Jhilmil Sitara

Inspirational Children

4  

Jhilmil Sitara

Inspirational Children

मैं डर जाता हूँ

मैं डर जाता हूँ

5 mins
358


कदम और सुरुचि की शादी को पाँच साल हो गए थे और चार साल का एक बेटा भी था शेखर। बहुत प्यारा पारिवार था यह और कदम अपनी पत्नी और बेटे से बेहद प्यार करता साथ ही बहुत ख्याल रखता था। घर की सारी जरूरतें ख़ुशी - ख़ुशी पुरे करता और सुरुचि की हर उस जरुरत का ध्यान भी रखता जो बहुत से पति जिनका ध्यान नहीं देते अक्सर। सुरुचि पढ़ी - लिखी समझदार औरत थी और कदम की बहुत सराहना करती थी। जिस तरह वो उसे हर वो चीज लाकर देता जो उसके जेहन में भी नहीं होती साथ ही उसे बीमार नहीं होने देता जरा भी तबियत बिगड़ने पर पूरी देखभाल कर ठीक कर देता उसे।

सुरुचि के साथ वक़्त बिताना और शेखर के साथ खेलना, मजे करना बहुत पसंद था।

सबकुछ अच्छा चल रहा था कदम के जीवन में दिक्कत थी तो एक की सुरुचि एक पल को कभी अकेले निकलती अपनी आस - पास की सहेलियों के साथ या पहचान वालों के साथ शेखर को कदम के पास छोड़कर तो कदम बार - बार उसे फ़ोन करता और कहाँ हो? कितनी देर में वापस आओगी? कितनी खरीदारी हो गई तुम्हारी? मैं लेने आऊँ क्या? पूछना सुरु कर देता जिससे सुरुचि परेशान हो जाती थी। कभी जब वो महिला मंडली के साथ कोई छोटी - मोटी पार्टी कर रही होती तब भी कदम उसे बार - बार फोन करके याद दिलाता की हम दोनों तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं और उसके बिना नहीं रह सकते। कदम के बार - बार फोन करने से सुरुचि अच्छी तरह पार्टी एन्जॉय नहीं कर पाती, ना ही घूम - फिर पाती और साथ ही उसकी सहेलियाँ भी उसका पहले मजाक बनाती थीं अब तो धीरे - धीरे उससे दूरी बनाने लगी थीं।

अब लगभग सुरुचि ने कहीं भी आना - जाना, मिलना - जुलना बंद ही कर दिया कदम की इस आदत से तंग होकर। अब वो कदम से ही नहीं अपने बेटे से भी खींची हुई रहने लगी। पहले की तरह खुलकर साथ में दोनों के खेलना और मस्ती करना उसे अब नहीं भाता था वो उठकर कुछ काम करने लगती या सो जाती थी। आख़िर ऐसे कई दिन गुजर जाने के बाद कदम से रहा नहीं गया जब सुरुचि के इस बदले बर्ताव को देखकर तब उसने खुद ही सामने से जाकर वजह जानने की कोशिश की, क्यूँ की वो अपना प्यारा परिवार यूँ गवाना हरगिज़ नहीं चाहता था। सुरुचि पहले टालती रही यह सोचकर की कदम उसके बाहर होने पर जो लगातार फोन करता है उसके इस आदत से वो अब चिढ़ चुकी है, मजाक बन चुकी है और अब किसी के साथ जरा देर भी बाहर रहना उसका दुभर बना दिया है कदम ने इसलिए वो चुपचाप घर में पड़ी रहती है अब। उसे लगने लगा था की कदम अब उसपर जरुरत से ज्यादा पाबंदी लगाने लगा है प्यार के नाम पर, मगर वो कहना नहीं चाहती थी या उसका मन ही नहीं था इस बारे में कदम से कुछ बात करने और बताने का। मगर ऐसा कबतक चलता।

कदम के बार - बार पूछने और जिद्द करने पर सुरुचि ने कदम को बताया जो आजकल वो महसूस कर रही थी और जिससे उसे घुटन होने लगी थी। कदम को यक़ीन नहीं हुआ की, सुरुचि उसकी फ़िक्र और प्यार को ऐसा समझ रही है। फिर, कदम ने सुरुचि का हाथ पकड़ उसे अपने पास बिठाया और बताया वो सच जो उसपर बीती थी बचपन में जिसके कारण वो आज भी डरा हुआ था। कदम की माँ नहीं थीं यह तो सुरुचि जानती थी, लेकिन उनको क्या हुआ था ये नहीं जानती थी सुरुचि। कदन ने बताना सुरु किया :- मेरी पिताजी मेरी की जरा भी ना कदर करते थे ना ख़्याल रखते ना कभी किसी बात को लेकर माँ से कोई राय मशवरा करते थे। बस उनको घर की और मेरी देखभाल के काबिल समझते थे वो भी मशीन जैसा, जो ना कुछ ना नुकुर कर सकता है ना कोई दर्द पीड़ा सुना सकता है अपना। माँ भी चुपचाप सब सहती रही शायद मेरी खातिर ही क्यूंकि, वो बहुत पढ़ी - लिखी और जानकर थीं हर विषय में। ना सिर्फ घर में बल्कि बाहर भी उनके जानने वाले उनको बहुत सम्मान करते थे। मगर, पिताजी को माँ सिर्फ घर की चारदिवारी में ही कबूल थीं। धीरे - धीरे माँ पर उनका बर्ताव और बिगड़ने लगा और माँ पर हाथ भी उठाने लगे। माँ बहुत हद तक चुप रही मुझे देखकर। लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है जो अत्याचार की भी थी जिसे पार होते ही माँ एक दिन चुपचाप मुझे और पिताजी के उस मनहूस घर को छोड़कर चली गईं। मैं उस वक़्त सिर्फ सात साल का था इसलिए, मुझे कुछ समझ आता था मगर, सबकुछ नहीं। मैं माँ के बिना बहुत अकेलापन महसूस करता था अब जीवन में ना प्यार था माँ का ना साया था। बाहर कहीं किसी साड़ी में लिपटी औरत को देख मैं ख़ुशी से झूम उठता की वो मेरी माँ होगी मगर, धीरे - धीरे वो बहम भी दूर होता गया की माँ जा चुकी है अब लौट कर नहीं आएगी कभी।

बस यही वजह है की मैं अब भी डर जाता हूँ जब तुम मुझे और शेखर को छोड़ जरा देर भी बाहर रहती हो। मैं तुम्हारा प्यार कभी खोने का सोच भी नहीं सकता और जीने की तुम बिना कल्पना भी नहीं करना चाहता सुरुचि, फिर भी मेरी व्यवहार से जो तुमको दुःख पहुँचा है मैं उसके लिए शर्मिंदा हूँ, मुझे माफ़ कर दो आगे से ऐसा नहीं होगा बस मुझे, इस घर को और अपने बच्चे को कभी छोड़कर जाने की मत सोचना, ये सब तुमसे ही हैं, तुम नहीं तो कुछ नहीं है हमारी दुनियाँ में सुरु। सुरुचि अब कदम की फ़िक्र और मन का सारा हाल समझ जाती है और उसे गले लगाकर वादा करती है उसका प्यार कभी कम नहीं होगा उसके लिए, इस घर के लिए और प्यारे शेखर के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational