anil garg

Crime Thriller

4.5  

anil garg

Crime Thriller

बदमाश कंपनी-20

बदमाश कंपनी-20

61 mins
298


वॉल्ट को न खुलते हुए देखकर वहां मौजूद सभी लोगों के चेहरे पर परेशानी के चिन्ह उभर आये थे।

" तुम लोगों ने आज क्या बैंक में दिन भर झक मारी थी, ऐन वक्त पर ये क्या तमाशा है" सेलिना गुस्से में गुर्रा उठी थी।

" सेलिना मैंने और केलकर ने कोडिंग चेंज कर दी थी, इसी वजह से सुरक्षा अलार्म अभी तक नहीं बजा है....लेकिन लगता है कि कोडिंग बदलने के बावजूद मैनेजर अपना पासवर्ड बदलने में कामयाब हो गया था" रोहित ने परेशानी भरे स्वर में कहा।

" ये तो हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर गया" जैकाल ने हतोत्साहित स्वर में बोला।

" नहीं! सबसे बड़ी बात है की सुरक्षा अलार्म नहीं बजा है और पुलिस को यहां क्या हो रहा है उसकी भनक तक नहीं लगने वाली है..हम दूसरे रास्तों से वॉल्ट खोलने की कोशिश तो कर ही सकते है" मस्ती ने उन सभी का हौसला बढ़ाया।

" गुरु! अब तुम्ही हमारे सपनों को पूरा कर सकते हो...दिखा दो अपना हुनर, मस्ती भाई" तभी बेवड़ा मस्ती के पास आकर बोला।

" तुम दोनो नीचे जाओ और वेल्डिंग सेट ऊपर लेकर आओ" मस्ती ने अपने कंधे पर लटकी हुई किट को खोला और उसमें से एक बोतल को निकाला। सभी लोग कोतुहल से मस्ती पर ही निगाहें जमाये हुए खड़े थे। बेवड़ा और जैकाल तुरंत उस घेरे से नीचे लटक गए। नीचे खड़ी फरजाना और शीबा ने उन दोनों को वापस आते हुए देखकर असमंजस में उनकी ओर देखा।

" क्या हुआ" शीबा ने कोतुहल से पूछा।

" वॉल्ट नहीं खुल रहा है यार" जैकाल ये बोलकर तेजी से उकड़ू होकर उस सुरंग में दुकान की तरफ बढ़ा। उसके पीछे ही बेवड़ा भी उस दस फीट लंबी सुरंग में आगे बढ़ता चला गया। कोई पांच मिनट की मसक्कत के बाद दोनों लोग दुकान में पहुंच चुके थे। जैकाल ने पहले तो उस पोर्टेबल वेल्डिंग मशीन को अजीब सी नजरों से घूरा...क्योंकि ऐसी मशीन आज तक उसने अपने देश मे नहीं देखी थी। लेकिन मौके की नजाकत को समझते हुए जैकाल ने एक पल भी बर्बाद नहीं किया। मशीन को लेकर वे लोग फिर से सुरंग में घुस गए। तभी वो हुआ जिसका अंदेशा किसी को नहीं था। ऊपर से लेंटर की मिट्टी उन लोगों के ऊपर गिरने लगी।

" ये क्या हो रहा है! जैकाल भाई, कही ये सारा लेंटर ही न नीचे बैठ जाये" बेवड़े ने घबराए हुए स्वर में बोला।

" चिंता मत करो, कोई स्पोर्ट नहीं होने की वजह से ये हल्की सी मिट्टी तो झड़ती रहती है..लेंटर नहीं बैठेगा...चारों तरफ से स्पोर्ट है उसे" जैकाल ने बेवड़े के मन का डर दूर करते हुए बोला। तब तक बात करते हुए दोनों उस घेरे के पास पहुंच गए थे, जहाँ पर शीबा और फरजाना उन दोनों की दिशाओ में ही अपनी निगाहें जमाये हुए खड़ी थी। जैकाल ने सबसे पहले बेवड़े को ऊपर चढ़ने में मदद की, उसके बाद उसने मशीन को ऊपर करके बेवड़े को पकड़ाया, उसके बाद खुद भी ऊपर चढ़ गया। ऊपर इस वक़्त वॉल्ट के पिछले हिस्से में हल्का सा धुंआ उठा हुआ था।

" मस्ती भाई!वॉल्ट में आग लगा दी क्या..ऐसे तो सारे नोट जल जायेगे" बेवड़ा मशीन लेकर मस्ती की ओर बढ़ा।

" चुप कर!वॉल्ट के पिछले हिस्से पर वो केमिकल डाला है, जो बड़े से बड़े इस्पात को गलाने की क्षमता रखता है...धुआँ निकलने का मतलब है कि वो केमिकल अपना काम कर रहा है" मस्ती ने बेवड़े की बात का जवाब दिया।

" जैकाल जल्दी से वेल्डिंग सेट चालू करो..और इसकी रोड फिट करो, अगले पांच मिनट में हम वॉल्ट के इस हिस्से को काटेंगे...एक बार ये कटना शुरू हो गया तो वॉल्ट की इस पूरी दीवार को दो घँटे में काट देंगे" मस्ती के इस कथन ने अभी तक सभी के चेहरों पर छाई हुई मुर्दग्नि को दूर कर दिया था। सेलिना के उन खूबसूरत होठो पर भी काफी देर के बाद मुस्कान खिली थी। जैकाल ने एक पल का भी समय बर्बाद न करते हुए जल्दी से उस वेल्डिंग सेट को चालू किया। बलवन्त ने उसका पाइप फिट किया और उसे चालू करके चेक किया। उसमे से आग की लपट निकल कर बुझ गई। बलवन्त ने मुस्करा कर उस पाइप को मस्ती की ओर बढ़ाया। मस्ती ने बिना कोई क्षण गवाएं पाइप को पकड़ा और उसमें लगे एक बटन को दबाया तो उसमें से वैसी ही आग की लपटें निकलने लगी...जैसी देशी वेल्डिंग सेट में निकलती है। मस्ती ने अब वॉल्ट के उस हिस्से पर उन आग की लपटों का प्रहार करना शुरु कर दिया, जहाँ पर उसने उस केमिकल को डाला था। कोई पांच मिनट तक लगातार मस्ती आग की तपिश से उस जगह को पिघलाता रहा। तभी ये देखकर उसकी बांछे खिल गई कि इस्पात आसानी से पिघलने लगा था।

" हो गया काम" मस्ती खुशी के अतिरेक में चिल्लाया। मस्ती की खुशी में डूबी आवाज को सुनकर सभी लोग खुशी के मारे एक दूसरे से चिपट गए। सेलिना जो कि मस्ती के पास में ही खड़ी थी, उसने तो मस्ती को खुशी के अतिरेक में चूम ही लिया था।

" जियो मेरे शेर" सेलिना ने वेल्डिंग पाइप को सम्हाले मस्ती की पीठ थपथपाई। एकमात्र रोहित ही ऐसा था, जिसके चेहरे पर मस्ती की इस कामयाबी की कोई खुशी नहीं झलकी थी। लेकिन वो खुशी पल भर भी नहीं टिक सकी। शीबा की घबराई हुई आवाज ने सभी को चौंका कर रख दिया था।

" सुरंग का लेंटर तेजी से झड़ रहा है" शीबा अब तक उस घेरे से ऊपर चढ़ चुकी थी। तभी फ़रज़ाना का चेहरा भी उस घेरे से निकलते हुए चमकने लगा था।

" ऐसा कैसे हो गया" सेलिना ने बलवन्त और जैकाल की ओर देखते हुए बोला।

" अगर ऐसे ही लैंटर झड़ता रहा तो शायद सुरंग का रास्ता बन्द हो सकता है" तब तक फरजाना भी ऊपर आ चुकी थी।

" कहीं ये बिल्डिंग ही न ढह जाए, और हमारी कब्र इसी बिल्डिंग के मलबे में बन जाये" चरसी ने पहली बार मुंह खोला भी तो ये मनहूस बात बोलने के लिये।

" नही!ऐसा कुछ नहीं होगा, बिल्डिंग इतनी कमजोर नहीं है...सुरंग के काटने से बिल्डिंग नहीं गिरेगी और न ही इतना मलबा नीचे गिरेगा की सुरंग का रास्ता ही बंद हो जाये" जैकाल ने भरोसा दिलाया।

" मुझे लगता हैं कि हमने बहुत लापरवाही से सारे काम को अंजाम दिया है, जब सुरंग बना रहे थे तो साथ कि साथ एक स्पोर्ट देनी चाहिए थी" रोहित ने अपना मत व्यक्त किया।

" तुम तो कुछ बोलो ही मत यार! तुम्हारी नाकामयाबी की वजह से अभी तक हम लोग यहां खड़े है..नहीं तो अभी तक कब के यहां से सारा पैसा लेकर निकल चुके होते" इस बार गुस्से में जैकाल ने रोहित को जवाब दिया। अभी रोहित ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था, की उससे पहले सेलिना की आवाज उसके कानों में पड़ गईं।

" अभी इन बेकार की बात करने की बजाय ये सोचो कि अगर सुरंग बन्द हो गई तो हम बाहर कैसे निकलेंगे" सेलिना ने मौके की नजाकत के हिसाब से बात की थी।

" सुरंग बन्द होने का सवाल ही नहीं है..फिर हम क्यों इस मे अपना दिमाग लगाकर समय खराब कर रहे है" जैकाल अभी तक अपनी बात पर अडिग था।

" लेकिन ऐसी अनहोनी हो ही गई तब हम क्या करेगे, ये भी तो सोच कर रखना होगा" शीबा ने बोला।

" लेकिन एक बात का ध्यान रखो की बाकी बैंक के कैमरे चालू है...सिर्फ मैंने वॉल्ट रूम के कैमरे बन्द किये है" रोहित ने एक नई बात बताई। रोहित की बात सुनते ही जैकाल फिर से भड़क उठा था।

" जब वॉल्ट के कैमरे बन्द कर सकता था, तो बाकी कैमरों ने तेरा क्या बिगड़ा था" जैकाल ने अजीब से स्वर में रोहित को बोला।

" वॉल्ट में इतनी जगह तो बन गई है कि अब हम नकदी निकाल कर एयर बैग में भर सकते है" तभी मस्ती की आवाज सुनते ही सभी के चेहरों पर रौनक आ गई।

लेकिन समस्या तो फिर से एयर बैग की है..अगर उन्हें यहां भरा गया तो नीचे कैसे लेकर जायेगे" फ़रज़ाना ने चिंतित स्वर में कहा।

" इसका एक ही तरीका है..थोड़ा वक्त लगेगा..लेकिन हम कर सकते है" मस्ती ने वेल्डिंग सेट चलाते हुए ही बोला।

" इस बिल्डिंग को बनाते हुए इसकी नींव में भी काफी सरिया डाला गया होगा...जब हमने सुरंग के लिए नींव को कांटा था तब हमें कोई सरिया नहीं मिला था, इसका मतलब सारा सरिया उस जगह से ऊपर है जहाँ से सुरंग काटी गई है" मस्ती ये बोलकर चुप हुआ।

" तुम्हारा मतलब है कि सुरंग में इतनी मिट्टी नहीं गिरेगी की सुरंग का रास्ता ही बंद हो जाये" सेलिना ने तुरंत मस्ती की बात को लपका।

" तुम बिल्कुल सही समझी हो सेलिना, अब एक काम करो, तुम तीनो लेडीज यहां एयर बैग में नकदी भरने का काम करो....एक आदमी जाकर गाड़ी में एयर बैग लेकर बैठ जाये...बाकी लोग नीचे सुरंग में उतरकर एयर बैग को ले जाकर उस गाड़ी में रखे हुए एयर बैग में नकदी डालकर वापस लाता रहे...ज्यादा से ज्यादा दो घँटे में हम सारी नकदी यहाँ से साफ करके गाड़ी में पहुंचा देगे" मस्ती ने तुरन्त पूरा प्लान तैयार कर दिया था।

" तुम तो जीनियस हो मस्ती...तुम्हारी प्रमोशन की तो ददुआ से मैं ख़ास सिफारिश करूँगी" सेलिना ने खुश होते हुए बोला

" प्रमोशन बाद में करवा लेना सेलिना डार्लिंग पहले जो मस्ती ने किया है..उस काम को करना शुरू करो...और बैग को उतना ही भरना, जितना इस घेरे में से आसानी से निकल जाए" जैकाल ने सेलिना को बोला तो सेलिना ने शीबा को एयर बैग लेकर वॉल्ट के पास जाने का इशारा किया।

