अरेंज्ड लव मैरेज
अरेंज्ड लव मैरेज
अली अजगरी, नौसेना का स्मार्ट, हैंडसम और इंटेलिजेंट ऑफिसर था। जहाँ कहीं से भी गुज़रता नन्ही बच्चीयों से लेकर के जवान और अधेड़ उम्रदराज़ लड़कियाँ भी आहें भरना चूकती नहीं। इतनी खूबसूरती शायद ही किसी मर्द में खुदा ने कूट कूट कर भरी हो।अली अजगरी जैसी अपनी भी एक औलाद हो, ऐसा नसीर मोहल्ले की सभी माँओ के मान् की मुराद रहती थीं।सहजने वाली होंठों पर चमकती मुस्कान, आबालवृद्ध के साथ उनकी उम्र के मुताबिक़ सा व्यवहार, हर एक को हर वक़्त मदद करने के लिए हमेशा तैयार। भला, ऐसा होनहार बेटा कौन नहीं चाहेगा!
नौसैनिक बनने का ख़्वाब बचपन से ही देख रखा था अली के वालिद ने। पर कभी ज़ाहिर नहीं किया। वे अपनी औलादों को खुला आसमान और अपनी सोच को खोलने का पूरा मौका देने में विश्वास रखते थे। अली की अम्मी के भी ख़यालात बिल्कुल वैसे ही थे। और इसी वजह से शायद से अली ने मन ही मन तय कर लिया था कि शादी ब्याह का मामला ताउम्र का है। खुद अकेले ही उसका फैसला नहीं करेगा।अगर आगे चलकर किसीसे मोहब्बत भी हो जाती है तो, यह बात निश्चितरूप से पहले ही स्पष्ट कर लेगा कि, घरवालों की मर्ज़ी से ही ब्याह रचाएंगे। और भूले से भी अगर घरवालों से मंजूरी न मिली तो ताउम्र एकदूसरे से कोई इत्तेफाक नहीं रखेंगे।
नौसैनिक ट्रेनिंग के एन सी सी कैम्प के दौरान एक एन सी सी कैडेट से रूबरू हुआ अली।अली, अपने स्कूल-कॉलेज के ज़माने से ही वैसे तो कई लड़कियॉ के दिल की धङकनें बन चुका था। और तो और उसके जूनियर्स ही नहीं सीनियर्स भी अली से रूबरू होने के हर तरह के मौक़े पाना चाहती थीं लेकिन, कहीं पर भी अली का दिल नहीं पसीजा।
इस में कुछ तो अलग बात थीं जो अली को अपनी ओर अन्जाने में ही खींचती जा रही थीं।
माउंटेनियरिंग के कोर्स के दौरान महाराष्ट्र के कळसूबाई ट्रैक करने का एन सी सी कैडेट के लिए चैलेंज था। लड़के और लड़कियों की ओर से पहला नाम अली और उस बहादूर का ही था।
फर्स्ट कम फर्स्ट के नियमानुसार उनकी पेयर्स तय की गई थी और तो और दोनों एकदूसरे से बिल्कुल भी अलग अलग से थे। एक उत्तर तो दूजा दक्खन!
