अबोर्शन
अबोर्शन
ज़िन्दगी "
जब से आये हैं शून्य में ही ताकते रहते हैं ।अभी तक एक शब्द भी नहीं बोले है ।पर आंखों से लगता कुछ कहना चाहते हो ।कहने के लिए ना कह पाने की उन की बेबसी मुझे झकझोर दे रही है ।
मेरे कुछ भी पूछने पर बस हाथ जोड़कर सिर उठा हाँ ना ,में ही जवाब दे देते है ।
जिस के सामने बोलते हुए कभी हम घिघियाने लगते थे उस की ये दशा । भरा हुआ चेहरा ,लम्बा गठीला बदन आज एक हड्डी का ढाँचा जान पड़ता था । देखकर
कौन कह सकता था कि ये वही बाबू जी है जिन के पास आते हुए हम बहन , भाई घबराते थे । मां को भी उन्होंने सिर्फ अपने जरूरत का ही सामान समझा था ।हमेशा अपनी मर्जी करना उन की कही हर बात को दबा देना ।हर बात में उन का अपमान ,करना जन्म सिद्ध अधिकार मानते थे । मां को हमेशा रोते हुए ही देखा था ।किसी ना किसी बात पर ।
कुछ अगर किसी को घर में मान देते थे तो वह बड़ा भाई ही था ।
उस के बाद दो बहनों के जन्म से ही मां से नाराज़ रहने लगे थे ।
जैसे मां ही उन के जन्म की जिम्मेदार हो। मेरे जन्म पर वो नहीं चाहते थे कि मैं इस दुनिया को देखूँ ।
मां को वैद्य के पास भी ले गये थे ।पर मां के इनकार करने पर नानी के पास छोड़ आए थे ।
मेरे जन्म की सुचना पा कर भी नहीं आए थे ।
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फिर एक दिन नाना जी ही मां को
घर पर छोड़ गये थे ।
मुझे याद नहीं पड़ता की कभी बचपन में मुझे प्यार से गोदी में उठाया हो।
दोनों बड़ी बहनों भाई की शादी हो जाने पर माँ भी बिमार रहने लगी थी । दो-तीन बार तो लगा की बस अब उन का अन्त निश्चित है । जैसे मेरी विदाई का ही इंतजार कर रही थी ।
एक दिन मेरे ससुराल विदा होते ही वे भी संसार से विदा हो गयी थी ।
बाबू जी ने कभी हम बहनों की खबर नहीं ली थी ।भाई ही शहर उनको साथ ले आया था ।
हम बहने अपनी अपनी गृहस्थी में रम गयी थी ।
उस दिन जब वृद्धा आश्रम में एक बुजुर्ग को अलग बैठे देखा और सामान देने के लिए जैसे ही हाथ आगे किया था तो देखती ही रह गयी थी। बाबू जी इस हालत में !
अपने साथ घर ले आयी थी ।
आज तबियत खराब लग रही थी सुबह से कुछ खा भी नहीं पा रहे थे । डाक्टर को दिखाया था ।
दवाई देने लगी तो उस का हाथ पकड़ रो पड़े बोले बेटी मुझे माफ़ कर दो। मेरे हालात का जिम्मेदार मैं ही हूं । मैंने तुम को कभी प्यार नही .... ।सिसकने लगे ।
बरसती आंखों से उस ने बाबू जी
के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा
हो तो आप ही मेरे बाबू जी .....।