" वॉल्ट में हाथ ध्यान से डालना..अभी लोहा गर्म होगा" मस्ती हर बारीक से बारीक चीज़ पर नजर रख रहा था। शीबा ने मुस्करा कर मस्ती को देखा और फिर वॉल्ट से नोट की गड्डिया निकाल कर बैग में भरने लगी। बलवन्त जैकाल बेवड़ा चरसी और रोहित अब बारी बारी से सुंरँग में उतरकर साथी हाथ बटाना के अंदाज में एक एक हाथ की दूरी बनाकर खड़े हो गए थे। बलवन्त गाड़ी में जाकर बैठ गया था। तभी फरजाना ने पहला बैग घेरे में से नीचे किया, जिसे पकडने में जैकाल ने कोई भी कोताही नहीं बरती थी। सुरंग में हल्की मिट्टी अभी भी कभी कभी झड़ कर गिर पड़ती थी। सभी के हाथों से होते हुए बैग सबसे आखिर में बलवन्त के हाथों में पहुंचता था। बलवन्त गाड़ी में रखे हुए बैग में उसे पलट देता था। बैंक का वॉल्ट अब खाली होने की राह पर चल पड़ा था।

बस कुछ ही घण्टो की बात बाकी थी, जब वॉल्ट में झाड़ू फिरने वाली थी।

                       *********

वॉल्ट से नकदी ढोते हुए सुबह के तीन बज गए थे। वॉल्ट की पूरी नकदी गाड़ी में रखी जा चुकी थी। सभी लोग वॉल्ट से निकल कर अब दुकान में आ चुके थे। सुरंग के बारे में जैकाल और मस्ती की बात ही सबसे सही निकली थी। सभी के चेहरे पर कामयाबी की खुशी अलग ही नजर आ रही थी।

" दुकान का शटर उठाओ, देखो बाहर रास्ता साफ है न" सेलिना ने जैकाल को बोला। सेलिना की बात सुनकर जैकाल तुरन्त शटर उठाने के लिये चल पड़ा। जैकाल ने शटर उठाया। बाहर रोड पुरी तरह से सुनसान नजर आ रहा था। जो लोग बोलते हैं कि मुंबई पुरी रात जागती है, वे लोग शायद मुम्बई के इस रोड पर कभी रात में नहीं आये थे। । दिन में सबसे व्यस्त रहने वाला इलाका इस वक़्त विधवा की मांग की तरह से सुना पड़ा था।

" कोई नहीं है, रास्ता पूरा सुनसान पड़ा है, आराम से निकल सकते है" जैकाल ने अंदर आकर सेलिना को बोला।

" बलवन्त और शीबा गाड़ी में बैठो, शीबा को पता है कि गाड़ी को कहाँ लेकर जाना है, हम लोग भी पीछे आ रहे है" सेलिना ने बलवन्त और शीबा को बोला।

" नहीं ! गाड़ी में सिर्फ शीबा और बलवन्त नहीं जायेंगे, गाड़ी में हम सब जायेंगे" जैकाल ने असहमति में अपने सिर को हिलाते हुए कहा।

" हम इस बात के बारे में पहले भी बात कर चुके है जैकाल, क्यो मिशन सफल होने के बाद भी ददुआ के कोप का शिकार होना चाहते हो" सेलिना के चेहरे पर इस वक़्त गुस्सा उभर चुका था।

" मेरे ख्याल से ये समय नहीं है कि हम यहां रुककर समय बर्बाद करे, लोगों की आवाजाही किसी भी समय शुरू हो सकती है..आखिर हम सभी को जाना तो एक ही जगह है तो साथ मे जाने से भी क्या फर्क पड़ेगा...वहां पहुंचकर बात कर लेंगे" मस्ती ने सेलिना की ओर देखकर बोला।

" मस्ती सही कह रहा है सेलिना, हमें यहाँ रुककर एक पल भी बर्बाद नहीं करना चाहिए" फरजाना ने भी मस्ती की बात का समर्थन किया।

" जिस जिस को भी गाड़ी में जाना है वो गाड़ी में बैठ जाओ, जिसे मेरे साथ आना हो वो आ सकता है" सेलिना का गुस्सा अभी खत्म नहीं हुआ था। बलवन्त और शीबा के बाद जैकाल और रोहित भी गाड़ी में जाकर बैठ गए थे। मस्ती ने चरसी और बेवड़े को भी इशारा किया। मस्ती का इशारा पाते ही चरसी और बेवड़ा भी गाड़ी के पिछले हिस्से में बैठ गए थे। मस्ती और फरजाना सेलिना के साथ बाहर निकल गए। बलवन्त ने गाड़ी को बाहर निकाला, उसके बाद गाड़ी से उतरकर शटर को बंद किया और ताला लगाकर फिर से गाड़ी में बैठ गया। तभी बैंक के अंदर से केलकर दौड़ता हुआ आया और वो भी गाड़ी में समा गया।

                         ********

अभी वो गाड़ी वहां से कोई पांच किलोमीटर आगे जाकर एक सुनसान सड़क पर पहुंची ही थी कि उसके आगे एक बड़ा सा बख्तरबंद ट्रक जाता हुआ नजर आया। अचानक से उस ट्रक का पिछला दरवाजा खुला और उसमे दो लोहे के स्टेयर उस ट्रक से बाहर बिछते चले गए। बलवन्त को शायद पहले से ही सेलिना ने बताकर रखा हुआ था। बलवन्त ने उन दोनों स्टेयर पर अपनी गाड़ी के पहिये चढ़ा दिये। कुल तीस सेकेण्ड के अंतराल में वो पांच सौ करोड़ से भी ज्यादा रूपयों से भरी गाड़ी उस ट्रक में समा कर सड़क से ओझल हो चुकी थी। अचानक से उस ट्रक की गति बढ़ती चली गई और कुछ ही मिनटों में वो ट्रक सेलिना की नजरो से ओझल हो गई। मस्ती भी सारा नजारा खुली हुई आंखों से देख रहा था। मस्ती की उंगलियां उसकी खींसे में धंसी पिस्टल पर अभी तक धंस चुकी थी।

" ये क्या हो रहा है..ये गाड़ी इस ट्रक में क्यों गई है...अगर ऐसा कोई प्लान था तो, हमें क्यों नहीं बताया, सिर्फ बलवन्त को ही इस बारे में कैसा पता था" मस्ती ने एक साथ सेलिना से सवालो की झड़ी लगा दी थी। तब तक फरजाना भी हरकत में आ चुकी थी। उसने अपनी पिस्टल निकाल कर सेलिना की गर्दन पर लगा दी।

" जल्दी बता ये क्या गोरखधंधा है, तुम लोगों का इस गाड़ी में बैठे हुए लोगों के साथ क्या करने का इरादा है" फरजाना ने चिल्लाकर पूछा था।

" आराम से बैठो!सेलिना से इस तरह की बदतमीजी करने वालो को भगवान भी सांस लेने की इजाजत नहीं देता है" सेलिना एकदम शांत स्वर में बोली।

" भगवान से पहले मैं तुम्हारी सांसे बन्द कर दूँगा" मस्ती की आवाज में उसका गुस्सा साफ परिलक्षित हो रहा था।

" तुमने अगर मेरे साथ कोई भी हरकत करने की कोशिश की तो अपना अंजाम भी सोच लो, इस वक़्त कम से कम दस पिस्टल ने तुम्हें अपने निशाने पर लिया हुआ है, अपने दाएं बाए नजरें उठा कर देख लो। सेलिना की बात सुनते ही दोनों की नजर अपने आप ही आजू बाजू में घूम गई। दो गाड़ियों में तकरीबन दस लोगों की पिस्टल उन्हीं की गाड़ी की ओर तनी हुई थी। उन लोगों को देखकर मस्ती के होठो पर एक कुटिल मुस्कान खिल उठी थी।

" वे दस लोग तो बाद में कुछ करेगे...उससे पहले तो हम ही तुझे मार डालेंगे, मरने के बाद क्या तुम देखने आओगी की हमारा क्या अंजाम हुआ" मस्ती की बात सुनकर पहली बार सेलिना की पेशानी पर बल पड़ा था।

" सबसे पहले उन लोगों ने गद्दारी की थी, और तुम्हे पहले ही बता दिया था, की ददुआ गद्दारी की एक ही सजा मुक़र्रर करता और वो है सजा ए मौत" सेलिना ने गुर्राए हुए स्वर में बोला।

" एक बार इस ददुआ से आमने सामने मिलवा दो सेलिना डार्लिंग अगर उसे अपने पैदा होने पर अफसोस न हो तो कहना" मस्ती की पिस्टल भी अब निकल कर उसके हाथों में आ गई थी।

" ददुआ से मिलने का ख्वाब तो छोड़ दो...अब सिर्फ अपनी मौत की घड़ियां गिनो...की तुम्हारी मौत की घड़ी कब टिक टिक करना बंद करेगी" सेलिना की आवाज से एक बार भी नहीं लग रहा था कि उसके ऊपर मस्ती या फरजाना की बातों का कोई असर हुआ हो। तभी मस्ती और फरजाना के बीच मे अँखियो ही अँखियो में कुछ इशारा हुआ।

                            ********

जैसे ही बैंक की नकदी वाली गाड़ी उस विशालकाय ट्रक में घुसी वैसे ही उस गाड़ी में घनघोर अंधेरा छा चुका था। गाड़ी के ट्रक में घुसते ही सबसे पहले जो शख्स चिल्लाया था, वो जैकाल ही था, जबकि रोहित घबरा उठा था, की ये अचानक क्या हुआ था।

" बलवन्त तुम्हे पता था कि ऐसा कुछ होने वाला है" जैकाल एक दम से कूदकर उस खिड़की के पास पहुंच चुका था, जहाँ से वो बलवन्त और शीबा से बात कर सकता था।

" नहीं मुझे नहीं मालूम था, मुझे तो अभी शीबा ने बोला था कि पुलिस की नजरों से बचने के लिए गाड़ी को इस ट्रक में चढ़ा दो" बलवन्त ने शीबा की ओर इशारा करते हुए कहा।

" घबराओ मत जैकाल, मंजिल पर पहुंचते ही ये गाड़ी भी ट्रक से बाहर आ जायेगी और तुम भी गाड़ी से बाहर आ जाओगे, कुछ प्लान सभी से छुपाकर रखने होते है" शीबा ने दिलासा भरे शब्दो मे जैकाल को बोला।

" शीबा मेरी जान!अगर जैकाल से गद्दारी की सोची भी तो तेरे ददुआ की लंका में आग लगाने वाला सबसे पहला शख्स मै होऊंगा" जैकाल ने कठोर स्वर में चेताया।

" ये धमकी ददुआ के सामने देना, तो हों सकता है कि मरने वालों में सबसे पहला नंबर भी तुम्हारा ही हो" शीबा ने एक मुस्कान के साथ जैकाल को बोला तो जैकाल के तनबदन में आग लग गई।

" शीबा !जैकाल नाम हैं मेरा....आज तक अगर मरने की चिंता की होती तो ऐसे धंधो में शामिल नहीं होता...सबसे बड़ा चूहा तो तुम्हारा ददुआ ही है, जो हमेशा पर्दो के पीछे ही छुपकर बात करता है" जैकाल भी जवाब देने में माहिर इंसान था।

" मुझे तो इन लोगों की कोई साजिश लगती है जैकाल भाई...हम लोगों की जान खतरे में है" इस बार बेवड़े ने अपनी आशंका प्रकट की।

" मुझे तो डर लग रहा है...मैं क्यो पैसे के लालच में आकर अपने ही बैंक को लूटने में इन लोगों का साथ दिया, ये साले तो एहसान फरामोश निकले" रोहित की आवाज से लग रहा था कि वो अभी बुक्का फाड़ कर रो देगा। केलकर के चेहरे पर अब तक हजारो रंग आकर चले गए थे, लेकिन उसके मुंह से कोई बोल न फूटा था।

" तुम लोग चिंता मत करो..जब तक मैं जिंदा हूँ..कोई तुम लोगों को छू भी नहीं पाएगा...और सुनो शीबा प्यारी...अगर आज हमसे दगा करके मन ही मन खुश हो रही हो तो, अंजाम तुम्हारा भी एक न एक दिन ऐसा ही होने वाला है, क्योकि इन लोगों की फितरत ही काम निकलते ही धोखा देने की है" जैकाल ने नफरत भरे स्वर में बोला। अभी जैकाल का वाक्य पूरा हुआ ही था कि वो ट्रक एक झटके में रुक गया था। ट्रक के रुकते ही वे स्टेयर फिर से जमीन पर बिछ चुके थे। बलवन्त ने उन स्टेयर पर गाड़ी को बैक करना शुरू कर दिया था। जैसे ही गाड़ी ट्रक से उतरकर उस विशाल मैदान में खड़ी हुई, तकरीबन दस गनर ने उसी समय गाड़ी को अपने घेरे में ले लिया।

