Ragini Ajay Pathak

Tragedy Inspirational

4.5  

Ragini Ajay Pathak

Tragedy Inspirational

अपशगुनी नहीं।।

अपशगुनी नहीं।।

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रमा अस्पताल के कॉरिडोर में टहल रही थी। उसके आंखों से आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे। लेबर रूम में अंदर उसकी देवरानी रूपा प्रसव वेदना से तड़प रही थी।

बाहर रमा हाथ मे फोन लिए लगातार घर वालो को फोन लगाए जा रही थी लेकिन किसी का भी फोन नही लग रहा था रमा को ठंड के महीने में मारे डर के माथे से पसीने छूट रहे थे। उसे डर था कि अगर आज रूपा को कुछ भी हुआ तो उसका दोष उसे ही सिर पर आएगा।


रमा के सास, ससुर कपड़ो की खरीदारी करने बाजार गए थे,देवर रोहन ऑफिस के काम से शहर के बाहर और रमा के पति अमर का आज बिजनेस के सिलसिले में किसी के साथ जरूरी मीटिंग में व्यस्त थे।

रमा के लगातार फोन करने पर उन्होंने मैसेज से रिप्लाई की वो अभी मीटिंग में व्यस्त है। किसी के फोन ना उठाने पर घबराहट में रमा ने सबको मैसेज कर के बता दिया। की वो रूपा को लेकर अस्पताल आयी है।


प्रसव कमरे से अंदर बाहर करती नर्सों ने कितनी बार रमा से कहा," आप बैठ जाइए, कब तक खड़ी रहेंगी?"


जवाब में रमा कहती,"मैं ठीक हुँ।"


रूपा की दर्द से चीखती उसकी आवाज,रमा के दिल की धड़कनें तेज कर देती और वो टकटकी लगाए दरवाजे की तरफ देखती भागती हुई जाती।


तभी एक नर्स ने कहा,"सुनिये आपको डॉक्टर बुला रही है।"


रमा भागती दौड़ती डॉक्टर के कमरे में पहुंची तो डॉक्टर ने कहा,"देखिये हमे समय से पूर्व प्रसव कराना होगा। इसके लिए हमे ऑपरेशन करना होगा, क्योंकि बच्चें की धड़कनें धीमी हो गयी है और थैली से पानी निकल चुका है। आप जल्दी से इन पेपर्स पर साइन कर दीजिए।"पेपर्स देखते रमा के हाथ पांव सासुमां के डर से थर्राने लगे।तभी नर्स ने कहा,"देखिये जल्दी साइन कीजिये हमारे पास समय कम है।"


रमा ने अपनी आंखों से आंसू पोछे और पेपर्स पर साइन कर दिया। साइन करने के बाद उसने नर्स से कहा"ये लीजिए पेपर्स। लेकिन मेरी रूपा और बच्चा दोनो सही सलामत मुझे चाहिए।"


नर्स ने कहा,"आप चिंता मत कीजिये सब अच्छा होगा बस आप भगवान से प्रार्थना कीजिये।"


आइये जानते है आखिर रमा इतनी डरी हुई क्यों थी? रूपा को लेकर


आठ साल पहले जब रमा शर्मा निवास में अमर के साथ ब्याह कर ससुराल आयी तो सब बहुत खुश थे। खासकर उसकी सास गीताजी क्योंकि रमा अपने साथ ढेर सारा दहेज उनके मन मुताबिक लेकर आयी थी। जैसा,जितना और जो जो चीजे उन्होंने मांगी थी सबकुछ चुनचुनकर रमा के पापा ने उनको दिया था। सासुमां ने ससुराल की सारी जिम्मेदारियों को उसको ऐसे सौंपा जैसे सब कुछ उसकी ही जिम्मेदारी थी उसने बिना उफ्फ किये हमेशा घर के एक एक काम किये।शादी के ठीक दो साल बाद उसने दो जुड़वां बेटियों को जन्म दिया। लेकिन बेटियों के जन्म के समय एक दुर्घटना में उसे दुबारा कभी माँ ना बन पाने का अभिशाप मिला। जिसने उसके पूरे जीवन को बदलकर रख दिया।

