अतृप्त आत्मा की आवाज़
अतृप्त आत्मा की आवाज़


आलोक कपूर अपने आफिस में बैठे हैं, अचानक दरवाजा खुलता है।
क्या मैं अन्दर आ सकती हूं सर ?
एक खूबसूरत लड़की लगभग 20 - 25 साल की उम्र दरवाजे पर खड़ी जवाब का इंतजार कर रही है, और आलोक एक टक उसे घूरे जा रहे हैं, जैसे कोई भूत देख लिया हो।
मेआई कम-ईन सर ?
आं, हांआआआआ यस, यस,कम इन प्लीज़, आलोक सोच में पड़ जाते हैं कि ये चेहरा जाना- पहचाना सा लग रहा है।
आलोक अतीत की यादों में खो जाते हैं।
आज से 20 साल पहले ऐसे ही एक दिन आफिस में बैठे थे कि एक खूबसूरत लड़की आती है।
मे आइ कम इन सर ?
उसे देखते ही आलोक का दिल जोरों से धड़कने लगता है, ऐसा लगा सीने से निकल कर अभी बाहर आ जाएगा।
आलोक एकदम से अपनी कुर्सी से उठकर उसे कुर्सी देते हैं, बैठने का इशारा करके,खुद उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाते हैं।
आलोक, जवां धड़कते दिल का मालिक, उंची- चौड़ी कद - काठी, घुंघराले बाल, गोरा रंग, दूध सा सफ़ेद कोट- पेंट, उस पर लाल रंग की कमीज़ और लाला टाई।
लड़की भी उसे अवाक् सी देख रही है, अचानक दरवाजा खुला तो दोनों की तंद्रा भंग हुई।
मि० शाह ... आलोक बाबा ये साइन कर दो।
जी शाह साहब, लाईए।
उसके बाद वो लड़की से पूछते हैं कि वो कौन है और क्या चाहती है।
सर मेरा नाम अक्षिता है, मेरी शादी को दो साल हो गए, शादी के एक साल बाद ही मेरे पति की एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गई। तब से मैं ससुराल में ही थी, लेकिन अब कुछ दिनों से मेरे ससुर बहुत परेशान कर रहे हैं, कल तो बलात्कार करने की भी कोशिश की, सास पहले से ही नहीं थी किससे कहूं, अब मैं वो घर छोड़ आई हूं।
आपका बहुत नाम सुना है सर आप ने जो नारी आश्रम बनाया है मुझे वहीं रख लिजिए प्लीज़, मेरा कोई भी सहारा नहीं, ना माता-पिता,ना कोई सगा - संबंधी।
अक्षिता आप कितना पढ़ी है ?
जी एम. ए. इक्नोमिक्स।
अगर आप को इसी आफिस में जाॅब मिल जाए तो आप करेंगी ?
ज़रूर सर।
देखिए, मैं वैसे भी कल असिस्टेंट के लिए इश्तिहार देने वाला था, आप आ गई तो आप ही ये जाॅब एक्सेप्ट किजिए और फिलहाल आप दो दिन नारी आश्रम में रहिए, उसके बाद आप को फ्लैट दे दिया जाएगा।
धन्यवाद सर
अक्षिता को आलोक ड्राईवर के साथ नारी आश्रम भेज देता है, लेकिन उसके दिलो-दिमाग दिमाग पर अक्षिता ही छाई है।
ना जाने उस रूप सुन्दरी में ऐसी कौन सी कशिश है कि दिल उस की तरफ खिंचा चला जा रहा है।
आलोक पूरी रात आंखों में ही बीता देता है सुबह की इंतजार में, कि कब सुबह हो और उस रूप की रानी के दर्शन हों।
अक्षिता आज साड़ी पहन कर आई है आफिस में मगर आज तो वो कल से भी ज्यादा सुंदर लग रही है।
आलोक उसे अकाउंट्स फाईल देता है और काम समझा देता है कि क्या करना है।
आलोक अक्षिता की टेबल अपने ही रूम में लगवाता है, वह उसे अपनी आंखों से दूर नहीं रखना चाह रहा, दीवाना सा हो गया जैसे उसका।
दो दिन बाद उसे एक फ्लैट ले कर दिया जाता है, जो आलोक के घर के रास्ते में ही पड़ता है, आलोक सुबह आते हुए अक्षिता को साथ ले आता है और जाते समय उसे छोड देता है।
इस तरह अक्षिता एक नई जिंदगी शुरू करती है, मन लगाकर काम कर रही है आफिस में भी सब की चहेती बन गई।
अक्षिता जब भी लंच करने बैठती आलोक भी उस की टेबल पर जा कर बैठ जाता और उसका लंच बड़े चाव से खाता, इस तरह धीरे-धीरे आलोक को अक्षिता के हाथ का खाना इतना अच्छा लगने लगा कि वो रोज़ अक्षिता से ही कहता लंच लाने को।
कभी -कभी तो जाते हुए थोड़ी देर अक्षिता के पास रूक जाता उससे बातें करता रहता।
एक दिन ......... अक्षिता आज क्या बात है, तुम कुछ गुमसुम सी हो ।
जी सर आज कुछ तबीयत ठीक नहीं लग रही, थोड़ी हरारत महसूस हो रही है।
तो आज आफिस नहीं आना था।
नहीं सर, काम भी तो ज़रूरी है, बस जल्दी से निपटा कर चली जाऊंगी।
अक्षिता लंच टाइम तक काम पूरा करती है और जाने को आलोक से इज़ाजत लेती है, तो आलोक कहता हूं कि, तुम्हें यहां से कोई साधन तो मिलेगा नहीं जाने के लिए, थोड़ी देर रेस्ट रूम में आराम कर लो आज आफिस जल्दी बंद करके तुम्हें छोड़ दूंगा।
आज आलोक आफिस जल्दी बंद करते हैं, स्टाफ को भी छुट्टी दे दी, और अक्षिता को घर छोड़ने गए तो ....