                      **********

फरजाना ने सेलिना की गर्दन से अपनी पिस्टल हटाई और अब सेलिना की गर्दन पर पिस्टल लगाने की जिम्मेदारी मस्ती ने उठा ली थी। फरजाना पिस्टल हटाने के बाद पिछली सीट पर पीछे की तरफ लुढ़क गई। अभी तक उसकी बायीं बाजू की गाड़ी उसके बिल्कुल करीब आकर लहराने लगी थी। फरजाना ने लेटे हुए ही पिछली विंडो का शीशा नीचे किया। उन साथ चलने वाली गाड़ियों में बैठे हुए लोगों को शायद सिर्फ पिस्टल दिखाने का काम सौपा गया था। अभी तक उन लोगों में से किसी ने भी गोली चलाने का प्रयास नहीं किया था। लेकिन फरज़ाना अपने जलाल में आ चुकी थी। फरजाना ने लेटे हुए ही अपनी पिस्टल की नाल को खिड़की पर लगाया। लेकिन तब तक सेलिना फरजाना की हरकत को अपने बैक मिरर में देख चुकी थी। सेलिना जैसी खेली खाई लड़की को फरजाना के इरादों को भांपने में पल भी की भी देरी नहीं हुई। सेलिना ने तुरन्त गाड़ी को सड़क पर लहराया। जैसे ही गाड़ी लहराई वैसे ही फरजाना की पिस्टल ने एक के बाद एक दो शोलो को उगला, फरजाना ने दोनो गोलियों को गाड़ी के पिछले टायर को निशाना लगाकर चलाया था, लेकिन सेलिना की होशियारी उसी पर भारी पड़ गई। जहाँ एक गोली तो पिछले टायर में ही लगी और एक गोली खिड़की से होती हुई एक गनर के सिर में घुस गई। टायर में गोली लगते ही कार बुरी तरह से सड़क पर लहराई और सड़क के डिवाइडर से टकरा कर गाड़ी ठीक रोहित शेट्टी की फिल्मों की तरह हवा में कलाबाजी खाते हुए सड़क पर लगे हुए एक पेड़ से टकराई और फिर एक बार और उछली और गाड़ी सड़क से टकराते ही दूर तक घिसटती हुई चली गई। तभी गाड़ी फिर से डिवाइडर से टकराई लेकिन इस बार गाड़ी उछली नहीं बल्कि कुछ पल वही ठहरी और फिर एक धमाके के साथ वो गाड़ी शोलो में तब्दील हो गई। अब तक मस्ती सेलिना की कनपटी पर पिस्टल का प्रहार कर चुका था। सेलिना के सुधबुध खोते ही फ़रज़ाना ने उसे सम्हाला और मस्ती तेजी से सेलिना की गोद मे बैठकर गाड़ी को सम्हालने में जुट गया। एक गाड़ी का सड़क पर इतना बुरा हाल देखकर दूसरी गाड़ी वाले शायद अपने साथियों का हश्र देखने के लिए पीछे ही रुक चुके थे।

" अब किधर जाए" मस्ती ने सामने देखते हुए ही फरजाना से पूछा।

" इसी के फ्लैट पर चलो..इसका बाकी इलाज अब इसके फ्लैट पर ही करेगे" फरजाना ने बोला।

" नहीं इस वक़्त फरजाना के फ्लैट पर जाना खतरे से खाली नहीं होगा...तुमने केलकर का फ्लैट देखा हुआ है न..वहाँ चलते है" मस्ती ने फरजाना को बोला।

" ठीक है चलो, बाकी बातें फिर बाद में सोचते है" फरजाना के ये बोलते ही मस्ती ने गाड़ी की स्पीड को हवा से बातें करना सीखा दिया।

                         *********

वे सभी लोग इस वक़्त उन गनर के घेरे में ही चल रहे थे। उस बड़े से मैदान के चारों तरफ किसी जेल सरीखी दस से बारह फ़ीट ऊंची दीवारें बनी हुई थी, और उन दीवारों के ऊपर भी कम से कम 5 फीट ऊंची लोहे के तारों की बाड़ लगाई हुई थी। किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था, की उन लोगों को वहां पर क्यो लाया गया है...इतनी बड़ी डकैती को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद भी उन लोगों के साथ ऐसा सलूक होगा, ये उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था।

" जल्दी जल्दी चलो, तुम लोगों के पैरों में मेहंदी लगी हुई है क्या" एक गनर ने चरसी की पीठ में अपनी गन को लगाया और उसे जोर से धकेला।

" चल तो रहा हूँ, अभी दौड़कर जाऊं क्या" चरसी ने पलट कर उस गनर को जवाब दिया।

" यहां जो जितनी तेज आवाज में चिल्लाता है उसे उतनी ही तादाद में गोलियां मारी जाती है" वो गनर गुर्रा कर पड़ा।

" देख भाई, तू कल गोली मारता हो तो आज ही मार दे, अपन भी इस बेकार सी जिन्दगी से दुखी हो चुका है, अपना तो गुरु भी लापता हो गया है" चरसी ने दुखी स्वर में उस गनर की गन को अपने सीने से लगाते हुए बोला।

" तेरी मरने की तमन्ना भी पूरी करेगे, जरा एक बार ददुआ का तुम्हें मारने का आर्डर आ जाये" वो गनर तपे हुए स्वर में बोला। अब तक वे लोग चलते हुए एक टीन शेड में पहुंच चुके थे। उस टीन शेड में अंदर प्रवेश करते ही उन लोगों को नीचे की तरफ जाती हुई सीढ़ियों की तरफ इशारा किया। उस इशारे को पाते ही वे लोग उन सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। कमाल की बात ये थी कि उन लोगों की जो हालत थी, वही हालत शीबा और बलवन्त की भी थी। ऐसा नहीं था कि उन्हें कोई विशेष मेहमान नवाजी का सुख मिल रहा था। इस वक़्त उन लोगों के साथ साथ शीबा और बलवन्त के चेहरे भी हलकान नजर आ रहे थे। नीचे उतरने के बाद उन लोगों को वही बैठने को बोला गया। उसके बाद वे सभी गनर उन लोगों को वही छोड़कर वापस से सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर पहुंच गए। कुछ ही पल में सीढ़ियों का दरवाजा बंद होने की आवाज आई।

" इन लोगों का प्लान अब मेरी समझ में आ गया है" तभी जैकाल ने सभी की ओर देखकर बोला।

" क्या समझ मे आ गया" बलवन्त ने तुरन्त पूछा।

" ये लोग हम लोगों को मारकर हमारी लाशो को पुलिस से बरामद करवाएंगे...उस लूट की दौलत में से दस बीस करोड़ हमारी लाशो के साथ बरामद करवाया जाएगा...अब क्योकि बैंक डकैती में शामिल सभी लोगों मारे जा चुके होंगे, तो केस की जांच बंद, और बाकी की पूरी रकम गायब!कमाल का दिमाग लगाया है ददुआ ने, सौ टका मुनाफा, और मारे जायेगे हम लोग" जैकाल ने अपनी सोच से हम सभी को अवगत करवाया।

" लेकिन अभी अपना गुरु और फरजाना यहां नहीं पहुँचे है" तभी बेवड़ा बोला।

" उन दोनों को अभी तक सेलिना अपने कब्जे में कर चुकी होगी" जैकाल ने बेवड़े को जवाब दिया।

" अपना गुरु सेलिना जैसी छिनाल को अपनी जेब में रखता है...अकेली सेलिना के बस का नहीं है, गुरु और फरजाना को अपने कब्जे में लेना" चरसी ने बेवड़े की बात का समर्थन किया। तभी सीढियो का दरवाजा फिर से खुला और सीढियो पर चार लोगों से घिरी हुई एक लडक़ी उतरती हुई नजर आई। सभी की निगाहें अब कोतुहल से उस लड़की पर जम चुकी थी।


    सेलिना को लाकर मस्ती और फरज़ाना इस वक़्त केलकर के फ्लैट में पटक चुके थे। सेलिना अभी बेहोशी की हालत में थी और केलकर के बेड पर पड़ी थी।

" इसे इस बेड से ही अच्छी तरह से बांध दो, अब ये ही बताएगी की वे उन लोगों को कहाँ लेकर गए है" मस्ती ने फरजाना की ओर देखकर बोला।

" यार इस पांच सौ करोड़ के चक्कर मे पड़कर तो हम लोगों ने अपने पचास लाख भी गवां दिए, वो पैसे तो सेलिना के फ्लैट में ही है" फरजाना ने अफसोस भरें लहजें में बोला।

" सही बोल रही हो'न खुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे, चले थे करोड़पति बनने लखपति भी नहीं रहे, ऊपर से अपने दोस्तो की जान और दांव पर लगी है" मस्ती की आवाज से भी उसका अफसोस झलक रहा था।

" एक बार ये हरामी ददुआ मिल जाये, अगर साले को तिगनी का नाच नहीं नचाया तो मेरा भी नाम फरजाना नही" फरजाना केलकर के कपडे वार्डरोब से निकालते हुए बोली।

" ददुआ को तो बाद में देखेंगे..पहले जरा इस ददुआ की चमची का कैबर्रे आज इसी रूम में देखेंगे, साली ने बहुत हुकुम चलाया है हम पर" मस्ती ने हिक़ारत से बेहोशी के आलम में खोई हुई सेलिना की ओर देखकर बोला।

" जो करना है जल्दी करो...इसे बांधने के बाद इसे होश में लाते है...क्योकि जगह ये भी सुरक्षित नहीं है हम लोगों के लिए" फरजाना ने मस्ती को बोला।

" चिंता मत करो, अभी आज और कल तो बैंक बन्द है , तो अभी दो दिन तक बैंक में डकैती की खबर पुलिस को भी नहीं लगनी है" मस्ती ने हल्की सी मुस्कान के साथ बोला।

" तुम शायद भूल रहे हो कि बैंक के असल गार्ड की जगह कल केलकर वहां गार्ड बनकर बाहर खड़ा था, आज जब कंपनी का असली गार्ड अपनी ड्यूटी करने के लिए वहां पहुंचेगा तो वहां किसी गार्ड को न पाकर अपनी कंपनी को खबर नहीं करेगा, फिर तो तुम जानते ही हो कि बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी, बैंक में पड़ी डकैती की बात छुप नहीं सकेगी" फरजाना ने अपना दिमाग उस जगह लगाया था, जिसका ध्यान हर किसी को इतनी जल्दी नहीं आना था।

" इस तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं गया..मतलब डकैती की खबर फैलना सिर्फ चंद घण्टो की बात है" मस्ती के माथे पर बल पड़ चुके थे।

" तभी बोल रही हूँ, इस छिनाल को होश में लाओ और इससे उगलवाओ की ये उन लोगों को कहाँ लेकर गए है" फरजाना बोलते बोलते अब तक सेलिना की मुश्के कस चुकी थी। फरजाना की बात सुनते ही मस्ती किचन की ओर पानी लाने के लिए जा चुका था, ताकि सेलिना को होश में लाया जा सके।

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सीढियो से नीचे उतरकर वो मैडम अब तक उन लोगों के सामने आकर खड़ी हो चुकी थी।

" इन्ही लोगों को अभी यहां लाया गया है बुशरा मैडम" उस बुशरा नाम की लडक़ी के साथ आये एक गुर्गे ने अदब से बोला।

" सेलिना अभी तक यहाँ नहीं पहुंची है, उसे गायब करने का प्लान किसका था, मस्ती और वो फरजाना नाम की लड़की जो उसके साथ थी, वे लोग कहां लेकर गए है सेलिना को, जल्दी बताओ, वरना पांच मिनट में तुम सभी को शूट कर दूंगी" बुशरा ने खतरनाक स्वर में आते ही बोला।

" हमें मारने के बाद सेलिना का पता किससे पूछोगी मैडम, अब धोखा दिया है तो धोखा खाना भी सीखो" केलकर ने सबसे आगे आते हुए बोला।

" लगता है सरफरोशी की तमन्ना तेरे मन मे ज्यादा जोर मार रही है..चलो गोली मारने की शुरुआत तुमसे ही करती हूँ, फिर जो सबसे आखिर में बचेगा, वो तो अपनी मौत के डर से बता ही देगा" बुशरा ने अपने हाथ को अपने पीछे किया और अपनी जीन्स की उस पैंट के खीसे से एक पिस्टल निकाल कर केलकर के माथे पर लग गया। पिस्टल को अपने माथे पर लगे हुए देखकर ही केलकर का जोश फटे लिफाफे की तरह फट कर गुड़गांव हो चुका था।