पोते की आस लगाए बैठी गीताजी अब रमा को अपशगुनी मानने लगी थी। वो उसकी बेटियों को भी कभी प्यार से गले ना लगाती। अमर को ये बात बहुत अच्छे से पता थी। लेकिन वो हर बार रमा को ही समझाता।कहता,"रमा तुम मां की बातों को दिल से मत लगाया करो। देखना समय के साथ वो भी बदल जायेगी।तुम बस धैर्य रखो।"


लेकिन रमा का देवर रोहन उसका बहुत सम्मान करता था। वो उसकी दोनो बेटियों को भी बहुत प्यार करता। और जब भी अपनी माँ को उनके साथ दुर्व्यवहार करता देखता तो अपनी माँ को टोक देता। कहता "माँ आप भी तो किसी की बेटी ही है।"इसलिए गीताजी उसके सामने कुछ भी गलत करने से बचती।

गीताजी में रोहन की पूरी शादी के दौरान रमा को रसोई से बाहर नही निकलने दिया। वो कोई ना कोई बहाना बनाकर उसको अंदर ही कर देती। और रमा खुद भी जाने से बचती क्योंकि ,"उन्होंने रमा को शक्त हिदायत दी थी कि उसकी परछाई भी उनके बेटे बहु पर ना पड़े"


रूपा जब गर्भवती हुई तो उसके गोदभराई के समय उन्होंने रमा से कहा,"सुनो रमा!बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि "बांझ का तो मुँह भी देख लो लेकिन निरवंशी का तो चेहरा देखना भी पाप है।"


इसलिए मै चाहती हुँ की तुम रूपा की गोदभराई से पहले अपने मायके चली जाओ जब तक कि रूपा बच्चे को जन्म ना दे दे। और हाँ अमर को ये बात मत बताना उससे कोई भी बहाना कर देना। उसका जब मन चाहे तुम लोगो से मिल सकता है। आखिर तुम्हारा मायका कौन सा दूर है?एक ही शहर में है जब जी चाहे तुमसे और बच्चो से मिल लेगा।

रमा उसदिन इतना रोयी जिसकी कोई सीमा ना थी उसने कभी सपने में भी नही सोचा था कि उसका बेटा ना होने की वजह से इतना अपमान होगा। रमा अगले दिन अपने मायके चली गयी।

रमा को यू अचानक आया देखकर उसकी मां ने पूछा,"अरे अचानक बिना बताए क्या बात है रमा, सब ठीक तो है ना?"


रमा ने कहा,"हाँ माँ सब ठीक है बस आपसे और पापा से मिलने का मन हुआ तो चली आयी। पापा कैसे है?"


"ठीक है बेटा, आज 6 साल से बेड पर है क्या कहूँ किससे कुछ समझ नहीं आता। तू तो जानती है।"


"हाँ!माँ"


रमा के पिताजी को उसकी शादी के बाद ब्रेन स्ट्रोक आया और उनका पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया। जिस वजह से रमा अपना दुःख अपने मायके में भी अपनी माँ से नही कहती थी। एक छोटा भाई था तो वो कितनी और किस किस की जिम्मेदारी उठाता।रमा के मायके आने के अगले दिन ही उसके फोन पर देवरानी रूपा का सुबह 10 बजे फोन आया,"उसने उठाकर ,"हेलो" कहातो उधर से रूपा के दर्द से कराहने और रोने की आवाज आयी।


"क्या हुआ रूपा?सब ठीक तो है ना तुम रो क्यों रही हो?"