अक्षिता तुम आराम करो, आज मैं तुम्हें अपने हाथ की चाय पिलाता हूं।
अरे, नहीं सर आप बैठिए मैं चाय बनाती हूं।
फिर सर, कहा ना आफिस में बेशक मैं सर हूं और तुम एम्पलाय, लेकिन आफिस के बाहर हम दोस्त हैं।
अक्षिता मुस्कराते हुए ...ओ.के. दोस्त।
तो चलो दोस्त का कहना मानो और लेट जाओ, मैं चाय बना कर तुम्हारे रूम में ही ले आऊंगा, वहीं पी लेंगे।
अक्षिता बैडरूम में जाकर लेट जाती है, लेटते ही वो गहरी नींद में सो गई।
आलोक जब चाय लेकर आया तो अक्षिता को इस तरह सोए हुए देख कर एक पल के लिए ठिठक गया।
ऐसा लगा मानो हुस्न की मलिका उसके सामने हो, होंठों पर हल्की सी मुस्कान, गालों पर लटें बिखरी हुई, काली नागिन सी, सीना सांस लेते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो दो मासूम पंछी कैद में फड़फड़ा रहे हो।
आलोक अपने उपर काबू नहीं रख पाया, और आक्षिता के पास जाकर उसकी बिखरी लटों को संवारने लगा।
अक्षिता ने करवट बदली तो आलोक का एक हाथ उसके सीने के नीचे आ गया, अब तो आलोक का तन- बदन इश्क की गर्मी से झुलसने लगा, काबू ना रहा खुद पर और दो जवां जिस्म प्यार की आग में झुलस गए, दूनियां की सब दिवारों को तोड़कर एक हो गए दोनों।
जब खूमार उतरा तो दोनों को कुछ बोलते नहीं बन रहा था, क्योंकि मन में तो दोनों के ही एक - दूजे के लिए तड़प थी।
दोनों ने एक दूजे को भाव भरी नज़रों से देखा मगर लफ़्ज़ों ने साथ नहीं दिया, कुछ नहीं कह पाए एक - दूजे से।
आलोक चुपचाप अपने घर चला गया।
अगले दिन से सब कुछ वैसा ही चल रहा था, लेकिन दोनों के मन में जैसे कुछ था कहने को, पर ज़ुबां साथ दे तब ना।
एक महीने बाद, आलोक मुझे कुछ कहना है।
मैं जानता हूं, मैं भी तुमसे कुछ कहने की कोशिश कर रहा था, लेकिन लफ्ज़ साथ नहीं दे रहे थे ।
अक्षिता आइ लव यू।
ऐसा लगा अक्षिता का दिल अभी उछल कर बाहर आ जाएगा।
आलोक तो अब हमें इस प्यार को कोई नाम देना चाहिए, क्योंकि हमारा प्यार मेरी कोख में आ चुका है।
अक्षिता, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं, लेकिन .......
लेकिन क्या आलोक, मैं गरीब हूं इसलिए, तुम्हारे स्टेट्स की नहीं हूं ना, इसलिए तुम मुझसे शादी नहीं कर सकते !
