दोस्त है तो सब मुमकिन है
दोस्त है तो सब मुमकिन है
जागृति बहुत प्यारी और होनहार बच्ची थी। अपने बड़ों की सारी बातें मानती थी और सबसे ज्यादा अपनी माँ की बातें सुनती और उसका पालन करती थी। वैसे भी बच्चे माँ के ज्यादा करीब होते हैं ख़ासकर उन दिनों में जब पिता काम के सिलसिले में घर से ज्यादातर बाहर होते हैं। फिर, घर हो या बाहर हर जगह का काम और जिम्मेदारी माँ ही निभाती है। पढ़ाई से लेकर किसी भी तरह की परेशानियों से जूझना - लड़ना माँ ही सिखाती है। कैसा भी डर हो फ़िक्र हो माँ बखूबी उनसे बाहर निकलना जानती और बताती है। हर मुश्किल को हल करना कितने अच्छे से जानती है माँ। जागृति भी अपनी माँ की तरह सुलझी और हौसले वाली समझदार बनना चाहती थी। लेकिन, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। अभी जागृति बारह साल की होने वाली थी की उसकी माँ एक हादसे में गुजर गई और छोड़ गई उसे बाहर ज्यादा वक़्त बिताने वाले पिता और छः साल के छोटे भाई के साथ।
रिश्तेदारों और दोस्तों ने जागृति के पिता को उनके काम की जिम्मेदारी और बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए दूसरी शादी का सुझाव दिया जो जायज़ भी था उस वक़्त। दूसरी माँ भी जल्दी आ गई जागृति के जीवन में। नई माँ का अभी कोई बच्चा नहीं था फिर भी वो बच्चों से जुड़ने की कोशिश करती थी। खिलाना - नहलाना, तैयार करना, स्कूल भेजना, उनके लिए खरीदारी करना, घर साफ़ - सुथरा रखना, उनके साथ खेलना। लगभग हर वो काम जो एक नई दुल्हन अपने परिवार को छोड़ ससुराल में जाकर करती है। इसके बावजूद जागृति उसे अभी माँ के रूप में स्वीकार नहीं कर पाई थी और अपनी माँ की जगह देना इतना आसान भी नहीं था अभी तो कुछ ही दिन हुए थे नई माँ को इस घर में आए हुए। अभी जैसे बहुत से इम्तिहान बाकी थे नई माँ के लिए दोनों की माँ की जगह लेने के लिए।
जागृति की पक्की दोस्त थी कृष्णा। जागृति की माँ और कृष्णा की माँ भी आपस में गहरी दोस्ती थी। दोनों स्कूल के दिनों से दोस्त थीं। जागृति अपनी माँ के गुजर जाने के बाद कृष्णा की माँ के करीब आने लगी थी। अपनी हर बात वो उनसे कहती थी और उनकी हर बात मानती थी। बारह साल पुरे होते ही जागृति की महावरी सुरु हो गई। उसने अपनी नई माँ से इस बारे में कुछ नहीं बताया ना पूछा। खुद ही अपनी चादर धोई और नहाकर अपने लिए कपड़े का पैड बनाकर लगा लिया और फिर धीरे - धीरे चलकर कृष्णा के घर गई और उसकी माँ को सब बताया। कृष्णा को कुछ महीने पहले ही महावरी सुरु हुए थे जिसका जिक्र कृष्णा ने किया था जागृति से और कृष्णा की माँ ने भी महावरी से जुडी बहुत सी बातें जागृति को बताई और समझाई थीं। कृष्णा की माँ ने वो नियम जागृति के लिए भी किये जो उन्होंने कृष्णा के महावरी सुरु होने पर किये थे। साफ़ - सफाई के नियम भी समझाए और वापस जागृति घर आ गई।
समय गुजरता गया और जागृति और उसका भाई बड़े हो गए। इसी दौरान नई माँ को भी एक बेटा हुआ । पिता को अब जागृति की शादी की फ़िक्र हुई। उन्होंने उसके लिए एक लड़का देखा जो जल्द ही जागृति को देखने के लिए अपने परिवार के साथ आने वाला था। ऐसे में नई माँ को बहुत फ़िक्र होने लगी जागृति की शादी को लेकर। क्यूँकि, उन्हें आजतक यही लग रहा था की, जागृति को महावरी नहीं होते। वो कई बार इस बारे में पूछना और जानना चाहती थीं लेकिन, सीधे तौर पर वो कभी पूछ नहीं पाई वजह थी जागृति का उनसे दूरी बनाये रखना।
अंडर से डर होने के बावजूद वो ख़ामोशी धारण किये हुए थीं। मगर, शादी जैसे फैसले के आने पर उनकी चिंता बढ़ती जा रही थी। वो दरवाजे से जागृति के कमरे में झाँक रही थीं बस अंडर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। ऐसे में जागृति की नज़र उनपर पड़ी और उसने बोला " माँ आप वहाँ क्यों चुपचाप खड़ी हैं आइये ना। कुछ काम था क्या माँ? नई माँ एकदम से जागृति से लिपट कर सुबकने लगती हैं। जागृति कुछ घबरा सी जाती है। माँ क्या हुआ? कुछ बताइये भी। मेरा मन घबरा रहा है माँ। क्यों रो रही हैं आप इस तरह? मुझसे कोई भूल हुई क्या माँ?