" हमे नहीं पता कि वो सेलिना को कहां लेकर गये है, हम लोग तो अभी तक यही सोच रहे थें की मस्ती और फरजाना इस वक़्त सेलिना के कब्जे में होंगे" तभी जैकाल केलकर के साथ आकर खड़ा हो गया था।

" ज्यादा समझदार मत बनो..पांच मिनट में से दो मिनट बीत चुके है" बुशरा कुछ और सुनने के मूड में ही नहीं थी। चरसी और बेवड़ा इस वक़्त उन सभी के पीछे खड़े हुए थे। वे दोनों आंखों ही आंखों में कुछ इशारा कर चुके थे।

" तीन मिनट तो बहुत कम है मैडम..कम से कम तीस मिनट तो दीजिये" तभी बेवड़े ने कुछ अलग ही राग अलापा।

" हां मैडम!क्योकि सेलिना की पूंगी बजाकर गुरु को आने में आधा घन्टा तो लगेगा ही" चरसी भी अब बात को घुमाने में लगा था।

" हां गुरु को तुम लोगों के इरादो की भनक पहले से ही लग गई थी..इसलिए सेलिना को हम लोगों ने कब्जे में ले लिया है..वो तो आखिर में जो गाड़ी को ट्रक में तुम लोगों ने चढ़वा लिया तो हमारा प्लान फेल हो गया, नहीं तो उस गाड़ी समेत ही सेलिना को लेकर गायब होने का प्लान था" बेवड़ा ने अब उस स्टोरी में थोड़ा सा और मिर्च मसाले का छोंका लगाया।

" तुम जानते भी हो तुम बोल क्या कर रहे हो...या जो मन मे आ रहा है वही बके जा रहे हो" इस बार केलकर ने उन दोनों को झिड़कते हुए बोला।

" अरे चाचा, तुम क्यो भड़क रहे हो, हमारे इस प्लान के बारे में सिर्फ हम चार और पांचवी हमारी होने वाली भौजी सेलिना ही जानती थी" चरसी इस बार बोलते हुए मुस्करा उठा था। ये उन दोनो की पुरानी अदा थी....जब उन लोगों को कोई गेम पलटनी होती है तो वो वहां हो रही बात ही पलट देते थे।

" सेलिना भौजी" बुशरा ने अजीब सा मुंह बनाकर बोला।

" हां!अपने बड़े भैया मस्ती गुरु और सेलिना दोनो शादी करके ये देश छोडकर जाने वाले है" बेवड़ा भी अब मुस्करा रहा था।

" तुम्हारी बकवास ख़त्म हो गई हो तो तुम्हे बता दूं कि बचें हुए तीन मिनट भी खत्म हो चुके है" ये बोलकर बुशरा का हाथ अभी पिस्टल की ट्रिगर पर दबने ही वाला था कि चरसी ने पीछे से केलकर को एक जोर का धक्का दिया। परिणाम स्वरूप केलकर बुशरा के गदराए बदन पर ढेर होता चला गया। पिस्टल से निकली हुई गोली एक धमाके के साथ उस बड़े से हाल में कहीं गुम हो गई। वे चारो गुर्गे भी अभी हरकत में आने ही वाले थे की जैकाल बलवन्त चरसी और बेवड़े ने एक साथ यलगार कर दिया। केलकर में पता नहीं कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई थी, की बुशरा के हाथ मे पिस्टल होने के बावजूद वो उससे अभी तक जूझ रहा था। उस पिस्टल से एक गोली चल चुकी थी, लेकिन केलकर उससे उसकी पिस्टल को उसी की और मोड़ने की भरपूर कोशिश कर रहा था। उधर जैकाल बलवन्त चरसी और बेवड़ा एक एक आदमी को अपने लपेटे में ले चुके थे। कमाल की बात ये थी कि चारो के हाथ में पिस्टल थी, उसके बावजूद किसी ने भी उन लोगों से भिड़ने में कोई गुरेज नहीं किया था। ऐसा आलम भी हो सकता है, ये तो ये लोग सोच कर भी नहीं आये थे। पांच पिस्टलधारी और सामने छह निहत्थे लोग!फिर भी उन पर भारी पड़ रहे थे। लेकिन उन चारों में से एक बन्दा बलवन्त पर भारी पड़ रहा था। उसने बलवन्त को अपने काबू में करके उसकी कनपटी पर अपनी पिस्टल लगा दी थी। उधर केलकर भले ही बुशरा से लिपटा हुआ हो, लेकिन बुशरा किसी भी तरह से केलकर से उन्नीस नहीं पड़ रही थी। यही कारण था कि बुशरा की पिस्टल अभी भी उसके हाथ मे ही थी। तभी उस गुर्गे की आवाज गूँजी और सारा माहौल एक पल में ही शांत हो गया।

" सब लोग अपनी औकात में आ जाओ...नहीं तो तुम्हारे इस साथी की खोपड़ी उड़ा दूँगा" वो वही गुर्गा था, जो बलवन्त को अपनी पिस्टल के निशाने पर लेने में कामयाब हो गया था। बलवन्त को फँसा हुआ देखकर सभी के हौसले ही पस्त नहीं हुए वरन उन लोगों की पकड़ भी अपने दुश्मनों पर ढीली पड़ गई। पासा उलट चुका था। अब सभी की कनपटी पर वे लोग पिस्टस्ल सटा चुके थे। बस एक रोहित उन लोगों से दूर खड़ा हुआ थर थर कांप रहा था।

" बहुत पहलवानी दिखा ली तुमने, अब तुम्हारी कब्र इसी स्टूडियो में खोदी जाएगी, और तुम सभी को एक साथ यही दफन किया जाएगा" बुशरा ने उन सभी की ओर देखकर कहर भरे स्वर में कहा।

" ज्यादा बाते मत करो बुशरा!ये लोग बहुत चालाक है, हमे बातों में लगाकर ये फिर कोई चाल सकते है" उन गुर्गों में से एक गुर्गे ने बुशरा की तरफ देखकर अपना मुंह खोला।

" सही कह रहे हो, सभी से बारी बारी से पूछो, जो भी बताने से आनकानी करे, उसे गोली मार कर फिर दूसरे बन्दे से पूछो" बुशरा ने दो टूक आदेश दिया। उनमे से जिस गुर्गे ने बेवड़े के पिस्टल लगाई थी, सबसे पहले वही बेवड़े को धकेलते हुए उन लोगों से अलग ले गया।

" बता, तेरा गुरु सेलिना को कहां ले गया है" उस गुर्गे ने बेवड़े की कनपटी पर पिस्टल की नाल को ऐसे घुमाया मानो वो किसी मशीन के पेंच कस रहा हो।

" भाई गुरु तो बोल रहे थे कि हनीमून मनाने के लिए लोनावाला जायेगे..शायद वही गए होंगे" बेवड़े ने गंभीर स्वर में कहा। अभी वो गुर्गा कुछ बोलने के लिए मुंह खोल ही रहा था कि, तभी चरसी की आवाज वहां गूंज गई।

" साले बेवड़े!हमेशा नशे की ऐसी तैसी क्यों करता है तू, भाई मुझे पता है कि गुरु कहाँ पर है, लेकिन मैं बताऊंगा नही" चरसी ने ऐसा बोलो, मानो वहां उसकी मर्जी पूछी जा रही हो। इधर इन दोनों की बकलोली बढ़ती जा रही थी, उधर बुशरा का पारा चढ़ता जा रहा था।

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पानी का आधा जग सेलिना के चेहरे पर डालने के बाद ही सेलिना की बेहोशी टूटी थी। आँख खुलते ही उसने अपने चारों तरफ अपनी नजरों को घुमा कर देखा। फिर उसकी नजर मस्ती और फरजाना पर पड़ी। फिर उसने खुद की हालत पर गौर किया। उसके हाथों और पांव को बेड के साथ इस प्रकार से बांधा गया था कि उसकी दोनों टांगे और दोनों हाथ उस बेड के चारों कोनों को छू रहे थे।

" तुम क्या सोच रहे हो, मुझे मारकर तुम लोग बच जाओगे" सेलिना उस हालत में भी मुस्करा दी थी। उसकी कुटिल मुस्कान का जवाब मस्ती ने भी अपनी कुटिल मुस्कान से ही दिया।

" हम तो डूबेंगे सनम..तुमको भी ले डूबेंगे..क्या फायदा होगा जानेमन, जिस दौलत को लूटने के लिये तुमने इतने दिन मेहनत की, इतनी चाले चली..उस दौलत का सुख लिए बिना ही इस दुनिया से चली जाओगी...तुम्हे लेकर तो मैंने पता नहीं क्या क्या सपने देख डाले थे...लेकिन तुम तो बहुत बड़ी फरेबी और धोखबाज निकली" आखिरी शब्द बोलते हुए मस्ती की उसके प्रति नफरत और हिक़ारत साफ झलक रही थी।

" तुम क्या सोचते हो कि तुम्हारे कहने भर से मैं ददुआ के साथ गद्दारी कर दूंगी..तुम शायद ददुआ की ताकत से वाकिफ नहीं हो, इस बन्द कमरे में भी तुम लोग कहीं न कही से ददुआ की नजर में होंगे" सेलिना की वो कुटिल मुस्कान अभी तक बनी हुई थी।

" इस वजह से बोल रही थी, की ददुआ की हम पर इस बन्द कमरे में भी नजर होगी" मस्ती ने एक ब्लूटूथ टाइप की एक डिवाइस उसकी आँखों के आगे लहराई। उस डिवाइस को मस्ती के हाथ में देखकर सेलिना के होठो की वो कुटिल मुस्कान काफूर हो चुकी थी। लेकिन मस्ती के होठो की वही मुस्कान और भी गहरी हो चुकी थी।

" ये तुम्हे कहाँ से मिली" सेलिना ने चिंतित स्वर में कहा।

" ये उन्हीं किट बैग में तुमने बड़ी सफाई से छिपाकर हम लोगों को अपनी नजरों में रखने का अच्छा इंतजाम किया हुआ थ, लेकिन बदकिस्मती से मेरी नजर इस पर पड़ गई, क्योकि अपन की पुरानी आदत है कि जब भी कोई चीज़ मुझे फ्री में मिलती है..मैं उस चीज़ का फुर्सत से पोस्टमार्टम करता हूँ..क्योकि दुनिया का दस्तूर है जानू...की कोई भी आदमी तुम्हें कुछ फ्री में देता है तो उसकी दस गुना वसूली का रास्ता उसने पहले से सोचा होता है" मस्ती ने अपनी अक्ल का नायाब नमूना सेलिना के सामने पेश करते हुए बोला।

" अब सेलिना डार्लिंग!अब ये तो पता चल ही गया होगा कि तुम्हे यहां कोई बचा सकता है, तो वो सिर्फ हम लोग ही बचा सकते है, और तुम्हारे बचने की एक ही सूरत है, हमारे साथियों का पता बता दो..और साथ मे उन पांच सौ करोड़ का भी पता बता दो, वरना तुम्हारा अंजाम बहुत बुरा होने वाला है" फरजाना ने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।

" इस बात को तय मानो की ददुआ तुम्हे बचाने यहां नहीं आ सकता है, और अपने चरसी और बेवडे के लिये तेरे जैसी सौ सेलिना को ये मस्ती गोली मार सकता है" इस बार मस्ती ने सेलिना के आगे वही पिस्टल लहराई, जो सेलिना ने ही उन लोगों को दी थी।

" बोलो!मेरे पास इंतजार करने के लिये ज्यादा समय नहीं है, अगर जिंदगी से प्यार है, तो दिखाओ की तुम सच में जिंदगी से प्यार करती हो" मस्ती ने इस बार पिस्टल की नाल को सेलिना के पूरे जिस्म पर घुमाते हुए बोला।

" मुझ से कुछ भी उगलवाने की बात तो तुम भूल ही जाओ, जब चाहो गोली मार सकते हो" सेलिना की भी आंखों में कोई मौत का खौफ नहीं था।

" चल तो फिर!अपने अंतिम सफर की तैयारी कर ले" ये बोलकर मस्ती ने एक साथ दो फायर उस बेड पर झोंक दिये। कोई भी इंसान हो, मौत से नहीं डरने की बात तब तक ही करता है, जब तक मौत के पंजे उसकी गर्दन नहीं दबोच लेते, गर्दन दबोचते ही हर बन्दा मौत से बचने के लिए हाथ पांव मारता है। वही हाल इस वक़्त सेलिना का हुआ था। गोलियां मस्ती ने उस बेड के किनारों पर मारी थी, लेकिन डर के मारे चिल्लाई सेलिना थी।

