अफसर भाभी!
अफसर भाभी!
नमस्ते भाभी। आपकी तबीयत कैसी है! हमेशा के जैसी गायत्री पुरानी से बैग में अपना सामान लेकर चली आई थी। साथ में एक बोरे में ताजी सब्जी ,गन्ने और गुड़ देखकर आज नीता को बुरा नहीं लग रहा था। उनकी आवाज सुनकर वर्मा जी भी कमरे से बाहर निकल कर उनके पास ड्राइंग रूम में आ गए थे। नीता उनके नाश्ते के इंतजाम के लिए जब रसोई में गई तो गायत्री भी पीछे पीछे आ गई और चाय बनाने लग गई। गायत्री को देखकर नीता को शायद आज पहली बार खुशी हो रही थी।वर्मा जी सरकारी पब्लिक डीलिंग विभाग में ऊंची पोस्ट पर कार्यरत थे। उन्हें सरकारी आवास मिला हुआ था लाल बत्ती की गाड़ी थी। ड्राइवर , घर में काम करने के लिए नौकर उन्हें सहज ही सुलभ थे।
उनके मातहत लोग जब भी घर आते थे तो नीता से बहुत आदर से पेश आते थे और साहब को खुश करने के लिए वह मेम साहब की चापलूसी करना ना भूलते थे। सरकारी कॉलोनी में वर्मा साहब की पत्नी होने के नाते नीता की बहुत इज्जत थी। आसपास की छोटे अफसरों की पत्नियां भी उससे नजदीकियां ही बनाए रखना चाहती थी।चाटुकारों से मिलते सम्मान के कारण वह इतनी अभिमानी हो गई थी कि उसने अपनों का भी अपमान करना शुरू कर दिया था। यदि कोई उससे मिलने भी आता तो उसे यही लगता था कि वह उसके पति से ही कोई काम करवाने आया है और स्वत: ही उसका व्यवहार सबके प्रति बेहद अशिष्ट हो गया था। इतने सालों में उसके व्यवहार के कारण सबने उस से नाता तोड़ ही लिया था। उनके दोनों बच्चे भी हर मेहमान को अपनी मम्मी की ही नजर से देखते थे। उनका खुद का ड्राइवर और उनकी बुआ का पति ड्राइवर, उनकी नजर में एक समान ही थे। गायत्री बुआ का घर में आना उनके स्टेटस को सूट नहीं करता था। दोनों बेटे भी पढ़ कर एक हैदराबाद में और दूसरा ऑस्ट्रेलिया में शिफ्ट हो चुका था। घर में जो थोड़े बहुत रिश्ते बचे हुए थे वह सिर्फ वर्मा जी के व्यवहार के ही कारण थे।
हालांकि वर्मा जी को कभी व्यवहार करने का समय नहीं मिलता था वह अपने दफ्तर में ही व्यस्त रहते थे। कोई कुछ दे दे तो उसका भला ,कोई ना दे तो उसका और भी भला ,इस फार्मूले को अपनाते हुए वह दफ्तर के सारे काम निभाते थे ।फिर भी उन्होंने काफी पैसा कमाया था और नीता से छुपकर गायत्री की और अपने रिश्तेदारों की भी वह दफ्तर में ही उनसे मिलकर उनकी यदा-कदा मदद कर दिया करते थे।अभी 6 महीने पहले ही वह रिटायर होकर अपने इस घर में शिफ्ट हुए थे। यह ढाई सौ गज का दो मंजिला मकान था लेकिन सलीके से रखने में उन्हें बहुत मुश्किल आ रही थी। सरकारी आवास में तो वर्मा जी के पास नौकरों की फौज थी यहां नीता को दुगनी कीमत पर भी कोई मनपसंद काम करने वाली नहीं मिल रही थी। जब भी कभी वर्मा जी छिपछिपा कर अपने भाइयों और बहनों और रिश्तेदारों को कुछ सहायता करते थे तो नीता बहुत लड़ती थी ।वर्मा जी केवल एक ही बात कहते थे कि अपनापन पैसों से नहीं मिलता। वह अपना पुराना समय और पुराने लोग नहीं भूले थे लेकिन नीता के व्यवहार के कारण सब का लगभग घर आना जाना तो छूट ही गया था। इस नए परिवेश में ड्राइवर भी फ्री का नहीं मिल सकता था और अब पहले के जैसे उनको बहुत से समारोहों का बुलावा भी नहीं होता था। बच्चे दूर थे। कहां हर वक्त लोगों की भीड़ लगी होती और अब इतने बड़े घर में दोनों को बहुत खाली-खाली लगता।
उसे अब उन रिश्तेदारों की भी याद आ रही थी जो कभी उसके बड़े स्टेटस में फिट नहीं होते थे।नीता की हर बीमारी अब बड़ी होकर उभर रही थी। बहुत भारी शरीर कोई भी काम करने में असमर्थ ही था और कितने भी पैसे दे लो कामवालियां छुट्टी करती ही थी। इस नई जगह उन्हें कोई जानता भी ना था। 4 दिन पहले जब वर्मा जी को अचानक रात को तबीयत खराब हुई ,वैसे भी उनकी हार्ट सर्जरी हो रखी थी,तो नीता बेहद घबरा गई थी। पड़ोस में रहने वाले मिस्टर सेठी उन्हें अस्पताल लेकर गए।वर्मा जी की छुट्टी होकर घर तो आ गए लेकिन वह कितनी अकेली हो गई थी ।वर्मा जी के और उसके भी रिश्तेदार भले ही उसके स्टेटस के ना रहे हों लेकिन सब एक दूसरे से मिलते जुलते कितने आराम से जिंदगी बिता रहे थे।वह इतने बड़े घर में भी------?तभी दरवाजे पर डोर बेल बजी तो देखा बाहर वर्मा जी की बहन गायत्री आई थी।नीता तो अपने ख्यालों में ही खोई थी कि तभी भाभी!! चाय बन गई है। चिंता नाहीं करो। गायत्री की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी। मैं आपका नया घर का सारा काम अच्छी तरह से सिमटवा कर ही जाऊंगी। भैया कह रहे थे कि उनको हर 10 दिन बाद डॉक्टर को दिखाना है तो घर में सारा काम बेटे बहू को सौंप कर हम कुछ दिन यहां रहने को ही आए हैं। नीता का मन हुआ कि आज गायत्री को गले से लगा ले लेकिन उसके झूठे अभिमान ने उस इजाजत नहीं दी ,लेकिन चेहरे की खुशी वह छिपा नहीं पा रही थी और मन ही मन वर्मा जी को भी धन्यवाद दे रही थी कि उन्होंने गायत्री और उसके पति की आर्थिक रूप से सहायता करके अच्छा ही किया वरना नीता तो सारे ही रिश्ते तोड़ चुकी थी।पाठकगण समय सदा एक सा नहीं रहता। मालूम नहीं क्यों लोग अपने बढ़ते घटते सामान के साथ रिश्तो को भी बढ़ाते घटाते रहते हैं ? आपका इस विषय में क्या ख्याल है ?
