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Lokanath Rath

Abstract

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Lokanath Rath

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बचन (भाग बारह )..

बचन (भाग बारह )..

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आशीष और अशोक बहुत मायूस होकर पहले अपनी दुकान गए।वहाँ दोनों भाइयों को एक साथ देख बिकाश जी और सब लोग बहुत ख़ुश हुए।अशोक को सब बधाई दिए उसके कामियाबी के लिए।थोड़ी डेर बाद दोनों भाई बिकाश से अलग मिले और सरोज के सारे कारनामो के बारे बता दिए।अशोक ने बोला, " चाचा जी , अगर सरोज या कोई अनजान ब्यक्ति आकर यहाँ कुछ जबरदस्ती करें या कुछ पूछे जब भाई यहाँ नहीं हों, तब आप हमें कृपया बता दीजिएगा।ऐसे डरने का कोई बात नहीं, यहाँ पुलिस का भी बंदोबस्त थानेदार साहब करेंगे बोलके हमें बोले है।" ऐसे बात करते करते दुकान बन्द करने का समय हों चूका था।सब उसमे लग गए।फिर दुकान बन्द करके दोनों भाई घर जानेके पहेले अमित जी के घर गए।तब तक अमित जी भी दुकान बन्द करके घर आचुके थे।अशोक ने महेश और अमिता दोनों को प्रणाम किआ।दोनों अशोक और आशीष को देखकर बहुत ख़ुश हुए।अशोक को बहुत आशीर्वाद भी दिए।पर अशोक उन दोनों की आँखों मे मायूसी देख रहा था।तब उनकी पास जाकर अशोक बैठा और बोला, " आप दोनों बिलकुल मायूस मत होना।भाई और मे है, कभी कुछ गलत होने नहीं देंगे।आज हमलोग सुधार केंद्र, हॉस्पिटल और पुलिस चौकी होकर आये है।सरोज ने बहुत गलत किया ।वो अभी बदमाश भैरब के साथ मिला हुआ है।बहुत बुरी तरह वोलोग सुधार केंद्र के लोगों को मारा और पीटा।अब उनकी हालात थोड़ा ठीक है।पुलिस भी अभी सरोज को धुंड रहा है।अगर कभी कुछ ज्यादा परेशानी आये तो आप दोनों हमारे घर आजइए, वहाँ रहेंगे।" अशोक का ये बात सुनकर अमिता रोते हुए बोली, " क्या करूँ बेटा मुझे कुछ समझ नहीं आरही है।सरोज ऐसा नालायक होगा कभी मे सोची नहीं थी।अब तो पुरे बुराई के रास्ते मे चल पड़ा है।मुझे उसने बहुत दुःख दिआ है।मेरे ऊपर वो बहुत अत्याचार करचूका है।आशीष बाबू जानते है।तुम्हारे चाचा जी (महेश जी ) को उसके बारे मे मालूम नहीं।सोचा था एक ही बेटा है, सुधर जाएगा, पर अब तो वो एक और रास्ता मे निकल पड़ा है।मुझे उसे अपना बेटा कहेते हुए शर्म आरही है।जैसे भी रहेंगे, हम यहाँ रहेंगे।तुम्हारे घर मे हम बेटी दिए है, वहाँ हम कैसे जाकर रहे सकते है।हमारे नशीब मे जो लिखा होगा वही होगा।तुम लोग जितना कुछ किए कुछ कम नहीं किए।उसे बदलने से लेकर हमारा इज्जत की रख्या करने, सब कुछ किए।तुम दोनों बैठो, मे कुछ मिठाई लाती हूँ।बहुत दिन बाद अशोक हमारे घर आये है।" ये बोलकर अमिता वहाँ से उठकर चली गई।तब आशीष ने महेश जी बो बोला, " पापा जी, आप दोनों बिलकुल चिन्ता नहीं करना।घर के पास पुलिस का सुराख़ की बंदोबस्त करदिए गए।अगर कभी भी कुछ खबर सरोज का आपको कहीं से मिले तो पहेले आप पुलिस चौकी मे बताइएगा और हमें भी।ज्यादा कुछ तक़लिब होगा तो आप मम्मी जी को समझाके हमारे घर आजाइएगा।हम भी तो आप के है।" महेश ने सब सुने और चुप रहे।तबतक अमिता कुछ मिठाई लेकर आई और अपने ही हात मे अशोक को खिलाई।उसके बाद दोनों भाई उनको प्रणाम करके अपने घर के लिए निकल पड़े।


घर पहुँचते पहुँचते अशोक और आशीष का रात की दस बज चुका था।दोनों ने हाथ मुँह धो लिए और खाने के लिए बैठे।तब सुचित्रा देबी ने पूछा, " इतना दे र कियूँ हुआ तुम दोनों को? कुछ खबर मिला? " तब अशोक ने बोला, "माँ हम दोंनो पहेले सुधार केंद्र गए, फिर वहाँ से हस्पताल गए, उसके वाद पुलिस चौकी होते हुए दुकान गए।दुकान बन्द करके आनेका समय भाभी के घर होकर आरहे है।सच मे सरोज अब बहुत बिगड़ गया है।वो बहुत गलत रास्ते मे जारहा है।उसने भैरब के साथ जुड़ गया है।सुधार केंद्र के लोगों को मार मार के बहुत बुरा हाल करदिए।अब वो लोग हस्पताल मे है और उनकी इलाज चल रहा है।मे सुधार केंद्र मे बचन देकर आया हूँ की जो नुकसान हुआ उसका भरपाई हम करलेंगे।उनकी इलाज की खर्चे भी हम करेंगे।अब सरोज कभी भी कुछ भी कर सकता है| पुलिस ने भी उसको धुंड रहे है।हमारे यहाँ और दुकान की भी सुरख्या पुलिस करेगा।भाभी के घर के पास भी पुलिस सुरख्या किए गए।मे अमिता चाची को बोला की अगर ज्यादा कुछ परेशानिआ होगा तो हमारे यहाँ आकर रहेने के लिए, पर वो बिलकुल मानते नहीं।" ये सब सुनकर सुचित्रा देबी देखे आरती के आँखों मे आँसू।फिर उन्होंने बोले, "तुम बिलकुल सही बात बोला।समदन जी को यहाँ आजाना चाहिए।ऐसे हमारी आरती भी बहुत ख़ुश होंगी।सरोज का बात छोड़, पुलिस उसका कम करेगा।अभी मे समदन जी से बात करती हूँ।" फिर खाना ख़तम करके सुचित्रा देबी अमिता देबी को फोन करके बोली, " समधन जी, क्या आरती आपकी बेटी नहीं है? वो क्या सिर्फ मेरी बहु है? अब आप जानते है की वो माँ बननेवाली है, तो होनेवाली नानी और दादी के फ़र्ज होती है की ठीक से देखभाल करें।मैं अकेली कैसे ठीक ठाक कर पाऊँगी? आप और समदी जी अगर हमारे यहाँ आकर रहेंगे तो उसमे आरती की देखभाल ठीक से होने की साथ साथ वो भी ख़ुश रहेगी।और सरोज का बारे मे सोचके आप को ज्यादा परेशान होने की कोई बात नहीं।हम बच्चों को जनम देते पर उनकी भबिष्य कभी भी हमारे हात मे नहीं होता।उपरवाले का क्या खेल कोई नहीं जानता।समय के साथ सब ठीक हों जाएगा।अब आप दोनों हमारे घर आजइए।समदी जी को बोलिए ये मेरी बिनती है।" अमिता सब सुनने के बाद बोली, " मे जानती हूँ आप को।आप आरती को मुझसे भी और ज्यादा ख़ुश रख सकती है।मुझे थोड़ा उसकी पापा से बात करने दीजिए, फिर मे आपको बोलूंगी।आज अशोक बहुत दिनों बाद घर आया पर मे कुछ उनको बनाके खिला नहीं पाई।क्या करू, ये सरोज ने सब कुछ गड़बड़ करदिए।आप खुदकी और सबका ख्याल रखिए।जाइए आप भी अब थोड़ा बिश्राम करिए।मे आप को बोलूंगी।" तब फिर फोन दिनों ने रख दिए।और सुचित्रा देबी आरती के पास गयी, तब आरती उनको पकड़ के जोर जोर से रोने लगी।उसको सुचित्रा देबी पास मे बिठाकर समझाने लगी।अशोक और आशीष दूर खड़ा होकर कुछ बात कर रहे थे और उनको देख रहे थे।


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