रिश्ते बिखर जाते
रिश्ते बिखर जाते
जगदीश ट्रेन की जनरल बोगी में बर्थ सीट पर सोया हुआ था |
गाडी रूककर वापस चली तो अचानक उसकी नजर अपनी तलाकशुदा पत्नी आशा पर पडी | पता नहीं कब वह उसके सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई थी | 6 साल बाद वह उसे देख रहा था | वह बहुत कमजोर हो गई थी | उसने पुरानी सस्ती सी साडी पहन रखी थी |
ना माथे पर बिंदी और ना गले में मंगलसूत्र था | तो क्या उसने अभी तक दूसरा विवाह नहीं किया | क्या अभी तक वह मेरी तरह अकेली ही है |
जगदीश ऐसा सोच ही रहा था कि तभी आशा की नजर उस पर पडी .नजरे मिली तो जगदीश दूसरी तरफ देखने लगा | फिर पता नहीं जगदीश के दिमाग में क्या आया कि वह सीट से नीचे उतर आया और आशा के पास बैठे लडके से कहा कि वह ऊपर
वाली सीट पर चला जाये |
लडका मान गया तब जगदीश आशा के पास बैठ गया | बैठते ही जगदीश बोला " आशा कैसी हो ?"
आशा ने नजर न मिलाते हुए खिडकी की तरफ देखते हुए बोला कि " मैं ठीक हूँ और आप? "
जगदीश बोला मैं भी ठीक हूँ और राजस्थान जा रहा हूँ | त्यौहार होने के कारण रिजर्वेशन सीट नहीं मिली | इस कारण जनरल बोगी में आना पडा | तुम कहां जा रही हो ?
वह बोली मैं भी राजस्थान ही जा रही हूँ | आजकल माँ वही बडे भईया के पास ही है | बीमार है इसलिए मिलने जा रही हूँ |
काफी देर दोनों चुप रहे |
फिर जगदीश बोला " एक बात पूछूँ ?"
आशा ने आँखों से ही पूछा क्या?
जगदीश संकोच करते हुए पूछा " अभी तक शादी क्यों नहीं की ?
वह कुछ नहीं बोली |
मगर जब जगदीश ने दोबारा नहीं पूछा तो आशा ने पूछा "आपने की है शादी "
जगदीश ने भी बिना बोले ना में गर्दन हिला दी |
फिर काफी देर तक दोनों चुप रहे |
मानो एक दूसरे को परख रहे थे |
डिब्बे में कुल्फी बेचने वाला आ गया था |
जगदीश बोला खाओगी आशा ने ना में सिर हिला दिया
जगदीश ने रिक्वेस्ट करते हुए फिर पूछा " खा लो यार , तुम्हारे साथ मैं भी खा लूंगा " | जानता हूँ तुम्हारी सबसे बडी कमजोरी कुल्फी है | वह थोडा मुस्कुराई तो जगदीश ने महसूस
किया कि वह अपनी आँखों से बहने वाली आंसुओं को समेटने का प्रयास कर रही है |
5 साल उसके साथ रहा था ,जब वह अपने आँसुओं को समेटने का प्रयास करती थी
तो ऐसे ही मुस्कुराया करती थी | जगदीश दूसरी तरफ देखने लगा तो आशा चुपके से अपनी आँसुओ को पोछने लगी |
फिर वह सहज होकर बोली " एक शर्त पर खाउंगी "
जगदीश बोला क्या शर्त है ?
