लूट की खबर नही थी"राज ने एक बनावटी मुस्कान के साथ यादव की ओर देखकर बोला और वहां से बिना यादव का जवाब सुने ही उस बन्दे के बेड की तरफ बढ़ गया जिसकी सारी जानकारी अभी यादव उसे दे चुका था। यादव ने उसे जाते हुए देखकर मन ही मन हजार गालियां उसे दी।


"इतनी भी क्या जल्दी है....यहां से भागने की...थोड़ी सी मेहमाननवाजी का मौका तो हमे भी मिलना चाहिए"इस आवाज के साथ ही अचानक से वो विशालकाय मकान रोशनी में नहा गया। मस्ती फरजाना चरसी और बेवडा आंखों पर यकायक पड़ी उस रोशनी से हकबका से गये थे। उससे ज्यादा उस आवाज ने उनको झकझोर कर रख दिया था। उन लोगो ने अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई..तो एक साथ पंद्रह से बीस हथियारबन्द लोगों से अपने को घिरा पाया था। उन लोगो की स्थिति इस वक़्त बिल्कुल आसमान से गिरे खजूर में अटके वाली हो गई थी।अभी अभी दस लोगो के चुंगल से निकल कर आये थे..उनके चुंगल से निकलने के चक्कर मे ही उन लोगो ने कल्लन की भी बलि ले ली थी।

"अपने हाथ ऊपर उठाओ और इन लोगो के साथ चुपचाप हमारे सामने आ जाओ...यकीन मानो तुम्हारी औकात हमारे सामने एक मच्छर से ज्यादा कुछ नही है...और ये पचास लाख की हक़ीर रकम भी हमारे लिए कुछ मायने नही रखती है...इतनी रकम के तो हमारे पालतू कुत्ते हर महिने बिस्कूट कहा जाते है...इसलिए बिना कोई चूतियापा किये हमारे आदमियो के साथ आ जाओ"इतना बोलते ही वहां एक दम सन्नाटा छा गया।

"चलो"तभी एक बंदूकिया आगे बढ़कर उन लोगो पर चिल्लाया। मस्ती ने आंखों ही आंखों में सभी को बिना किसी हिलहुज्जत के उन लोगो के साथ चलने का इशारा किया।अगले ही पल वे लोग उन बन्दूकचियों के घेरे में उन लोगो के साथ वापिस अंदर की और बढ़ रहे थे.,,जहाँ से वे लोग अभी निकल कर आये थे।कुछ ही देर में वे सभी लोग एक बड़े से हाल में खड़े थे।उस हाल के चारों तरफ गहरे लाल रंग के परदे लगे हुए थे। जिनके ऊपर पड़ने वाली चमकती हुआ रोशनी भी अपना दम तोड़ कर अपनी चमक को आधा कर रही थी। वे चारो उस हाल के बिल्कुल बीचों बीच के पीले रंग के गोल घेरे में खड़े हुए थे।

"इतनी देर से यही सोच रहे हो न कि मैं कौन हूँ"तभी वही आवाज उस हाल में भी गूँजी जिसे वे लोग अभी बाहर के अहाते में भी सुने थे।

"जी बिल्कुल सोच रहे है...तुम वही ददुआ तो नही हो...जिसकी बात थोड़ी देर पहले हमारे सामने तुम्हारे गुर्गे कर रहे थे"मस्ती ने एक एक शब्द सावधानी से चयन करते हुए बोला था।

"हाँ वही ददुआ हूँ...लेकिन आज तक कोई मेरी परछाई को भी नही देख सका है...मुझे देखने की तो बात ही छोड़ दो...मैं हिंदुस्तान के अंदर एक कंपनी चलाता हूँ....जिसमे सिर्फ काम बदमाशो को मिलता है...समझ लो कि मैं एक बदमाश कंपनी चलाता हूँ...इस कंपनी में काम करने वालो को हम पूरे साल भर का पैकेज देते है...जिसकी शुरुआत ही दो करोड़ से होती है"ददुआ की आवाज उस वक़्त एकमात्र आवाज थी जो उस हाल में गूंज रही थी।

"दो करोड़!हमारे जैसे मामूली बदमाशों के लिये...ये कुछ हजम नही हो रहा है बॉस"इस बार मस्ती की जगह फरजाना ने बोला।

"जिस तरीके से कुत्तों को घी हजम नही होता...उसी प्रकार से कुछ कमअक्ल लोगो को भी मेरी बात हजम नही होती है"ददुआ ने एक सेकेण्ड में ही फरजाना की इज्जत में चार चांद लगा दिए थे।

"लेकिन बॉस हमारे जैसे मामूली लोगो को कोई दस हजार रु महीने की नौकरी न दे..आप दो करोड़ देने की बात कर रहे हो..इसलिए ये बात तो किसी समझदार इंसान को भी हजम नही होगी"ददुआ की बात का जवाब मस्ती ने सलीके के साथ दिया।

"तुम्हे किसने कहा कि तुम मामूली लोग हो...मामूली लोग किसी सेठ की नौकरी करते है...जिनकी हथेली में सूर्य बलवान होता है तो वो सरकार की नौकरी बजा रहा होता है...तुम्हारी तरह दिनदहाड़े किसी की फैक्ट्री में घुसकर डकैती डालने की हिम्मत किसी मामूली आदमी में नही होती...और हर हिम्मती आदमी की कद्र ये ददुआ करता है..उसे उसकी हिम्मत का वाजिब हक देता है"ददुआ शब्दजाल फैलाने में माहिर इंसान था।

