Jhilmil Sitara

Others

4  

Jhilmil Sitara

Others

सच कहूँ तो....

सच कहूँ तो....

8 mins
27



 "क्या हुआ तरुण....? आजकल आप कुछ ज्यादा ही उदास रहते हैं और मुझे याद भी इन दिनों हर पल करते हैं.." अलाव के पास चुपचाप बैठे अपने पति से पूछती है जयश्री ( सात साल पहले गुजर चुकी है )।..."आख़िर, बात क्या है जिसने आपको ख़ामोशी के चादर में लपेट यूँ जमीन पर बिठा दिया है वो भी ऐसे माहौल में जब आपको हमारी बेटी की शादी की तैयारियों में व्यस्त होना चाहिए था तरुण।" बहुत मासूमियत से जयश्री तरुण से सवाल कर उसके बगल में बैठ जाती है। हालांकि, वो तरुण की उदासी और ख़ामोशी की वजह अच्छी तरह जानती है फिर भी उसका मन व्याकुल होता है अपने पति से अपने बारे में सुनने के लिए...


तरुण अलाव में कुछ और सुखी लकड़ियाँ डालकर जयश्री के करीब बैठ जाता है और उसकी आँखों में जवाब देखकर भी अनजान बनने की अदा पर जरा सा मुस्कुरा देता है फिर होले से कहता है वो जो उसकी जयश्री सुनना चाहती है। कहता है, तुम जानती तो हो मेरी जया सबकुछ ही। मेरी मन का हाल ही नहीं बल्कि यहाँ तुम्हारे बिना क्या गुजर रहा है वो भी। ये सब तुम्हारे बगैर कर पाना नामुमकिन सा लगता है। बच्चों की परवरिश, उनको पढ़ना - लिखना, उनके लिए कपड़े या किताबें लाना, स्कूल - कॉलेज छोड़ना लाना, उनके साथ खाना - घूमना अलग बात होती है जया। लेकिन, शादी - ब्याह जैसा महत्वपूर्ण रश्म जीवनसाथी बिना निभाना कठिन कार्य है जो मेरी बस का नहीं है। तुम ही बताओ ये सब कैसे करूँ मैं....?? माता - पिता भी गुजर चुके हैं और भाई - बहन भी बाकि रिश्तेदारों की तरह औपचारिकता निभाने जैसे बनकर रह गए हैं ऐसे में तुम भी मेरी साथ नहीं हो फिर मेरा उदास होना लाज़मी है ना बोलो.....


इसपर जयश्री कहती है : नहीं तरुण आपको जब पता है की ऐसे हालात में जब कोई आपका साथ नहीं देने वाला, आपका हाथ नहीं बटाने वाला, जिम्मेदारी नहीं लेने वाला है कोई आपके हिस्से का फिर आपको उदास नहीं होना चाहिए क्यूँकि, ये सब फिर आपको अकेले ही पुरे मन और लगन से पूरा करना होगा। यूँ, निराशा को अपने आस - पास भी भटकने देने से रोकना होगा या इसपर ध्यान देना भी गलत होगा इस समय जब आप पिता है उस प्यारी बच्ची की जिसने आपको ही अपनी दुनियाँ और सबकुछ अबतक माना है। आपने जितनी अच्छी तरह उसकी परवरिश कर उसे बड़ा किया है, हर ख़ुशी पूरी करने का हरसंभव प्रयास किया है, उसके लिए रातों को जगे हैं, उसके मुताबिक घर का माहौल रखा है, उसके भविष्य के सपनों की खातिर दिन - रात एक कर दिया है उसे ऐसे दिल में दर्द लेकर उसकी बिदाई का समारोह सजाना गलत होगा। मेरी मानिये आप संसार के सबसे अच्छे पिता हैं चाहे मेरी ना माने आप मगर अपनी लाडली की तो मानेगे जो हर दिन आपको दुनियां का श्रेष्ठ पिता कहती है। ऐसे में आपको मेरे लिए दुःखी होना बिल्कुल शोभा नहीं देता और ना ही मुझे मंजूर है की आप मेरी वजह से दुःखी रहें तरुण।


