anil garg

Crime Thriller

4.5  

anil garg

Crime Thriller

बदमाश कंपनी-13

बदमाश कंपनी-13

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इंसेक्टर राज की जिप्सी दनदनाती हुई मिल के दरवाजे पर आकर रुकी थी। जिप्सी के रुकते ही सबसे पहले राज ने ही जिप्सी से बाहर कदम रखा था। गेट के अंदर कदम रखते ही उसने मिल के अंदर छाए हुए अंधेरे में अपनी आंखें फाड़कर चारो और देखने का प्रयास किया। लेकिन उस स्याह अँधेरे में अभी उसकी आंखें देखने की अभ्यस्त नही हो पाई थी।उसने अपने साथी कर्मियों को हाथ से अपने पीछे आने का इशारा किया और खुद भी दबे पांव आगे बढ़ा। उसे पूरा यकीन था कि लुटेरो का पूरा गैंग इसी मिल में कहीं छुपा हुआ हो सकता है। यादव का अभी भी कोई अतापता नही था। इंस्पेक्टर राज अंदाजा लगाकर ही आगे बढ़े जा रहे थे। अब तक उसकी आंखें अंधेरे में देखने की कुछ अभ्यस्त हो गई थी...अब उसे मिल में खड़ी हुई छोटी बड़ी इमारतें दिखाई देने लगी थी।

"यहां तो बहुत सारी इमारतें है....इतनी इमारतें देखने में तो हमे सुबह हो जाएगी...और हमारे पास तो इस वक़्त इतनी पुलिस फ़ोर्स भी नही है...कोतवाली मेसज करके और आदमी यहां बुलवाओ...आज रात में ही हमे इस मिल का चप्पा चप्पा छानना है"राज ने अपने एक मातहत को आदेशात्मक स्वर में बोला।

"जी जनाब मैं अभी कोतवाली में बात करता हूँ" राज को बोलकर वो पुलिसिया अब अपने फोन से कोतवाली में बात करने लगा था।

राज आगे बढ़ते हुए एक इमारत के पास पहुंच चुका था।उसने अपने साथ दो पुलिसियो को अपने पीछे आने का इशारा किया और उस इमारत में प्रवेश कर गया। इमारत के अंदर भी इस वक़्त हाथ को हाथ नही सुझाई दे रहा था। इस घनघोर अंधकार में बिल्कुल खामोशी के साथ कुछ भी पता लगाना असंभव था।लेकिन राज उसके बावजूद दबे कदमो से आगे बढ़ा जा रहा था। तभी उसके पाँव किसी से टकराये और वो लड़खड़ा कर गिरने ही वाला था कि उसने खुद को सम्हाल लिया था। उसने घूम कर उस तरफ देखा जहाँ उसके पाँव को ठोकर लगी थी।उसने नीचे झुककर देखा। अँधेरे में भी उसे एहसास हो चुका था कि वो किसी आदमी का जिस्म था। जिससे वो टकराया था। अब तक उसके दोनो सहकर्मी भी उसकी अगल बगल में आकर खड़े हो चुके थे।

"सर!इस आदमी की सांस तो चल रही है..शायद बेहोश है"तभी एक पुलिसिये ने उस नीचे पड़े हुए बेहोश आदमी पर झुकते हुए बोला।

"मोबाइल की रोशनी डालो इसके चेहरे पर...देखो कौन है ये"राज के बोलते ही वहां एक साथ दो मोबाइल की रोशनी उस आदमी के चेहरे पड़ी। कहते है कि रोशनी की एक किरण भी अँधेरे के बड़े से बड़े साम्राज्य को पल भर में ध्वस्त कर देती है..वही हाल उस जगह का हुआ। मोबाइल की हल्की सी रोशनी ने ही वहां छाए हुए अंधेरे को निगल लिया था।

"साहब यादव साहब तो इधर पड़े हुए है"तब तक एक दूसरे पुलिसिये की नजर उस कमरे के दूसरे कोने की तरफ पड़ चुकी थी।

"देखो जरा!यादव भी बेहोश ही है न"राज ने उसी पुलिसए को बोला। दोनो पुलिसिये तब तक यादव के पास पहुंचकर उसके ऊपर झुक कर उसकी साँसों की थाह लेने लगे थे।