"फिर भी कोई भी इंसान किसी के ऊपर इतनी मोटी रकम तभी खर्च करता है..जब वो आदमी उसका दस गुना रिटर्न्स अपने काम से लौटाने की क़ुव्वत रखता हो..मुझे नही लगता कि हम लोगो मे वो क़ुव्वत है"मस्ती ने ददुआ की बात से ना इत्तेफाकी जाहिर की।

"मैं तुमसे दस गुना नही कम से कम से सौ गुना वापसी की उम्मीद रखूंगा...तुम लोग खुद को मामूली इसीलिए समझ रहे हो क्योकि आज तक तुम लोगो ने काम ही मामूली किए है...कोई फ़िल्म स्टार भी शुरू में फ़िल्म के सेट पर स्पॉट बॉय बनकर लोगो को चायपानी ही पिलाता है..उस वक़्त उसकी हैसियत एक मामूली आदमी की होती है...लेकिन जब उस स्पॉट बॉय की किस्मत चमकती है और उसे किसी फिल्म में काम मिल जाता है और वो फ़िल्म हिट हो जाती है तो वही मामूली आदमी रातो रात सुपरस्टार बन जाता है..इसलिए आदमी मामूली नही होता है उसका काम मामूली होता है तो वो मामूली आदमी कहलाता है...इसलिए कहता हूँ...आदमी को हमेशा बड़ा सोचना चाहिए और बड़ा ही करना चाहिए"ददुआ ने मस्ती के कान से धुआं उड़ा दिया था। चरसी को तो ददुआ की बात से इतना जोश चढ़ा की वो वही पर दंडवत की मुद्रा में झुक गया।लेकीन इस हड़बड़ी में उसका हाथ उस पीले गोल घेरे की पीली रेखा से टच हो गया। हाथ टच होते ही उस पीली रेखा से एक चिंगारी फूटी और चरसी के हाथ को एक जोर का झटका लगा।

"ओहहह!लगता है मेरे आदमियो ने तुम्हे इस पीले घेरे के बारे में कुछ बताया नही शायद...इस घेरे की तुम्हारी जिंदगी में क्या अहमियत रहेगी...ये मैं तुम्हे आगे चलकर बताउंगा...उससे पहले मेरी एक बात ध्यान से सुन लो"ये बोलकर वहां खामोशी छा गई। उस हाल में इस वक़्त इतना सन्नाटा था कि हर आदमी अपने दिल की धड़कन को प्रत्यक्ष सुन सकता था।

"मेरे धन्धे के लिये सबसे मुफीद आदमी वही होते है..जिनकी मौत पर कोई फातिहा पढ़ने वाला भी न हो...वो जब मरे तो रोने के लिए किराए पर भी आदमी न मिले...और ये क्वालिटी तुम लोगो मे है....तुम्हारे आगे पीछे कोई रोने वाला नही है..क्योकि मेरा काम इतना रिस्क वाला होता है कि वो मौत की रस्सी पर ठीक उसी प्रकार से चलता है...जैसे तुमने सड़क पर तमाशा करने वाले नट को रस्सी पर चलते हुए देखा हो...मतलब सावधानी हटी दुर्घटना घटी"ददुआ ने जितने सर्द स्वर में इस बात को बोला था उतनी गहराई से ये बात उन चारों के दिमाग मे घुस गई थी।

"लेकिन हमें करना क्या होगा"इस बार काफी देर के बाद फरजाना के मुख से कोई आवाज आई थी।

"इतनी जल्दी क्या है गोरी साजन के घर जाने की...तुम्हे तुम्हारा काम भी समझायेंगे...लेकिन उससे पहले हमे तुम लोगो को इस शहर से बाहर निकालना होगा...और इतनी दूर निकालना होगा...जहाँ इस शहर की पुलिस को तुम्हारी परछाई भी ढूंढे से नही मिलेगी"ददुआ ने फरज़ाना की बात का नाटकीय अंदाज में जवाब दिया।

"लेकिन इन हालात में हमारा यहाँ से बाहर निकलना मुमकिन हो पायेगा"मस्ती के स्वर में उसका संशय बरकरार था।

"एक कहावत तो तुमने सुनी होगी..हर शाख पे उल्लू बैठा है....अंजामे गुलिस्ता क्या होगा...तो इसलिये ये बेवकूफी भरा सवाल दोबारा मत करना...कुछ भी पूछने से पहले ये सोचकर पूछना की तुम ददुआ के सामने खड़े हो...तुम्हे यहाँ से निकालने का पूरा प्लान तैयार है...ग्यारह बजे एक गाड़ी आएगी...खामोशी से जाकर उस गाड़ी में बैठ जाना"ददुआ के ये बोलते ही वहाँ खामोशी छा गई।मस्ती कुछ पुछने के लिए मुंह खोलने ही वाला था की एक बंदूकची की आवाज ने उसकी आवाज का गला घोंट दिया था।

"चलो...बॉस चले गए है..अभी जाकर सो जाओ...दस बजे तुम्हे जगा दिया जाएगा...अब कोई और खुरापात मत करना...यकीन मानो दद्दा तुम लोगो पर सच में मेहरबान है"उस    बंदूकची की बात पर भरोसा करने के अलावा इस वक़्त इन लोगो के पास कोई और चारा भी नही था। इसलिये वे सभी उस बंदूकची की अगुआई में उस हाल से बाहर निकल गए। इस बार उस पीले घेरे से बाहर आते हुए कोई चिंगारी नही निकली थी।