तो आशा बोली " पैसे मैं दूंगी "
जगदीश कुछ नहीं बोला फिर आशा ने दो कुल्फियां खरीद ली |
और एक कुल्फी जगदीश को देते हुए बोली " अब मैं भी कमाने लगी हूँ , एक प्राइवेट स्कूल में पढाती हूँ , महीने के 10 हजार मिलते हैं | कुल्फी खाते हुए जगदीश बोला " तलाक के समय कोर्ट के आदेश पर मैं तुम्हें 30 लाख रूपये दे तो रहा था |
अगर ले लेती तो अपना स्कूल खोल लेती | जबकि तुम बहुत स्वाभिमानी हो , इस जमाने में पैसे के बिना कुछ नहीं होता |
वह हंस कर बोली अगर ले लेती तो अपनी जमीर को क्या जवाब देती | तो ये जमीर रोज कहता कि जिसे छोड कर आयी हो उसी के सहारे पल रही हो |
जगदीश बोला तुम बहुत अच्छी हो , मासूम हो | ये एहसास तुमसे तलाक लेने के बाद मुझे हुआ | तुम यकीन नहीं करोगी ? मैं बहुत बदल गया हूँ | गुस्सा बिल्कुल नहीं करता | अब मैं किसी को नीचा दिखाने की कोशिश भी नहीं करता जो तुम्हें बहुत बुरा लगता था | वो सब बुरी आदतें मैने छोड दी है |
वह उदास होकर बोली " अब क्या फायदा " जब मैं मना किया करती थी तब आप मेरी एक भी बात नहीं सुनते थे | आपके कारण मैं हमेशा टेंशन में रहती थी | इसी कारण मुझे दो बार गर्भपात भी हुआ | वरना आज मेरे भी दो बच्चे होते |
एक 8 साल का हो गया होता और दूसरा 6 साल का होता | कहकर वो रो पडी |
बच्चों की बात पता चली तो जगदीश के भी आंखों में आँसों आ गये लेकिन वह पुरूष था तो आँसुओं को पलकों तक पहुँचने से पहले ही पी गया और बोला " कभी कभी लगता है मैं बहुत बुरा आदमी हूँ | मैने कभी रिश्तों की कदर नहीं की , उसी की सजा झेल रहा हूँ आज | बिल्कुल अकेला हो गया हूँ , अब मां भी नहीं रही | "
मा के होने पर आशा को बडा दुख हुआ और बोली मा को भली चंगी छोड कर आयी थी , उनको क्या हो गया था | इस बार जगदीश भावुकता वश अपने आँसुओं को नहीं रोक पाया
और बोला वो तुम्हें हर दिन याद करती थी , बोलती थी बहु को वापस घर ले आओ | मैं उन्हें कैसे समझाता कि तलाक के बाद बहुएं वापस घर नहीं आती | फिर दोनों के बीच चुप्पी छा गई थी |
स्टेशन आने वाला था | योगेश बोला वापस कब जाओगी ?
आशा बोली आज रात यही रूकूंगी , कल की सुबह की ट्रेन से वापस जाउंगी | फिर वही खडी हो गई , जगदीश भी खडा हो गया और पूछा" कितने बजे वाली ट्रेन से वापस जाओगी "
आशा बोली हम गरीब लोग हैं ,रिजर्वेशन नहीं करा पता हैं , जनरल डिब्बे में सफर करते हैं | इसलिए जो भी ट्रेन मिलती है टिकट लेकर चढ जाते हैं | इतना कहकर वह नीचे उतर गई |
जगदीश अपना सूटकेस सम्हालता हुआ उसके पीछे लपका और बोला अगर मैं रिजर्वेशन की दो टिकटें ले लूं तो मुझे पता है कि तुम मेरे साथ नहीं चलोगी लेकिन मैं तुम्हारे साथ सफर करना चाहता हूँ | जनरल में ही चल लूंगा , बताओ कितने बजे
यहां मिलोगी ?