"साहब !यादव जी बेहोश ही है"एक पुलिसिये ने देखने के बाद तुरन्त बोला।

"जल्दी से जाओ और ड्राइवर को बोलो की जिप्सी अंदर लेकर आओ..इन दोनों को अस्पताल पहुंचाओ...पता नही ये कितनी देर से बेहोश पड़े है"राज ने उतावले स्वर में बोला।राज के बोलते ही एक सिपाही बाहर दौड़ता चला गया।

"मुझे नही लगता कि अब हमें यहां कोई मिलेगा...वायरलेस पर सभी नाकों को चौकसी बढ़ाने को बोलो...हो सकता है ये लोग रात को ही शहर से बाहर जाने का प्रयास करे"राज ने उस इमारत से बाहर आते हुए बोला। तभी चार सिपाही अंदर यादव और उस आदमी को उठाकर बाहर लाने के लिये दौड़ते हुए चले गए।

"जैसे ही कोतवाली से और लोग आए..इस मिल की हर इमारत का चप्पा चप्पा छान मारो..वो लोग कुछ तो अपनी निशानी अपने पीछे छोड़कर गए होंगे"राज के स्वर से उसका गुस्सा साफ परिलक्षित हो रहा था।

                                **********

मस्ती चरसी और बेवड़ा इस वक़त एक कमरे में अलग अलग चारपाई पर लेटे हुए थे। फरजाना और कल्लन काफी देर से उनकी नजरो से ओझल थे। वो दोनो पता नही कहाँ अपनी खिचड़ी पका रहे थे।

"गुरु मुझे ऐसा क्यो लग रहा है कि हम लोग इन लोगों के जाल में फंस चुके है"चरसी ने फुसफुसाते हुए मस्ती को बोला।

"एक पुराना डायलॉग है जो हमेशा ऐसे ही मौकों पर बोला जाता है..धोखेबाजी की जिस क्लास में ये लोग अभी अपना दाखिला ले रहे है उस क्लास का अध्यापक आज भी हमसे ट्यूशन पड़ता हैं....तुम्हारे गुरु ने न तो अपनी आंखें बंद की है और न ही अपने कान बंद किये है..लेकिन इन लोगों को कपड़े उतार कर मेरे सामने तो आने दो...सालो को नँगा ही डिस्को नही करवाया तो मेरा भी नाम मस्तीखोर नही"मस्ती ने काफी समय के बाद अपने दिल का गुबार निकाला था। तभी कल्लन और फरजाना अपने हाथों में चाय के गिलास थामे हुए उस कमरे में प्रवेश कर चुके थे।

"लो गुरु गरमा गरम चाय पियो और गरम हो जाओ...आज तो सर्दी भी बहुत है"कल्लन ने चाय का गिलास मस्ती की ओर बढ़ाया।

"अपनी सर्दी तो चाय से नही फरजाना से दूर होंगी...जब ये अपने से चिपक कर इस गिलास से चाय के मेरे साथ घूंट भरेगी...आओ फरजाना डार्लिंग...इतनी दूर क्यो खड़ी है..देख रहा हूँ...जब से लूट की है..तू मुझ से दूर दूर भाग रही है"मस्ती ने आखिरकार अपने दिल की बात बोल ही दी थी।

"नही मस्ती..अब इतना पैसा आने के बाद अब रंडी की तरह से कभी इसके बिस्तर में कभी उसके बिस्तर में बिछने का मन नही कर रहा है..अब तो बस यहां से कहीं दूर जाकर शराफत की जिंदगी गुजारूंगी"फरजाना ने वही से खड़े हुए ही जवाब दिया।

"मतलब अब तू शादी बनाएगी...तो फिर अपने से शादी बना ले...देख दौलत के मामले में तो अपुन भी तेरे बराबर ही है..है न बराबरी का रिश्ता"चरसी ने अपनी ही तरंग में बोला।

"अब साले मुझे सुहागरात को ही बेवा नही होना..जैसे वो गंजेडी मर गया न साला..ऐसी ही लावारिस मौत तुम लोगों के नसीब में लिखी हैं"फरजाना ने लगभग लताडते हुए चरसी को बोला तो चरसी बुरा सा मुंह बनाकर रह गया लेकिन उसकी चुप्पी ने बेवड़े को बोलने का मौका दे दिया।

"नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली वाली कहावत तो सुनी होगी तुमने...हजारों सुहागरात मनाने वाली को अभी भी अपनी सुहागरात का इंतजार है...हाये रे घोर कलयुग आ गया"बेवड़े ने कुछ ऐसे अंदाज में बोला कि वहां चरसी का ठहाका पूरे कमरे में गूंज उठा।

"साले बेवड़े...ज्यादा हवा में मत उड़...वरना एक गोली में भेजा बाहर कर दूंगी"फरजाना ने न केवल तपे हुए स्वर में बोला बल्कि अपने खीसे में से कट्टा निकाल कर बेवड़े पर तान भी दिया। लेकिन कट्टा देखकर भी बेवड़े ने फरज़ाना को कोई भाव नही दिया।

"सुन!जिस कट्टे की तू घड़ी घड़ी हूल दे रही है न...ऐसे कट्टे इस बेवड़े ने न जाने जिंदगी में कितनी बार चलाये हैं...इसलिए आज तेरी पहली और आखिरी गलती समझ कर माफ कर रहा हूँ...अगली बार तेरा ये कट्टा अगर मेरी तरफ़ तुमने ताना न तो अपने चाकुओं से तेरे चेहरे पर हिंदुस्थान का नक्शा बना दूँगा"बेवड़े ने बर्फ से भी ठंडे स्वर में फरजाना को बोला तो एकबारगी तो फ़रज़ाना भी कांप कर रह गई थी।

"तुम लोगो के चक्कर मे साली चाय भी ठंडी हो गई"ये बोलकर मस्ती ने चाय को अपनी चारपाई के नीचे रख दिया।

"लाओ गुरु...दोबारा से गर्म करवा कर ला देता हूँ"कल्लन मस्ती को चाय का कप नीचे रखते हुए देखकर बोला।

"नही कल्लन अब मूड चेंज हो गया है...अब चाय किसी और शहर में जाकर ही पियेंगे"मस्ती ने कल्लन को हाथ के इशारे से मना करते हुए कहा।

"गुरु!मैं चाहती हूँ कि हमारे हिस्से हमे देकर हमे विदा कर दिया जाए..और यही से हम अलग अलग रास्ते पकड़ लेते है"फरजाना ने फिर से पुरानी बात को दोहराया।

"नही!हिस्से तो अब इस शहर से बाहर निकलकर ही होंगे...अब जो भी होगा..साथ साथ ही होगा..ये बताओ कि यहाँ से निकलना कब है"मस्ती ने फरज़ाना को दो टूक जवाब देते हुए कहा।

"लेकिन गुरु किसी भी काम में साथ तभी तक होता है जब तक माल हाथ मे नही आता...अब हमे हमारा हिस्सा देकर अलग करो...क्यो हमे अपने पीछे लगा कर घूम रहे हो"इस बार कल्लन ने फरजाना के सुर में सुर मिलाया।

"हरामखोर!हम लूट होने के बाद ही इस शहर से बाहर निकल सकते थे...लेकिन तुमने हमे बिना वजह उस मिल में ले जाकर फँसाया...अब मिल से निकले तो इस गांव में लाकर पटक दिया...तेरे दिमाग मे चल क्या रहा है पहले ये बता मुझे"मस्ती अब रौद्र रुप धारण कर चुका था।

"आवाज नीची करके बात करके बात करो गुरु...मत भूलो की इस वक़्त तुम मेरी जगह पर हो" कल्लन भी अब असली रूप में आ चुका था।

"यही तो तेरे मुंह से निकलवाना चाहता था..कल्लन मियां...लेकिन तुमने मस्ती को आंकने में थोड़ी सी भूल कर दी"मस्ती चारपाई से खड़े होते हुए कुटिल स्वर में बोला।मस्ती के साथ चरसी और बेवड़ा भी अपनी चारपाई छोड़ चुके थे।

"गुरु झगड़ा करने से कोई फायदा नही है...तुम हमे हमारा हिस्सा देकर बात को खत्म करो"फरजाना ने मस्ती की ओर देखते हुए बोला।