नहीं अक्षिता वो बात नहीं, दरअसल मैं शादीशुदा हूं। मैं तुम्हें सब कुछ दूंगा, लेकिन शादी ..... मैं एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी कैसे कर सकता हूं।
आलोक लेकिन मैं क्या करूं, मैंने तो तुम्हें दिल से चाहा है, मेरा तुम्हारे सिवाय और कोई भी नहीं।
इसी उधेड़बुन में छह महीने बीत जाते हैं, तीन महीने बाद ही आलोक अक्षिता को आफिस आने के लिए मना कर देता है,ताकि कोई उस पर उंगली ना उठाए, और घर पर उसे हर सुविधा मुहैया कराता है ।
अक्षिता को सातवें महीने ही डिलिवरी हो जाती है, और एक सुन्दर सी प्यारी गोल-मटोल गुड़िया जैसी बेटी जन्म लेती है।
आलोक बहुत खुश है, अक्षिता भी, लेकिन अचानक आलोक को लगता है की कब तक इस रिश्ते को निभाएगा, अक्षिता भी बार - बार शादी के लिए कहती है, वो चाहती है कि उसकी बेटी को पिता कि नाम मिले, समाज में एक पहचान मिले, जो आलोक देना नहीं चाहता।
आलोक ख्यालों में खोया है।
सर, सर क्या हुआ सर, मैं आपसे बहुत देर से बात कर रही हूं, आप कुछ बोलते क्यों नहीं ?
अ...क्षि.... त....तुम
कौन अक्षि सर, मै आस्था हूं सर, आपने असिस्टेंट के लिए इश्तिहार दिया था, वही पढ़कर आई हूं सर,
सर प्लीज़ मैं बहुत मजबूर हूं, मुझे इस जाॅब की बहुत ज़रूरत है, आंखों में आंसु है आस्था के।
ठीक है, तुम कल से काम पर आ जाना। जैसे आलोक उससे पीछा छुड़ाना चाह रहे हो।
और उसके जाते ही आलोक एक फोन मिलाते हैं।
हैलो, उधर से आवाज़ आती है ... कहिए बाॅस इतने सालों बाद कैसे याद किया। फिर कोई मामला सुलझाना है क्या ?
हीरा पहले ये बताओ, क्या तुमने वो मामला सुलझाया था या नहीं ?
कैसी बात करते हो बाॅस, भला हम आप से दग़ा करेंगे क्या, सब सैटल कर दिया था।
और बच्ची ?
वो भी सुलझा दिया था।
लेकिन आलोक को चैन नहीं, कौन हो सकती है, वो सोचने पर मजबूर हैं।
इधर आलोक के बेटे ने भी असिस्टेंट के लिए इश्तिहार देता है। और आस्था ही आलोक के बेटे ( अनीश ) का आफिस ज्वाइन कर लेती है।
अगले दिन आस्था अपनी ड्यूटी पर आती है, उसे देखते ही आलोक फिर से उन बीते दिनों में खो जाते हैं ।
अक्षिता अपनी बेटी के भविष्य के लिए चिंतित थी, आलोक को फोन करके घर बुलाती है कि आज बहुत जरूरी काम है और तुम ज़रूर आना।
जब आलोक अक्षिता के घर जाता है, अक्षिता,साफ - साफ शब्दों में आलोक को अपनी बेटी को अपना सरनेम देने की बात कहती है।
आलोक कहता है कि कल वो उन्हें कोर्ट में ले जाकर के कानूनी तौर पर शादी भी करेगा और बेटी को नाम भी देगा। लेकिन उसके दिमाग में कोई शैतान प्लान बना रहा है ।
अगले दिन अक्षिता के पड़ोस में शोर मच गया कि अक्षिता ने आत्महत्या कर ली है और बच्ची का भी कुछ पता नहीं, पड़ोसी आलोक को फोन करते हैं, वो ये समझते हैं कि आलोक अक्षिता का पति है और वो कहीं दूसरे शहर नौकरी करता है, इसलिए कभी - कभी आता है ।
आलोक आकर बहुत चीख- चिल्ला रहा है .... हाए मेरी अक्षी ऐसा नहीं कर सकती, वो आत्महत्या क्यों करेगी, ये जरूर किसी की कोई चाल है, जो मेरी बच्ची को भी ले गया, जो भी है, मैं उसे ज़िन्दा नहीं छोडूंगा, नेस्तनाबूद कर दूंगा उसके पूरे खानदान को।
आलोक बाबा अब आलोक सर बन गए, आलोक का बेटा अनीश बाबा भी आफिस में आने लगे हैं।
सर, सर मेरा कैबिन कौन सा होगा सर, और मेरा काम क्या होगा सर ?
