धीरुभाई अंबानी
धीरुभाई अंबानी
धीरुभाई अंबानी
द बिजनेस टाइकून
पुण्य तिथि 6 जुलाई
कहते हैं जिनमें सपने देखने की हिम्मत हो,
वही दुनिया पर फतेह कर सकते हैं।
ऐसा ही एक शख्स था धीरूभाई अंबानी जिनका पूरा नाम धीरजलाल हीरालाल था, जिसने अपने जीवन काल में क्या काम नहीं किया?? पकौड़े बेचे, पैट्रोल पंप पर काम किया, मगर कभी किसी काम को छोटा नहीं समझा, जो भी किया शिद्दत से किया। उनका मानना था कि सपने देखें तो बड़े सपने देखें, क्योंकि बड़े सपने देखने वाले ही सपने पूरे करते हैं। एक चिथड़े से लेकर बिजनेस टाइकून की कहानी अनोखी है धीरूभाई की।
गुजरात के जूनागढ़ जिले में एक छोटे से गांव में 28 दिसम्बर 1932 में हीरालाल एवं जमनाबेन के घर धीरूभाई का जन्म हुआ। हीरालाल एक शिक्षक थे, घर में चार बच्चे बड़ा परिवार और बजट छोटा, हर समय आर्थिक परेशानियों से दो-चार होना पड़ता, इन्हीं परेशानियों के चलते धीरूभाई को अपनी शिक्षा को भी छोड़ना पड़ा, वो छोटे-मोटे काम करके पिता की मदद करते।
धीरुभाई ने पढ़ाई छोड़ने के बाद फल और नाश्ता बेचने का काम शूरू किया, लेकिन इसमें कुछ खास फायदा ना हुआ, फिर उन्होंने गांव के पास किसी धार्मिक स्थल पर पकोड़े बेचने का काम किया, इसमें भी कुछ ज्यादा फायदा नहीं था क्योंकि यह काम पर्यटकों पर निर्भर था, कभी ज्यादा तो कभी कम, बिजनेस की पहली ही दोनों असफलताओं को देख इनके पिता ने नौकरी करने की सलाह दी। धीरुभाई के बड़े भी रमणीक यमन में रहते थे, उनकी वजह से इन्हें यमन जाने का मौका मिला वहां इन्होंने 300 रूपए महीने पैट्रोल पंप पर नौकरी की, महज दो वर्षों में ही वो प्रबंधक बन गए, मगर उनका मन नौकरी में कम और बिजनेस कैसे शुरू करें, इन मौकों में ज्यादा रहता था, उनके बिजनेस के जूनून को एक घटना दर्शाती है कि जब वो एक कम्पनी में नौकरी करते थे तब वहां चाय का कप 25 पैसे। का मिलता था लेकिन धीरूभाई पास कै एक बड़े होटल में चाय पीने जाते थे जहां घर का कप 1 रूपए का था, जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वहां बड़े-बड़े बिजनेस टाइकून आते हैं और बिजनेस की बातें करते हैं, मै उनकी बातें सुनने जाता हूं ताकि बिजनेस की बारिकियों को समझ सकूं, जब उन्होंने 6 जुलाई 2002 में दुनिया छोड़ी तो 62 हज़ार करोड़ से भी अधिक उनकी सम्पत्ति थी। धीरूभाई मेहनत, इमानदारी और लगन से काम करते थे, धीरूभाई भारत ही नहीं संसार के प्रेरणादायी व्यक्तियों में से एक थे, आज हर युवा उनसे प्रेरणा लेता है।
धीरुभाई का विवाह कोकिलाबेन से हुआ, उनके दो बेटे अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी और दो बेटियां दिप्ती सल्गाओकर, एवं नीना कोठारी हुए, अंबानी बेटों को आज कौन नहीं जानता, बहुत कम लोग उनकी बेटियों के बारे में जानते हैं, क्योंकि वो हमेशा लाइमलाईट से दूर रही।