" बताती हूँ...बताती हूँ..गोली मत चलाओ" सेलिना की सूरत ही इस वक़्त उसका हाल बयान कर रही थी।

" बताओ!फोरन से पेश्तर बताओ, नहीं तो अगली गोली इस बार सीने से पार होगी" मस्ती इस वक्त किसी भी प्रकार का रहम खाने के मूड में नहीं था।

" मुम्बई का एक खाली पड़ा हुआ फ़िल्म स्टूडियो है, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है, हम सभी को वही जाना था, लेकिन तुम्हारी वजह से हम लोग नहीं जा पाये" सेलिना ने आखिरकार अपना मुंह खोल ही दिया था।

" जल्दी हमे वहां लेकर चलो!अगर उन लोगों को कुछ भी हुआ तो तुम्हारे समेत ददुआ की लंका लगा दूँगा" मस्ती ने बोलते हुए ही फरजाना को उसके बंधन खोलने का इशारा किया। मस्ती का इशारा मिलते ही फरजाना अपने काम मे जुट गई थी।

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बैंक में इस वक़्त वहां के लोकल पुलिस स्टेशन का पूरा महकमा पहुंच चुका था। फरजाना का अंदेशा बिल्कुल सच निकला था कि सुबह की ड्यूटी का गार्ड पहुंचते ही उस बैंक में रात को क्या कांड हुआ है, उसे खुलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। लोकल पुलिस स्टेशन से जिस पुलिस इंस्पेक्टर को जांच सौंपी थी उसका नाम समीर जावड़ेकर था।

" ये तो बिल्कुल इन लोगों ने वही तरीका इस्तेमाल किया है, जो सर्राफा बाजार में उस सुनार की दुकान में सेंधमारी के लिए चोरों ने इस्तेमाल किया था" इंस्पेक्टर जावड़ेकर ने अपने मातहत सुनील म्हात्रे की ओर देखकर बोला।

" तरीका तो वही है सर!बस अब देखना ये है कि ये लोग क्या पकड़े भी उसी तरीके से जा पाएंगे" म्हात्रे ने जावड़ेकर की तरफ देखते हुए बोला।

" इतने दिनों से यहां सुरंग बनाने का काम चल रहा था, किसी को भनक तक नहीं लगी" जावड़ेकर कुछ सोचते हुए बोला।

" ये तो सर!अब जब आसपास पता करेगे तभी पता चलेगा कि किसी को खबर थी या नही..हो सकता है कि सुंरँग रात में ही खोदी गई हो, इसलिए लोगों की तवज्जो न गई हो" म्हात्रे ने फिर से जावड़ेकर की बात का जवाब दिया।

" पहले फोरेंसिक वालों को बुलाओ, इस वॉल्ट पर से और इस जगह से जितने भी फिंगर प्रिंट मिलते है, उन सभी को कलेक्ट करवाओ, मैं मैनेजर से बात करके पता करता हूँ कि कुल कितनी रकम लूटी गई है" ये बोलकर जावड़ेकर उस तरफ बढ़ गया, जहां बैंक के कर्मचारियों को रोककर रखा गया था। मैनेजर कोई पैंतालीस साला बन्दा था, जो कि इस वक़्त ऐसा लगता था कि बैंक में डकैती की खबर सुनते ही नंगे पैर दौड़ा चला आया हो। जावेडकर के वहां पहुंचते ही मैनेजर दौड़ता हुआ उनके पास आया।

" कुछ पता चला इन्स्पेक्टर साहब" मैनेजर ने परेशान चेहरे और उम्मीद भरी नजरों के साथ जावड़ेकर की तरफ देखा।

" अभी तो इन्वेस्टिगेशन सही से शुरू भी नहीं हुई है, अभी से कहां से पता चल जाएगा...इस बैंक की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी थी...आपने किसको ये जिम्मेदारी सौंपी हुई थी" जावेडकर ने सबसे पहला सवाल किया।

" रोहित मंचनदा...इंस्पेक्टर साहब बड़ा ही काबिल लड़का है" मैनेजर ने बेबाकी से रोहित के बारे में अपनी राय दी।

" खबर तो उन्हें भी लग गई होगी कि बैंक में डकैती पड़ी है, अभी तक बैंक नहीं पहुंचे वो साहब" जावेडकर ने मैनेजर को लगभग घूरते हुए बोला।

" रोहित का मोबाइल अभी बन्द जा रहा है, मैंने एक आदमी को भेजा है , उसके घर पर, अभी आता ही होगा" मैनेजर खुद परेशान था कि रोहित फोन बंद करके कहाँ गायब हो गया था।

" बैंक के सीसीटीवी का कंट्रोल रूम दिखाइये" जावेडकर ने बोला तो मैनेजर इनकार में सिर हिलाने लगा।

" उस रूम की चाबी रोहित के पास ही होती है, उसके आने के बाद ही उस रूम में कोई जा पाएगा" मैनेजर साहब आशंकित स्वर में बोले।

" चलिये!तब तक स्ट्रांग रूम में चलिये, कुल कितनी रकम थी वॉल्ट में" इंस्पेक्टर ने चलते हुए पूछा।

" जी!हमारी सभी ब्रांचों का पैसा था, कल इस वीक का लास्ट वर्किग डे था, तो सभी ब्रांचों का पैसा यहाँ आया हुआ था..कोई छह सौ करोड़ से भी ऊपर ही होगा..बिल्कुल सही रकम तो मैं अपना कंप्यूटर देखकर ही बता पाऊँगा" मैनेजर साहब की बात सुनते ही इन्स्पेक्टर जावड़ेकर के मुंह से सिटी निकल गई थी।

" मतलब चोरों ने दिन बहुत अच्छा चुना था, उन्हें मालूम था कि शुक्रवार को सभी ब्रांचों का पैसा इक्कठा होता है, इसलिए और दिनों के मुकाबले ज्यादा पैसा मिलने की संभावना थी..इसका मतलब समझते हो आप मैनेजर साहब" जावड़ेकर ने मैनेजर की तरफ फिर से घूरकर देखते हुए बोला तो मैनेजर साहब सकपका कर उनकी तरफ देखने लगे।

" क्या सर" मैनेजर के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला था।

" इसका मतलब है कि आपके ब्रांच का ही कोई आदमी इस डकैती में शामिल है...आप सभी लोग इस वक़्त हमारे शक के दायरे में आ गए हो" जावड़ेकर ने स्पष्ट शब्दो मे मैनेजर को समझाया।

" सर!रोहित साहब के घर पर तो ताला लगा हुआ है, उनके किसी पड़ोसी को भी उनके बारे में कोई खबर नहीं है" तभी एक आदमी ने मैनेजर को बोला।

" उसका फ़ोन नंबर दीजिये, और उस कंट्रोल रूम को खुलवाने का इंतजाम कीजिये" जावड़ेकर अब बोलते हुए वॉल्ट का निरीक्षण अपनी तीक्ष्ण निगाहों से कर रहा था। तभी सुनील म्हात्रे भी उसके पास आकर खड़ा हो गया।

" सर!फोरेंसिक टीम अभी कुछ देर में पहुंच जाएगी" म्हात्रे ने जावड़ेकर को बताया। जावड़ेकर ने बिना उसकी तरफ देखे ही अपने सिर को सहमति में हिलाया, उसकी निगाहें वॉल्ट में ही कुछ ढूंढने में लगी हुई थी।

" म्हात्रे जरा अपने रुमाल से उठाना इस चीज़ को" जावड़ेकर बोलते हुए अब बैठकर वॉल्ट में झांकने लगा था।

" साहेब!ये तो कोई लेडीज ब्रेसलेट है" म्हात्रे ने अपने रुमाल से उस ब्रेसलैट को उठाते हुए बोला।

" लगता है इतना बड़ा खजाना मिलने की खुशी में उन लोगों को कुछ ध्यान ही नहीं रहा होगा, अपनी निग़ाहों की रोशनी को जरा तेज रखना, ऐसी बहुत सी गलतियां सुराग के रुप में यहां बिखरी होगी, इस ब्रेसलेट से एक बात तो साफ हो गई की इस डकैती में कोई लड़की भी शामिल है" जावड़ेकर का दिमाग इस वक़्त चाचा चौधरी से भी तेज चल रहा था।

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तभी बुशरा अपनी जगह से आगे बढ़ी और एक जोर का झापड़ उसने चरसी के थोबड़े पर जमा दिया। झापड़ पड़ते ही चरसी की आंखों में खून उतर आया था। उसने उन्ही खूनी नजरो से बुशरा की आंखों में झांका।

" गलती से मुझे जिंदा मत छोड़ देना, नहीं तो तुझे अपने जिंदा रहने पर अफसोस होगा" चरसी का स्वर इतना ठंडा था कि बुशरा को भी उसे सुनकर कंपकंपी छूट गई थी।

" जिंदा तो तुम में से कोई भी नहीं रहेगा, बस पल दो पल के मेहमान हो तुम" बुशरा ने सम्हलते हुए जवाब दिया।

" अरे यार क्यों टाइम पास कर रहा है, अगर गुरू का पता मालूम हो तो बता दे..जाने दे इनको गुरु के पास....अपना गुरु खुद इनसे निबट लेगा..क्यों अपनी जान को फोकट में गवाने का" तभी बेवड़ा उन दोनों के बीच में बोला।

" शकुनि, मार साले को गोली, जब तक इन लोगों मे से एक दो लोगों की आवाज खामोश नहीं होगी तब तक ये ऐसे ही बकलोली करेगे" बुशरा ने अपने साथ खड़े एक थुलथुल से बन्दे को बोला।

" मैं तो तेरे हाथों से ही मरना चाहता हूँ हसीना, तेरे हाथों से मिली मौत भी कितनी हँसी होगी" चरसी को पता नहीं सूझी की उसने बुशरा का पिस्टल वाला हाथ पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया। बुशरा अभी चरसी की इस हरकत को हतप्रभ सा देख ही रही थी की तभी खेल हो गया। चरसी ने एक झटका देकर बुशरा को पूरे तीन सौ साठ डिग्री के कोण पर घुमा दिया। बुशरा के घुमते ही उसकी गर्दन चरसी के हाथ में आ गई और उसका पिस्टल वाला हाथ तो उसने पहले से ही पकड़ा हुआ था। तभी चरसी ने बुशरा के हाथ को एक झटका और दिया, और पलक झपकते ही बुशरा का पिस्टल चरसी के हाथ में नजर आने लगा। चरसी ने पिस्टल हाथ में आते ही बकलोली करना बंद किया और एक जोर का झटका उसने उसे उसके साथ खड़े शकुनि नाम के उसके साथी पर दिया। लेकिन शकुनि असमंजस में फँसा हुआ अपनी पिस्टल का ट्रिगर दबा चुका था। उसका ट्रिगर दबते ही बाकी का काम पिस्टल की नली ने कर दिया। उस नली से एक शोला दहका और बुशरा के पेट में समाता चला गया। तभी चरसी का पिस्टल भी गरजा और शकुनि को ढेर करता हुआ चला गया। दो लोगों के खेत होते ही जैकाल और बलवन्त भी हरकत में आ चुके थे। तभी एक के बाद एक तीन गोलियां और उस हाल में गूँजी और बुशरा के बाकी बचे हुए तीनों साथी भी यमलोक की यात्रा के लिये रवाना हो गए।

" यहां से बाहर निकलो जल्दी से..हो सकता है अभी बाहर और भी आदमी हो...उस पांच सौ करोड़ की गाड़ी को भी ढूंढना है" चरसी ये बोलकर सीढियो की और लपका। बाकी लोगों ने वहां से भागने से पहले उन गुर्गो की पिस्टल पर अपना कब्जा किया और चरसी के पीछे दौड़ लगा दी।

" हमारे साथ शीबा भी तो थी..वो नजर नहीं आ रही है" जैकाल ने सीढ़ियों के ऊपर दौड़ते हुए कहा।

" वो लगता है...हमारी लड़ाई का फायदा उठाकर चुपचाप पतली गली से निकल गई है" बेवड़े ने सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जवाब दिया। लेकिन अभी वे लोग आखिरी सीढ़ी पर पहुंचे ही थे कि सीढ़ियों की तरफ दौड़ते हुए कदमों की आवाज से वे लोग वही ठिठक गए।