आलोक जैसे सोते से जागते हैं। इस तरह आस्था आलोक का आफिस भी संभाल रही है और अनीश का भी लेकिन इस बात को कोई नहीं जानता।
एक दिन आलोक को दिल्ली से मुम्बई बिजनेस टूर पर जाना है और आस्था का भी साथ जाना ज़रूरी है, आस्था जाने के लिए मान जाती है।
मुम्बई पहुंच कर आलोक जब होटल में, ( जहां दो रूम बुक करवाए थे ) जाते हैं, और रूम की चाबी लेते हैं तो कहते हैं कि .... मैडम का सामन भी उनके रूम में पहुंचा दो।
ओ.के. सर, कहां है मैम ?
अरे ये कौन है आपके सामने, इनका सामान ले जाओ इनके रूम में।
लेकिन सर हमें तो सिवाए आपके कोई नज़र नहीं आ रहा।
आलोक बार- बार कहते हैं कि ये आस्था है उनके साथ, लेकिन आस्था किसी को नज़र नहीं आती।
और उधर अनीश को भी अपनी असिस्टेंट आस्था से प्यार हो गया और वो उससे शादी करना चाहता है।
आलोक वहां मुम्बई में बहुत परेशान हैं और जल्दी ही काम बीच में छोड़कर वापिस आ जाते हैं।
घर आने पर अनीश आस्था से मिलवाता है और बताता है की वो अपनी असिस्टेंट आस्था से शादी करना चाहता है।
आस्था को देखकर आलोक को हैरानी होती है, वो कहते हैं कि ये तो मेरी असिस्टेंट थी और मेरे साथ टूर पर थी, लेकिन अनीश बताता है कि आस्था उसके साथ थी , ये सुनकर तो आलोक का मन और घबराता है, कि ये सब क्या हो रहा है, लेकिन वो किसी से कुछ नहीं कहता।
आलोक को रात को चैन नहीं आता, अगले दिन जब वो आफिस जाता है तो आस्था पहले से ही उसके आफिस, में मौजूद हैं।
आस्था ये सब क्या है,और कौन हो तुम ?
तुम तो मेरी असिस्टेंट बन कर काम कर रही थी, और उधर मेरे बेटे के साथ भी, ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है।
आस्था एक भयानक हंसी हंसती है और धीरे- धीरे अपना रूप परिवर्तित करती है।
अब आलोक के सामने आस्था नहीं अक्षिता खड़ी है 40 - 45 साल की उम्र, बालों में कहीं -कहीं सफेदी झलक रही है।
अ... क्षि....ता, त...... तु.... तुम ?? तुम ज़िंदा हो ? तुमने तो आत्महत्या की थी ना।
इसका मतलब तुम जिंदा हो।
लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है, मैंने इन्हीं हाथों से दाह - संस्कार किया तुम्हारा, और हमारी बच्ची कहां है, क्या किया तुमने उसका ?
ये तुम मुझसे पूछ रहे हो ? क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा भेजा हुआ, गुण्डा ही मुझे मारकर आत्महत्या का दृश्य बना गया।
और जानते हो, उसने मेरी फूल सी बच्ची का क्या किया, उसे एक कोठे पे बेच दिया, आज उसकी नथ उतरवाई है।
कहते - कहते रो पड़ी अक्षिता, मां हूं ना नहीं देख सकती बेटी को नरक में।
अक्षिता मैं मानता हूं मैंने तुम्हें मरवाने की सुपारी दी थी और बच्ची को भी मारने के लिए ही कहा था, मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, जो चाहो मुझे सज़ा दो , मुझे इस बात को लेकर बाद में बहुत पछतावा हुआ था , लेकिन समय हाथ से निकल चुका था, अब कुछ भी नहीं हो सकता था।
लेकिन अब जो तुम कहोगी मैं करूंगा, मैं अपनी बच्ची को कहां ढुंढु, मुझे कोई रास्ता बताओ , मैं अपने किए का पश्चाताप करना चाहता हूं।
अक्षिता, आलोक को उस कोठे पर ले जाती है, और आलोक अक्षिता और अपनी प्यार की निशानी को उस वेश्या से मुंह मांगी कीमत देकर खरीद लेता है।
उसे अपने साथ घर लाता है ..... बेटी तुम घबराओ नहीं ये तुम्हारा ही घर है, और बेटे और पत्नी को सब कुछ बता देता है।
फिर कानूनी तौर पर उसे अपनी बेटी स्वीकारता है और उसका नाम अक्षिता रखते हैं और अक्षिता अपनी बेटी को उसके घर पहुंचा कर खुशी - खुशी वापिस अपनी दुनियां में लौट जाती है।
आज एक मां की आत्मा को शांति मिल गई, और आलोक की पलकें खुशी से भीग गई।