*बाल मजदूर*
*बाल मजदूर*


अपने आठ साल के बच्चे के हाथ में गीला चिरकुट लपेटते मांँ जार -बेजार रोते जा रही थी। उसका दिनुआ ग्लास फैक्ट्री में काम करता था। फैक्ट्री बाले बच्चों से ही काम करवाना पसंद करते थे क्योंकि उनके नाजुक हाथ ग्लास को बहुत करीब तक आग के पास ले जाते थे इसी में कभी -कभी उन बच्चों के हाथ झूलस जाते थे।ये फैक्ट्री बाले इलाज भी नहीं कराते थे।दिनूआ का हाथ भी झूलस गया था लेकिन काम पर जाना उसकी मजबूरी थी।
तभी दरवाज़े पर ठेकेदार की आवाज़ आयी-"अरे दिनूआ काम पर क्यों नहीं आया।पैसा लेते वक्त तो खूब अच्छा लगता है पर,काम नहीं करना।" तभी दिनूआ की माँ बाहर निकल कर बोली-"जोहार मालिक।जा रहा है पर, उसके हाथ में घाव है।" ठेकेदार ने एक मोटी गाली दिनूआ को दिया और दिनूआ को
घसीटते ले चला। संयोग से मैं भी उसदिन अपने बाबूजी (जो बिहार के श्रम पदाधिकारी थे ) के साथ ग्लास फैक्ट्री देखने गयी थी। वहाँ का हाल देख मैं रो पड़ी। बाबूजी को देखते ही सन्नाटा छा गया। बाबूजी ने दिनूआ का हाथ खुलवाकर देखा। उफ़ ! अगर दो दिन उसका इलाज नहीं होता तो हाथ काटने पड़ते। सबसे पहले उसे डॉक्टर के पास भेजा गया। ठेकेदार रिश्वत देने की कोशिश करने लगा। बाबूजी ने कहा -अगर इन बच्चों से काम करवाना बंद नहीं किया आप लोगों ने तो मैं फैक्ट्री सील करवा दूँगा।
फैक्ट्री का मालिक घाघ था। उसने कहा पाठक जी इन लोगों का रवैया ही यही है।
बाबूजी ने कहा",क्या आप एक घंटे के लिए भी अपने लड़के से यह काम करवा सकते हैं।?
फैक्ट्री मालिक बगले झांकने लगा।