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"उन लोगो को जमी खा गई या आसमान निगल गया...अगर वे लोग मिल से निकले है तो कहीं तो गए होंगे" इंस्पेक्टर राज इस वक़्त अपनी कोतवाली में अपने मातहतों के ऊपर बरस रहा था।

"सर...लूट में शामिल गाड़ी हमे मिल में ही मिल गई है..इसका मतलब वे किसी और गाड़ी से वहां से फरार हुए है...इसका तो अब एक ही रास्ता है...उस सड़क के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को टटोला जाए...उस रोड की किसी न किसी दुकान या मकान में तो कैमरे लगें होंगे"एक एसआई रैंक के पुलिसिये ने अपना सुझाव दिया।

"लेकिन एक किलोमीटर के एरिया में तो वो मिल की ही दीवार है..उसके बाद अगले ही कट से एक कॉलोनी के अंदर से सड़क आकर उस सड़क के साथ मिल रही है...ऐसे में ये कैसे पता लगेगा कि कौन सी गाड़ी मिल की तरफ से आ रही है...और कौन सी गाड़ी उस कॉलोनी में से आ रही है"इस बार एक दूसरे पुलिसिये ने भी अपनी राय रखी।

"तुम्हारी बात में दम तो है..लेकिन रात के उस वक़्त में कोई हजारों गाड़िया तो उस सड़क से गुजरी नही होगी...बमुश्किल दस से बीस गाड़िया होगी..अगर उस रोड के किसी कैमरे से वो गाड़िया पकड़ में आती है तो हम उन लोगों से पूछताछ कर सकते है"राज ने उन दोनों की बात का जवाब दिया।

"बात तो आपकी सही है सर...लेकिन ये बहुत समय खाने वाला काम है...इतने वक़्त में तो वे लुटेरे पता नही कहाँ स कहाँ पहुंच होंगे"उसी एसआई ने फिर से बोला।

"लेकिन हमारे पास इसके अलावा उन लोगो को ढूंढने का कोई रास्ता भी तो नही है...हमारा बिछाया हुआ पहला ट्रैप फेल हो चुका है"राज ने निराश स्वर में बोला।

"ठीक है सर...हम सुबह से ही उस रोड के सभी कैमरे खंगालने का काम शुरू करते है"उसी एस आई ने आगे बढ़कर खुद ही उस काम की जिम्मेदारी ले ली थी।

"ठीक है नफे सिंह...मुझे तुम्हारी काबलियत पर पूरा भरोसा है..उम्मीद है जल्दी ही कोई अच्छी खबर सुनाओगे"ये बोलकर राज तकलिया वाले अंदाज में अपनी कुर्सी से उठ गया था। बाकी लोग भी अब उस कमरे से बाहर की ओर प्रस्थान करनें में जुट गए थे।

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"मुझे ये बात समझ नही आ रही है कि ये ददुआ हम पर इतनी मेहरबान क्यों है"फरजाना एक सुसज्जित कमरे में प्रवेश करते हुए बोली।

"लगता है उसके पास कोई बड़ा प्लान है...जिसके लिए वो आदमी तलाश कर रहा है...हम भी उसे अपने काम के बन्दे लगे होंगे...तभी हम पर मेहरबान हो रहा है"मस्ती अब उस बारे में ज्यादा नही सोच रहा था। वो सबसे पहले इस शहर से बाहर निकलना चाहता था।उससे आगे उसे क्या करना है..ये वो वही जाकर सोचना चाहता था।

"चलो अभी तो सोते है...नींद बहुत है आंखो में"तभी चरसी ने उन लोगो की तरफ देखकर बोला।

"लेकिन जागती आँखों से सोना...ऐसा न हो कि कोई सोते हुए ही हमारी गर्दन उतार लें और करोड़ो के लालच में हम अपने ये पचास लाख भी गवां दे"फरज़ाना ने चिंतित स्वर में बोला।

"अगर हम लोगो को उसे मारना होता तो वो कभी भी मार सकता था...हम उसका क्या उखाड़ लेते...वैसे भी इस वक़्त हम उसके रहमोकरम पर है...वो जैसा चाहे हमारे साथ सलूक कर सकता है"मस्ती ने फरज़ाना के ज्ञानचक्षु खोले।

"ये बात तो गुरु सही कह रहा है...इतने लोगो के बीच में हम क्या कर सकते थे...किस्मत हर वक़्त साथ नही देती मैडम"बेवड़ा ने बहुत देर के बाद अपने मुंह से कुछ उगला था।

"अब हम सभी एक ही नाव में सवार है..जो तुम्हारे साथ होगा...वहीं मेरे साथ भी होगा...इसलिए अब मैं अपने दिमाग पर और जोर डालना बन्द कर रही हूँ" फरज़ाना भी अब अपने हथियार डाल चुकी थी।

"चल फिर मेरे साथ सोजा..दोनो प्रेम की डोर से मोहब्बत की पतंग उड़ायेंगे"तभी चरसी ने उम्मीद भरी नजरों से फरजाना की ओर देखा।

