बुढ़ापे की सनक

बुढ़ापे की सनक

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"मैं अपने दोस्तो के साथ जहां भी गन्दगी होती है सफाई कराता हूँ।

मैं ये भी मानता हूँँ, कि शहर को साफ करना केवल म्युनिसिपैलिटी की जिम्मेंदारी नहीं है इसके लिए शहर के प्रत्येक नागरिक को सामने आना पड़ेगा।

जबसे प्रधान मंत्री जी ने.स्वच्छ भारत आन्दोलन शुरू किया, मैं इस से जुड़ गया हूँ।

लेकिन आप तो .....।

"हां जी मैं सरकारी नौकरी से अब सेवा निवृत हो चुका हूँ"!

"पर और बहुत अच्छे काम थे! फिर आपने ये ही कार्य कयो चुना" ?? क्या रूतबा था आपका और ये कार्य "?सरकारी बंगला गाड़ी, ड्राइवरों, चपरासी, नौकर चाकर, आसपास अनेक लोगो की भीड़, और अच्छी पगार "! विदेश में पढते बच्चे "!

"हा....सही कह रहे है आप"!

सेवा निवृत्ति के बाद कुछ दिन तो घर में आराम करना अच्छा लगा, पर फिर घर में खाली बैठे सुबह से कितनी बार अखबार पढता, सारा दिन टी०वी के प्रोग्राम देख कर उब जाता, नौकरी के चलते कभी परिवार के साथ समय नहीं दिया! तो बच्चे भी कुछ समय साथ रह इधर- उधर हो जाते, पत्नी अपने काम में लगी रहती, सहाबी के चलते ना ही किसी रिशते की अहमियत समझी, तो रिश्ते दार भी कम ही आते अब समय कैसे बिताऊं समझ नहीं पा रहा था, जब एक दिन स्वच्छ भारत पर मंत्री जी को सुना तो मेंरे मन में वही बात याद आ गयी !जब मैं विदेश दौरे पर जाता था वहा सब बहुत साफ और सुन्दर दिखता था वहा का हर नागरिक स्वच्छता के लिए जागरूक था !"

और विदेशी लोग हमारे देश में आते तो, गन्दगी को देख उनकी आखो में हमारे देश के प्रति जो भाव आते थे !"उस को देख मैं बहुत लज्जित हो जाता था !"

इसिलिए मैंने मन में सोचा की मैं क्यो ना यही कार्य करूँ ! देश सेवा में इस काम से अच्छा और क्या होगा।तब शुरूआत अपने शहर से की!अब मेंरे साथ अनेक नौजवान, मेंरे हम उम्र जुड़ गये है।बहुत लोग जागरूक हो रहे है।अब चाहे आप इसे बुढ़ापे की सनक ही मान लें।

उन्होंने हंसते हुए कहा।

मेरा मानना ये है, कि सरकार के अकेले ये अभियान चलाने से कुछ नहीं होगा, इसमें जनता को भी साथ देना पड़ेगा तभी ये संभव हो पायेगा,आखिर देश के प्रति हमारा भी तो कोई कर्तव्य है।


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