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बैंक में फोरेंसिक टीम पहुंच चुकी थी और इस वक़्त पूरे स्ट्रांग रूम को अपने घेरे में लेकर वहां से फिंगर प्रिंट उठाने के काम मे जुटे हुए थे। उस केमिकल की बोतल को भी वे लोग अपने कब्जे में ले चुके थे, जिससे उस वॉल्ट को गलाया गया था। जावेडकर और म्हात्रे इस वक़्त मैनेजर के साथ और बैंक के एक कर्मचारी के साथ सीसीटीवी के कंट्रोल रूम में कैमरों की फुटेज को खंगाल रहे थे।

" सर!स्ट्रांग रूम के तो दोनों कैमरे बन्द किये हुए है, उनकी तो वायरिंग ही कटी पड़ी है" एक ऑपरेटर ने जावड़ेकर की तरफ देखकर बोला।

" मुझे यही उम्मीद थी, मैनेजर साहब इस रोहित मनचन्दा की पूरी जन्मकुंडली मुझें चाहिये, ये डकैती इसी बन्दे की मिली भगत से हुई है" इंस्पेक्टर जावड़ेकर ने मैनेजर साहब को बोला।

" अब तो मुझे भी लग रहा है..इस डकैती में रोहित का ही हाथ है" मैनेजर साहब भी अब जावड़ेकर से सहमत नजर आ रहे थे।

" साहब!उस आदमी के ऊपर बहुत कर्जा था, डकैती या धोखाधड़ी तो उसे करनी ही थी एक न एक दिन" इस बार दूसरा ऑपरेटर बोला था।

" जब तुम इतना जानते हो तो ये भी जानते होंगे कि उस पर कर्जा कैसे हुआ था" जावड़ेकर ने उम्मीद भरी नजरो से देखते हुए बोला।

" साहब!वो पिछले कुछ महीनों से कुछ गलत लोगों के चक्कर में पड़ गया था, रेसकोर्स में जाकर घोड़ों की रेस पर सट्टा लगाता था, उसी सट्टे की वजह से उस पर करीब एक करोड़ रु का कर्जा था साहब...वो कभी दारू पीकर सब बोलता था साहब, इसी वजह से उसकी बीवी भी उसे छोड़कर कर चली गई" वो बन्दा रोहित मंचनदा की सारी हकीकत जानता था। उस बन्दे की बातों ने जावड़ेकर की आंखों में एक नई चमक ला दी थी। उसे ये केस अब सुलझाने में कुछ ही समय का खेल लग रहा था। अगर मुम्बई के इतिहास की इतनी बड़ी डकैती को वो इतनी जल्दी सुलझाने में कामयाब हो गया तो, उसकी वर्दी पर और कितने सितारे लग जायेंगे, ये सोचकर ही उसके चेहरे की चमक में इजाफा हो गया था। उसका अगला कदम अब रोहित मंचनदा के फ्लैट की तलाशी लेने का था और इसके साथ ही उसके सट्टा बाजार के उन कर्जदारों को भी ढूंढना था, जिनका रोहित एक करोड़ का देनदार था। ये सब सोचते हुए ही उसकी नजर एक बार फिर से टीवी की स्क्रीन पर जम चुकी थी।

इंस्पेक्टर जावड़ेकर के सामने इस वक़्त वो गार्ड बैठा हुआ था, जिसने सबसे पहले रात वाले गार्ड की गायब होने की सूचना, पहले तो सिक्युरिटी इंचार्ज रोहित मंचनदा को देने की कोशिश की थी, लेकिन जब उसका फोन लगातार बन्द आता रहा तो, उसने बैंक मैनेजर को इस असामान्य घटना की जानकारी दी थी। मैनेजर साहब को छुट्टी के दिन भी न चाहते हुए भी बैंक में दौड़कर आना पड़ा था।

" जो गार्ड रात की ड्यूटी पर था, उसे जानते हो तुम" जावड़ेकर ने उस दलपत नाम के गार्ड से पहला सवाल किया।

" नहीं साहब!कल रात को जब हम उसे रात का चार्ज देने के लिए उसे मिले थे तो पहली बार ही उसे देखा था...रोहित साहब ने ही उन्हें मुझ से मिलवया था" दलपत ने जावड़ेकर की बात का जवाब दिया।

" तुम्हे कुछ इस बात में अजीब नहीं लगा था कि अचानक से एक नया आदमी वो भी बैंक जैसी महत्वपूर्ण जगह पर कैसे ड्यूटी देने आ गया" जावड़ेकर ने फिर से पूछा।

" साहब अजीब तो लगा था, लेकिन जब खुद रोहित साहब ही उसे लेकर आये थे, तो हमारा तो कुछ सोचना बनता ही नहीं था" दलपत ने अपनी समझ से सही बोला था।

" फिर आज जब वो आदमी सुबह तुम्हे ड्यूटी पर नहीं मिला तो, तुम्हारे मन मे क्या ख्याल आया" जावड़ेकर पता नहीं दलपत से क्या जानना चाह रहा था।

" पहले तो मैंने सोचा कि हो सकता है कि वाशरूम वगेरह में गया हो, मैंने दस पंद्रह मिनट तक उसके आने का इंतजार किया, जब वो नहीं आया तो मैंने उसे इधर उधर ढूंढा भी, लेकिन जब वो कहीं दिखाई नहीं दिया तो, सबसे पहले रोहित साहब को फोन मिलाया, लेकिन उनका फोन लगातार बंद ही आ रहा था, तब हम मैनेजर साहब को फोन मिलाए" दलपत हर बात का जवाब विस्तार से दे रहा था।

" मैनेजर साहब, बाहर से आने पर तो अंदर आकर एक बार भी नहीं लगता है कि यहां पर इतनी बड़ी रॉबरी की घटना हुई है, फिर आपको कैसे लगा कि यहां पर ऐसा कुछ हुआ है" जावड़ेकर हर बात की गहराई में जा रहा था।

" गार्ड का गायब होना और रोहित का फोन नहीं मिलने से मेरे मन में ऐसी आशंका आई थी, की बैंक में कोई गड़बड़ तो नहीं हुई है, तभी मैंने स्ट्रांग रूम का दरवाजा खुलवाया था, और मेरी आशंका सही साबित हुई" मैनेजर साहब ने बोला।

" एक बात समझ नहीं आई, जब बैंक के गेट पर गार्ड उनका था, और वे लोग आसानी से बैंक में प्रवेश कर सकते थे, तो उन्होंने ये सुरंग खोदने जैसा दुरूह काम क्यो किया" जावड़ेकर जैसे खुद से ही बड़बड़ाया हो।

" बैंक में गेट से लेकर अंदर चप्पे चप्पे पर कैमरे लगे हुए है, हो सकता है कि किसी की नजरों में आने से बचने के लिये सुरंग बनाई हो" मैनेजर ने अपनी अक्ल लड़ाई।

" लेकिन जब वे लोग स्ट्रांग रूम के कैमरे बन्द कर सकते थे, तो पूरे बैंक के कैमरे बन्द करने में उनको क्या परेशानी आती" जावड़ेकर सही दिशा में सोच रहा था। मैनेजर साहब भी अब सिर्फ जावड़ेकर का मुंह ताक रहा था। तभी गेट से सुनील म्हात्रे के साथ एक अधेड़ आदमी आता हुआ नजर आया।

" साहब ये उस बिल्डिंग का मालिक है, जिसकी दुकान से बैंक तक सुरंग बनाई गई थी" म्हात्रे ने उस अधेड़ आदमी की तरफ इशारा करते हुए बताया।

" नाम क्या है तुम्हारा" जावड़ेकर साहब ने पुलिसिया टोन में पूछा।

" अरे साईं!नाम तो बाबूराव सिधवानी है, तुम काम बोलो नी, हमे किस वास्ते बुलाया" बाबूराव कोई सिंधी था।

" अभी तुम्हें पता नहीं होगा, क्योंकि अभी ये खबर न्यूज़ चैनल पर नहीं आई है, इस बैंक में कल रात को डकैती पड़ी है..और तुम्हारी बिल्डिंग में बनी हुई दुकान से ही बैंक के नीचे तक डकैतों ने सुरंग बनाई है..अब हमें तुमसे ये जानना है कि ये दुकान तुमने किसको दी थी" जावड़ेकर की बात सुनते ही बाबूराव सिन्धवानी के चेहरे से उसकी गंभीरता झलकने लगी थी।

" ये दुकान तो मैंने छह महीने पहले ही बेच दी थी" बाबूराव ने जवाब दिया।

" जिसको बेची थी, उसे जानते तो होंगे, उनका कोई नाम पता तो तुम्हारे पास होगा" जावड़ेकर ने फिर से पूछा।

" जी साहेब!जिस आदमी के नाम से ये दुकान के कागज हुए थे, उसका पूरा डिटेल मिल जाएगा, वो मेरे पास है" बाबूराव सिन्धवानी ने कुछ सोचते हुए बोला।

" म्हात्रे इनके साथ जाकर उस आदमी की पूरी डिटेल लेकर आओ, ये मामला जैसा दिख रहा है, वैसा है नही, किसी ने पर्दे के पीछे रहकर कोई बहुत बडी गेम खेली है" जावड़ेकर ने कुछ सोचते हुए बोला।

" मैं समझा नहीं सर" म्हात्रे ने अपने सिर को खुजाते हुए बोला।

" तुम ये डिटेल लेकर पुलिस स्टेशन आओ, मैं वहां पूरी बात समझाता हूँ" ये बोलकर जावड़ेकर बैंक से बाहर की ओर चल दिया।

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गाड़ी की पिछली सीट पर फरजाना की पिस्टल इस वक़्त सेलिना की पसलियों में लगी हुई थी, गाड़ी को मस्ती चला रहा था। सेलिना खामोशी से बैठी हुई थी। उसने स्टूडियो के बारे में पुरी जानकरी मस्ती को बता दी थी। मस्ती इस वक़्त पूरी रफ्तार से गाड़ी को स्टूडियो की तरफ़ दौडा रहा था। स्टूडियो के गेट पर पहुंचते ही सेलिना ने अपना सिर बाहर निकाल कर गेट पर खड़े गार्ड को कुछ इशारा किया और इशारा मिलते ही वो गार्ड गेट को खोलने लगा। गेट खुलते मस्ती ने बिना किसी की तरफ देखे ही गाड़ी को अंदर की तरफ दौडा दिया।

" अब यहां से किधर जाना है" मस्ती ने गाड़ी चलाते हुए पूछा।

" सीधा चलते रहो, एक किलोमीटर के बाद एक खाली मैदान आएगा, उसमें ही एक शेल्टर बना हुआ है, वही जाना है" सेलिना की सारी अकड़ अब तक ढीली हो चुकी थी।

" इस स्टूडियो पर भी ददुआ का ही कब्ज़ा है क्या" फरजाना ने सेलिना से पूछा।

" नहीं ये एक डिस्प्यूटेड लैंड है, छह भाइयों के बीच में बंटवारे को लेकर झगड़ा है, उनमे से एक भाई ने ददुआ की सेवा ली हुई है, बाकी भाइयों को सेटल करने के लिए, मुम्बई में इससे मुफीद ठिकाना कोई नहीं था, इसलिए डकैती के बाद सभी को यहां आना था" सेलिना ने बताया।

" ददुआ यही मिलेगा, या उसका ठिकाना कोई और है" मस्ती ने पूछा।

" कभी बचपन में फैंटम की कहानियां पढ़ी है" सेलिना ने पहेली सी बुझाई।

" हम लोग इस देश के उस वर्ग से आते है, जिनका कोई बचपन नहीं होता" मस्ती ने खिन्न स्वर में बोला।

" फैंटम को लोग एक चलता फिरता प्रेत बोला जाता था, जिसे कभी किसी ने नहीं देखा होता था, लेकिन वो अजर अमर था, उसे कोई देख नहीं सकता था, लेकिन वो हर जगह पाया जाता था, समझ लो ददुआ भी फैंटम का ही दूसरा रूप है" सेलिना ने बोला जरूर लेकिन मस्ती और फरजाना में से किसी को भी फैंटम की ये कहानी समझ में नहीं आई थी। अभी सेलिना की बात खत्म ही हुई थी कि वहां गोलियों के धमाकों से वो इलाका गूंज उठा। गोलियो की आवाज सुनते ही मस्ती और फरजाना, दोनों के ही चेहरे पर तनाव की लकीरें खींच आई। मस्ती ने गाड़ी की गति को और तेज किया और गाड़ी को उसी दिशा में दौड़ा दिया। जिस दिशा से गोलियो की आवाज आई थी।

