Jhilmil Sitara

Tragedy Fantasy

3.6  

Jhilmil Sitara

Tragedy Fantasy

अपेक्षित - अनापेक्षित अंजाम

अपेक्षित - अनापेक्षित अंजाम

6 mins
381


कुशा को पता था जिससे ( अरुण ) उसकी शादी हो रही है वो पहले से शादीशुदा है और उसकी पहली पत्नी जया उसके साथ ही रहती है। जमीन जायदाद तो बहुत है अरुण और जया के पास मगर कमी है तो औलाद की। कुशा को उनके जीवन की इसी कमी को पूरा करने के लिए चुना था जया के बड़े भाई मुन्ना ने बड़े सोच समझ के साथ। मुन्ना अपनी बहन के लिए साधारण सी दिखने वाली गरीब घर की कुशा को दासी बनाकर ले जा रहा था जो कभी उसकी बहन से बराबरी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। खुश होना ऐसे हालात में मुमकिन होता तो कैसे कुशा के लिए। एक बची हुई उम्मीद थी तो अपने होने वाले पति अरुण से जिसके उदार और नेक स्वाभाव के बारे में सुन रखा था कबसे उसने।

आखिर शादी सपन्न हुई और कुशा अपने ससुराल आ गई। उसकी ये शादी किस मक़सद से हुई थी अच्छी तरह जानती थी कुशा फिर भी एक औरत के अरमान और सपने जो शादी से, पति और ससुराल से लगी होती हैं उन्हें कैसे झूठला सकती है कोई औरत। कुछ महीनों तक काफ़ी हद तक कुशा को हर वो चीज मिलती रही जिसकी उसने कामना की थी। अरुण उसे रानी की तरह महसूस कराता और बाकि सब भी बहुत ख्याल रखते थे नई नवेली दुल्हन कुशा का। जया भी उसके खाने पहनने और सजने - संवरने का पूरा ध्यान रखती थी। अरुण को खुद उसके कमरे में भेजा करती थी। चाय - नास्ता और खाना - पीना तीनों साथ ही करते थे सुरु - सुरु में। फिर जया ने दोनों को साथ बिठा कर चली जाती थी। अच्छा समय गुजर रहा था।

जिस खुशखबरी का सबको इंतजार था आखिर वो भी मिल गया। कुशा 3 महीने गर्भ से थी। घर में रौनक देखने लायक था। सभी कुशा को भर - भर के दुआएं और आशीष दे रहे थे। तोहफ़े और शगुन हर दिन आ रहे थे अभी से कुशा और आने वाले नन्हे मेहमान के लिए। अरुण के उदारता भरे व्यवहार के कारण ये शुभ समय और पावन बनता जा रहा था। और तो और जया के माता - पिता भी आशीर्वाद और तोहफ़े देकर गए कुशा को जो पहले अपनी सगी बेटी के लिए सौतन लाने के ख़िलाफ थे। कुशा के चेहरे का निखार दोगुना तो अपने पति के चेहरे की ख़ुशी देखकर बढ़ जाती थी। दोनों का और करीब आना स्वाभाविक था। निजी तौर पर अरुण अब अपने जीवन के सुनेपन को सदा के लिए दूर कर पिता बनने का सौभाग्य प्रदान करने वाली कुशा का ख़्याल रखने लगा था जो उसका कर्तव्य भी था और जिम्मेदारी भी थी।

अब जया के लिए ये सब देखना और देखकर अपनी जलन छुपाकर मुस्कुराना मुश्किल होने लगा था। उसने सोचा था कुशा का तबतक ही ध्यान रखना है जबतक वो वारिस नहीं दे देती उसके बाद का उसने कभी सोचा नहीं था। वो हर वक़्त अपने पति को उसकी ही फ़िक्र में जीते कैसे सहन करती जिसपर हमेशा से सिर्फ - और - सिर्फ अपना अधिकार मानती आयी थी। कुशा को मायके भी उसके नहीं भेज सकती थी क्यूँकि, वहाँ ये सुख - सुविधाएं नहीं थी। जया का जी जलकर काला पड़ने लगा था और काली होने लगी थी उसकी सोच। अभी कुशा का खुश रहना जरुरी था बच्चे की अच्छी सेहत के लिए और इस बात का ससुराल में सब ध्यान दे रहे थे। जया का दिखावा अब जरा कड़वा होने लगा था जिसे अरुण ने भाँप लिया और जया को कुछ दिनों के लिए उसके मायके जाने की बात कही। लेकिन, इतने सालों का साथ वो कैसे कल की आयी हुई औरत के लिए त्याग कर चली जाती। जया ने अपने मायके जाने से मनाकर दिया यह कहकर की आगे से अरुण को शिकायत का कोई अवसर नहीं देगी।

