Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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बौनी उड़ान

बौनी उड़ान

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आज राकेश की अपनी कम्पनी की नयी बिल्डिंग का उद्घाटन है। वह बहुत खुश हैं इस कारण वह जल्दी तैयार हो रहा है। अलमारी से कपड़े निकालते हुए उसे अपने पिता की दी घड़ी मिली। जिसे देख वह पुरानी यादों में खो गया। जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ता था।

पिताजी विदेशी कम्पनी में कार्यरत थे। उस समय पिता जी को वाई टुके (y2k) के संदर्भ में नौकरी से निकाल दिया गया था। जो पैसा वहाँ जमा किया था।

उससे पिताजी ने भारत आकर शौफ्ट वेयर की एक युनिट खोल ली थी , पर विफलता हाथ लगी थी।

उसके खर्चे बढ़ते गये और क़र्ज़ चढ़ता चला गया। आर्थिक तंगी के चलते पिता जी इस बात को सह ना पाये। हार्ट अटैक आने से हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से चले गये। पापा का सपना था बड़ा होकर मै इंजिनीयर बनूँ। मैंने पापा के सपने को पूरा करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। विदेश ना जाकर अपने देश में ही कार्य करूँगा यही सोच कर कड़ी मेहनत की।

आठ साल तक कड़े परिश्रम के बाद इंजिनियर बन कुछ वर्ष नौकरी कर ,बहुत संघर्ष और मेहनत से मै आज उस मुक़ाम पर पहुँच गया हूँ कि विदेशी शीर्ष कम्पनियों के सोफ्टवेर के औफशोरिग के ठेके मुझे प्राप्त हुए है।और आज पन्द्रह इंजिनियर मेरी अपनी कम्पनी में काम करते है।

उसी अपनी नयी बिल्डिंग के उद्घाटन स्वरूप उसे खुशी के कारण अपार हर्ष हो रहा है। सच ही किसी ने कहा है, मेहनत, लालन आत्मविश्वास से छोटे छोटे कार्य योजना से बड़ी उपलब्धियां प्राप्त हो सकती है।

धरती से आकाश की ऊंचाइयों को भी नाप सकता है। इसी को बौनी उड़ान कहां जाता है ! वह बड़बड़ाया, जल्दी से तैयार हो गन्तव्य की ओर बढ़ चला।


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