यमन में आज़ादी के आंदोलन के कारण भारतीयों के लिए व्यवसाय के दरवाज़े बंद होने की वजह से 1950 में धीरूभाई भारत वापस आ गए और अपने चचेरे भाई चम्पकलाल दमानी के साथ मिलकर पालिएस्टर धागे और मसलों के आयात-निर्यात का बिजनेस शुरू किया। रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन की शुरुआत मस्जिद बन्दर गाह के नरसिम्हा स्ट्रीट में एक छोटे से कार्यालय से शुरू हुआ, यहीं से जन्म हुआ रिलायंस कम्पनी का।
धीरुभाई का लक्ष्य बिजनेस में ज्यादा मुनाफा ना कमाकर अपितु गुणवत्ता और उत्पादों का निर्माण था। 1965 में दोनों की साझेदारी समाप्त हो गई, क्योंकि दोनों के व्यापार करने के तरीके अलग थे, दमानी जहां मुनाफा अधिक कमाना चाहते थे वहां धीरुभाई को जोखिम उठाने वाला माना जाता था, इसके बाद धीरुभाई ने सूत के व्यापार में हाथ डाला जिसमें पहले के व्यापार की तुलनात्मक हानि की आशंका अधिक थी। एक छोटे स्टोर से शुरू करके धीरुभाई जल्द ही अपने बलबूते पर बाम्बे सूत व्यापारी संगठन के संचालक बन गए।
सूत व्यापार की अच्छी समझ होने पर 1966 में अहमदाबाद के नैरोडा में कपड़ा मिल शुरू की और विमल ब्रांड शुरू किया जो बड़े भाई रमणीक के बेटे विमल के नाम पर रखा गया। 1980 में पालिएस्टर फिलामेंट यार्न निर्माण का सरकार से लाईसेंस लेने में सफल हुए। धीरुभाई गुजरात एवं दूसरे राज्यों के ग्रामीणों को आश्वस्त करने में सफल रहे कि जो कम्पनी के शेयर खरीदेगा वो केवल लाभ ही प्राप्त करेगा, इस तरह इसके बाद धीरुभाई सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए।
धीरुभाई बिजनेस के बेताज बादशाह थे,अपने जीवन में अनेकों सम्मान 1998 में पेनसिल्वेनिया युनिवर्सिटी द्वारा *डीन मैडल* , 1996,1998,और 2000 में पावर फिफ्टी, 1999 में बिजनेस मैन ऑफ द ईयर, 2000 में मैन ऑफ द सेंचुरी, 2001 में इकनोमिक टाईम्स अवार्ड फार कारपोरेट एक्सीलेंस के अन्तर्गत लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड इत्यादि हासिल किए, मरणोपरांत भी एशियन बिजनेस लिडरशिप फोरम अवार्ड में डीएलएफ ग्लोबल अवार्ड से सम्मानित एवं फेडरेशन ऑफ इंडियन चेम्बर्स ऑफ कामर्स एंड हिस्ट्री द्वारा मैन ऑफ 20th सेंचुरी से सम्मानित किया गया। 2012 में सन्डे टाईम्स में धीरूभाई को एशिया के टाप 50 व्यापारियों की सुची में शामिल किया गया था।
अपने जीवन काल में धीरूभाई ने रिलायंस के कारोबार का विस्तार दूरसंचार, पैट्रोरसायन, सूचना प्रौद्योगिकी, उर्जा, बिजली, फुटकर, कपड़ा , मूलभूत सुविधाओं की सेवा, पूंजी बाज़ार, प्रचालन तंत्र क्षेत्रों में किया।
1991 के बाद धीरुभाई के दोनों बेटे रिलायंस की पीढ़ी सफल तरीके से चला रहे हैं। गुरूचरण दास अपनी किताब उन्मुक्त भारत में लिखते हैं धीरूभाई सबसे बड़े खिलाड़ी थे जो लाईसेंस राज जैसी परिस्थिति में भी अपना काम निकाल पाए जहां टाटा, बिड़ला, बजाज लाईसेंस राज के आगे हार मान जाते थे। धीरुभाई येन, केन, प्रकारेन अपना हित साध लेते थे।
24 जून 2002 में धीरूभाई को दिल का दौरा पड़ने के कारण मुम्बई की बीच क्रैंडी अस्पताल में दाखिल कराया गया और 6 जुलाई को उन्होंने अन्तिम सांस ली।