अपवित्र
अपवित्र
पंडित जी के घर में समर लगाने का काम हो रहा था। रज्जो, धनिया, सोबरन और कालू की चौकड़ी इस काम में माहिर थी। उनकी बहुत पूछ थी। वे ही पंडित जी के घर काम कर रहे थे।
आखिर समर शुरू हुई। पंडित जी के घर पानी की कोई दिक्कत नहीं रही।
थोड़ा चलते ही रज्जो को याद आया। अपने औजार तो वह पंडित जी के घर ही भूल आया है। वापस चल दिया।
घर की धुलाई हो रही थी। अम्मा भी जोर जोर से बोल रहीं थी।
" छोटी जाति के लोग घर में आते रहे। घर अच्छी तरह धोना है। थोड़ा गंगाजल भी छिड़क देना। पूरा घर अपवित्र है।"
रज्जो देख रहा था कि उनके द्वारा अपवित्र किया पंडित जी का घर उन्हीं ने बनाये समर के पानी से शुद्ध हो रहा था। पर कैसे। समझ नहीं आया।
