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Priya Silak

Inspirational

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Priya Silak

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मा बाप की सेवा

मा बाप की सेवा

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वंदना रसोई का काम से फ्री होकर मम्मी जी के कमरे की तरफ जा रही थी। सोने से पहले सुबह की तैयारी कर के रखना चाहती थी। सुबह तो खुद के लिए भी ढंग से वक्त नहीं मिलता। ऊपर से ननद अचानक से शाम को अपने ससुराल से आ गई तो काम वैसे भी बढ़ गया। स्कूल जाने से पहले सुबह ढंग से थोड़ा बहुत काम कर जाए इसके लिए पहले से तैयारी कर लेना बेहतर है। स्कूल में वार्षिक परीक्षा चल रही है तो छुट्टी लेना तो असंभव है।


यही सोचकर मम्मी जी के कमरे की तरफ जा रही थी, पर कमरे के दरवाजे पर पहुंचकर उसके पैर ठिठक गए। अंदर उसकी सास सुशीला जी, उसका पति मधुर, देवर अंशुल और ननद वनिता बैठ कर बात कर रहे थे। बार बार वंदना का नाम आ रहा था इसलिए वंदना ने बात सुनना ही उचित समझा।


" भैया मैंने सुना है कि भाभी के मायके में उनके पापा ने प्रॉपर्टी बेची है और उसका अच्छा खासा पैसा भी आया है। खुद उनके पापा मम्मी कितने अच्छे फ्लैट में रहने गए हैं। साथ ही अपने बड़े भाई के बेटे को भी रख रखा है। तो भाभी को भी तो पैसे मिले ही होंगे "


वनिता की बात सुनकर मधुर बोला,

" अरे मुझे क्या पता? ना तो पापा जी ने कुछ बताया और ना ही वंदना ने। दोनों की दोनों बाप बेटी अंदर के अंदर ही सब कुछ कर लेते हैं। पर यहां दामाद की कोई इज्जत नहीं है। मुझे तो बताना भी ठीक नहीं समझते"

" अरे भैया, तो पता करो ना। ऐसे थोड़ी ना काम चलेगा। आखिर कितने पैसे आए हैं, पता होगा तभी तो अपना बजट बना पाएंगे। और इस बार मुझे बाइक लेनी ही लेनी है। चाहे कुछ भी हो जाए"


अंशुल ने जिद करते हुए कहा तो वनिता कहां पीछे रहती। वह भी अपनी फरमाइश करते हुए बोली,

" हां भैया, पता कर ही लो। मुझे भी इस बार सोने के कड़े तो चाहिए ही चाहिए। आप लोगों से तो इतना भी नहीं हुआ कि मुझे सोने के कड़े शादी में ही दे देते। जब मेरी देवरानी अपने मायके से आए हुए सोने के कड़े पहनती हैं तो मुझे सही में बहुत बुरा लगता है। ऐसा लगता है कि जैसे मुझे ही दिखा रही हो"

तभी सुशीला जी भी बोली,

" तुम दोनों चुप करो। मुझे बात करने दो। देखो मधुर, पैसों की जरूरत इन दोनों को ही नहीं मुझे भी है। मैं भी सोच रही हूं कि इस मकान के ऊपर एक मंजिल और चढ़ा दूं, ताकि कल को अंशुल की भी शादी हो तो परेशानी ना हो। अब हम लोग तुमसे नहीं कहेंगे तो किससे कहेंगे? बहू के पास पैसा रखा है और हम लोग परेशान हो रहे हैं। ये कोई बात होती है क्या? उल्टा जब पैसा हमारे पास हो तो हमें तो हमारे स्टैंडर्ड बढ़ाना चाहिए।


तुम अपने ससुर जी से पूछोगे तो अच्छा नहीं लगेगा। पर तुम वंदना से तो बात कर ही सकते हो ना कि आखिर प्रॉपर्टी को बेचने पर कितना नफा हुआ है। आखिर वो अपने माता पिता की इकलौती बेटी है। आज नहीं तो कल सब कुछ तुम्हारा ही तो होना है। उनकी प्रॉपर्टी पर तुम्हारा भी पूरा अधिकार है। मुझे तो यकीन नहीं होता कि वंदना ने तुम्हें अभी तक कुछ नहीं बताया। और वंदना के ताऊ जी की बेटे को क्यों रख रखा है? मधुर सँभल जा, नहीं तो मालूम पड़े तेरा हिस्सा वो तेरा साला ले उड़े"

थोड़ी देर की खामोशी के बाद मधुर बोला,

" ठीक है मां, मैं वंदना से बात करता हूं। मैं भी सोच रहा हूं कि ये नौकरी वौकरी छोड़ कर खुद का बिजनेस ही शुरू कर लूँ। कब तक लोगों की जी हुजूरी करता रहूंगा। अब जरा बात करता हूं कि कितने पैसे आए हैं ताकि आगे की प्लानिंग कर सकूं"

वंदना ने उसके आगे कुछ नहीं सुना। वो उल्टे पैर वापस अपने कमरे में आ गई। उन लोगों की बातें याद कर उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। कितने लालची हैं ये लोग? जब देखो बहाना बनाकर उसके मायके से पैसा निकालने के लिए मुंह खोले बैठे रहते हैं। जैसे ये लोग कमा कर उसके मायके रख कर आए हैं। जबकि उसके मायके वालों को जब उसकी जरूरत होती है तो ये लोग साथ भी नहीं खड़े होते।