कैम्प के लीडर्स को भी दोनों की फ़िक्र रहने लगी थीं, पर रूल्स फॉलो करने भी जरूरी थे, वर्ना उन दोनों के साथ पूरा ग्रुप डिस्क्वॉलिफ़ायड हो जाने का ख़तरा पैदा हो जाता।
कळसूबाई ट्रैक बाकी सारे ट्रैक से कुछ हद तक डेंजरस था। इसीलिए लीडर्स की खास हिदायतें थी कि सब ने एकदूजे के साथ ही रहना है। किसी भी प्रकार की जल्दबाजी न होने पायें। और कॉम्पिटिशन का जज़्बा अपने तक ही रखें। उसके चलते किसीकी भी जान बचाने में हमेशा आगे रहना, जान लेने में कतई नहीं।
अली अपने बाकी दोस्तों के साथ साथ अपनी कॉ-ट्रैकर के साथ भी ट्रैकिंग का लुत्फ़ उठा रहा था। पूरा एक दिन बीत चूका था लेकिन अब तक उसे अपनी कॉ ट्रैकर का नाम नहीं पता चला। कैम्प में हर कोई एक दूसरे को उसके नंबर से जाने जाते थे।हैद्राबाद की टोली के नंबर H1,2,3 से, कोलकता के K1,2,3 से जानें जाते थे और दिल्ली के D1,2,3। वैसे ही मुम्बई के बाशिंदे M1,2,3।अली का नंबर, H1 था, और उसकी कॉ-ट्रैकर का M1, बस, इसके अलावा उसे उसके बारे में कोई भी विशेष जानकारी नहीं थी।
बहरहाल, नेशनल कैम्प के साथ ट्रैक करने का अली का ये पहला मौक़ा था। इसी के चलते उसका चयन नौसैनिकों की भर्ती में किया जाने वाला था। अली, बहुतायत उत्साही और ख़ुशमिज़ाज था।
कळसूबाई ट्रैक पर चढ़ने का दूसरा दिन आरम्भ होने से पूर्व वाली रात आयीं। थके हारे सब अपने अपने टैंट बनाने में लग गए। अली ने भी टैंट बना लिया। जिसमें बीच में पर्दा लगाया हुआ था। पर्दे के एक ओर उसकी कॉ-ट्रैकर और दूसरी ओर वो खुद् सोने वाला था।सारे टैंट लग जाने के बाद इंस्पेक्शन करने वाले जजिस को अली का टैंट भा गया। उसके रिमार्क्स बहोत ही अच्छे लिखें गए।
दूसरे दिन की सुबह अली के सीने पर लौट रहे साँप को उस बहादूर ट्रैकर ने ऐसे धर दबोचा मानो, वो उसका पालतू साँप हो!अली को M1 को थेंक्स बोलने तक का मौक़ा नहीं मिला। ट्रैक शुरू हो गया। डेंजरस ट्रेकिंग का वो हिस्सा अभी दूर था। पर जंगल के बीच रास्ते अली और उसके दोस्तों में फ़ासला बढ़ गया। H1 और M1 बाकी सारे ट्रैकर से अलायदा हो गए। रास्ता भटक गए। ट्रैकिंग के रूल्स फॉलो करते हुए भी उनका यूँ औरों से दूर हो जाना क्या संकेत दे रहा था! ये उन दोनों H1 और M1 को ना समझें उतने नादां तो वो थे नहीं।दूसरे दिन की रात आते आते अली ने टैंट बनाते वक्त M1 को थेँक्स कह ही डाला।
"इट्स ओके!" सा कोई जवाब न् मिलने पर अली ने ही बातचीत का दौर अपने हाथ में लेते हुए पूछा,
"जी, मैम, आइ मिन सर, क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ?