अचानक एक दिन अरुण का साला मुन्ना आ धमका। मुन्ना जब जया से मिला उसका बुझा हुआ चेहरा सब बयान का गया। वो समझ गया जलन का भाव उसकी बहन के माँ बनने की सारी ख़ुशी को झूलसा चुका है। अब उसे बाँझ होना इतना बुरा नहीं लग रहा था जीतना कठिन अपने पति का प्यार और ये परिवार कुशा के साथ साझा करने में लग रहा था। मुन्ना ने अपनी बहन की आँखों में वो फ़रमान देख चुका था जिसका कल था उसे भी अंदाजा नहीं था। मुन्ना उठकर चला गया और लौटा तो लौटकर कुशा के कमरे में चला गया। कुशा ने झुककर प्रणाम करना चाहा तो मुन्ना ने उसका हाथ पकड़ कर झुकने से मनाकर मुस्कुरा दिया इस वक़्त मुन्ना की आँखों में नमी साफ़ झलक रही थी। मुन्ना उसके हाथ में कुछ देते हुए अलविदा लेकर चला गया। कुछ पल के लिए दरवाजे पर रुका और फिर बिना रुके, बिना मुड़े तेज कदमों से बाहर निकल गया।

ऐसी सुबह ना हो तो ही अच्छा होता। कुशा अपने होने वाले बच्चे को इस दुनिया के रंग - ढंग दिखाने से पहले ही उसके साथ विदा हो गई जया के भाई द्वारा प्रसाद में मिलाकर दिए ज़हर को खाकर। जया जानती थी इसका दोष सब उसे ही देंगे जो सही भी था। काश थोड़ा दिल बड़ा रख पाती जया अपनी जलन को एक तरफ रख कर। अरुण ने कभी जया को असुक्षित महसूस नहीं होने दिया था। जबसे कुशा गर्भवती हुई थी अरुण ज्यादा - से - ज्यादा समय जया के साथ ही गुजारता था जिससे जया को ये ना लगे वो उसकी जगह कुशा को दे रहा है या उसके हिस्से का प्यार भी उसे दे रहा है। ऐसी भवनाओं और विचारों से रिश्ते ना बिगड़े, कोई कड़वाहट ना आए आगे जाकर साथ रहते हुए। लेकिन, मन में कब कौन सा विचार करवट लेकर सामने आ जाये हम नहीं जानते। औरत या तो बहुत विचार करने वाली होती है या बिल्कुल शांत रहने वाली होती है। कुछ अपने मन के उठते सवालों को हालातों के मुताबिक खुद ही समझ कर उनका जवाब तलाश कर सुकून से रहती है वहीं कुछ ऐसी होती हैं जिनके सामने कोई उलझन, कोई सवाल ना हो फिर भी उलझी हुई और बैचैन रहती हैं। ऐसे में कोई उनकी बुनी - बुनाई बातों से निकाल नहीं सकता।

सब कुछ स्पष्ट होते हुए, नज़रों के सामने होने के बावजूद भी जया ने ऐसा सोचा की जिसकी मान - मनोती बच्चा होने से पहले इतना है उसकी आव - भगत बच्चा होने के बाद कितनी होंगी। बच्चा जबतक उसकी छाती से लगकर दूध पिता रहेगा तबतक शायद बच्चा जया की गोद में भी ना टिके एक पल को भी। बच्चा जिसके पास होगा बच्चे का पिता भी उसके आस - पास ही तो रहना पसंद करेंगे। इस तरह ना जाने कितने नकारात्मक विचारों ने जया को कड़वा और बेरुखी से इस कदर भर दिया जिसका अंजाम ऐसा निकलकर आया। कुशा और उसके अजन्मे बच्चे की हत्या के गुनाह के साथ अब अपने पति अरुण के जीवन में सामान्य कैसे रह पाती, कैसे नज़र मिला पाती, कैसे उनका आलिंगन में जा पाती और सबसे बड़ी बात वो सुनापन फिर वहीं रह जाता इसलिए, बाकि का ज़हर जया भी खा लेती है यह जानते हुए की बची हुई गृहस्थी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। लेकिन, वो तो बस अपने गुनाहों के बोझ को मौत के सर पर डाल कर चली जाती है ऐसे, जैसे आगे उसकी मौत के बाद का सफर बहुत हल्का होगा। उसने ये नहीं सोचा ऊपर कुशा और उसका बच्चा भी होगा जिनका सामना उसे आखिर में करना ही होगा। 


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