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सीढ़ियों पर एकाएक सभी के कदम थम चुके थे। बाहर से आती हुई दौड़ते हुए कदमों की आवाज पल पल उनके करीब आती जा रही थी। इस वक़्त हालात ऐसे थे कि अगर सीढ़ियों का दरवाजा एकदम से खुलता है, और अगर ददुआ के आदमी हुए तो वे लोग आसानी से गोलियो के शिकार हो सकते थे। जैकाल ने एक सीढ़ी नीचे अपना एक कदम रखा और एक कदम ऊपर की सीढ़ी पर रखकर पिस्टल को सीढ़ियों की ओर साध कर बैठ गया। जैकाल जैसी ही पोजीशन सभी लोगों ने ले ली। तभी सीढ़ियों का दरवाजा फटाक से खुला। सीढ़ियों पर मस्ती अपने हाथ में पिस्टल लेकर खड़ा था, और फरजाना ने सेलिना की गर्दन पर अपनी पिस्टल लगाई हुई थी। मस्ती पर नजर पड़ते ही सभी के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई। सेलिना की हालत देखकर सभी की खुशी दोगुनी हो चुकी थी।

" गुरु!मैं जानता था कि इस बंदरिया के बस की तुम्हे काबू में करना नहीं है" चरसी खुशी से दौड़ता हुआ मस्ती के करीब पहुँच कर उसके गले से लग गया।

" अभी मैंने यहाँ से आती हुई गोलियो की आवाज सुनी थी, सब ठीक तो है" मस्ती ने जैकाल की तरफ देखकर बोला।

" गुरु!दुश्मन के पांच लोगों को ढेर कर दिया है, अब बाकी लोगों का शिकार करने बाहर जा रहे है" तब तक बेवड़ा भी मस्ती के पास पहुंच चुका था।

" अपने बाकी साथियों का पता ये बताएगी...इसे इसीलिए अभी तक अपने साथ ढो रहे है, नहीं तो अभी तक इस छिनाल को कब का गोली मार देती" इस बार फरजाना सेलिना की ओर कहर बरसाती नजरों से देखते हुए बोली।

" गुरु इसकी दूसरी साथी शीबा भी गायब है..वो हमारे साथ ही आई थी, लेकिन पता नहीं कब देखते ही देखते गायब हो गई" अब तो जैकाल भी मस्ती को गुरु बोलने लगा था।

" चल अब बता बाकी लोग कहां है, और बैंक से लूटी हुआ रकम कहाँ पर है" मस्ती अब सेलिना से मुखातिब हो चुका था।

" रकम तो अब तक ददुआ के पास पहुंच चुकी होगी, रकम तुम लोगों को अब नहीं मिल सकती" सेलिना ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा। सेलिना ने अभी इतना बोला ही था कि फरजाना ने एक जोर का झापड़ उसके गोरे गाल पर जड़ दिया। एक थप्पड़ में ही सेलिना के चेहरे का रंग गोरे से बदल कर लाल हो गया था।

" यहां पर सिर्फ तुम लोगों को एक साथ मारने के लिए लाया गया था, ये कोई ददुआ का अड्डा नहीं है, अगर मैं तुम लोगों के कब्जे में नहीं होती तो अब तक तुम सब लोगों की यहां लाशें पड़ी हुई होती" सेलिना ने अपने प्लान का खुलासा किया।

" मतलब पहले दिन से ही तुम्हारा प्लान हम लोगों का काम हो जाने के बाद मार डालने का था" जैकाल ने क्षोभ भरे स्वर में कहा।

" हाँ!क्योंकि ददुआ काम होने के बाद कोई सबूत नहीं छोड़ता है" सेलिना अब किसी तोते की तरह से बोल रही थी।

" तेरा ददुआ एक बार मिल जाए बस, अगर उसके खून के साथ उससे फगवा नहीं खेला तो अपुन का नाम बेवड़ा नही" बेवड़े ने सेलिना की कमर में अपना एक हाथ डाला और उसे एक जोर का झटका देकर अपने से चिपका लिया। सेलिना ने खा जाने वाली नजरों से उसे घूरा, लेकिन इस वक़्त घूरने के अलावा कुछ कर नहीं सकती थी, कोई और मौका होता तो अब तक वो बेवड़े को गोली मार चुकी होती।

" मेरे ख्याल से इस स्टूडियो में ऐसी खंडहर जगह और भी होगी, हमें उन जगहों की भी तलाशी लेनी चाहिए, क्या पता हमें यही से ददुआ तक पहुँचने का कोई रास्ता मिल जाये" जैकाल ने कुछ सोचते हुए बोला।

" जैकाल सही बोल रहा है, इससे महफूज जगह मुम्बई में तो कोई दूसरी जगह होगी नहीं" इस बार केलकर ने अपना मुंह खोला।

" चलो फिर यहाँ बातो में समय गवाने के बजाय हम लोगों को अपना तलाशी अभियान शुरू कर देना चाहिए" फरजाना ने मस्ती की ओर देखकर बोला।

" यहां पर तलाशी में तुम सिर्फ अपना वक़्त बर्बाद करोगे, यहां तुम्हे कोई नहीं मिलने वाला यहाँ पर कुल दस गनर की ड्यूटी लगी थी, पांच लोग उस रकम के साथ उसी गाड़ी में चले गए होंगे, बाकी पांच लोगों को मेरे यहाँ पहुँचने का इंतजार करना था, मेरे पहुंचते ही तुम सभी लोगों को गोली मारने का आदेश था, उसके बाद ददुआ ही यहां पुलिस भेजता और तुम लोगों की लाशो के साथ ही ये बैंक डकैती का केस भी बन्द हो जाता" सेलिना ने अब पूरा प्लान बताने में कोई कोताही नहीं की।

" फिर तुम तो जानती होगी कि, उस गाड़ी को उस पैसे को लेकर कहाँ जाना था" मस्ती ने सेलिना को बोला।

" नहीं ये मुझे नहीं मालूम...मेरा काम तुम लोगों को गोली मारते ही खत्म हो जाता" सेलिना ने निर्विकार भाव से बोला।

" हमे मारने के बाद तुम कहाँ जाती, तुम्हे भी तो उस रकम में से हिस्सा मिलना होगा" इस बार बलवन्त ने सेलिना से पूछा।

" मैं आज ही मुम्बई से निकल जाती, मैं हिंदुस्तान या विदेश के जिस भी कोने में होती, मेरा हिस्सा अपने आप पहुंच जाता" सेलिना ने बताया।

" मतलब !इतनी मेहनत के बाद नतीजा ठन ठन गोपाल, जब हमें ही कुछ नहीं मिला, और पुलिस से मुर्दा नहीं तो जिंदा ही सही, ददुआ हमें पकड़वा ही देगा, और एक बार हम लोग पुलिस की गिरफ्त में आ गए तो उन्हें हमसे उगलवाने में कितनी देर लगेगी, की ये डकैती हमने ही डाली थी, जब हमारा ऐसा अंजाम निश्चित है तो, तुम्हारा अंजाम तो हमसे भी बुरा होना चाहिए" फरजाना ने ये बोलकर सेलिना के पांव की तरफ निशाना साधा और गोली चला दी, गोली चलते ही सेलिना कि एक चीख़ वहाँ गूँजी, लेकिन वो चीख़ इतनी तेज नहीं थी कि वहाँ से एक किलोमीटर दूर खड़े गेट के गार्ड सुन पाते। सेलिना की चीख सिर्फ नक्कारखाने में तूती की तरह से गूंज कर रह गई। फरजाना ने इस बार दूसरे पाँव की ओर निशाना साधा ही था कि, सेलिना मिमिया पड़ी थी।

" मुझे मत मारो...मैं तुम लोगों को लेकर चलती हूँ वहां" सेलिना अब तक अपने पाँव को पकड़ कर धरती पर बैठ चुकी थी।

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" साहेब!उस बिल्डिंग के मालिक ने जो नाम पता उस खरीदने वाले बन्दे का दिया है, वो तो धारावी की झुग्गी का पता है, मुझे लगता है कि इस दुकान के कागजात फर्जी तरीके से करवाये गए है, एक झुग्गी में रहने वाला इंसान मुम्बई के फोर्ट एरिया में इतनी महंगी दुकान कैसे खरीद सकता है" म्हात्रे ने अपने अंदाजें से जावड़ेकर को अवगत करवाया।

" जिसके नाम से दुकान के कागजात है, उसे उठाकर तो लाओ, समझे तो सही की ये गौरखधंधा क्या है..उस गार्ड को भी अभी तलाश करना है...जिसकी कल रात को वहां ड्यूटी थी" जावड़ेकर ने म्हात्रे को बोला।

" बैंक के सारा स्टाफ कल बुलाया है, उन सभी लोगों के फिंगर प्रिंट भी कल लेने है साहब" म्हात्रे ने जावड़ेकर को बोला।

" हाँ!वो भी सबसे जरूरी काम है..मैं अभी रेसकोर्स जा रहा हूँ..शायद इस रोहित की कोई खोज ख़बर वहां से मिल जाये"

जावड़ेकर के जिम्मे भी काफी सारे काम थे।

" साहब मैंने मुंडे की ड्यूटी लगाई है, उस बैंक की वैन के बारे में पता लगाने के लिए जो गाड़ी हमे सीसीटीवी में नजर आई थी" म्हात्रे ने बोला।

" बढ़िया काम कर रहे हो म्हात्रे..इस डकैती के मुजरिमो को हमे जल्द से जल्द पकड़ना है" जावड़ेकर ने म्हात्रे की हौसला अफजाई की।

" ठीक है साहब...आप रेसकोर्स के लिए निकलिए, मैं धारावी में इस बन्दे की तलाश करता हूँ" म्हात्रे ने जावड़ेकर को बोला।

" मेरी एक बात समझ नहीं आ रही है म्हात्रे...सुरंग खोदकर डकैती डालने वाले लोगों ने बाकी काम इतने लचर तरीके से क्यो किये" जावड़ेकर जब से इस केस की जाँच से जुड़ा था, एक ख्याल उसे बार बार कचोट रहा था।

" कैसा लचर काम सर" म्हात्रे ने असमंजस से पूछा।

" बैंक का सेक्युरिटी इंचार्ज जिस खुले तरीके से इस डकैती में शामिल हुआ ऐसा अमूमन होता नहीं है, सिर्फ स्ट्रांग रूम के कैमरे बन्द किये गए..अगर वो चाहते तो पूरे बैंक के कैमरे खराब करके उनकी डीपीआर तक गायब कर सकते है..अजीब बात नहीं है कि इन्वेस्टिगेशन के महज दस मिनट में हम डकैतों के दो साथियों के बारे में जान चुके है" जावड़ेकर ने म्हात्रे की तरफ देखते हुए बोला।

" हाँ सर!बात तो अजीब ही है, जो लोग सुरंग खोदने की सोच सकते है, वे लोग ऐसी छोटी छोटी गलतियां क्यो करेंगे" म्हात्रे भी जावड़ेकर की सोच के करीब पहुंच चुका था।

" मुझे लगता है कि इस डकैती में कुछ लोगों को मोहरा बना कर डकैती डलवाई गई है, और अब या तो उन लोगों के सिर पर मौत मंडरा रही हैं या फिर उन लोगों की कोई सूचना हमे बैठे बिठाए मिलेगी" जावड़ेकर आखिरी शब्द बोलते हुए मुस्करा उठा था।

" हो सकता है की किसी बन्दे ने लोगों को चारे की तरह से इस्तेमाल किया हो..और अब उन लोगों को बलि का बकरा बनाकर खुद पुलिस की पकड़ से दूर रहना चाहता हो" म्हात्रे ने बोला तो जावड़ेकर की मुस्कान और गहरी हो गई थी।

" ऐसी स्थिति में मुझें नहीं लगता की वे लोग जिंदा हमको मिलेंगे, अगर मिली तो हमे उन लोगों की लाशे ही मिलेगी" जावड़ेकर ने सौ प्रतिशत सही आकलन किया था।

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जैकाल ने सेलिना को गोद मे उठाया उसे गाड़ी की पिछ्ली सीट पर बिठा दिया। मस्ती ने एक नजर गाड़ी में डाली और एक नजर बाहर खड़े लोगों पर डाली।

" इस गाड़ी में तो अब ड्राइवर को मिलाकर चार लोग ही आ सकते है..बाकी बन्दे कैसे साथ जायेगे" मस्ती ने परेशानी भरें स्वर में बोला।

" गुरु तुम हो तो मुम्बई की सारी गाड़िया अपनी है" चरसी की बात सुनकर मस्ती के होठो पर मुस्कान खिल उठी।

