अपना घर
अपना घर
एक सुबह, अनामिका एक बड़ी कंपनी के ऑफिस में इंटरव्यू देने के लिए पहुंची। यह नौकरी उसके लिए सिर्फ एक पेशेवर अवसर नहीं थी, बल्कि उसके सपनों की चाबी भी थी। वह चाहती थी कि वह अपने लिए एक "घर" बना सके, एक ऐसा घर जो केवल उसका हो।
इंटरव्यू शुरू हुआ। इंटरव्यू बोर्ड में बैठे वर्मा सर, जो कि बहुत ही अनुभवी और संवेदनशील व्यक्ति थे, सवाल पूछने लगे।
वर्मा सर ने पूछा, "आप नौकरी क्यों करना चाहती हैं?"
अनामिका ने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "साहब, मुझे अपना घर बनाना है।"
वर्मा सर थोड़े चौंक गए। उन्होंने अगला सवाल किया, "क्या आप किराए के मकान में रहती हैं?"
अनामिका ने सिर हिला कर जवाब दिया, "नहीं साहब, मैं अपने पति के घर में रहती हूँ।"
वर्मा सर ने फिर पूछा, "तो फिर आपको घर क्यों बनाना है?"
यह सवाल सुनकर अनामिका थोड़ी देर चुप रही। उसकी आँखों में एक गहरी उदासी थी, और उसकी जुबान से निकले शब्द उसकी असलियत को बयान करने लगे। उसने धीमी आवाज में कहा, "जब भी मैं अपने घर में किसी गलत चीज के खिलाफ आवाज उठाती हूँ, मुझे यह कहकर धमकाया जाता है, 'अपने माँ-बाप के घर जा, वहीं रहना!'"
वर्मा सर की आँखें और गहरी हो गईं। वे सवाल पूछने वाले की जगह अब एक समझने वाले इंसान बन गए थे। उन्होंने पूछा, "और तुम्हारे माता-पिता क्या कहते हैं?"
अनामिका ने गहरी सांस ली और बोली, "साहब, जब मैं अपने माँ-बाप के पास जाती हूँ, तो वो कहते हैं, 'बेटा, अब वही तुम्हारा घर है। कैसे भी वहाँ रहो।' मैं आज तक यह समझ नहीं पाई कि मेरा असली घर कहाँ है, साहब।"
इंटरव्यू बोर्ड में बैठे सभी लोग चुप हो गए थे। उनकी बातें अब सिर्फ नौकरी या इंटरव्यू तक सीमित नहीं थीं। अनामिका की आवाज में एक दर्द था, जो उसके संघर्षों की कहानी कह रहा था। उसकी बातें एक समाज की सच्चाई का आईना थीं, जहां एक महिला को अपना घर तलाशने की जद्दोजहद करनी पड़ती है, फिर चाहे वह कितनी ही मेहनत क्यों न करे।
आँखों में नमी लिए अनामिका ने आगे कहा, "सोचा है, नौकरी करके 'अपना घर' बनाऊँगी। एक ऐसा घर, जहां न तो किसी की धमकी होगी और न ही किसी का अधिकार। बस मेरा होगा, सिर्फ मेरा।"
यह सुनकर वर्मा सर की आंखों में एक चमक आ गई। वह समझ चुके थे कि अनामिका की यह इच्छा सिर्फ एक घर बनाने की नहीं है, बल्कि वह अपनी पहचान, आत्मसम्मान और स्वतंत्रता को पाने की लड़ाई लड़ रही है।
कुछ पलों की खामोशी के बाद, वर्मा सर ने मुस्कुराते हुए कहा, "अनामिका, हमें तुम्हारी जैसी मजबूत और जुझारू महिलाओं की जरूरत है। नौकरी तुम्हारी है। अब तुम अपना घर ज़रूर बनाओगी।"
अनामिका की आँखों में आँसू थे, लेकिन अब वह आँसू दुःख के नहीं, बल्कि खुशी और संतोष के थे। अब उसे विश्वास हो गया था कि वह अपना घर ज़रूर बनाएगी, एक ऐसा घर जहां वह सुरक्षित महसूस कर सके, जहां उसे खुद पर गर्व हो और जिसे वह अपने नाम से बुला सके।
यह कहानी हमें बताती है कि एक औरत की असली लड़ाई सिर्फ समाज या पारिवारिक मान्यताओं से नहीं होती, बल्कि अपनी पहचान, अपने घर और अपने आत्मसम्मान के लिए होती है। Anamika की जिजीविषा और उसके सपने हमें यह सिखाते हैं कि कठिनाइयों के बावजूद हम अपने जीवन में अपने लिए एक ऐसा स्थान बना सकते हैं, जिसे हम 'अपना घर' कह सकें।
