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Priya Silak

Abstract Romance Inspirational

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Priya Silak

Abstract Romance Inspirational

पहली बारिश की ख़ुशबू

पहली बारिश की ख़ुशबू

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गांव की मिट्टी में एक अलग ही जादू होता है — खासकर तब, जब पहली बारिश की बूंदें उसे छूती हैं। वही सोंधी ख़ुशबू… जो न सिर्फ़ मिट्टी से, बल्कि यादों के किसी पुराने कोने से उठती है।

अनु हर साल की तरह इस बार भी गांव आई थी, गर्मी की छुट्टियों में। लेकिन अब वो बच्ची नहीं रही थी। अब वो एक स्कूल टीचर थी, शहर में पढ़ाती थी, पर दिल अब भी उसी गांव में कहीं अटका रहता था — एक अधूरी कहानी में, जो कभी पूरी नहीं हो सकी।

गांव के पुराने पीपल के पेड़ के नीचे एक पुरानी पत्थर की बेंच थी। बचपन में वहीं बैठकर वो और आरव बारिश का इंतज़ार किया करते थे। बरसात की पहली बूंदों में नहाना, कीचड़ में खेलना, और फिर छाता शेयर करते हुए घर लौटना… यही उनकी दुनिया थी।

फिर एक दिन आरव चला गया — शहर पढ़ने। जाते वक्त बस इतना कहा,
“जब पहली बारिश होगी, मैं लौट आऊँगा…”

अनु मुस्कुरा दी थी, उसे लगा था कि ये एक मासूम वादा है, जिसे शायद कभी निभाया ही न जाए।
पर हर साल जब पहली बारिश होती, अनु उसी पीपल के नीचे आती, आंखें सड़क की तरफ टिक जातीं… शायद कोई परछाई दिखे, कोई छाया चले आती हो…

10 साल बीत गए थे।

आरव की कोई खबर नहीं थी। ना चिट्ठी, ना फोन, ना कोई संदेश। अनु ने इंतज़ार करना कभी छोड़ा नहीं, बस जताना छोड़ दिया।

इस बार जब गांव आई, तो वो थक चुकी थी। सोचा था कि इस बार बारिश आए या ना आए, वो पीपल के नीचे नहीं जाएगी।
पर जैसे ही शाम को पहली बूंद गिरी, दिल अपने आप खींच ले गया…

वो बेंच अब भी वैसी ही थी — हल्की सी टूटी, एक कोने में नाम खुदे हुए — A + A।

अनु बैठ गई। एक पुरानी मुस्कान उसके चेहरे पर तैर गई। तभी पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई:

“अनु?”

वो ठिठक गई। जैसे किसी ने समय रोक दिया हो। धीरे से मुड़कर देखा — वो आरव था।

थोड़ा बदला हुआ, थोड़ा थका हुआ, लेकिन आंखें वैसी ही थीं। उन आंखों में वही अपनापन, वही शर्मीली मुस्कान थी।

“इतनी बारिश में भी अकेली क्यों बैठी हो?”
अनु की आंखों से आंसू निकल पड़े। “क्योंकि किसी ने कहा था कि वो पहली बारिश में लौटेगा…”

आरव चुपचाप बैठ गया। उनके बीच बारिश गिरती रही — और साथ में गिरे बरसों के फ़ासले।

कुछ देर तक दोनों खामोश रहे, फिर आरव बोला —
“मैं आना चाहता था अनु… पर ज़िंदगी ने थाम लिया था… मां की तबीयत, नौकरी की ज़िम्मेदारियाँ… और हिम्मत नहीं थी तुम्हारा सामना करने की…
लेकिन आज, जब फिर पहली बारिश हुई, तो दिल ने कह दिया — बहुत हुआ इंतज़ार… अब लौट चलो…”

अनु ने उसका हाथ पकड़ लिया। बारिश अब भी गिर रही थी, पर अब वो दोनों भीग नहीं रहे थे — छाते के नीचे सिर्फ़ दो जिस्म नहीं, दो कहानियाँ फिर से मिल रही थीं।


✍️✍️✍️✍️✍️✍️

उस दिन पहली बारिश की ख़ुशबू में कुछ और भी था —
एक अधूरी कहानी का मुकम्मल हो जाना।


🤗🤗By priya silak 


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