"साले चरसी!अभी मेरी इतनी किस्मत नही फूटी की मुझे तेरे साथ सोना पड़े..तू दुनिया का आख़िरी मर्द भी होगा...तो फरज़ाना तेरे साथ सोने से अच्छा मर जाना पसंद करेगी"फरज़ाना ने चरसी की मोहबत की पतंग को उड़ने से पहले ही काट डाला था।फरज़ाना की बात सुनकर बेवड़ा ठठाकर हँस पड़ा था।

"गजब बेइज्जती हो गया है भाई" चरसी ने घायल स्वर में बोला।

"जब तुझे पता है कि वो तेरे साथ नही सोएगी..तो फिर क्यो हर बार अपनी इज्जत में चार चांद लगवाता है अपने हाथो से"इस बार बेवड़े ने समझाने वाले स्वर में बोला।

"एक बार करोड़पति बनने दे तेरे भाई को...ऐसी लड़की से तो फिर तेरा भाई अपने हरम में मुजरा करवाया करेगा...पैसे की पहचान यहां इंसान कि कीमत कोई नही..बच के निकल जा इस बस्ती से..यहां करता मोह्बत कोई नही" ये गीत गुनगुनाता हुआ अपने बेड पर जाकर ढेर हो गया।

                      *********

कोई दस बजे आकर दो बन्दूकचियों ने उन लोगो को जगाया। वे दोनो अपने हाथो में एक नर्स और दो अर्दली की ड्रेस लेकर खड़े थे।

"तुम में से मस्ती कौन है"उनमें से एक बंदूकची ने पूछा। उसके पूछते ही बाकी तीन लोगों की उंगलियां स्वयं ही मस्ती की ओर उठ गई।

"बाहर एक एम्बुलेंस खड़ी है...तुमने उस एम्बुलेंस में मरीज बनकर लेटना है..बाकी ये दोनों लोग अर्दली बनकर गाड़ी में बैठेंगे...और ये मोहतरमा नर्स की ड्रेस में रहेगी...जल्दी से तुम लोग कपडे बदल कर तैयार हो जाओ...तुम्हारा इस शहर से निकलने का वक़्त आ गया है"उस बंदूकची ने मस्ती से मुखातिब होकर बोला।

"वाह गुरु!प्लान तो मस्त बनाया है...इस प्लान में तो पुलिस भी जल्दी से हमारी गाड़ी को रोकेगी नही"चरसी ने उत्साहित स्वर में बोला।

"चलो फिर!तुम लोगो को प्लान पसंद आ गया है तो अब जल्दी से तैयार हो जाओ...एम्बुलेंस नीचे तैयार खड़ी है"ये बोलकर वो बंदूकची वहां से रुखसत हो गया।उसके रुखसत होते ही फरज़ाना समेत सभी लोग अपने अपने कपडे पहन कर तैयार होने लगे।

"गुरु अब हमारे इन पैसों का क्या होगा...कहीं ये लोग हमारे ही माल पर तो कब्जा नही कर लेंगे"बेवड़े ने अपनी आशंका जाहिर की।

"नही!मेरे मेरे हिसाब से तो पार्टी सॉलिड लगती है...पचास लाख रु के लिए कोई इतनी लंबी प्लानिंग नही करेगा...अगर पैसा चाहिए होता तो..वो इसी कमरे को गैस चैम्बर बनाकर हमे मार सकता था...इस वक़्त यहां हम सब उसके रहमोकरम पर है...वो हमें कब का टपका चुका होता"मस्ती ने बेवड़े को अपनी सोच से अवगत करवाया।

"फिर हमारे जैसे मामूली चोर उच्चको पर इतनी मेहरबानी किस लिए गुरु"चरसी ने अब पांव में जूते पहनते हुए कहा।

"हो सकता है..हम खुद की नजर में मामूली हो...लेकिन अब लगता है कि अपराध की दुनिया में इस पचास लाख की लूट के बाद हम मामूली न रहे हो...अब हमें कोई बड़ा काम करने के काबिल समझा जा रहा हो"मस्ती ने चरसी की बात का सोच समझकर जवाब दिया।

"मतलब अपना तरक्की हो रहा है गुरु...अब अपन वो गटर के ढक्कन चुराने वाला चिन्दी चोर नही रहा"चरसी के चेहरे पर ये बोलते हुए एक मुस्कान खिल उठी। उसकी बात सुनकर वहां सभी के चेहरों पर मुस्कान खिल उठी थी। तभी उन दोनो बन्दूकचियों ने फिर से कमरे में कदम रखा।

"अगर कपडे बदल लिए हो तो जल्दी चलो"उनमे से एक बंदूकची ने बोला। उसकी बात सुनकर वे चारो बिना कुछ बोले ही बाहर की ओर बढ़ गए।