" चलो फिर!बाहर निकलो और देखो की कौन सी गाड़ी बिना माई बाप के खड़ी है" मस्ती ने गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला। गाड़ी में फरजाना फिर से सेलिना की पसलियों में पिस्टल सटा कर बैठ गई थी। फरजाना के साथ बलवन्त बैठ गया था। जैकाल मस्ती के साथ अगली सीट पर विराजमान हो गया था। चरसी, बेवड़ा, केलकर और रोहित पैदल ही बाहर की ओर चल पड़े थे।

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मस्ती के पुराने हाथ के हुनर के कारण उन चारों को भी एक गाड़ी नसीब हो चुकी थी। इस वक़्त आगे मस्ती की गाड़ी दौड़ रही थी, और पीछे वाली गाड़ी को केलकर ड्राइव कर रहा था। गाड़ियाँ इस वक़्त अलीबाग जाने वाले हाईवे पर दौड़ रही थी। सेलिना के बताए अनुसार उन लोगों को अलीबाग में स्थित कोलाबा फोर्ट के पास जाना था। उस फोर्ट के पास ही एक सदियों पुराना खंडहर था, जो उन लोगों की मंजिल थी। मुम्बई से लगभग सौ किलोमीटर दूर अलीबाग पहुंचने में तकरीबन तीन घँटे लगने वाले थे। सेलिना के पैर में जो गोली लगी थी वो पांव में सुराख करती हुई बाहर निकल गई थी। उस घाव पर इस वक़्त जैकाल का रूमाल बन्धा हुआ था। ..लेकिन खून निकलना बन्द नहीं हो रहा था। लगातार खून निकलना ही उन लोगों के लिये अब चिंता का सबब बना हुआ था। सेलिना इस वक़्त अर्ध बेहोशी की हालत में लेटी हुई थी। सभी यही कामना कर रहे थे कि अलीबाग तक किसी तरीके से सेलिना सही सलामत पहुंच जाए, यही वजह थी कि हाईवे पर मस्ती की गाड़ी की गति सौ कि रफ्तार से भाग रही थी।

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जावड़ेकर इस वक़्त सादी वर्दी में रेसकोर्स में प्रवेश कर चुका था। अंदर प्रवेश करते ही उसकी निगाहें घोड़ो के जॉकियो को ढूंढ रही थी। रोहित मंचनदा के बारे में वहाँ सिर्फ वही लोग बता सकते थे। जिस हिसाब से वो कर्जे में डूबा हुआ था, उस हिसाब से उसे वहां का बच्चा बच्चा जानता हुआ होना चाहिए था। रेस शुरू होने में अभी आधा घन्टा बाकी था, इस वक़्त सभी जॉकी अपने अपने घोड़ो के पास उनकी सेवा पानी में लगे हुए थे। रेस के शौकीन लोगों से इस वक़्त स्टैण्ड खचाखच भरा हुआ था। तभी जावड़ेकर की नजर एक तरफ खड़े हुए जॉकियो के ऊपर पड़ी, जावड़ेकर टहलता हुआ उनके पास जाकर खड़ा हो गया।

" यहां पर तो रेस के बड़े बड़े शौकीन आते होंगे" जावड़ेकर ने बातचीत की शुरुआत की।

" अरे साहब उन शौकीनों की वजह से ही तो अपना धंधा चलता है" उनमें से एक जॉकी ने जावड़ेकर की बात का जवाब दिया।

" रेस के एक बहुत बड़े शौकीन यहां आते थे, आजकल वो नजर नहीं आ रहे है यहां पर" जावड़ेकर ने इस तरह से इधर उधर नजरों को घुमाया की मानो वो उसी रेस के शौकीन को तलाश कर रहा हो।

" किसकी बात कर रहे हो आप" उन लोगों में भी अब ऐसे रेस के रसिया के बारे में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गई थी।

" रोहित मंचनदा नाम है उस शौकीन आदमी का, यही स्टैंड में उससे मुलाकात हुई थी उस बन्दे से, इस बन्दे ने दस हजार रु उधार मांगे थे मुझ से, मैने जनाब को शरीफ आदमी जानकर दे दिए, लेकिन वे जनाब तो उस दिन के बाद से लापता ही हो गए" जावड़ेकर ने लगें हाथो उन लोगों को एक कहानी बनाकर सुनाई।

" अरे भाई साहब!आप भी कमाल करते हो, आजकल के जमाने मे ऐसे कौन किसी अंजान को पैसे दे देता है" एक जॉकी ने समझदारी भरी बात की।

" अरे साहब!हो गई अब गलती...अब कोई उसका यहाँ कोई वाकिफ आदमी हो, जो उसे जानता हो तो बता दो, ताकि हम उस रोहित मंचनदा को ढूंढ कर अपने पैसे ले सके" जावड़ेकर ने अपना लाचार और निरीह थोबड़ा बनाकर उन लोगों की तरफ देखा।

" वो तो गोल्डी के पास ही सारे दांव लगाता था न" उन जॉकियो में अब आपस मे ही खुसर पुसर शुरू हो चुकी थी।

" मैंने तो सुना है उसने तो गोल्डी का भी लाखो रु देना था" इस बार दूसरा जॉकी बोला।

" देखिए भाई साहब! रोहित मंचनदा का यहाँ एक गोल्डी नाम के जॉकी से बहुत याराना था, हम लोग तो उसे ज्यादा जानते नहीं है...आप गोल्डी से उसके बारे में मालूम कर लीजिए" एक जॉकी ने जावड़ेकर को बोला।

" ये गोल्डी कहाँ मिलेगा" जावड़ेकर ने अंजान स्वर में पूछा।

" वो तो खुद दो दिन से यहां नहीं आ रहा है, बरसोवा में एक सोसाइटी में रहता है, उसका पता लिख लीजिए, वो जरूर उसके बारे में जानता होगा" एक जॉकी ने जावड़ेकर की समस्या को दूर किया।

" बहुत बहुत मेहरबानी आपकीं, उन दस हजार के बारे में मेरी बीवी को पता चल चुका है, जान को आफत की हुई है जनाब, आपने बड़ी मदद कर दी मेरी, भगवान आपका भला करे" ये बोलकर जावड़ेकर गोल्डी का पता लिखने लगा था। अब कड़ियाँ जुड़ना शुरू हो चुकी थी।

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बरसोवा की उस सोसाइटी में गोल्डी का फ़्लैट ढूंढने में जावड़ेकर को कोई दिक्कत नहीं हुई थी। जावड़ेकर ने फ्लैट के दरवाजे की बेल बजाई, लेकिन कहीं से कोई सदा न आई। झुंझलाहट में जावड़ेकर ने जब एक जोर का हाथ दरवाजे पर मारा तो दरवाजा खुलता चला गया था। जावड़ेकर को इस तरह से दरवाजा खुला मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी। उसने हल्के हाथ से दरवाजे को धकेला और धड़कते हुए सीने के साथ अंदर कदम रखा। फ्लैट में अभी तक उसे कोई नजर नहीं आया था। जावड़ेकर ने एहतियातन अपनी पिस्टल को निकाल कर अपने हाथ मे ले लिया था। वो हर एक कदम को सतकर्ता के साथ रख रहा था। वो धीरे धीरे सारे फ्लैट में घूम चुका था, लेकिन उसे न आदमी न आदमी की जात उस फ्लैट में नजर आई थी। जावेडकर ने हाल में टेबल पर पड़ी व्हिस्की के साथ तीन गिलास भी पड़े हुए देखे। जावड़ेकर ने गौर से उन गिलास का मुआयना किया। एक गिलास पर उसे लिपिस्टिक लगी होने की निशानी भी मिल गई, बोतल में अभी भी काफी व्हिस्की बची हुई थी। एक बोतल पूरी खाली होकर वहां बराबर में ही लुढ़की पड़ी हुई थी।

" डकैती में भी किसी लड़की के शामिल होने का सबूत तो बैंक की वॉल्ट में भी मिल चुका है, कहीं यही मोहतरमा तो उस डकैती में शामिल नहीं थी, जो यहां साकी बनी हुई थी" जावड़ेकर ने मन ही मन अंदाजा लगाया। उसके बाद जावड़ेकर ने इधर उधर अपनी नजर दौडाई, उसे सोफे पर ही एक पिस्टल भी पड़ी हुई नजर आई। उसने एक रुमाल से उस पिस्टल को उठाया, उसने उस पिस्टल को ओपन किया, पिस्टल पुरी तरह से खाली थी, लेकिन पिस्टल की नाल से निकलने वाली गंध उसे उसके तजर्बे के आधार पर बता रही थी कि इस पिस्टल से अभी हाल ही में गोली चलाई गई थी। जावड़ेकर की नजर अब उस हाल में ही इधर उधर छितरा रही थी। उसे फर्श पर बिछे कालीन में कई सुराख नजर आए, जावड़ेकर उन सुराख को देखते ही उन पर झुक चुका था। उसने बारीकी से उस जगह का अवलोकन किया। उसे कालीन में बारूद के कण नंगी आँखों से भी अपने पुलिसया तजुर्बे की वजह से दिख रहे थे, कोई आम आदमी तो उन सुराख को देख कर यही समझने वाला था कि इस घर मे चूहे बहुत ज्यादा हो गए है, जो कालीन तक को कुतरने लगे है।

" साला यहां चल क्या रहा था, दारू की बोतलें, तीन गिलास यहां तीन आदमियो की मौजूदगी को साबित कर रहे थे, गिलास पर लिपिस्टिक का निशान ये भी साबित कर रहा था कि, उन तीन लोगों में से एक लड़की भी थी। लेकिन ये इतनी सारी गोलिया यहां क्यो चली थी, क्या वो गोलिया किसी को मारी गई थी। सबसे बड़ी बात ये तीनो लोग इस वक़्त कहाँ गायब थे। जावड़ेकर का सोच सोच कर ही दिमाग का दही हो गया था। उसने अपनी जेब से अपना मोबाइल निकाला और अपने फोरेंसिक डिपार्टमेंट में फोन मिला डाला। एक फोरेंसिक टीम को जल्द वहां भेजने का जावड़ेकर ने आदेश दिया। इस पूरे फ्लैट की अब पूरी फोरेंसिक जाँच करवाना उसकी नजर में सबसे पहला काम हो गया था। उसके बाद जावड़ेकर ने वही पर रखें हुए इंटरकॉम से सोसाइटी के गेट पर गार्ड को फोन किया और उसे तत्काल उस फ़्लैट में आने के लिए बोला। अभी जावड़ेकर ने फोन रखा ही था कि उसके फोन पर उसके मातहत सुनील म्हात्रे का नंबर चमकने लगा। जावड़ेकर ने जल्दी से फोन को उठाया।

" साहब! एक बुजुर्ग आदमी आये हुए है, वो बोल रहे है की, उनकी भतीजी और वे दो दिन पहले दिल्ली से मुंबई आये थे, उनके साथ मुम्बई के किसी आदमी ने पच्चीस लाख की धोखाधड़ी की थी" म्हात्रे अभी बोल ही रहा था कि जावड़ेकर ने उसकी बात को बीच मे ही काट दिया।

" म्हात्रे उस अंकल की रपट लिख कर अभी उसे वहां से रफा दफा करो, मुझे यहां पर रोहित मंचनदा से जुड़ा कोई और मामला भी मिला है, जिसके तार उस डकैती से भी जुड़े हो सकते है" जावड़ेकर ने टालने वाले अंदाज में कहा।

" सर!पहले मेरी बात तो सुनिए, इस मामले के भी तार भी मुझे उसी डकैती से जुड़े हुए नजर आ रहे है" म्हात्रे के ऐसा बोलते ही जावड़ेकर के कान खड़े हो गए।

" क्या मतलब" जावड़ेकर ने अजीब से स्वर में बोला।

" सर!दो दिन से उसकी भतीजी गायब है, और जिस आदमी ने इन लोगों के साथ धोखाधड़ी की है, वो वही आदमी है, जो हमें बैंक के गेट की फुटेज में गार्ड के रूप में दिखा था, ये अंकल उस आदमी का नाम सदाशिव केलकर बता रहा है" महात्रे की बात सुनते ही जावड़ेकर की आंखों में एक अनोखी चमक आ गई।

" महात्रे उन अंकल जी को वही बैठा कर रखो, उनको चाय पानी पिलाओ, मैं यहां से फ्री होते ही पहली फुर्सत में थाने पहुंच रहा हूँ" ये बोलकर जावड़ेकर ने फोन रख दिया, दरवाजे पर खड़ा हुआ गार्ड उसी के फ्री होने का इंतजार कर रहा था।


क्रमशः



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