पिछले साल वनिता की शादी में भी पापा ने अपनी एफ डी तुड़वा कर इन लोगों को कर्जा दिया था, जिसे तो ये लोग डकार गए। एक बार भी नहीं पूछा कि पापा जी आपको पैसों की जरूरत है या नहीं। लौटाने है या नहीं।


यही नहीं, अभी जब दो महीने पहले पापा को हार्ट अटैक आया था, तब तो इनमे से कोई सेवा करने नहीं गया था। उसकी मां की तो हिम्मत टूट चुकी थी। वंदना ही दौड़ भाग कर रही थी। बस उसके साथ उसके ताऊ जी का बेटा उदय ही खड़ा था।मधुर तो जब तक पापा हॉस्पिटल में रहे, तब तक रोज शाम थोड़ी सी देर आकर चले जाते थे। एक बार भी उसने ये पूछना मुनासिब नहीं समझा कि पैसों का बंदोबस्त कैसे हो पाया? जबकि वो अच्छी तरह जानता था कि उसके मायके वाले भी मध्यम वर्गीय परिवार के लोग हैं। और प्रॉपर्टी के नाम पर उनके पास सिर्फ उनका मकान है जिसमें वो रहते हैं।

उस समय तो वंदना और उदय ने उधार ले कर पापा का इलाज कराया था। लेकिन पापा के इलाज होने के बाद पैसों को चुकाने के लिए अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपना मकान बेच दिया और बचे हुए पैसों में खुद के लिए फ्लैट लेकर उसमें रहने लगे।

अब उसी बेचे हुए मकान के पैसे इन लोगों को नजर आ रहे थे।

खैर, थोड़ी देर बाद अचानक सुशीला जी की आवाज आई,

" बहू जरा कमरे में आना तो"

वंदना समझ गई कि उससे पैसा निकालने की रूपरेखा तैयार कर ली गई है। अब उसे बुलाया जा रहा है। वो उठकर के सुशीला जी के कमरे में गई तो सुशीला जी की जगह मधुर ने कहा,

" वंदना मैंने सुना है कि तुम्हारे पापा ने अपना मकान बेच दिया है और वो फ्लैट लेकर रह रहे हैं। साथ ही उदय को भी अपने पास रख रखा है"


" हां, अभी कुछ दिन पहले ही बेचा है। आखिर कर्जा चुकाना था। उनका कौन सा बेटा बैठा हुआ है जो उनके कर्जे चुकाएगा या उनकी बीमारी का इलाज करवाएगा। और रही बात उदय की, तो अभी पापा को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता"

" हां, वो तो ठीक है लेकिन कितने में बेचा? आखिर मैं दामाद हूँ। इतना हक तो मेरा भी बनता है कि मैं भी जानूँ कि पापा जी प्रॉपर्टी बेच रहे हैं या कहीं फ्लैट ले रहे हैं। उनके पास कुछ बचा है या नहीं"


" अरे हां, आप तो दामाद है। आपका तो हक है सब कुछ जानने का। चलिए मैं बता देती हूं आपको। पापा के इलाज में काफी पैसा खर्च हो गया था, जो कर्जा लेकर के किया गया था। तो उस कर्जे को चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं था। सिर्फ वो मकान था इसलिए उन्होंने उसे बेचा। पहले कर्जा चुकाया, बाद में खुद के रहने के लिए बंदोबस्त भी भी करना था इसलिए फ्लैट ले लिया। थोड़े बहुत पैसे बचे हैं जो मैंने उन्हीं के नाम से बैंक में डिपाॅजिट कर दिए हैं"

" तुम्हें कुछ नहीं दिया? मैंने तो सुना है काफी नफा हुआ था। तुम तो बेटी हो ना उनकी"

सुशीला जी ने बीच में ही कहा।

" अब क्या कर सकते हैं मम्मी जी। पैसा लेने का हक ही थोड़ी ना रखती है बेटियां। जिम्मेदारी भी कोई चीज होती हैं। अब जब जिम्मेदारी उदय निभा रहा है तो मैंने सोचा पैसे भी उसी को मिलने चाहिए। इसलिए मैंने हक छोड़ दिया। और पापा को कह दिया कि जो आपकी जिम्मेदारी निभाए ये फ्लैट भी उसी के नाम कर देना"


कहकर वो अपने कमरे में जाने लगी तो मधुर ने कहा,

" अरे तुम ऐसा कैसे कर सकती हो? तुम्हें पता भी है, वो उदय तुम्हारे बड़े पापा का बेटा, लालच में तुम्हारे मां-पापा की सेवा कर रहा है"

" लालच में ही सही, कम से कम मेरे मां और पापा की सेवा तो हो रही है। मुझे मेरे मां पापा से कुछ नहीं चाहिए क्योंकि मैं अपने दम पर कमाने का साहस रखती हूं"

कहकर वंदना अपने कमरे में चली गई और पीछे रह गए घर के बाकी सदस्य अपने टूटे हुए अरमानों के साथ।


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