                          ********

बाहर एक बड़ी सी एम्बुलेंस खड़ी थी।जिसमे वेंटिलेटर सपोर्ट तक कि व्यवस्था थी। मतलब किसी अति गंभीर मरीज को उस एम्बुलेंस में ले जाया जा रहा था..देखने वाला हर शख्स यही समझता। मस्ती जाकर एम्बुलेंस में ही मौजूद स्ट्रेचर पर जाकर लेट गया। वे तीनों भी जाकर उसी स्ट्रेचर के आसपास विराजमान हो गए। ड्राइवर के साथ उनमे से एक बंदूकची बैठ गया। लेकिन उसने गाड़ी में बैठते ही अपनी बन्दूक को छप्पर कर दिया था।एम्बुलेंस जैसे ही उस हवेली नुमा मकान से बाहर निकली...वैसे ही उसके हूटर ने बजना शुरू कर दिया। एम्बुलेंस अपनी पूरी रफ्तार से शहर की सीमाओं की ओर दौड़े जा रही थी। राह चलते वाहन भी एम्बुलेंस के सायरन को सुनते ही अदब के साथ उसे जाने के लिये रास्ता दे रहे थे।सभी कुछ निर्विघ्न और निर्बाध तरीके से हो रहा था। तभी उस एम्बुलेंस में वही आवाज गूंज उठी।ये ददुआ की आवाज थी।

"तुम सब लोग ठीक हो न..नींद तो अच्छी आई तुम लोगो को"ददुआ ने सबसे पहले उन लोगो का हालचाल ही पूछा ही था।

"जी प्रभु! चाल तो हमारी पहले से ही ठीक थी..हाल आपसे मिलने के बाद ठीक हो गया...सोचा नही था की आप हम पर इतनी मेहरबानी करोगे"मस्ती ने स्ट्रेचर पर लेटे हुए ही जवाब दिया।

"तुम आराम से बैठकर बात कर सकते हो....पूरे रास्ते इस एम्बुलेंस में कोई झांकेगा भी नही..ऐसी व्यवस्था हम कर चुके है..इसी गाड़ी में तुम लोगो का नाश्ता भी रखा हुआ है...तुम लोग आराम से खाते पीते हुए जाओ...तुम लोगो को दूसरे शहर से मुम्बई जाने के लिए राजधानी एक्सप्रेस मिलेगी..उसकी फर्स्ट क्लास में तुम लोगो का रिजर्वेशन हो चुका है..इस शहर से बाहर निकलते ही तुम लोगो को एक दूसरी गाड़ी में सवार होना है..उसी गाड़ी में तुम लोगों ने अपने कपडे फिर से चेंज करने है"ददुआ एक ही सांस में पूरा प्लान उन्हें समझा रहा था।

"उन कपडो में तुम किसी कॉर्पोरेट कंपनी के मुलाजिम लगोगे...लेकिन तुम लोगो को पूरे रास्ते किसी भी दूसरे आदमी से बात करने के लिये अपना मुंह नही खोलना है..क्योकि तुम लोगो के मुंह खोलते ही तुम्हारी असलियत तुम लोगो के मुंह से उल्टी कर देगी..इसलिए ध्यान रखना...सिर्फ अपने से मतलब रखना है तुम लोगो को"ददुआ ने चेतावनी भरे स्वर में कहा।

"जो हुकुम बॉस..जैसा आप कहोगे वैसा ही करेगे"मस्ती के दिल में अब ददुआ के लिए अपार श्रद्धा उभर आई थी।

"उसी गाड़ी में तुम्हे एक सेलिना नाम की हसीन तरीन लड़की मिलेगी..जो कि पूरे सफर में और मुम्बई में तुम्हारे साथ रहेगी...मुम्बई पहुँचने के बाद सेलिना ही तुम लोगो को गाइड करेगी..मेरे अगले सभी संदेश भी वही तुम लोगों को देगी...कॉर्पोरेट की भाषा मे समझो तो वो इस प्रोजेक्ट की प्रोजेक्ट मैनेजर है....तुमने उसके आदेश का पालन करते हुए अब हर काम को अंजाम देना है"ददुआ ने गंभीर स्वर में बोला।

"बॉस!ये प्रॉजेक्ट क्या रहने वाला है..अगर इसकी थोड़ी सी जानकरी मिल जाती तो....अच्छा रहता"इस बार फरजाना ने अपना मुंह खोला।

"प्रोजेक्ट का नाम है डिजनी बैंक....काम है...उस बैंक की वाल्ट से पांच सौ करोड़ को उड़ाना"ददुआ की आवाज में अब एक पैनापन आ गया था। उस एम्बुलेंस में ददुआ के बोलते ही एक खामोशी पसर चुकी थी। सब एक दूसरे के चेहरे को देख रहे थे...किसी को भी ऐसी उम्मीद नही थी कि उन जैसै मामूली ढक्क्न चोरों को कोई इतने बड़े काम के लायक भी समझेगा...लेकिन इस वक़्त उन लोगो को ये समझ नही आ रहा था कि वे इस तरक्की पर रोये या हँसे।ददुआ की आवाज भी अब उस एम्बुलेंस में खामोश हो चुकी थी। एम्बुलेंस शहर के बॉर्डर पर लगी चेकपोस्ट को पार कर रही थी। ददुआ की सैटिंग पक्की थी...किसी ने भी उनकी एम्बुलेंस में झांका नही था।