(एन सी सी कैम्प में लड़की और लड़कों को 'सर' का ख़िताव दिया जाता है। किसी भी लड़की के नाम के आगे सर लगाया जाता है।)
"जी सर! हिज़ाब शाह।"
अली के तो नाम सुनकर ही होश उड़ गए। एक पल लगा मानों उसके ख्वाबों में किसीने तेज़ाब डाल दिया हो। हिज़ाब, नाम से उसकी सरनेम मेल नहीं खाती थी। और, हिंदूधर्म की लड़की से इश्कबाजी करने के बाद ग़र गलती से भी ब्याह नहीं रचा पाया (*घरवालों के खिलाफ जाकर निक़ाह नहीं करूँगा - वाला वादा) तो, हिंदू समाज का गुनहगार कहलाऊँगा। इसी उधेड़बुन में अली हिज़ाब से बात करना तो दूर उसके इर्दगिर्द मंडराना भी बंद कर दिया।
तीसरा दिन, कैम्प का आखरी दिन चढ़ाई का।
आज के दिन, दोनों में से अली ने ही एक दूसरे से कटे कटे से रहने का इल्जाम अपने सर ले लिया। और, लीडर्स से डाँट भी खा ली।कळसूबाई हिल की चोटी पर पहुँचने ही वाले थे कि हिज़ाब की दोस्त तरन्नुम का पैर फिसला। छह फूट नीचे की ओर फिसलने वाली थी कि एक ओर से अली ने तो दूसरी ओर से हिज़ाब ने तरन्नुम को थामे रखा। और तरन्नुम की जान बच गई।लव ट्राएंगल शुरू हो गया।कळसूबाई हिल की चोटी पर से सारा आलम बहोत ही खूबसूरत लग रहा था। अली और हिज़ाब को छोड़कर सभी उस मोमेंट्स को कैमरे में कैद करने में लगे थे और तो और एकदूजे को भी सेल्फी लेने देने में मशरूफ़ थे।
अली हिज़ाब को देख देख आहें भरता चला जा रहा था कि, तरन्नुम ने सामने से आकर "आई लव यू" कहकर अपने प्यार का इज़हार कर दिया।
"सॉरी टू से, बट, आई लव समवन एल्स। आई कान्ट डिच यू सर तरन्नुम।" हाथ जोड़ क्षमा माँगते हुए अली वहाँ से पहले निकल गया।हिज़ाब को अली की आँखों में अपने लिए मोहब्बत देखी, पर इज़हार न करने का अली का मसला समझ न आया।कैम्प से लौटते वक्त हिज़ाब ने खुद होकर अली से बात करने की कोशीश की। तब उसके नाम और सरनेम वाली ग़लतफ़हमी भी दूर हो गई।और दोनों ने एक दूसरे से अपने मोबाइल नंबर्स एक्सचेंज किये।दोनों के ख्वाब और सोच एक सरीखें ही निकले।
'घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ जा कर निक़ाह नहीं करेंगे' वाला वादा एक ही वक़्त पर दोनों ने एक साथ ही दोहराया। और दोनों की हँसी फूट गई।वक़्त बीतता चला गया। दोनों की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी।
दोनों एक बार फिर् एकदूसरे को afsd और nsd में में मिले। दोनों की अपनी अपनी फील्ड में नियुक्ति हो चुकी थी। अली, नौसैनिक बन् चूका था और हिज़ाब, पायलट।कश्मकश की घड़ियाँ करीब आती रही, तो दोनों ने अपने घरवालों को अपने इश्क के बारे में बताया।हिज़ाब के घर में तो भूकंप के पहले की शांति सा माहौल छा गया। हिज़ाब के घरवालों को तनिक भी विश्वास नहीं था कि, उनकी लाडो को किसीसे प्यार मोहब्बत भी हो सकती है!!