"हमे इस गांव में लाकर मझदार में फंसा कर हिस्सा मांगने के पीछे तुम लोगो की चाल क्या है..पहले जरा वो तो समझ जाऊं...उसके बाद तुम लोगो का हिस्सा भी दे दूंगा"मस्ती ने फरजाना की बात को जरा सी भी तवज्जो नही दी थी।

"हिस्सा तो तुम्हें अभी और इसी वक्त देना पड़ेगा..नही तो गुरु अपने हिस्से के लिए भी तरसोगे"कल्लन शायद वहां कोई खेल खेल चुका था..तभी उस फट्टू इंसान के सुर अचानक से बदल गए थे। मस्ती ने तभी कमरे के दरवाजे पर कुछ लोगों की हलचल देखी।तभी एक के बाद एक कुछ लोगो ने कमरे के अंदर प्रवेश करना शुरू कर दिया...कुछ ही पलो में लगभग दस लोग उस कमरे की दीवार के साथ लग कर खड़े हो चुके थे। मस्ती के साथ साथ चरसी और बेवड़े ने भी भरपुर निग़ाहों से उन सभी लोगो को देखा।सभी लोग दीवार के साथ एक ही अंदाज में अपने हाथ बांधे खड़े हुए थे।

"जाओ फरजाना गुरु के पास से जाकर बैग उठा लो'कल्लन ने फरजाना की ओर बिना देखे ही बोला।

"साले छप्पन टिकली...अपने पैदा होने पर भी अफसोस करेगा तू..और उससे ज्यादा अफसोस करेगा कि तूने मस्ती से पंगा क्यो ले लिया"मस्ती अब तक उस पचास लाख रु से भरें बैग को अपने हाथ मे उठा चुका था।

"ये जो आदमी यहाँ तुम लोगों को घेर कर खड़े है न..इन सभी के पास पिस्टल है...जो अगर एक साथ तुम लोगो पर चलेंगी तो शायद ही तुम लोगो में से कोई जिंदा बचेगा"कल्लन इस वक़्त बिल्कुल अमजद खान के अंदाज में मस्ती को हूल दे रहा था।

"दे दो गुरू!इस छप्पन टिकली को बैग दे दो...जिंदा रहे तो ऐसी लूट और भी कर लेंगे'बेवड़े ने बिल्कुल आशा के विपरीत बोला था। मस्ती ने कुछ क्षण अपलक बेवड़े की ओर देखा और फिर चरसी से मुखातिब हुआ।

"तू क्या बोलता है..दे दूं बैग"मस्ती ने इस अंदाज में पूछा मानो चरसी से उसकी परमिशन मांग रहा हो।

"दे दो गुरु...क्यो इस हराम की दौलत के लिए अपनी ये काम की जिंदगी को दांव पर लगाने का...अभी हमने बहुत चरस पीनी है गुरु...इतनी जल्दी मरने का नही'चरसी ने बेवड़े से एक कदम आगे जाकर बैग कल्लन के हवाले करने की पैरवी की।

"दे ही देना चाहिए....अपन सिर्फ तीन लुक्खा आदमी...हमारे पास तो कोई हथियार भी नही है..और ये साले बारह लोग...सब के सब हथियारबन्द"मस्ती ने डरे हुए स्वर में बोला।

"गुरु बारह लोग कैसे..ये फरज़ाना भी इन लोगो के ही साथ गिन लिए हो क्या"चरसी ने मस्ती की ओर देखकर बोला।

"क्यो फरज़ाना डार्लिंग...तू भी इस धोखेबाजी में इसके साथ ही शामिल है न"बेवड़े ने इस बार फ़रज़ाना से पूछा।

"मुझे तो तुम सभी धोखेबाज लग रहे हों...मुझे मेरा हिस्सा दे दो..मैं किसी के साथ भी नही हूँ""फरजाना ने अपने को कल्लन से अलग दिखाने की कोशिश की।