नई माँ सुबकते हुए बोली " जागृति मैं तुम्हारी माँ की जगह नहीं ले पाई आजतक बेटा। मैं सिर्फ घर से जुड़ पाई तुमसे नहीं, तुम्हारे मन से नहीं जुड़ पाई। लेकिन, यक़ीन मानो बेटा मैंने अपनी तरफसे कोशिश की तुम्हारी माँ की जगह ना सही बस दोस्त भी बन पाऊं। तुमसे तुम्हारे बारे में सब कुछ जानू और तुमको समझूं। तुम्हारी पसंद - नापसंद और प्यार से, तुम्हारी भावनाओं और दर्द से भी जुड़ पाऊं। मगर, मैं नाकाम रही। एक फासला हमेशा रह गया हमारे बीच जो अब भी है बेटा। जागृति ने शांत कराते हुए अपने बिस्तर पर बिठाया और बोली " ऐसी कोई बात नहीं है माँ। आपने कोई कमी नहीं रखी अपनी तरफ से मैं दिलसे कह रही हूँ। मुझे जरा - सी भी शिकायत नहीं हुई कभी आपसे। हो भी नहीं सकती कभी इतना प्यार दिया है आपने हमेशा। जीतना एक सगी माँ करती है उतना किया है आपने माँ। सुरु में पिताजी का फैसला माँ की जगह आपको देना मुझे गलत लगा था ये सच है मगर, आपके इस घर में आकर इस घर को, पिताजी को और मुझे - भाई को अपना लिया उस स्वाभाव ने मेरे नकारात्मक विचारों को परास्त कर दिया था। तबसे आप ही मेरी माँ हैं यही सच है।
जागृति के सर पर हाथ फेरते हुए नई माँ बोली " मैं कैसे अच्छी माँ हुई जब तुम्हारी महावरी के बारे में तुमसे बात तक नहीं कर पाई कभी। ना कुछ पूछ पाई ना कुछ बता पाई तुम्हें इस बारे में। बिना महावारी के हर लड़की अधूरी है वो कभी औरत बनी बन सकती पूरी तरह से, माँ तो बनना दूर की बात है बेटा। और तुम्हे महावरी नहीं आती। मगर, तुम चिंता मत करो, ना परेशान होना हम कल ही किसी अच्छे चिकित्सक से मिलकर इसका इलाज कराएंगे और देखना तुमको बहुत जल्दी बाकि लड़कियों को तरह महावरी आने लगेगी फिर धूमधाम से ब्याह करेंगे तुम्हारा। माँ की परेशानी की वजह सुनकर जागृति का मन ग्लानि से भर गया। और माँ के आँसू पोंछते हुए धीमी आवाज़ में बोली " माँ चुप हो जाइये कृप्या। मैं नहीं जानती थी इस बात ने आपकी नींद खराब की हुई है, नहीं पता था आप इस वजह से रातों को मेरे कमरे के इर्द - गिर्द घूमती हैं मगर, कुछ पूछती नहीं। ओह्ह! माँ आपने सीधे तौर पर अगर पूछ लिया होता तो मैं जरूर बता देती की, मुझे महावरी होती है। वो भी सही उम्र में सुरु हो चुकी थीं। हाँ उन दिनों आप नई थीं और मैं आपसव बात करने में, कुछ बताने में झिझकती थी माँ इसलिए, कृष्णा की माँ ने मुझे सब समझा दिया था। कृष्णा की महावरी मुझसे पहले सुरु हो गई थी इसलिए काफ़ी कुछ उसने भी बता दिया था। फिर भी माँ, मुझे आपको बताना चाहिए था इस बारे में। और आपने भी माँ इतने दिनों तक मन में रखा ये सवाल क्यों सामने से आकर पूछ लेती तो आपको चिंतित नहीं होना पड़ता।
नई माँ की चिंता दूर हो चुकी थी इसलिए मुस्कुराते हुए बोली " हाँ मुझसे भूल हुई जो खुद पूछने की हिम्मत नहीं की बेटा। मुझे लगा कुछ लड़कियों को समय से पहले आ जाते हैं तो कुछ को देरी से आते हैं। शायद तुमको भी देर से आए। मगर, देखते - देखते चिंता बढ़ने लगी। फिर कई बार लगा तुमसे पूछा और तुमको नहीं हुआ तो चिंता तुम्हारी भी बढ़ जाएगी ये सोच कर की कहीं तुम में कोई कमी तो नहीं है। मगर, अब सब स्पष्ट हो गया। मैं खुश हूँ तुम्हारे लिए और शुक्रगुजार हूँ कृष्णा और उसकी माता जी की जिन्होंने तुमको ऐस समय में सबकुछ समझाया। अब कोई चिंता नहीं है मुझे।देखना हम आगे अब और अच्छे दोस्त बन जाएंगे माँ - बेटी के रिश्ते में रहते हुए। क्यूँकि, अच्छे दोस्त हों जीवन में तो कोई चीज नामुमकिन नहीं सब मुमकिन है।