वे चारो इस वक़्त सूट पहनकर सजे धजे किसी बाराती की तरह से विजय नगर के उस रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर चार की ओर बढ़े जा रहे थे। मस्ती और फरज़ाना तो फिर भी अपनी पोशाकों में कहर ढा रहे थे। लेकिन चरसी और बेवड़े का भी उनके सूट ने कायापलट करके रख दिया था। इस वक़्त उन लोगो को देखकर कोई अंदाजा नही लगा सकता था कि ये कोई लुक्खे किस्म के उठाईगीर और मेनहोल के ढक्कन भी चुराते होंगे। वे चारो अभी अपनी धुन में आगे बढ़े ही जा रहे थे कि एक नौजवान लडकी की जुल्फों की महक उनके नथुनों से टकराती हुई गुजर गई। महक भले ही गुजर गई हो...लेकिन उस लड़की के कदम जहाँ के तहां ठहर गए थे....क्योकि उसके हाथ से छूटकर एक किताब बिल्कुल मस्ती के कदमो के आगे गिरी थी। किताब के गिरते ही मस्ती कर कदम भी वही जम गए थे। लड़की ने कातिल नजरो से इस अंदाज में मस्ती की ओर देखा मानो आंखों ही आँखों मे वो उसे उस किताब को उठाकर देने के लिए इसरार कर रही हो। मस्ती ने उस लडक़ी की आँखों की भाषा को तुरंत पढ़ा। वैसे भी इस दुनिया मे उसी इंसान को जीने की कला आती है जिसे किसी लड़की की आँखों की भाषा पढ़ने की कला भी आती हो।मस्ती एक पल के सौवें हिस्से से भी कम समय मे झुका..,किताब को उठाया,,,उसे माथे से लगाया और किताब को उस लडक़ी की ओर बढ़ा दिया।लड़की ने अपनी मदभरी आंखों से उसकी ओर देखा और मुस्कराते हुए किताब को पकड़ा। तभी उस हसीना के हसीन तरीन लालिमा लिए होठ फड़फड़ाये।

"सेलिना...उम्मीद हैं हमारा आगे का सफ़र रोमांचक रहने वाला है"वो लड़की जो कि ददुआ की भेजी हुई वही सेलिना नाम की लड़की थी जिसका जिक्र ददुआ पहले ही इन लोगो के आगे कर चुका था,,ने अपना हाथ मस्ती की ओर बढ़ाया। मस्ती ने बिना कोई जवाब दिए उसके कोमल हाथो को अपने काँपते हाथो से थामा। उसके बाद कुछ पलों तक मस्ती बस एकटक उसकी आंखों में ही देखता रहा।

"आंखों ही आँखों में हजम करने का इरादा है क्या..और लोगों से भी मिलने दो"ये बोलकर सेलिना ने अपना हाथ मस्ती के हाथ से निकाला और फिर पहले फरजाना उसके बाद बारी बारी से चरसी और बेवड़े से भी हाथ मिलाकर अपना नाम बताया। सिर्फ फरज़ाना को छोड़कर उन दोनों ने बिल्कुल भूतड़ा जैसी हालत में सेलिना के खूबसूरत हाथो को थामा।

"चलो दो मिनट में ट्रेन प्लेटफार्म पर आने वाली है...बाकी बाते रास्ते मे होगी"ये बोलकर सेलिना के कदम तेजी के साथ आगे की ओर बढ़ गए। उन चारों के कदम भी इस वक़्त उसी प्रकार से उठ रहे थे। जैसे कोई अपने कमांडर के पीछे चलते हुए अपने कदम उठाता है। प्लेटफार्म पर पहुँचते ही सामने से आती हुई राजधानी एक्सप्रेस पर उनकी नजर पड़ चुकी थी जो कि कुछ ही पलों में प्लेटफार्म पर पहुंचकर अपना दम तोड़कर खड़ी हो चुकी थीं। वे सभी सेलिना के पीछे ही ट्रेन के उस डिब्बे की ओर लपके जिस डिब्बे में उनकी सीट आरक्षित थी। सेलिना के हाथ मे ही उन सभी लोगो की टिकट थी। उसने कुछ सीटों की ओर इशारा किया और वे चारो उन सीटो में समा गए। तभी ट्रेन का सायरन गूंजा ..,जो कि ट्रेन का अब उस स्टेशन से आगे बढ़ने का इशारा था। अभी ट्रेन ने झटका ख़ाया ही था की एक कोई चालीस साला शक्ल से ही काइयाँ लगने वाले इंसान ने भी उसी कूपे में अपना कदम रखा। जीन्स और एक स्वेट शर्ट पहने हुआ इंसान अपने सिर पर एक पुराने जमाने के अंग्रेजो की तरह का हैट अपने सिर पर सजाए हुए थे। वो बन्दा सामने की लाइन में सेलिना के साथ वाली सीट पर विराजमान हो गया।

"आप भी मुम्बई तक ही जा रही है मोहतरमा"उस बन्दे ने लापरवाह स्वर में सेलिना से पुछा।

"जी"सेलिना जो कि अब तक अपना सामान रखकर अपनी किताब को फिर से खोलकर उस किताब में डूब चुकी थी.,ने किताब से अपनी नजर को हटाकर उसे जवाब दिया।

"मैं भी मुम्बई ही जा रहा हूँ...आप जैसा हसीन हमसफर होने से सफर अच्छा कटेगा"वो बन्दा लगातार सेलिना से अपनी नजदीकियां बढ़ाने का प्रयास कर रहा था।

"जी लेकिन मुझे लग रहा हैं कि मेरा सफर अब बोरियत से कटने वाला है...मुझे बिना वजह गले पड़ने वाले इंसान आज तक पसंद नही आये"सेलिना की तल्ख आवाज से अब उन चारों की नजर भी उस बन्दे की तरफ उठ चुकी थी।