"लो फिर तुम ही सारा पैसा लेकर निकलो यहां से"ये बोलकर मस्ती ने बैग को फरजाना की ओर उछाल दिया। फरजाना अकस्मात ही इस तरह अपनी तरफ बैग के फेंके जाने की उम्मीद में बिल्कुल भी नही थी..लिहाजा वो हड़बड़ी में अपने हाथ मे पकड़े कट्टे को छोड़कर बैग को लपकने के लिये लपकी और उधर चरसी ने फ़रज़ाना के हाथ से गिरे कट्टे को जमीन पर गिरने से पहले ही लपक लिया।फरजाना बैग पकड़ कर अभी खड़ी ही हुई थी की दीवार के साथ खड़े कल्लन के गुर्गों के हाथ मे उनकी पिस्टल चमकने लगी थी। एक साथ इतनी पिस्टल को अपनी और तनी हुई देखकर तीनो सकते कि हालत में वही की वही खड़े रह गए।

"बैग मेरी तरफ फेंक फ़रज़ाना"तभी कल्लन ने फरज़ाना को बोला।

"नही...मुझे ये पूरा बैग नही चाहिये..मुझे मेरा हिस्सा दे दो और मुझे यहां से जाने दो"फरज़ाना विक्षिप्त स्वर में बोली।

"क्या फायदा होगा यहाँ से जाने का...बाहर निकलते ही मारी जाओगी या फिर पुलिस के हाथों पकड़ी जाओगी"कल्लन ने फरज़ाना को समझाइश दी।

"मेरे साथ जो होना होगा उसे मैं खुद भुगत लूंगी...लेकिन यहां इतने आदमियो को देखकर मैं तेरी नीयत समझ चुकी हूँ कल्लन...मैं तेरे झांसे में नही आऊंगी" फरज़ाना ने कल्लन को दो टूक बोला।

"जब तू सब समझ ही गई है तो तू ये भी जानती होगी कि ये तीनो कुछ ही पल में मार दिए जाएंगे...मैं तो तुझे अपने साथ ही ले जाने की सोच रहा था..तुझे अपनी रानी बनाकर रखता"कल्लन ने ललचाई नज़रो से फ़रजाना को देखते हुए बोला।

"साले चेचक की दुकान...मैं तेरी रानी बनूँगी..ऐसा तूने कैसे सोच लिया...साले धन्धा भले ही रंडी का करती हूँ...लेकिन बैठती उसी के साथ हूँ...जो मुझे पसंद आता है"फरज़ाना ने कल्लन का पानी दो सेकंड में उतार दिया था।

"साली बहुत जुबान चल रही है तेरी...ये जितने भी लौंडे यहां खड़े है न अभी सब के सब तुझे नोच खायेंगे समझी"कल्लन ने जले भुने स्वर में फरजाना को बुलाया।

"लेकिन कल्लन...तू हमे मारकर अकेला ही पचास लाख हजम कर जाना चाहता है....ये तेरे साथी तो भाड़े के टट्टू होंगे...दस हजार से ज्यादा तू क्या देगा इनको...मतलब एक लाख की इन्वेस्टमेंट और इतना बड़ा फायदा"तभी बेवड़े ने वहां दूसरा ही रायता फैलाना शुरू कर दिया था।

"ये क्या बकवास कर रहा है तू साले बेवड़े...लगता है सबसे पहले तुझे ही मरने की ज्यादा चुल मची हुई है"कल्लन ने गुस्से से बेवड़े को बोला।

"क्या यार हाथ में पिस्टल होकर भी क्या दस हजार जैसी हक़ीर रकम के लिए इस चेचक की दुकान की चाकरी कर रहे हो..इस साले को गोली मारकर लूट के ले जाओ इस बैग को...सभी के हिस्से में पांच लाख रु आ जायेंगे"इस बार मस्ती ने बेवड़े की गेम को आगे बढ़ाया।तभी चरसी ने अपना कट्टा फरज़ाना के सिर पर लगा दिया।

"चल इस बैग को इन भाई लोगों के हवाले कर..अपना ऊसूल है जब हम नही खा सकते तो किसी को खाने नही देगे...आज इन पचास लाख रु का भंडारा करेगे..इन सब भाई लोगो को पाँच पांच लाख रु देगे"चरसी ने फैले हुए रायते को और फैलाने का काम कर दिया था।

"ए लड़की चल बैग हमारे हवाले कर...वरना गोली मार देंगे"उन दस लोगो मे से एक पिस्टलधारी आगे बढ़ता हुआ बोला।

