बाल मनोविज्ञान

बाल मनोविज्ञान

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एक 14 वर्षीय किशोर अमित ने अपने सहपाठी की चाकू मारकर हत्या कर दी जबकि वह बेहद शालीन और मेधावी छात्र था । इससे पूर्व भी किसी को ऐसा आभास नहीं था कि वो ऐसा कर सकता है ,घर पर भी सब ठीक ठाक था । आर्थिक स्थिति से लेकर सामाजिक स्थिति सब ठीक थी, विद्यालय में भी उसका व्यवहार सामान्य था ।

फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक कोई बच्चा अपनी मासूमियत और व्यवहार से ऐसा कृत्यकर बैठा । बाल सुधार गृह भेजा गया क्योंकि अभी उसकी उम्र बहुत कम थी ।

 वहां किसी से बात नहीं करता था , मां-बाप को छोड़ दें तो परिवार के अन्य सदस्य, रिश्तेदार और मित्रों ने उससे किनारा कर लिया ।

 इसी विषय पर शोध कर रही एक महिला लेखक नीरजा ने जब उसके बारे में सुना तो उसे मिलने बाल सुधार गृह पहुंची । पर अमित ने उसे मिलने से मना कर दिया लेकिन नीरजा रोज जाती और जेल के अधिकारियों से मिलने का आग्रह करती ।

  एक दिन अमित ने मिलने की इजाजत दी जब नीरजा अमित के पास पहुंची तो वह बोला "क्या जानना चाहती हो? और क्यों जानना चाहती हो? तुम्हें भी मेरा मजाक बनाना है ? दुनिया को बताओगी कि मैं कितना बुरा हूं ? जाओ कह दो सबको कि मैं बहुत बुरा हूं, मैं नहीं डरता किसी से .."

   लेकिन नीरजाने उसे बस इतना कहा "नहीं ! दरअसल मैं भी तुम्हारी तरह अकेली थी जब मैं जेल गई थी, इसलिए मैं तुम्हारी तकलीफ समझ सकती हूं , मैं चाहती थी कि तुमसे बात करूं ताकि तुम्हें भी उस अकेलेपन से ना गुजरना पड़े जिससे मैं गुजरी । "

   अमित खामोश हो गया उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जेल जाने के बाद वह कैसे समाज में रह रही थी और उनके साथ काम भी कर रही थी ,वह आश्चर्य से नीरजा की तरफ देख रहा था तभी नीरज ने कहा "जब मैं तुम्हारे उमर की थी तो मेरा अपनी सहेली से झगड़ा हो गया था । दरसल मेरी मां मुझे छोड़ कर चली गई थी इसलिए वह हमेशा इस बात के लिए मुझे चिढ़ाती थी कि मेरी मां भाग गई । उस दिन मेरी उससे इसी बात को लेकर बहुत लड़ाई हुई, मैंने भी क्रोध में आकर उसे धक्का दिया तो वह सीढ़ियों से नीचे गिर गई । उसके सर में चोट लग गई थी और कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई । हालांकि मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था लेकिन कातिल होने का धब्बा तो लग ही गया और मुझे भी तुम्हारी तरह बाल सुधार गृह में रख दिया गया जहां मेरा कोई अपना नहीं था ना ही मुझे कोई समझने वाला उस वक्त मुझे भी किसी ने अपनाया मेरी तकलीफ को समझा और मुझे प्यार दिया आज देखो सब मुझे सम्मान देते हैं मेरे परिवार भी है पर मैं उनके साथ नहीं रहती " ।

   अब अमित का डर और गुस्सा कम हो गया था उसने शालीनता से कहा बताइए क्या पूछने आई हैं ?"

   नीरज ने कहा "किसने तुमसे कहा कि कुछ पूछने आई हूं? मेरे पास दो आइसक्रीम है जो पिघल रही है"

    अमित ने मुस्कुराते हुए कहा "तो पहले बताना था ना ... लाओ दीदी कहां छुपा रखी है आइसक्रीम ।"

    बहुत दिनों से खाया नहीं ।

     इस तरह अमित और नीरजा की दोस्ती हो गई कुछ दिन जेल मे ही नीरजा अमित से मिलती रहे। एक दिन बातों ही बातों में भावुक अमित ने खुद नीरजा को अपनी सारी आपबीती बताइई । उसने बताया कि उसका दोस्त हमेशा उसे यह कहकर चिढ़ाता था कि वह नामर्द है वह उसे बार-बार परेशान करते थे ।अकेले में उसके कपड़े तक उतरवा देते और धमकी देते कि अगर किसी को बताया तो पीटेगे भी । यह कहते कि तुझ में खुद की हिम्मत हो तो कुछ करके दिखा ।

     दीदी में बहुत डर जाता , घर में कई बार बताने की कोशिश करता पर किसी के पास मेरे लिए टाइम नहीं था सबको मेरे नंबरों से प्यार था, मेरे मम्मी पापा भी मुझे इसी बात का ताना देते थे कि मैं 100% नंबर क्यों नहीं लाता देखो तुम्हारे.दोस्त कितने तेज हैं ।

     तब मैंने ठान लिया कि मैं उस दोस्त को मार कर यह साबित कर लूंगा कि मैं कमजोर नहीं ।

     दीदी उस वक्त कोई ऐसा नहीं था जिससे मैं अपनी बात कह पाता काश तुम पहले मिलती तो मैं यहां नहीं होता ।

      अपनी बात खत्म करते-करते अमित रो पड़ा ।

      नीरजा की आंखें भी छलक पड़ी.. उसने कहा "मुझे माफ करना मेरे भाई मुझे तुम तक पहुंचने में देर हो गई पर अब तुम नफरत और गुस्सा उतार कर यहां अच्छे से रहो और कुछ काम भी सीख लो तुम्हारे अच्छे व्यवहार से तुम्हें यहां से जल्दी छुट्टी मिल सकती है मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी ।"

       अमित किसी छोटे बच्चे की तरह उसके गले लग कर रोने लगा ।

       उसके बाद अमित बदल गया ,समय गुजरता रहा नीरजा अमित से बराबर मिलने आती रहती ।

        कुछ सालों बाद अमित को उसके अच्छे व्यवहार से खुश होकर उसकी सजा माफ कर दी गई । बीते सालों में जेल के अंदर अपनी पढ़ाई जारी रखी और पेंटिंग बनाता जेल के दौरान कई पेंटिंग अच्छे दामों में बिकी।

         जेल से बाहर आने के बाद अमित घर न जाकर नीरजा के साथ रहने लगा । वहां उसने आगे की पढ़ाई शुरू कर दी और पेंटिंग भी बनाता रहा, कुछ ही सालों में उसकी पेंटिंग की धूम मच गई और उसने अपने अतीत के साथ जीना सीख लिया था ः

          नीरजा ही उसकी मां थी ,उसकी दोस्त और उसकी मार्गदर्शक , हालांकि उसके और भी बहुत से दोस्त बने जिन्होंने उसे दिल से अपनाया ।

          



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