लड़कों जैसी चाल-ढाल। खूबसूरती के नाम पर केवल गोरा - गुलाबी रंग। मेकअप के नाम पर साधी लिपस्टिक भी लगाना उसे मंजूर न था। सबसे सिंपल लेकिन रूल्स के मामले में एकदम लड़ाकू।हिज़ाब के घरवालों ने एक टुक सा जवाब दे दिया - "ना"
और हिजा़ब ने अपना मन शांत करने के लिए अपना तबादला बेंगलोर करवा लिया। और खुद बैंग्लोर शिफ्ट हो गई।जबकि,हिज़ाब के अम्मी अब्बू और चाची भी एयर फोर्स में जॉब करते थे। लेकिन दादा के ज़माने से वे कोलाबा कॉज़ वे के बंगला नंबर 13 में रहते थे। और तो और हिज़ाब के चाचा भी नैवी में ऊँचे हौदे पर होने से वो सारे वहीं पर रह रहे थे।
अली के घरवाले उसके लिए लड़कियाँ पहले से ही ढूँढ़ रहे थे। नौसैनिक बनने के बाद से तो उनके घर मे रिश्तों की बौछारें शुरू हो गई।अली के पैरेंट्स ने अली से कैम्प में जाने से पहले ही पूछ लिया था कि, उसे कोई पसंद हो तो बता दें। तब तक अली की ज़िंदगी मे कोई भूचाल आया नहीं था तो उसने "जैसी आप सब की मर्ज़ी" कहकर बात को रफादफा कर दिया था।अब मामलात बदल गए थे, लेकिन, कहें तो भी कैसे! घर का माहौल हिजाब के घर जैसा बिल्कुल भी स्ट्रिक्ट नहीं था। फिर भी खुद के ही फ़ैसले को पलटना था।स्वयंवर रचे माहौल को बिना बम फोड़े शांत करना था।आख़िरकार अली को बताना ही पड़ा कि उसे कोई पसंद आ गया है, और वो उसीसे निक़ाह करना चाहता है।जहाँ बात चलाई थी अली की बुआ ने, वहाँ बेइज्ज़त होना पड़ेगा, ये सोचकर घरवालों ने मना कर दिया।अली, भी अपने वादे से मुकर न सका और हिज़ाब को कॉल करके मना कर दिया। और मोबाइल में से अपने अपने नंबर्स डिलीट कर दिए और प्रि डिसाइडेड रूल्स के तहत अजनबी बन गए।इधर हिज़ाब के घर से भी ऐसा ही कुछ जवाब दिया गया था तो उसने भी एकदूसरे को भुलाने का वादा पक्का कर लिया।
साल भर बीत चुका था। अली की अब अफसरों में गिनती होने लगी थी। उसका तबादला भी हो चुका था। अब वो मुंबई में कोलाबा कॉज़ वे पर मिले क्वोटर्स में अपने पूरे परिवार के साथ रहने आ गया था।नैवी की एन्युल मीटिंग्स के दौरान नसीरुद्दीन शाह के जिम्मे नए ऑफिसर्स को ट्रेनिंग देना और मुख्तलिफ कर एक्जाम्स के लिए प्रिपेर करने का कार्य आया था।क़्त रहते अली सब ऑफिसर्स का चहिता बन गया था। हैद्राबाद शहर जैसा ही आलम यहीं पर भी हो चला था।नैविज़ की पार्टियों में भी एक ही नाम सबकी ज़ुबाँ पर झिलमिलाता था - अली अजगरी।
अली और हिज़ाब की जुदाई के तीसरे वर्ष हिज़ाब के चाचू ने चहचहाती, मुस्कुराती हिज़ाब की मुस्कान लौटाने का खुद से किया गया प्रॉमिस निभाने का वक़्त ला ही दिया।चाची चाचू की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह पर अपने नैविज़ कलीग्स को भी इन्वाइट किया। और अपने घरवालों से अली से रूबरू करवाया।हिज़ाब शाह के घरवाले अली से बेतहाशा इम्प्रेस हुए, और इशारों इशारों में तय कर लिया हिज़ाब के लिए।चाचू की शादी की सालगिरह पर हिज़ाब को छुट्टी नहीं मिली थी वर्ना ये बेतकल्लुफी आसान हो जाती।दोनों के घरवाले एकदूसरे के क़रीबी दोस्त से बन गये। एकदूसरे के घर आना जाना शुरू हो गया।
