Vidya Sharma

Classics

5.0  

Vidya Sharma

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बरगद की छांव

बरगद की छांव

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जग के दुख से हमें बचाते,

बन जीवन की ढाल।

कभी हमें रास्ता दिखलाते,

कभी दिखाते आंख।


तुमरी बिटप विशाल भुजा,

मिलती स्नेहिल छाव।

पाषाण हृदय तुम जाने जाते,

पर छुपे हैं कोमल भाव।


अपने कंधे के सिंहासन पर,

हमको ले बैठाय।

संघर्षों के तपते पथ पर,

थके न तुम्हारे पाव।


जीवन में उजियारा करने,

तुम जले राख के भाव।

सब की सुनती रहे आजीवन,

तुम्हारे मन को मिली न ठाव।


तुम बिन मेरा अस्तित्व अधूरा,

तुम जीवन मस्तक का भाल।

पिता मेरे तुम हो जीवन में ऐसे,

जैसे बरगद की छांव।


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