तरुण का दिल भर आता है जयश्री की बातों से और वो कहता है : तुमने मुझे सदा ही सराहा है, मेरे फैसलों का मान रखा है, मुझे कभी परेशानी में देख तुम खुद बैचैन हो जाती थी, मेरी आँखों की नींद उड़ती तो तुम अपना चैन गवां देती थी, हर कदम मेरा साथ बिना किसी शर्त देती आयी तुम और.... और मैंने क्या किया तुम्हारे साथ देखो जरा... कभी अपने मन की बात भी साझा नहीं करने दिया तुमको मैंने, बस अपनी ही मनमानी करता रहा मैं, सुना ही नहीं तुम्हारे विचारों को, सपनों को क्या जाहिर करती तुम मुझसे जब बोलने ही नहीं दिया अपने समक्ष तुम्हें, कितना ऊँचा और बेहतर मैं ख़ुदको मानता था की, अपनी जीवनसंगिनी की जुबान पर उसके जज़्बात आने देने के काबिल भी नहीं समझा कभी मैंने। मैंने समझा ही नहीं की तुमने दिया सम्मान तो मेरा कद इतना बना रहा और तुमको ही मैं झुका कर बड़ा समझता रहा ख़ुदको। कितनी बार तुमने कहने की कोशिश की, समझाने का प्रयास किया की हम दोनों अब एक हैं, हमारा जीवन धारा अब एक ही दिशा में बहता है, साथ - साथ होकर भी साथ ना चले तो धारा विपरीत होती चली जाएगी और जीवन में मुश्किलों की लहरों का आगमन होना प्रारम्भ हो जायेगा। मगर, मैं गुरुर से भरा नाकारा इंसान इतरा कर अनसुना करता रहा जिसने तुम्हारे ह्रदय को इतना टिस से भर दिया की अपने दर्द भी तुमने अंदर दबा लिए और धीरे - धीरे आँसूओं का नमक तुम्हारी जीने की हर चाहत को झूलसा गया और फिर भी तुम मुझे दुनियाँ का सबसे बेहतर पिता कहा करती हो जया... इतना प्रेम क्यूँ है अबतक मेरी लिए बाकि.... बताओ.... तुम्हारे पिता ने भी मुझे जिम्मेदार समझ तुम्हारा हाथ मेरी हाथ में दिया था। कितनी उम्मीदें होंगी उनको मुझसे है ना, जैसे मुझे दामाद से है आज उतनी रही होंगी ना जया.. मेरी बेटी का पूरा ख़्याल रखें, उसके हर कदम पर साथ दे, सम्मान दे, कभी साथ ना छोड़े, जरुरत पड़ने पर दुनियाँ से उसकी खातिर लड़ जाये, बीमार ना होने दे, निराशा ना होने दे, उदास ना होने दे, सारा संसार उसके क़दमों में लेकर रख दे, उसे बेसुमार प्यार दे, कभी किसी कमी का जिक्र ना करें, कोई उलाहना भूलकर भी ना दे। एक पिता के तौर पर जब मैं ऐसी उम्मीदें लगा रहा हूँ अपने होने वाले दामाद से तो तुम्हारे पिता ने भी यही चाहा होगा ना मुझसे। और मैंने उनका यक़ीन ही नहीं इस रिश्ते का आधार ही तहस - नहस कर तुम्हारे साथ अन्याय करता रहा.... ( फुट - फुटकर कर रोते हुए ) और फिर भी तुम इस दुनियाँ से विदा होकर भी मेरी साथ रहती आयी हो, मेरे पश्चाताप में भी मेरे साथ रही हो तुम.. आख़िर ऐसा हृदय कैसे पाया है तुमने जया...


जया सबकुछ शांति से सुनती रही वो जानती है इन बातों को बहुत वक़्त बीत जाने के बाद भी तरुण उस तकलीफ़ से उबर नहीं पाए हैं जिनके कारण जया घुट - घुट कर जीती रही और अंत में सहन ना कर पाई तरुण का बर्ताव और दुनियाँ त्याग दिया था। मगर, जया के मौत ने उसकी हर खूबी को उजागर कर दिया, कैसे वो तरुण का हिस्सा बन चुकी थी, कैसे वो पूरा समय सिर्फ -और -सिर्फ उसके पारिवार को देती आयी थी, बेटी की कितनी अच्छी तरह देखभाल करती आयी थी, कैसे घर और रिश्तों के हर रंग को उसने उभारा और सहेजती आयी थी, किस कदर तरुण का जीवन आसान और खूबसूरती से भर दिया था। लेकिन, यह सब उसकी जिम्मेदारी थी इसलिए वो करती थी यही मानता था तरुण जया के बारे में। पत्नी का कर्तव्य वो दिलसे निभाती रही क्यूँकि, वो प्यार करती थी तरुण से, इस रिश्ते से, अपनी बेटी से, इस पारिवार से, तरुण के घर - आँगन से, इस घर के कोने - कोने से इसलिए संभालती थी सबकुछ इतने प्यार और जतन से।