भाभी अभी मैं आपको कुछ नही बता पाऊंगी बस आप जल्दी से घर आ जाइये।


रमा ने अपनी मां से कहा,"माँ आप इन दोनों का ख्याल रखना मै अभी आती हूं।"


ऑटो से रमा घर पहुंची तो रूपा दर्द से कराह रही थी। और घर मे कोई भी मौजूद नहीं था रूपा को लेकर घर मे ताला लगाकर रमा अस्पताल गयी। रूपा ने रास्ते मे बताया कि माँजी ससुर जी के साथ गोदभराई के लिए बाजार करने गयी है और रोहन सुबह ही ऑफिस के काम से शहर से बाहर चला गया। रूपा का अभी सातवां महीना ही चल रहा था।

तभी नर्स ने आकर कहा,"मुबारक हो बेटा हुआ है लेकिन अभी प्री मैच्योर होने की वजह से उसको अस्पताल में हमारी निगरानी में रखना होगा।"इतने में सभी घर वाले भी आ गए। गीता जी ने आव देखा ना ताव उन्होंने सबके सामने अस्पताल में रमा के गालों पर दो थप्पड़ लगा दिए।


और कहा,"अपशगुनी कही की ख़ुद तो बेटा जन्म नही पायी तो देवरानी की खुशियों में भी आग लगा दी। मना किया था ना तुझे आने से।"


इतने में अमर वहाँ आ गया.उसने गुस्से में कहा,"मां ये क्या तरीका है?आपने रमा को मारा क्यों? आखिर उसकी गलती क्या थी यही ना कि उसने रूपा की मदद की,वरना आज क्या होता?"


तू चुपकर जोरू का गुलाम,तू तो इसकी तरफदारी करेगा ही।


तभी वहाँ नर्स ने आकर रमा से कहा,"आपको अंदर डॉक्टर बुला रहे है।"गीताजी ने कहा,"मै जाऊंगी अंदर और तू चुपचाप अपने मायके जा।"


गीताजी अंदर डॉक्टर के कमरे में गयी और उन्होंने अपना परिचय दिया। तब डॉक्टर ने कहा,"अब मां और बच्चा दोनो खतरे से बाहर है लेकिन अभी दोनो को ही बहुत देखभाल की जरूरत है। ये कुछ दवाइयां है आप बाहर मेडिकल स्टोर से लेते आइये।"


ठीक है कहकर जैसे ही कमरे से बाहर गीताजी निकली उनका पैर फिसला और वो अस्पताल में ही गिर गयी। उन्होंने उठने की कोशिश की लेकिन वो उठने में असमर्थ थी और दर्द से उनके आंसू निकल गए।डॉक्टर ने एक्सरे और चेक करके बताया कि पांव फैक्चर हो चुका है एक महीना बेडरेस्ट करना होगा।अब रमा के ही कंधो पर सारी जिम्मेदारी आ गयी वो रोज घर के काम खत्म करके रूपा के साथ उसे लेकर रोज अस्पताल जाती। एक महीने के अथक प्रयास के बाद डॉक्टर ने बच्चे को घर ले जाने की अनुमति दे दी।

और गीताजी के पांव भी ठीक हो गए।


घर आने के अगले दिन जब रूपा के कमरे में जाकर रमा ने बच्चें को अपने गोद में लिया तो पीछे से कड़कती आवाज में गीताजी ने कहा,"बड़ी बेशर्म हो गयी हो तुम इतनी बार बोला तुमको की तुम रूपा और उसके बेटे से दूर रहो लेकिन तुम मानती नही।"इतना तो अपशगुन करा कर जी नही भरा। जो कुछ और कराना चाहती हो।"गीताजी की कड़कती आवाज सुनकर सभी वहाँ इकट्ठा हो गए

रमा को लगा था शायद अब गीताजी बदल जाये लेकिन उसकी सोच गलत थी। उसने जैसे ही बच्चे को रुपा के गोद मे देना चाहा।


