बरगद की छांव
बरगद की छांव
आज घर का हर कोना कैसे चमक उठा था
जो घर हमेशा बिखरा रहता था, उस घर को कैसा व्यवस्थित कर दिया था।
वह दिन उसे आज भी याद है कैसे नीमा की जान बचाई थी।
जैसे ही नीमा पानी में छलांग लगानी चाही थी। उसने उसे थाम लिया।
"अरे आप ये क्या कर रही है "?
"मुझे मर जाने दो मैं जीना नहींं चाहती "।
लड़की ने उस से अपनें आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहां।
"नीमा जिन्दगी बहुत खुबसुरत है इस को भरपूर खुशी से जीने का सब को हक भगवान ने दिया है !"
उसे घर पर ही रहने को जगह दे दी थी।
कुछ समय लगा उस को बुरे समय से बाहर आने में पर धीरे धीरे समान्य हो गयी थी।
तब मेरे प्रस्ताव पर उस ने कहां था।
" मुझ जैसी के साथ शायद आप खुश नहीं रह पायेगे ?"
मेरा अतीत ...कभी आप को उतन
ी खुशी नहीं दे पाए जितने के आप हकदार हो"।
नीमा ने सजल दृष्टि डालते हुए उससे कहा -
नीमा मेरा भी एक अतीत है
"मेरे पिता के जाने के बाद माँ
किसी तरह काम कर के मुझे पढाया, लिखाया लायक बनाया, मेरी शादी भी की, वो बड़े, घर की बेटी थी उस के सपने भी बड़े ही थे, जिन
को मैंं पूरा नहीं कर पाया था।
वो मुझे छोड़ कर चली गयी"!कुछ समय परेशान रहा।फिर मां भी नहींं रही।
वक्त पानी की धार सा है। उसको कौन बांध पाया है, इसलिए वक्त ने शायद तुम से मिलवा दिया है,
"अब तुम जैसा चाहो रंग भर सकती हो ये तुम्हारे हाथ मे है।मैंने अपना फैसला सुना दिया है। अब तुम्हारे फैसले का इन्तजार रहेगा !'अच्छा हो हम दोनों अपना अतीत भुला कर नये सिरे से ज़िन्दगी की शुरूआत करें।
सहमती में नीमा ने सिर हिला दिया था।