"मैं कोई आपके गले नही पड़ रहा हूँ मैडम...मैं तो बस यही चाहता था की आपसे बातें करते हुए है सफर खुशी खुशी कट जाए"वो बन्दा अभी तक अपनी कोशिशों से हार नही मान रहा था।

"जी मुझे अपना सफर किताबो के साथ काटना अच्छा लगता है,,पूरी खामोशी के साथ...बराये मेहरबानी अब अपनी चोंच को बन्द ही रखना" सेलिना ने इस बार उसे खुले शब्दो में हड़का दिया था।अब वो बन्दा बुरा सा मुंह बनाकर दूसरी और निगाहे घुमाकर बैठ गया था। वे चारो अभी तक खामोशी के साथ ही उन दोनों का सारा वार्तालाप सुन रहे थे।तभी ट्रेन के टीटी ने उस कूपे में कदम रखा।

"अपनी टिकट दिखाइए"टीटी ने सबसे पहले सेलिना से ही टिकट दिखाने के लिये बोला था।सेलिना ने खामोशी के साथ अपने हाथ में पकड़ा हुआ टिकट टीटी की ओर बढ़ा दिया।

"आपके साथ बाकी चार लोग और कौन है"टीटी ने एक नजर टिकट पर डालते हुए पूछा। सेलिना ने खामोशी के साथ ही उन चारों की तरफ अपनी उंगली उठा दी। सेलिना की उंगली के साथ टीटी की और उस बन्दे की नजर एक साथ घूमी..उन चारों पर नजर पडते ही उस बन्दे के चेहरे पर असमंजस के भाव उभरे।

"ये लोग आपके साथ है"टीटी की बजाय उस बन्दे ने बुझे हुए स्वर में सेलिना की ओर देखकर पूछा।

"क्यो दुःख हुआ देखकर की ये लोग मेरे साथ है...अब शायद अकेली लड़की समझकर जो मौका तुम ढूंढ रहे थे..वो शायद अब आपको नसीब नही हो पायेगा"सेलिना ने तल्ख लहजें में ही उसे जवाब दिया था।

"देखिए मैडम!आपको कोई गलतफहमी हो गईं हैं!मैं भी एक इज्जतदार शहरी हूँ"इस बार उस बन्दे ने तपे हुए स्वर में बोला।

"अच्छा इज्जतदार आदमी ऐसे ही आकर किसी भी अंजान लड़की के गले पड़ने लगता है"सेलिना ने दमक कर जवाब दिया।

"आप लोग आपस में बहस बाद में कर लीजिये...पहले अपना टिकट दिखाकर मुझे फ्री कीजिये"तभी टीटी उस बन्दे से मुखातिब हुआ। उस बन्दे ने अपना टिकट की डाउनलोड की हुई कॉपी टीटी को दिखाई।

"ये तो ऑनलाइन बुक की हुई टिकट है..आपको अपनी आईडी भी दिखानी होगी"टीटी ने उस बन्दे को बोला। उस बन्दे ने बिना कुछ बोले अपना आई कार्ड टीटी की तरफ बढ़ा दिया।

"सदाशिव केलकर..आप तो सिक्युरिटी इंचार्ज हो मुंबई में"टीटी ने उसका आई कार्ड पर उसका नाम और उसका पद पढ़कर वापस करते हुए बोला।

"जी हमारी कंपनी सुरक्षा के क्षेत्र में एक जानी मानी कंपनी है...हम बड़े बड़े उद्योगों और बैंक को अपनी सुरक्षा सेवा देते है"केलकर के स्वर में अब हल्का सा अभिमान का पुट आ गया था।

"मैडम!ये वाकई एक इज्जतदार आदमी है!आपको शायद इनके बारे में कोई गलतफहमी हो गई है"ये बोलकर वो टीटी आगे बढ़ गया। टीटी के वहां से जाते ही सेलिना ने अजीब सी नजरो से केलकर को देखा। केलकर एक फीकी सी हँसी सेलिना को देखकर हँसा..इस बार सेलिना भी उसकी हँसी के जवाब में हल्की सी मुस्करा दी।

"चलो बन्दी मस्कराई तो सही"केलकर मन ही मन बुदबुदाया।उधर सेलिना को उसका परिचय पता चलने के बाद अब वो काम का बन्दा लगने लगा था। अब उसके जेहन में एक ही सवाल घूम रहा था की मुम्बई के इस बाकी बचे सफर में इस आदमी को कैसे शीशे में उतारा जाए।तभी सेलिना की निगाह मस्ती की सामने वाली सीट पर बैठी हुई फरजाना पर पड़ी। सेलिना ने आंखों के इशारे से फरज़ाना को अपने पीछे आने का इशारा किया। फरज़ाना उठकर अब सेलिना के पीछे वाशरूम की ओर जाने लगी।

"ये बन्दा जो मेरे साथ बैठा हुआ है....इस आदमी को अपने लपेटे में ले लो...ये हमारे काम का बन्दा साबित हो सकता है"सेलिना ने फरज़ाना से बोला।

"लेकिन मैडम !आपने तो उसकी क्लास लगा दी थी!अब वो हमसे बात करने से परहेज करेगा"फरज़ाना ने सेलिना को जवाब दिया।

"तुम तो मर्दजात को अच्छे से जानती हो..तुम्हे तो पता ही ये साले औरत के आगे कैसे दुम हिलाते है...थोड़ा सा अपना लटका झटका दिखाओ....वो ठरकी तुम्हारे कदमो में बिछ जाएगा"सेलिना ने फरज़ाना की सोई हुई शक्ति को जगाया।