"छीन लो भाई...पक्की छिनाल है ये..छीन लो इससे बैग और इस बैग को लेकर फुट जाओ यहां से"मस्ती बोलता हुआ एक एक कदम बढ़ाते हुए फरजाना की तरफ जा रहा था।

"खबरदार जो किसी ने भी बैग को हाथ लगाने की कोशिश की...इस सारे पैसे पर सिर्फ मेरा हक है"ये बोलकर कल्लन बैग के उपर झपटा। लेकिन तभी एक साथ दो चाकू सनसनाते हुए कल्लन की एक ही पाँव में ऊपर नींचे जा धंसे थे। कल्लन चाकू लगते ही भरभरा कर जमीन पर गिर चुका था।

"देखा भाई लोगो...इस आदमी को तुम लोगो का लखपति बनना जरा भी पसंद नही आ रहा है...इस बैग पर सिर्फ तुम लोगों का अधिकार है"चरसी ने उन सभी गुर्गों के लालच में और इजाफा किया। चरसी की बात सुनकर एक साथ दो लोग अब फरजाना की ओर बढ़े।जैसे ही वे लोग फरजाना के पास पहुँचे तभी वहां वो हुआ। जिसके बारे में कोई सपने में भी नही सोच सकता था। बेवड़े के दोनों हाथो से दो चाकू किसी कमान से छूटे तीर की तरह से उन दोनों के पांव में जा धंसे। चाकू लगते ही जैसे वो दोनो लहराए उसी वक़्त एक बन्दे को मस्ती ने थामा और उसकी पिस्टल छीनकर उसके सिर पर लगा दी। बिल्कुल वही कारनामा चाकू मारते ही बेवड़े ने भी किया था। अब दो गुर्गे मस्ती और चरसी के कब्जे में थे..और फरजाना चरसी के कब्जे में थी। कल्लन जमी पर पड़ा हुआ इस सारे बदले हुए खेल को भयभीत नजरो से देख रहा था।

"अपनी पिस्टल फेंक कर दीवार की तरफ मुंह करके खड़े हो जाओ"मस्ती ने कहर बरपाते हुए स्वर में बोला।

"जल्दी करो नही तो तुम्हारे दोनो साथियो को गोली मार दूँगा"बेवड़े ने मस्ती की धमकी में अपना सुर मिलाकर धमकी की पांच साल की गारन्टी पक्की कर दी थी।उन गुर्गों की समझ मे ही नही आ रहा था कि ये हुआ तो आखिर हुआ क्या।

"जल्दी फेंको अपनी पिस्टल..वरना अगले तीस सेकंड में इन दोनों को गोली मार दूँगा"मस्ती ने अपनी पिस्टल की नाल का दबाव उसकी खोपड़ी में और बढ़ा दिया था।

"अबे रहमान भाई पिस्टल फेंक दो यार..ये सच मे गोली मार देंगे"मस्ती के कब्जे वाला गुर्गा भय से चीख़ पड़ा था।उसके चीखते ही उन गुर्गों के हाथ से एक के बाद एक पिस्टल छूट कर नीचे गिरने लगी। मस्ती ने चरसी को सभी पिस्टल समेटने का इशारा किया।चरसी इशारा मिलते ही पिस्टल को अपने।कब्जे में करनें लगा था।

"इन सभी को गोली मार दे क्या गुरू...ये लोग अपुन के तो किसी भी काम के नही है"बेवड़ा मस्ती की ओर देखकर बोला।

"ये तो भाड़े के टट्टू है..इनको मारने से क्या फायदा..मारना ही है तो इन दोनों को गोली मारो...असली गद्दारी तो हमारे साथ इन दोनों ने ही कि है"मस्ती ने कल्लन और फरज़ाना की ओर हिक़ारत भरी नजरों से देखते हुए बोला।

"मैंने तो कोई गद्दारी नही की...मैं तो सिर्फ अपना हिस्सा ही तो मांग रही थी..पूरे माल पर कब्जा करनें का प्लान तो कल्लन का ही था" फरज़ाना अब रिरिया रही थी।

"लेकिन तुझे इसके प्लान के बारे में पता था और तुमने इस बारे में हमे कुछ नही बताया...इसका मतलब इस गद्दारी में तू भी शामिल थी। मस्ती की बात सुनते ही फरजाना का चेहरा सफेद पड़ चुका था।

क्रमशः


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