Babita Consul

Inspirational

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लघुकथा -अन्न का आदर

लघुकथा -अन्न का आदर

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"शान्ति! ये सिलसिला कब से चल रहा हैं..?"

क्या? बीबी जी,

"यही खाना जो भिखारिन को दे रही हो ।"

" आप क्या कह रही है, मैं तो.....


हां, कल ये भिखारिन कह रही थी कि मुझे कई दिनों से आपने खाना नहीं दिया, बहुत भूख लगी है।

उसने कहा आप तो रोज मुझे अपनी खाना बनाने वाली से खाना भेजती ।

"अब तू ही बता मैंने कब उसे खाना भेजा।"

ओहो ये बात है...बीबी जी! मैं आप से हर दिन कहती हूँ, कि खाना उतना ही बनवाओ जितना खाना हो पर आप सुबह शाम ज्यादा बनवाती हैं। सुबह शाम खाना बच जाता है, बचा खाना आप सब खाते नहीं और आप उसे फेंकने को कहती हैं।

 बीबी जी अन्न को उगाने में कितनी मेहनत और पसीना बहाना पड़ता है, तब जा कर ये मुंह का निवाला बन पाता हैं। गरीबों को एक समय भी नसीब नहीं आप लोग...

कहावत है ना "अन्न ही प्राण है।"

जिस खाने को आप फेंकने को कहती थी, मैं बचे खाने को रोज ही इस बूढ़ी भिखारिन को देती रही ।

अब आप बताओ मैंने ठीक किया अन्न का आदर करके।"

मालकिन मन ही मन उस की इस बात को सराहे बिना ना रह सकी ।




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