"ठीक है मैडम!आप कहो तो इससे मुम्बई पहुंच कर भी अपने पीछे दौड़ लगवा दूँ"फरज़ाना ने एक कुटिल मुस्कान के साथ बोला।

"मैं तुमसे यही चाहती हूँ...ये बन्दा अब तुम्हारे फंदे से बचना नही चाहिए...क्योकि ये बहुत काम का बन्दा साबित हो सकता है"सेलिना ने फरज़ाना की बात से अपनी सहमति जताई।

"ठीक है मैडम" फरज़ाना ने सेलिना की ओर देखते हुए बोला।

"सुनो!आज के बाद मुझे ये मैडम मत बोलना...मेरा नाम सेलिना है..उसी नाम से मुझे बुलाओ"सेलिना ने फरज़ाना के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए बोला।

"ठीक है सेलिना...मैं आगे से ध्यान रखूंगी"फरज़ाना ने हल्की सी मुस्कान के साथ सेलिना को जवाब दिया।इस बातचीत के बाद वे दोनो वापस अपनी सीट की ओर लौट गई..,अपने बकरे को हलाल करने के लिए।

वापस आने के बाद उन दोनों की सीट आपस मे बदल चुकी थी। फरज़ाना की सीट पर सेलिना पहुँच चुकी थी। जबकि फरज़ाना प्लान के मुताबिक सेलिना की सीट पर बैठ चुकी थी। केलकर ने अपनी आदत के मुताबिक ही एक मुस्कान फरज़ाना की ओर देखकर भी फेकी। उस मुस्कान का जवाब फरजाना ने मुस्करा कर ही दिया था। फरज़ाना के मुस्कराहट भरे जवाब से केलकर की हौसला अफजाई हो चुकीं थी। वो मन ही मन अब फरज़ाना से बातचीत का सिलसिला जोड़ने की प्लानिंग बनाने में जुट गया था।

                            ********

फूलचंद यादव इस वक़्त इंस्पेक्टर राज में सामने उसके कमरे में मौजूद था। राज के चेहरे से टपक रही परेशानी अलग से ही देखी जा सकती थी।

"तुम्हे पक्का यकीन है की जिस बन्दे की लाश आज नाले के पास से बरामद हुई है..ये भी मस्ती का ही साथी था..और उस लूट में शामिल था"राज ने यादव की ओर देखकर बोला।

"जी जनाब!ये वही आदमी है जिसे हमारे बीट ऑफीसर ने उस दिन गाड़ी को चलाते हुए देखा था"यादव ने पुरजोर लहजें में बोला।

"हाँ !वो गाड़ी भी उसी मिल से बरामद हो गई है,जो लूट में शामिल थी..और वो वही गाड़ी है जो उस दिन सिनेमा हॉल के सामने वाली कॉलोनी से चोरी हुई थी...गाड़ी के इंजन नंबर  और चेसिस नंबर से गाड़ी की पहचान हो गई है"राज ने यादव की ओर देखकर बोला।

"उन छ लोगों में से दो लोगो की लाश बरामद हो चुकी है....इसका मतलब क्या हो सकता है"यादव मानो खुद से ही बड़बड़ाया हो।

"इसके दो ही मतलब हो सकते है कि या तो पैसो को लेकर उन लोगो में आपस मे ही कत्लेआम शुरू हो चुका है या फिर उन चोरों के पीछे कोई मोर पड़ चुका है"राज ने अपना दिमाग चलाया।

"इस शहर में तो ऐसा कोई और गैंग एक्टिव नही है सर! जो कि इन लुटेरो को ही लूटने की हिमाकत कर सके...क्योकि जो इन लोगो का गैंग लीडर है मस्ती...वो सिर्फ दिखने में ही सीधा सादा और शरीफ नजर आता है..असल मे वो है बहुत शातिर इंसान"यादव ने राज को मस्ती के बारे में अवगत करवाया।

"हम्मम उस दिन उसकी शक्ल और उसकी शराफत भरी बातो से ही धोखा खा गया था..नही तो उसे उसी दिन रिमांड पर ले लिया होता तो ये इतनी बड़ी लूट होने से बच जाती"राज ने अफसोस भरे स्वर में कहा।

"सर्!जो बीत गया सो बीत गया !अब उसका शोक क्या करना...अब तो आगे के बारे में सोचिए कि उन लोगों को कैसे पकड़ा जाये...क्योकि हाल फिलहाल तो हमारे पास उन लोगो के बारे में कोई सुराग नही है"यादव ने राज को अनुग्रह भरें स्वर में बोला।

"अपने खबरी नेटवर्क को अच्छी तरह से अलर्ट कर दो...अब तो अपने इसी नेटवर्क का सहारा है"राज ने असहाय स्वर में बोला।

"अगर वे लोग शहर से बाहर निकलने में कामयाब हो गए होंगे तो हमारा खबरी नेटवर्क भी क्या काम करेगा"यादव फिर से मन ही मन मे बुदबुदाया।

"ठीक है सर!मैं अपने खबरियों को लगाता हूँ इस काम पर...शायद कहीं से कोई खबर मिल जाये"ये बोलकर यादव लंबे लम्बे डग भरते हुए कमरे से बाहर निकल गया।

क्रमशः

                           



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