मगर, क्या कोई कमी थी जया के प्यार में जो तरुण का दिल नहीं जीत पाई... उसकी सबसे अच्छी दोस्त ना बन पाई... उसे इतना सहज ना कर पाई की हर बात खुलकर साझा ना कर सके ... एक दीवार, एक झिझक, एक हिचकिचाहट से उबर कर प्रेमिका ना बन पाई... प्यार होते हुए भी प्यार जाहिर ना कर पाई...जया ने सपने में भी तरुण में कोई कमी नहीं तलाशी कभी, सोचती थी वही तरुण के काबिल नहीं है और इसलिए उससे खुलकर कुछ कहा नहीं बस घुटती रही दिल - ही - दिल में और इतना कमजोर कर लिया ख़ुदको की एक चोट लगते ही उसने अपनी देह ही त्याग दिया। काश वो यूँ खुदसे नाराज़ रहने की जगह एक बार हिम्मत कर बता देती अपने दिल में दबी इक्छाओं और भावनाओं को तो शायद वक़्त रहते संभाल लेता तरुण टूटती अपनी जया की साँसों की डोर वो।


शर्दी की इस लम्बी रात में तरुण को इस तरह अपनी याद में रोता और तड़पता नहीं देख सकती थी जया। वो तरुण के साथ रो रही है मगर, इस पल के बाद वो नहीं चाहती तरुण कभी भी रोये एक आँसू भी। जया कहती है : मैं तो आज भी आपको हौसला देने आयी थी, आपके साथ हमारी गुड़िया की शादी के बारे में बातें करने आयी थी, उसकी शादी का जोड़ा और गहनों के बारे में जानने और देखने आयी थी, गुड़िया की सास के तेवर जानने आयी थी और पूछने आयी थी की हमारी गुड़िया का होने वाला जीवनसाथी कैसा है... आप पहले जैसे थे वैसा है या आप अब जैसे हैं वैसा है वो...?? मैंने आज एक फैसला किया है तरुण की अब से मैं इस दहलीज पर नहीं आउंगी कभी क्यूँकि, मैं अब आगे कभी आपको मेरी लिए या मेरी कारण दुःखी होते नहीं देख सकती, आपने हमारी गुड़िया की जी - जान लगाकर परवरिश का उसे ये हसीन रिश्ते देने जा रहे हैं तो उनके साथ जुड़ना सत - प्रतिशत सिर्फ और सिर्फ आपका हक़ है। मैं आप दोनों से सदा जुडी रहूंगी मगर, आगे सबकुछ आपको ही निभाना है तरुण। जो हुआ उसे कुरेदने से भरेंगे नहीं जख्म कभी, वक़्त ही अब उनका मरहम बनेगा। आप कभी उदास होना तो यह जरुर सोचना मैं भी पीड़ा में आपकी तड़प रही हूँ देख आपको उदास। आगे सबकुछ आप पर निर्भर है तरुण, यूँ ख़ुदको दोष देना बंद करना होगा आपको आज से, अभी से, इस पल में मुझे वचन दीजिए। और सच कहूँ तो...मैं अब आपकी ख़ुशी का हिस्सा बनकर रहना चाहती हूँ अब इस ग़म से जी घबराता है मेरा तरुण। आपके निस्वार्थ गर्माहट देते हुए इस अंगीठी की कसम जो कभी मेरी याद में एक भी कतरा जमीन पर गिराया।


गुड़िया की शादी सादे समारोह में अच्छी तरह पूरी हुई जैसा गुड़िया और दूल्हे के परिवार वाले चाहते थे। बेटी की बिदाई तक जया कहीं एक पल के लिए भी जब तरुण को नज़र नहीं आयी उसने समझ लिया जया अब कहीं बाहर नहीं उसकी रूह का हिस्सा बनकर उसके अस्तित्व में समाहित हो चुकी है जिसे कोई अलग नहीं कर सकता कभी। तरुण सुकूँ की साँस लेकर मुस्कुरा उठता है...!!









Rate this content
Log in