आशा आटो में बैठती हुई बोली " 9 बजे यहां मिलूंगी "फिर उसके देखते देखते आटो आँखों से ओझल हो गया |
जगदीश राजस्थान दो दिन के लिए आया था मगर आशा का साथ पाने के लिए उसने अपना शेड्यूल बदल लिया | उसने जल्दी से अपने बिजनेस का काम पूरा किया और अगले दिन सुबह साढे 8 बजे ही स्टेशन आ गया |
आशा 9 की जगह 10 बजे स्टेशन पहुँची | और बोली आप अभी तक यहीं पर हो , मैं सोच रही थी कि आप चले गये होंगे |
आशा बहुत खुश थी | बोली मां अब बिल्कुल ठीक है |
जगदीश बोला मैं तुम्हारा भी टिकट ले आया हूँ | अब 30 रूपये के टिकट के लिए कुछ कहना मत | आशा हंसते हुए बोली अभी ट्रेन आने में आधा घंटा है , चलो तब तक कुल्फी खाते हैं| पैसे मैं दे दूंगी , हिसाब बराबर हो जायेगा | इतना कहकर वह फिर मुस्कुरा दी | वह जब भी मुस्कुराती थी जगदीश की नजर उसके चेहरे पर ठहर जाती थी |
फिर दोनों ने कुल्फी खायी और तब तक ट्रेन आ गयी और फिर से एक नया सफर शुरु हो गया मगर इस सफर में कुछ खास था | जगदीश कुछ कहने के लिए तिलमिला रहा था । मगर डर भी रहा था कि वह मना करा देगी तो | जगदीश नोटिस कर रहा था कि आशा बडे भाई के
घर से नई साडी पहन कर आई थी |वह बहुत सुन्दर लग रही थी | खिडकी से आ रही ठंडी हवा के झोंके से रागिनी के ललाट पर लटकी बालों की एक लडी झूम उठती है | उसे ऐसे देखकर जगदीश के दिल में एहसास सा उठता है कि ये औरत कभी उसकी जिन्दगी थी मगर मैं इसे सम्हाल कर नहीं रख पाया | जगदीश की मन:स्थिति से अनजान आशा बोली " क्या हुआ आप गुमशुम से क्यों हो ?" | दोस्त बन कर ही सही कुछ बात तो कर लो | जगदीश बोला मुझे दोस्ती नहीं चाहिए |
आशा को झटका सा लगा , बोली " फिर क्यों मेरे साथ सफर करने के लिए उतावले थे आप" जगदीश बोला "मुझे तू चाहिए " | हमेशा के लिए | जन्मों जन्मों के लिए | मेरे साथ हंसने के लिए , मेरे साथ रोने के लिए |
वह इतनी जल्दी में ये सारी बातें बोला कि आशा बस उसके मुंह की ओर देखती रह गई | वह आगे बोला " मैं गलत था , तुम्हारी कदर नहीं कर पाया " |
मगर तुम्हारे जाने के बाद मुझे मेरे गलतियों का एहसास हो गया है | मुझे माफ कर दो " कहकर वह रो पडा | आशा चुप हो गई , बस उसके चेहरे की तरफ देखे जा रही थी |
जगदीश उसके दोनों हाथ पकड कर बोला " मुझे माफ कर दे यार | मैं वादा करता हूँ अब कभी भी तुम्हारे आंसुओं की वजह नहीं बनूंगा |
तू जो कहेगी वही करूंगा , प्लीज लौट आ | " आशा ने माथे पर साडी थोडी सी पीछे सरकाई और बोली इधर देखिये जरा |"
जगदीश ने देखा आशा ने मांग भर रखी थी | वह बोली मैं जानती थी आप यही सब करोगे | मैंने कल ही सोच लिया था कि अब अकेले चलने के दिन खत्म हो गये हैं |
मेरा हमसफर लौट आया है | अब आगे का सफर उसी के साथ तय करना है |
थक गई हूँ मैं अकेले चलते चलते |
कहते हुए वह अजीब सी मुद्रा में मुस्कुराने लगी |
जगदीश बोला , मैं जानता हूँ जब तेरा दिल रोने को होता है तब तू ऐसे ही मुस्कुराती है | मत रोक इन आंसुओं को , इन्हें बह जाने दो | दिल हल्का हो जायेगा | इतना सुनते ही आशा का संयम जवाब दे गया | वह जोर जोर से रोने लगी , पूरे डिब्बे के लोग उन्हें देखने लगे | मगर आशा ने लोगों की परवाह नहीं की |
वह जगदीश के कंधे पर सर रखकर रोती रही | कुछ देर बाद आशा का गांव आ गया | गाडी कुछ पल रूकी फिर चल पडी
आशा को अब वहां उतरना ही नहीं था | जिन्दगी में एक नया सफर फिर से शुरू हो गया | अब उसकी मंजिल मायका नहीं पिया का घर था | जो वर्षों से उसके उसके लौटने का इन्तजार कर रहा था | वह अब भी जगदीश के कंधे पर सर रखी
थी | आंखें बंद कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी , एक मासूम बच्चे की तरह |