हिज़ाब की खाला का छोटा बेटा अन्जान और अली की बुआ की बेटी सायरा भी तो इस दिवाली इकठ्ठा हुए थे। शादी ब्याह का माहौल सा बना हुआ था लेकिन अली और हिज़ाब की मुलाकात अब तक नहीं हो पाई थीं।
कुछ दिन बाद, अली अपनी फैमिली के साथ लड़की देखने बैंग्लोर चला गया लेकिन वो बेमन से इस रिवाजों को निभाता चला जा रहा था कि, जब वो लड़की अली के लिए खसखस का ठंडा ज्यूस लेकर आयी तो अली ने बिना उसे देखे ज्यूस का गिलास ले लिया।जैसे ही अली ने ज्यूस का गिलास उठाया उस लड़की ने अली को अठखेलियाँ करते हुए हल्का सा धक्का दिया और अली के हाथ से ज्यूस का गिलास छूट कर खुद पर ही गिर गया जब उसने गुस्से में लड़की की ओर देखा तो भौंचक्का ही रह गया।लेकिन वो दो पल के लिए हैरान और फिर खुश हो गया क्योंकि वो लड़की कोई और नहीं हिज़ाब ही थी, घरवालों के कहने पर हिज़ाब उसे वॉशरूम ले गयी और फिर दोनों जोर जोर से हँसने लगे।
बाद में दोनों बाहर आये तो अली के घरवालों ने उससे पूछा की लड़की कैसी लगी तो अली ने झट से हाँ कह दिया जिससे उसके घरवाले थोड़ी सोच में पड़ गए क्योंकि अली ने ३ वर्ष पहले ऐसा कहा था कि वो किसी से प्यार करता है। और शादी करना चाहता है।और आज वो इस लड़की से निक़ाह करने के लिए तैयार हो गया और यही हाल हिज़ाब के घरवालों की भी थी वो भी इस बात से हैरान थे कि ३ वर्ष पूर्व ही उसने कहा था की वो किसी और से प्यार करती है और आज.........
फिर दोनों के घरवालों ने सोचा कि चलो अच्छी बात हैं बच्चों की रज़ामंदी में ही घरवालों की खुशी होती है। लेकिन दोनों के घरवालों को ये चिंता सताए जा रही थी कि कहीं वो निक़ाह के समय कहीं भाग ना जायेबस, इसीलिए दोनों के घरवालों ने अपने बच्चों पर नजर रखना शुरू कर दिया लेकिन वो तो एक दूसरे लवर्स थे। अब तो खुल्लमखुल्ला मिलना झूलना और बातें शाते करने लगे, तो बाद में घरवालों को तसल्ली हो गयी कि वो दोनों एक दूसरे के साथ बहोत खुश हैं, तो उनकी सगाई करा दी।
लेकिन अब दोनों एक दूसरे से इतना जुड़ गए थे और उनकी हरकतों को देखते हुए उनके घरवालों ने उनका निक़ाह जल्द से जल्द करने का फैसला किया।
अली और हिज़ाब दोनों अपनी मोहब्बत को अपनी फैमिली के लिए कुर्बान करने को तैयार थे शायद इसीलिए उन दोनों को खुदा ने एक दूसरे से अलग नहीं किया और दोनों के घर वालों की मर्ज़ी से दोनों का निकाह हो गया और इस तरह से दोनों की लव वाली अरैंजन्ड मैरेज हो गई।
नैविज़ की पार्टी में हिज़ाब के चाचू ने सीक्रेट मिशन का भंडाफोड़ दिया। और सारे के सारे लोगों की वाह वाही तो हाँसिल हुई ही पर एक कपल ने उनके पैर छूकर उनको तहे दिल से थेँक्यू कहकर गले मिल गए।चाची ने चाचू (अपने शौहर) के साथ बॉल डान्स करते हुए गुनगुनाया -
न उम्मीद थीं न कोई शुमार था उन्हें,
बर्बस न मिलवाने का ग़ुबार था जिन्हें।
खुदा के बंदों को मिलवा ही दिया गले,
कुर्बानी का जज़्बा ही पाक मोहब्बत है,
मिलवा के दो सच्चे इश्कबाज़ों को, मियां
हम तुम्हारी अदा पर मेहरबान हो चले।।