रूपा ने कहा,"भाभी आप भुल गयी। ये आपका बेटा आपके ही पास रहेगा.... हमने अस्पताल में क्या वादा किया था दिन की जिम्मेदारी आपकी और रात की मेरी तो अब ये आपकी जिम्मेदारी का समय है ।रात भर जगाया है आपके लाडले ने मुझे,अब मुझे आराम करना है। मुझे तो नींद आ रही है।"


रूपा ऐसे व्यवहार कर रही थी। जैसे उसने माँजी की बातें सुनी ही ना हो।तभी गीता जी ने कहा,"रूपा, तुमने सुना नही क्या ?मैंने क्या कहा?"


तो रमा ने कहा,"नही रूपा, तुम संभालो मैं जाती हूं।"रमा ने बच्चे को पास खड़े रोहन की गोद मे दे दिया। और वहाँ से जाने लगी। तो सामने खड़े अमर को देख वो खुद पर काबू ना कर पायी और उसकी आँखों से अश्रुधार फुट पड़े।


तभी रूपा ने कहा"रुकिए भाभी" ,आज बिना बोले काम नही चलने वाला।कभी कभी बड़े इतना मजबूर कर देते है ,कि उनको जवाब देकर सच का आईना दिखाना ही पड़ता है।


"सुना!माँजी अच्छी तरह सुना ।लेकिन जिस तरह हम घर मे गन्दगी इकट्ठा करके नही रख सकते। ठीक वैसे ही मैं आपकी ये बेकार की बातें नही सुन सकती और मान सकती।"


मैंने और रोहन ने आपको बहुत बार समझाया । की आप भाभी को यू हर बात में अपमानित ना किया करे।लेकिन आप है,कि मानने के लिए तैयार ही नही है।वो तो भाभी है। जो आपकी इन कड़वी बातों को सुनकर रह जाती है। वरना उनकी जगह कोई और होता तो अब तक आपको करारा जवाब और सबक कब का मिल चुका होता।


आपकी जानकारी के लिए बता दूँ।मेरे लिए मेरी जेठानी कभी अपशगुनी नही थी ना है ना रहेंगी। बल्कि मेरे और मेरे बच्चे के लिए तो वो जीवनदाता है। अगर ये समय से फोन उठाकर यहाँ आकर मुझे अस्पताल ना ले जाती। तो ना जाने क्या हो जाता?और बेटी को जन्म देने से कोई अपशगुनी हुआ। तो मुझे आप ये बताइए ,आप देवी की पूजा क्यों करती है? तब तो मेरी माँ और आपकी मां भी अपशगुनी हुई। क्योंकि मै भी दो बहनें हुँ .और आप चार बहनें है .हम दोनो को ही भाई नहीं। तो अब बताइए कि क्या ये कहना ठीक है?


इतने पर रोहन ने बच्चें को रमा की गोद मे लेने का आग्रह करते हुए कहा,"भाभी! आप तो इसकी बड़ी माँ है. और इस पर सबसे पहला अधिकार भी आपका ही होगा। इसलिए इसको आपका सानिध्य, प्यार और संस्कार मिलना ही चाहिए।"


रमा ने अमर की तरफ देखा तो उसने सहमति में सिर हिलाया। रमा ने बच्चे को अपनी गोद मे लिया और उसका माथा चूम लिया।


तभी रमा के ससुर जी ने कहा,"गीताजी हो गया या कुछ और सुनना सुनाना बाकी है। जीवन और मरण सब ऊपर वाले के हाथ में है। हम मनुष्यों के नही। और मै तो कहता हूं कि अच्छा है कि ये जन्म और मृत्यु का चक्र उन्होंने अपने हाथ मे रखा है । वरना तो कुछ आप जैसी सोच के लोग कभी बेटियों को जन्म दे ही नागीताजी ने घूर कर अपने पतिदेव को देखा और इतना सा मुँह लेकर वहाँ से गुस्से में तमतमाते हुए निकल गयी।



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